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कौन हैं निहंग, उनके इतिहास पर एक नजर

खास तरीके से वस्त्र धारण करने वाले निहंगों का इतिहास काफी पुराना रहा है. वे नीले रंग के वस्त्र पहनते हैं. हमेशा हथियार से लैस होते हैं. वे अपने आप को योद्धा कहते हैं. महाराजा रणजीत सिंह की सेना में निहंगों ने काफी अहम भूमिका निभाई थी. हाल ही में निहंग कई वजहों को लेकर चर्चा में रहे हैं. कौन हैं निहंग और क्या है उनका इतिहास, पढ़ें पूरी खबर.

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कॉन्सेप्ट फोटो (निहंग)
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Published : Mar 22, 2021, 5:49 PM IST

हैदराबाद : निहंगों का इतिहास काफी पुराना रहा है. वे अपने आपको सिखों का योद्धा कहते हैं. खालसा पंथ से इनकी शुरूआत मानी जाती है. सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ (1699) की स्थापना की थी. निहंग अपने आप को 'गुरु की लाडली फौज' मानते हैं. छठे गुरु हरगोबिंद सिंह ने 'अकाली सेना' की स्थापना की थी. यह एक सशस्त्र दल था. बाद में यही अकाली सेना 'खालसा फौज' बन गई.

18वीं सदी में अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली ने कई बार हमला किया था. निहंगों ने उसके खिलाफ सिखों की ओर से लड़ाई लड़ी थी. महाराजा रणजीत सिंह की सेना में निहंगों की काफी अहम भूमिका थी.

निहंगों को लेकर कई कहानियां हैं. कुछ इसे खालसा फौज से निकला हुआ मानते हैं. जिस तरह से उदासी संप्रदाय और निर्मल संप्रदाय का इतिहास साफ-साफ पता चलता है, निहंगों की उत्पत्ति को लेकर कुछ भी साफ नहीं है.

निहंग योद्धा होते हैं. पंजाब के ग्रामीण मेले में सबसे अधिक इंतजार निहंगों का ही रहता है. उनके वस्त्र और अस्त्र धारण करने की अलग परंपरा होती है.

पारंपरिक हथियार के साथ-साथ वे आधुनिक हथियार भी चलाना जानते हैं. जंगी कड़ा, लोहे की ब्रासलेट, चक्रम, पगड़ी में बंधा स्टील चकरी से हमेशा वे लैस होते हैं. वे अपने साथ दो तलवार या कृपाण, भाला और छोटे खंजर रखते हैं. अपने साथ लोहे की जंजीर और कवच भी रखते हैं.

वे चमड़े के जूते और नीली रंग के कपड़े पहनते हैं. उनके जूते के अगले हिस्से में धारदार धातु लगा होता है. उनकी पगड़ी आकर्षक होती है. पगड़ी काफी बड़ी होती है. पगड़ी पर खंडा साहिब का चिन्ह लगा होता है.

निहंगों के अपने डेरे होते हैं. उनकी जीवन शैली बिल्कुल अलग होती है.

जिन निहंगों की शादी हो जाती है, उन्हें डेरा संभालने की जिम्मेदारी मिलती है. बाकी निहंग राज्य के अलग-अलग हिस्सों में घूमते रहते हैं. डेरा में लाइसेंसी हथियार और घोड़े रहते हैं. वहां पर मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण दिया जाता है.

साल भर की क्रियाविधि का कैंलेडर तैयार रहता है. अलग-अलग त्योहारों पर कहां-कहां जाना होता है, यह निर्धारित होता है. माघी, बैसाखी, राखड़ पुनिया, दिवाली और जोर मेला जैसे प्रमुख त्योहार हैं, जिसमें निहंग भाग लेते हैं. वे भांग भी खाते हैं. हालांकि वे स्मोकिंग नहीं करते हैं.

निहंग हमेशा ही मुगल शासकों के खिलाफ रहे हैं. उस दौरान उन्होंने स्थानीय लोगों के बचाव में कई बार लड़ाई लड़ी. राम मंदिर के मामले में भी उनका इतिहास रहा है.1858 में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुआ था. इसके अनुसार निहंग इस ढांचे के अंदर गए थे और राम के नाम पर पूजा की थी.

निहंगों ने पंजाब के तरण तारण में दो पुलिसवालों पर जानलेवा हमला किया था. एक पुलिस वाले का हाथ कट गया था. पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में वह मारा गया.

हैदराबाद : निहंगों का इतिहास काफी पुराना रहा है. वे अपने आपको सिखों का योद्धा कहते हैं. खालसा पंथ से इनकी शुरूआत मानी जाती है. सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ (1699) की स्थापना की थी. निहंग अपने आप को 'गुरु की लाडली फौज' मानते हैं. छठे गुरु हरगोबिंद सिंह ने 'अकाली सेना' की स्थापना की थी. यह एक सशस्त्र दल था. बाद में यही अकाली सेना 'खालसा फौज' बन गई.

18वीं सदी में अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली ने कई बार हमला किया था. निहंगों ने उसके खिलाफ सिखों की ओर से लड़ाई लड़ी थी. महाराजा रणजीत सिंह की सेना में निहंगों की काफी अहम भूमिका थी.

निहंगों को लेकर कई कहानियां हैं. कुछ इसे खालसा फौज से निकला हुआ मानते हैं. जिस तरह से उदासी संप्रदाय और निर्मल संप्रदाय का इतिहास साफ-साफ पता चलता है, निहंगों की उत्पत्ति को लेकर कुछ भी साफ नहीं है.

निहंग योद्धा होते हैं. पंजाब के ग्रामीण मेले में सबसे अधिक इंतजार निहंगों का ही रहता है. उनके वस्त्र और अस्त्र धारण करने की अलग परंपरा होती है.

पारंपरिक हथियार के साथ-साथ वे आधुनिक हथियार भी चलाना जानते हैं. जंगी कड़ा, लोहे की ब्रासलेट, चक्रम, पगड़ी में बंधा स्टील चकरी से हमेशा वे लैस होते हैं. वे अपने साथ दो तलवार या कृपाण, भाला और छोटे खंजर रखते हैं. अपने साथ लोहे की जंजीर और कवच भी रखते हैं.

वे चमड़े के जूते और नीली रंग के कपड़े पहनते हैं. उनके जूते के अगले हिस्से में धारदार धातु लगा होता है. उनकी पगड़ी आकर्षक होती है. पगड़ी काफी बड़ी होती है. पगड़ी पर खंडा साहिब का चिन्ह लगा होता है.

निहंगों के अपने डेरे होते हैं. उनकी जीवन शैली बिल्कुल अलग होती है.

जिन निहंगों की शादी हो जाती है, उन्हें डेरा संभालने की जिम्मेदारी मिलती है. बाकी निहंग राज्य के अलग-अलग हिस्सों में घूमते रहते हैं. डेरा में लाइसेंसी हथियार और घोड़े रहते हैं. वहां पर मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण दिया जाता है.

साल भर की क्रियाविधि का कैंलेडर तैयार रहता है. अलग-अलग त्योहारों पर कहां-कहां जाना होता है, यह निर्धारित होता है. माघी, बैसाखी, राखड़ पुनिया, दिवाली और जोर मेला जैसे प्रमुख त्योहार हैं, जिसमें निहंग भाग लेते हैं. वे भांग भी खाते हैं. हालांकि वे स्मोकिंग नहीं करते हैं.

निहंग हमेशा ही मुगल शासकों के खिलाफ रहे हैं. उस दौरान उन्होंने स्थानीय लोगों के बचाव में कई बार लड़ाई लड़ी. राम मंदिर के मामले में भी उनका इतिहास रहा है.1858 में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुआ था. इसके अनुसार निहंग इस ढांचे के अंदर गए थे और राम के नाम पर पूजा की थी.

निहंगों ने पंजाब के तरण तारण में दो पुलिसवालों पर जानलेवा हमला किया था. एक पुलिस वाले का हाथ कट गया था. पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में वह मारा गया.

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