हैदराबाद: एम्स दिल्ली के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने शुक्रवार को कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और एम्स द्वारा संयुक्त सर्वेक्षण के परिणाम में पाया गया कि 18 साल से कम आयु के 55.7 फीसदी और 18 साल से अधिक आयु वर्ग के 63.5 फीसदी पॉजिटिव पाए गए. हालांकि, डॉ. गुलेरिया ने व्यापक परिणामों के लिए एक बड़े राष्ट्रव्यापी सैंपलिंग की आवश्यकता है. डॉ. गुलेरिया ने बताया कि "सर्वेक्षण के नतीजे सकारात्मक हैं.
अध्ययन में क्या पाया गया
अध्ययन के मुताबिक व्यस्कों और बच्चों के बीच संक्रमण के प्रसार के आंकड़ों में कोई ज्यादा अंतर नहीं है. डॉ. गुलेरिया बताते हैं कि "इस अध्ययन में उन बच्चों के बीच सीरो सर्विलांस पर भी ध्यान दिया गया, जो यह नहीं जानते थे कि वे संक्रमित हैं. 18 वर्ष से कम आयु वर्ग में, यह पाया गया कि 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे और कुछ क्षेत्रों में, शहरी और ग्रामीण दोनों जगह के 80 प्रतिशत से अधिक बच्चों में एंटीबॉडी थे, इसका मतलब है कि वे पहले से ही संक्रमित थे और एंटीबॉडी विकसित कर चुके थे"
62 फीसदी लोग हो चुके हैं संक्रमित
अध्ययन के मुताबिक जितनी भी आबादी को इस सर्वे में शामिल किया गया. उसके मुताबिक 62.3 फीसदी लोग संक्रमित हो चुके हैं. जो कि सर्वेक्षण की गई ग्रामीण आबादी के आधे से अधिक है.
'बच्चों के अधिक संक्रमित होने की संभावना नहीं'
दिल्ली एम्स के निदेशक ने कहा है कि सर्वे के आंकड़ों के आधार पर यह कहना गलत होगा कि कोविड-19 से बच्चे अधिक संक्रमित होंगी. इस डेटा के आधार पर यह संभावना नहीं है कि बड़ी संख्या में बच्चे कोरोना से संक्रमित मिलेंगे.
डॉ. गुलेरिया ने कहा कि एक तो ज्यादातर बच्चों को हल्का संक्रमण होता है और वे ठीक हो जाते हैं और दूसरा हमारे देश में कई बच्चे संक्रमित हो चुके हैं. इसलिये उनके फिर से संक्रमित होने की संभावना कम है. इस सर्वे के आंकड़ों या विश्व स्तर पर मौजूद डेटा के आधार पर कह सकते हैं कि बच्चों में गंभीर संक्रमण होने या बड़ी तादाद में बच्चों के संक्रमित होनें की संभावना नहीं है. सर्वे के मुताबिक व्यस्कों के मुकाबले बच्चों में SARS-CoV-2 सीरो-पॉजिटिविटी दर अधिक थी. इसलिए यह संभावना नहीं है कि भविष्य में किसी तीसरी लहर के दौरान दो साल या उससे अधिक उम्र के बच्चों को प्रभावित करेगी.
सर्वे और सैंपल के आंकड़े
डॉ. गुलेरिया ने बताया कि यह अध्ययन हाल के दिनों में किया गया है और इसमें बच्चों और व्यस्क दोनों को कवर किया गया है. सर्वे में 10 हजार सैंपल का अध्ययन किया गया है जिनमें से 4509 सैंपल के आधार पर ये सर्वे रिपोर्ट तैयार की गई है. डॉ. गुलेरिया कहते हैं कि व्यापक परिणामों के लिए अधिक से अधिक सैंपल को सर्वे का हिस्सा बनाने की जरूरत है. आईसीएमआर देशभर में इस तरह का सर्वेक्षण कर रहा है.
बच्चों के बीच सीरो सर्वेक्षण दिल्ली के शहरी, दिल्ली ग्रामीण (दिल्ली एनसीआर के तहत फरीदाबाद जिले के गांव), भुवनेश्वर ग्रामीण, गोरखपुर ग्रामीण और अगरतला ग्रामीण में किया गया था. डेटा संग्रह की अवधि 15 मार्च, 2021 से 10 जून, 2021 तक थी और SARS-CoV-2 वायरस के खिलाफ कुल सीरम एंटीबॉडी का मूल्यांकन एक मानक एलिसा किट का उपयोग करके गुणात्मक रूप से किया गया था.
क्या होता है सीरो सर्वे
सीरो-प्रविलेंस सर्वे में व्यक्ति के रक्त की जांच कर यह पता लगाया जाता है कि उसके शरीर में संक्रमण से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता है या नहीं. सर्वे के तहत पता लगाया जाता है कि कितनी जनसंख्या कोरोना से संक्रमित हुई है और कितने लोग इससे ठीक हो गए हैं. इसे सेरोलॉजी टेस्ट के जरिए किया जाता है. इस जांच में शरीर में खास संक्रमण के खिलाफ बनने वाले एंटीबॉडीज की मौजूदगी का पता लगाया जाता है. जिसमें देखा जाता है कि इम्यून सिस्टम ने इंफेक्शन का जवाब दिया है या नहीं.
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