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क्या है राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, जिसे विपक्ष बता रहा काला कानून

राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार 'राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021' लेकर आई. इसे लेकर कई तरह की आपत्तियां उठीं. महिला एवं बाल अधिकार संरक्षण आयोग को भी कुछ ऐतराज हैं. सरकार ने भी अपने पक्ष रखे हैं. जानिये इस प्रस्तावित कानून के बारे में सब कुछ..

काला कानून
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Published : Sep 21, 2021, 10:23 PM IST

जयपुर : राजस्थान में हाल ही विधानसभा सत्र के दौरान विपक्ष के भारी विरोध के बावजूद राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक 2021 पारित हो गया. सदन में इस विधेयक को काला कानून करार दिया गया. भाजपा की ओर से नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया, उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और अशोक लाहोटी ने कड़ा एतराज दर्ज कराया. कहा गया कि यह कानून हिंदू मैरिज एक्ट के खिलाफ होगा, इस कानून के जरिये राजस्थान में बाल विवाह को वैध ठहराने की तरकीब निकाली गई है.

हालांकि संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने सदन में कहा था कि यह कानून विवाह रजिस्ट्रेशन की अनुमति तो देता है, लेकिन इसमें यह कहीं नहीं कहा गया है कि इससे बाल विवाह को वैधता दे दी जाएगी. फिलहाल इस कानून को लेकर देशभर में चर्चा हो रही है. सवाल यही कि क्या इस कानून के जरिये राजस्थान में बाल विवाहों को बढ़ावा मिलेगा ?

बाल विवाह पर बड़ी बहस, क्या हैं आपत्तियां, क्या हैं तर्कबाल विवाह पर बड़ी बहस, क्या हैं आपत्तियां, क्या हैं तर्क

इसी तरह की चिंता राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग भी जता चुका है. आयोग ने राज्यपाल को चिट्ठी तक लिखकर अपनी चिंता जाहिर की और कहा कि यह कानून बाल विवाह को वैध ठहराता है, इससे नाबालिगों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर गंभीर असर पड़ सकता है. हालांकि राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल का कहना है कि यह कानून बाल विवाह को प्रोत्साहित नहीं करता, सरकार की मंशा लोगों को सरकारी सुविधाओं का लाभ देना है, फिर भी इसे लेकर कोई भ्रांति है तो आयोग सरकार से उन्हें दूर करने की अनुशंसा करेगा.

क्या है राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021

राजस्थान में अनिवार्य विवाह पंजीकरण अधिनियम 2009 में लाया गया था. इसी अधिनियम में कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार ने अब संशोधन करके पेश किया है और विधानसभा में पारित भी कर दिया है. संशोधन विधेयक के उद्देश्य में कहा गया है कि अगर विवाहित जोड़े ने शादी की कानूनी उम्र पूरी नहीं की है, तो माता-पिता या अभिभावक को निर्धारित अवधि (30) के अंदर एक आवेदन जमा कराना होगा. प्रस्तावित कानून के तहत यदि विवाह के समय लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम और लड़के की उम्र 21 वर्ष से कम है, तो माता-पिता या अभिभावकों को 30 दिन के अंदर इसकी जानकारी रजिस्ट्रेशन अधिकारी को देनी होगी. इसके आधार पर रजिस्ट्रेशन अधिकारी बाल विवाह को रजिस्टर्ड कर पाएंगे. पहले यह रजिस्ट्रेशन जिला लेवल पर होता था. लेकिन अब नए कानून के जरिये ब्लॉक लेवल पर ही विवाह का रजिस्ट्रेशन कराया जा सकेगा.

विधेयक को लेकर क्या हैं आपत्तियां

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की आपत्ति है कि राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक 2021 बाल विवाह को वैध ठहराता है. इससे नाबालिगों की सेहत और तालीम पर गंभीर असर होगा. विधेयक में कहा गया है कि विवाह पंजीकरण अधिकारी के जरिये उस ब्लॉक में बाल विवाह का पंजीकरण किया जाएगा, जहां दोनों 30 से ज्यादा दिनों से रह रहे होंगे.

हालांकि राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की संगीता बेनीवाल ने राज्य सरकार का बचाव करने की कोशिश की है. संगीता बेनीवाल का कहना है कि यह विधेयक बाल विवाह को सही नहीं ठहराता है, फिर भी इसे लेकर भ्रांतियां हैं तो आयोग राज्य सरकार से अपील करेगा कि इन भ्रांतियों को दूर किया जाए. हमने फुल कमीशन की बैठक बुलाई है. सामाजिक संगठनों से भी बात की है. इस विधेयक को लेकर चर्चा की जाएगी, इसमें संशोधन लायक जो तथ्य सामने आएंगे, उन्हें सरकार के सामने पेश किया जाएगा. संगीता बेनीवाल ने कहा कि हमने राज्य में बाल विवाह को रोकने के लिए हमेशा कठोर कदम उठाए हैं.

पढ़ें : राजस्थान के भीलवाड़ा पहुंचे RSS प्रमुख मोहन भागवत, जैन समाज के संतों से बंद कमरे में की मंत्रणा

संगीता बेनीवाल ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम केंद्र सरकार लेकर आई थी. इसलिये अगर इस अधिनियम में कोई बदलाव भी किया जायेगा तो वह केंद्र की ओर से ही होगा.

भारतीय जनता पार्टी ने विधेयक को कानून के खिलाफ और हिंदू मैरिज एक्ट के विरुद्ध बताया है. सीधा तर्क है कि जब राजस्थान में बाल विवाह कानून के खिलाफ है तो इसके रजिस्ट्रेशन की बातें क्यों की जा रही हैं. ऐसे में तो बाल विवाह भी होंगे और उनका रजिस्ट्रेशन भी होगा. यह विधेयक बाल विवाह को सही ठहराता है. आज जब लोग बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं से दूर हो रहे हैं, ऐसे में सरकार बाल विवाह को सही ठहरा रही है. राजस्थान विधानसभा देश में गलत संदेश प्रसारित कर रही है.

विपक्ष का मुख्य विरोध धारा-8 में संशोधन को लेकर है. धारा-8 में नाबालिगों के विवाह की स्थित में माता-पिता अथवा अभिभावक को 30 दिन में विवाह पंजीकरण के लिए रजिस्ट्रार को ज्ञापन देना होता था, नया कानून तो सीधे 30 दिनों में विवाह रजिस्टर्ड कराने का अवसर दे रहा है. नए कानून के तहत 18 वर्ष की होने पर विवाहित लड़की स्वयं विवाह पंजीकरण के लिए आवेदन कर सकती है.

क्या है सरकार का पक्ष

राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक 2021 को लेकर सरकार का पक्ष है कि प्रस्तावित कानून विवाह के पंजीकरण की अनुमति देता है. लेकिन यह कहीं नहीं कहा गया है कि राजस्थान सरकार बाल विवाह को वैध करार दे रही है. अगर सच में बाल विवाह हुआ है तो जिलाधिकारी और संबंधित अधिकारी ऐसे परिवारों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करेंगे.

सरकार का यह भी तर्क है कि प्रस्तावित कानून केंद्रीय अधिनियम के विरुद्ध नहीं जाता. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विवाह का पंजीकरण अनिवार्य है, भले विवाहित जोड़ा बालिग हो या नाबालिग.

कहीं यह विरोधाभास तो नहीं...

वूमैन चाइल्ड एक्टिविस्ट और बाल विवाह सर्वाइवल रहीं भाग्यश्री सैनी ने इस विधेयक पर कड़ा एतराज जताया है. वे कहती हैं तो हम कुरीतियों को समाज से हटाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं या उन्हें फिर से स्थापित करने के लिए. 2006 के अधिनियम के तहत बाल विवाह दंडनीय अपराध है. बाल विवाह करवाने और इस आयोजन में शामिल होने वाले सभी लोग दोषी होते हैं, उन्हें कारावास की सजा हो सकती है. लेकिन यह नया कानून तो कहता है कि अगर बाल विवाह हो भी गया है तो आइये और रजिस्ट्रेशन करा लीजिये.

भाग्यश्री का कहना है कि इससे कर्नाटक जैसे राज्यों ने 2017 में बाल विवाह जैसी कुप्रथा को पूरी तरह खत्म कर दिया है. जबकि राजस्थान इस तरह के विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए रास्ते निकाल रहा है. उन्होंने कहा कि संज्ञेय अपराध की श्रेणी के कार्य को कानूनी जामा पहनाने का विरोधाभासी कार्य क्यों किया जा रहा है, यह समझ से परे है.

जयपुर : राजस्थान में हाल ही विधानसभा सत्र के दौरान विपक्ष के भारी विरोध के बावजूद राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक 2021 पारित हो गया. सदन में इस विधेयक को काला कानून करार दिया गया. भाजपा की ओर से नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया, उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और अशोक लाहोटी ने कड़ा एतराज दर्ज कराया. कहा गया कि यह कानून हिंदू मैरिज एक्ट के खिलाफ होगा, इस कानून के जरिये राजस्थान में बाल विवाह को वैध ठहराने की तरकीब निकाली गई है.

हालांकि संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने सदन में कहा था कि यह कानून विवाह रजिस्ट्रेशन की अनुमति तो देता है, लेकिन इसमें यह कहीं नहीं कहा गया है कि इससे बाल विवाह को वैधता दे दी जाएगी. फिलहाल इस कानून को लेकर देशभर में चर्चा हो रही है. सवाल यही कि क्या इस कानून के जरिये राजस्थान में बाल विवाहों को बढ़ावा मिलेगा ?

बाल विवाह पर बड़ी बहस, क्या हैं आपत्तियां, क्या हैं तर्कबाल विवाह पर बड़ी बहस, क्या हैं आपत्तियां, क्या हैं तर्क

इसी तरह की चिंता राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग भी जता चुका है. आयोग ने राज्यपाल को चिट्ठी तक लिखकर अपनी चिंता जाहिर की और कहा कि यह कानून बाल विवाह को वैध ठहराता है, इससे नाबालिगों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर गंभीर असर पड़ सकता है. हालांकि राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल का कहना है कि यह कानून बाल विवाह को प्रोत्साहित नहीं करता, सरकार की मंशा लोगों को सरकारी सुविधाओं का लाभ देना है, फिर भी इसे लेकर कोई भ्रांति है तो आयोग सरकार से उन्हें दूर करने की अनुशंसा करेगा.

क्या है राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021

राजस्थान में अनिवार्य विवाह पंजीकरण अधिनियम 2009 में लाया गया था. इसी अधिनियम में कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार ने अब संशोधन करके पेश किया है और विधानसभा में पारित भी कर दिया है. संशोधन विधेयक के उद्देश्य में कहा गया है कि अगर विवाहित जोड़े ने शादी की कानूनी उम्र पूरी नहीं की है, तो माता-पिता या अभिभावक को निर्धारित अवधि (30) के अंदर एक आवेदन जमा कराना होगा. प्रस्तावित कानून के तहत यदि विवाह के समय लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम और लड़के की उम्र 21 वर्ष से कम है, तो माता-पिता या अभिभावकों को 30 दिन के अंदर इसकी जानकारी रजिस्ट्रेशन अधिकारी को देनी होगी. इसके आधार पर रजिस्ट्रेशन अधिकारी बाल विवाह को रजिस्टर्ड कर पाएंगे. पहले यह रजिस्ट्रेशन जिला लेवल पर होता था. लेकिन अब नए कानून के जरिये ब्लॉक लेवल पर ही विवाह का रजिस्ट्रेशन कराया जा सकेगा.

विधेयक को लेकर क्या हैं आपत्तियां

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की आपत्ति है कि राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक 2021 बाल विवाह को वैध ठहराता है. इससे नाबालिगों की सेहत और तालीम पर गंभीर असर होगा. विधेयक में कहा गया है कि विवाह पंजीकरण अधिकारी के जरिये उस ब्लॉक में बाल विवाह का पंजीकरण किया जाएगा, जहां दोनों 30 से ज्यादा दिनों से रह रहे होंगे.

हालांकि राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की संगीता बेनीवाल ने राज्य सरकार का बचाव करने की कोशिश की है. संगीता बेनीवाल का कहना है कि यह विधेयक बाल विवाह को सही नहीं ठहराता है, फिर भी इसे लेकर भ्रांतियां हैं तो आयोग राज्य सरकार से अपील करेगा कि इन भ्रांतियों को दूर किया जाए. हमने फुल कमीशन की बैठक बुलाई है. सामाजिक संगठनों से भी बात की है. इस विधेयक को लेकर चर्चा की जाएगी, इसमें संशोधन लायक जो तथ्य सामने आएंगे, उन्हें सरकार के सामने पेश किया जाएगा. संगीता बेनीवाल ने कहा कि हमने राज्य में बाल विवाह को रोकने के लिए हमेशा कठोर कदम उठाए हैं.

पढ़ें : राजस्थान के भीलवाड़ा पहुंचे RSS प्रमुख मोहन भागवत, जैन समाज के संतों से बंद कमरे में की मंत्रणा

संगीता बेनीवाल ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम केंद्र सरकार लेकर आई थी. इसलिये अगर इस अधिनियम में कोई बदलाव भी किया जायेगा तो वह केंद्र की ओर से ही होगा.

भारतीय जनता पार्टी ने विधेयक को कानून के खिलाफ और हिंदू मैरिज एक्ट के विरुद्ध बताया है. सीधा तर्क है कि जब राजस्थान में बाल विवाह कानून के खिलाफ है तो इसके रजिस्ट्रेशन की बातें क्यों की जा रही हैं. ऐसे में तो बाल विवाह भी होंगे और उनका रजिस्ट्रेशन भी होगा. यह विधेयक बाल विवाह को सही ठहराता है. आज जब लोग बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं से दूर हो रहे हैं, ऐसे में सरकार बाल विवाह को सही ठहरा रही है. राजस्थान विधानसभा देश में गलत संदेश प्रसारित कर रही है.

विपक्ष का मुख्य विरोध धारा-8 में संशोधन को लेकर है. धारा-8 में नाबालिगों के विवाह की स्थित में माता-पिता अथवा अभिभावक को 30 दिन में विवाह पंजीकरण के लिए रजिस्ट्रार को ज्ञापन देना होता था, नया कानून तो सीधे 30 दिनों में विवाह रजिस्टर्ड कराने का अवसर दे रहा है. नए कानून के तहत 18 वर्ष की होने पर विवाहित लड़की स्वयं विवाह पंजीकरण के लिए आवेदन कर सकती है.

क्या है सरकार का पक्ष

राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक 2021 को लेकर सरकार का पक्ष है कि प्रस्तावित कानून विवाह के पंजीकरण की अनुमति देता है. लेकिन यह कहीं नहीं कहा गया है कि राजस्थान सरकार बाल विवाह को वैध करार दे रही है. अगर सच में बाल विवाह हुआ है तो जिलाधिकारी और संबंधित अधिकारी ऐसे परिवारों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करेंगे.

सरकार का यह भी तर्क है कि प्रस्तावित कानून केंद्रीय अधिनियम के विरुद्ध नहीं जाता. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विवाह का पंजीकरण अनिवार्य है, भले विवाहित जोड़ा बालिग हो या नाबालिग.

कहीं यह विरोधाभास तो नहीं...

वूमैन चाइल्ड एक्टिविस्ट और बाल विवाह सर्वाइवल रहीं भाग्यश्री सैनी ने इस विधेयक पर कड़ा एतराज जताया है. वे कहती हैं तो हम कुरीतियों को समाज से हटाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं या उन्हें फिर से स्थापित करने के लिए. 2006 के अधिनियम के तहत बाल विवाह दंडनीय अपराध है. बाल विवाह करवाने और इस आयोजन में शामिल होने वाले सभी लोग दोषी होते हैं, उन्हें कारावास की सजा हो सकती है. लेकिन यह नया कानून तो कहता है कि अगर बाल विवाह हो भी गया है तो आइये और रजिस्ट्रेशन करा लीजिये.

भाग्यश्री का कहना है कि इससे कर्नाटक जैसे राज्यों ने 2017 में बाल विवाह जैसी कुप्रथा को पूरी तरह खत्म कर दिया है. जबकि राजस्थान इस तरह के विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए रास्ते निकाल रहा है. उन्होंने कहा कि संज्ञेय अपराध की श्रेणी के कार्य को कानूनी जामा पहनाने का विरोधाभासी कार्य क्यों किया जा रहा है, यह समझ से परे है.

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