पटना: डीएम जी कृष्णैया की हत्या के दोषी और बाहुबली नेता रहे आनंद मोहन को समय से पहले जेल से रिहा करने के लिए नीतीश कुमार ने जेल का नियम बदल डाला. आनंद मोहन की रिहाई की हड़बड़ी इतनी कि जिन 27 कैदियों को रिहा करने की लिस्ट नीतीश सरकार ने जारी की उसमें से बक्सर के एक 93 साल के कैदी की पहले ही मौत हो चुकी है. बिहार के किसी भी राजनीतिक दल को आनंद मोहन की रिहाई को लेकर ऐतराज नहीं है.
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बिहार में राजपूत वोटों की ताकत : दरअसल, बिहार में राजपूत एक प्रभावशाली जाति हैं, जिस वजह से तमाम सियासी दल इस समुदाय पर अपनी पकड़ खोना नहीं चाहते है. अगर आंकड़ों पर गौर करे तो बिहार में राजपूत की आबादी करीब 5 से 6 फीसदी है. बिहार विधानसभा में 30 से 35 सीटों पर और लोकसभा में 7 से 8 सीटों पर राजपूत समुदाय निर्णायक भूमिका अदा करती है. 2024 लोकसभा चुनाव की जंग में अभी से सियासी दलों की इस वोट बैंक पर नजर है.
बिहार में राजपूत वोटों पर BJP का दबदबा : अगर 2019 लोकसभा चुनाव पर नजर डाले तो बीजेपी ने 5 राजपूत को टिकट दिया था और सभी 5 चुनकर संसद पहुंचे थे, जिनमें आरा से आर के सिंह, छपरा से राजीव प्रताप रूडी, चंपारण से राधामोहन सिंह, महाराजगंज से जनार्दन सिग्रीवाल और औरंगाबाद से सुशील सिंह हैं. 2020 विधानसभा चुनाव में राजपूत वोट बैंक पर सबकी नजर थी. ऐसे में 243 सीटों में से 28 राजपूत जीतकर विधानसभा पहुंचे, जिनमें सबसे ज्यादा बीजेपी के 15, आरजेडी के 7, जेडीयू के 2, वीआई के 2 और एक निर्दलीय शामिल है.
''देखिए 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर आनंद मोहन की प्रासांगिकता बढ़ गई है. पिछे मुड़कर देखें तो उनकी (आनंद मोहन) ताकत का अंदाजा सबको है. आज एक बार फिर हर दल की कोशिश है कि जो जिस जाति से आता हैं उसकी सहानुभूति उसके साथ हो, जिसके लोकसभा चुनाव की राह आसान हो सकते.'' - कौशलेंद्र प्रियदर्शी, वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक
अगड़ी जाति के वोटरों पर निशानाः बता जेडीयू की करें तो नीतीश कुमार की पार्टी को अगड़ी जाति का वोट मिलता रहा है. पार्टी के अंदर कई अगड़ी जाति के नेता भी हैं. जेडीयू की शुरू से मंशा रही कि आनंद मोहन के पक्ष में आवाज बुलंद कर वोट बैंक को सशक्त किया जाए. उधर, बीजेपी भी इस बाहुबली में अपना भविष्य तलाश रही है. राजपूत बीजेपी का कोर वोटर है. ऐसे में बीजेपी कोई किसी भी सूरत में उसे अपने हाथों से खिसकने नहीं देना चाहेगी. फिलहाल बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केन्द्रीय मंत्री के बयानों से तो ऐसा ही लगता है.
"बीजेपी को यह पता होना चाहिए कि नीतीश कुमार के सुशासन में आम और खास व्यक्ति में कोई अंतर नही किया जाता है. उन्होंने (आनंद मोहन) पूरी सजा काट ली और जो छूट किसी भी सजायाफ्ता को मिलती है वह छूट उन्हें नहीं मिल पा रही थी क्योंकि खास लोगो के लिए नियम में प्रावधान किया हुआ था. नीतीश कुमार ने आम और खास के अंतर को समाप्त है. अब भाजपाइयों के पेट में न जाने दर्द क्यों होने लगा है.'' - ललन सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, जेडीयू
''बेचारे आनंद मोहन काफी समय तक जेल में रहे, वे तो बलि का बकरा बन गए थे. उनकी रिहाई हुई ये कोई बड़ी बात नहीं है. हां लेकिन उनकी (आनंद मोहन) आड़ में जिन और 26 लोगों को छोड़ा गया है उसके बारे में समाज पूछ रहा है.'' - गिरिराज सिंह, बीजेपी नेता व केन्द्रीय मंत्री
आनंद मोहन की रिहाई अन्याय- उमा देवी : वहीं, आईएएस जी कृष्णैया की पत्नी उमा देवी ने बिहार सरकार के फैसले पर दुख जताया. उन्होंने नीतीश सरकार पर सवाल उठाते हुए इस फैसले को गलत और अन्याय करार दिया उमा देवी ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से मामले में दखल देने की अपील की है.
''नीतीश कुमार हत्या के दोषी को रिहा करके गलत मिसाल कायम कर रहे हैं. ये कदम अपराधियों को सरकारी अधिकारियों पर हमला करने के लिए प्रोत्साहित करेगा क्योंकि उन्हें पता है कि वो आसानी से जेल से बाहर निकल सकते हैं. चंद राजपूत वोटों के लिए ये फैसला लिया गया है. नीतीश कुमार कुछ सीटें जीतकर सरकार बना सकते हैं लेकिन क्या लोग ऐसे नेताओं और ऐसी सरकार पर विश्वास करेंगे?'' - उमा देवी, जी कृष्णैया पत्नी
आनंद मोहन.. जेल से कैसे हुई रिहाई : दरअसल, बिहार में महागठबंधन की सरकार ने पिछले दिनों कारागार नियमों में बदलाव किया, जिस वजह से आनंद मोहन की रिहाई संभव हो पाई. बिहार सरकार ने उस नियमावली में संशोधन किया, जिसमें जेल में आजीवन सजा काट रहे कैदियों के अच्छे व्यवहार होने के बावजूद सरकारी अफसरों के कातिलों को रिहाई देने पर रोक लगी थी. लेकिन नीतीश सरकार ने बिहार जेल नियमाबली 2012 नियम 481 (1)ए में संशोधन किया. जिसके बाद राज्य के गृह विभाग ने नोटिफिकेशन जारी कर दिया.
आनंद मोहन.. पर क्या था आरोप: 5 दिसंबर 1994, बिहार के मुजफ्फपुर में छोटन शुक्ला नाम के एक अपराधी की हत्या के बाद जिले के लोग आक्रोशित थे और सड़क पर प्रदर्शन कर रहे थे. इस दौरान वहां से अपनी गाड़ी से गुजर रहे गोपालगंज के तात्कालीन डीएम जी कृष्णैया पर भीड़ ने हमला कर दिया. डीएम की को बीच सड़क पर गोली मार दी गई. बताया गया कि भीड़ को बाहुबली आनंद मोहन ने उकसाया था. जिसके बाद आनंद मोहन, उनकी पत्नी समेत छह लोगों को नामजद किया गया था.
कोर्ट... फांसी की सजा, उम्र कैद में बदली : यह मामला कोर्ट में पहुंचा 2007 में पटना हाईकोर्ट ने बाहुबली को दोषी करार दिया और फांसी की सजा सुनाई, जानकारी के मुताबिक आजाद भारत में किसी राजनेता को पहली बार फांसी की सजा सुनाई गई थी. हालांकि एक साल बाद कोर्ट ने फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया. 2012 में आनंद मोहन सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. कोर्ट से आनंद मोहन ने सजा कम करने की मांग की, सुप्रीम कोर्ट ने मामला खारिज कर दिया.
आनंद मोहन का सियासी सफर : आनंद मोहन 90 के दशक के चर्चित नेता रहे हैं. 1990 में बिहार विधानसभा चुनाव में जनता दल के टिकट पर विजयी हुए थी. लालू प्रसाद से ठन जाने के बाद उन्होंने 1993 में बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थापना की. 1994 के वैशाली लोकसभा उपचुनाव में उनकी पत्नी लवली आनंद ने जीत दर्ज की थी. उसके बाद आनंद का ग्राफ और उछला. 1995 में समता पार्टी भी मैदान में उतरी. ये वक्त ऐसा था जब एक वर्ग आनंद मोहन में भावी मुख्यमंत्री के रूप में देख रहा था.
आनंद मोहन 1996 और 98 में शिवहर से दो बार सांसद रहे. आंनद मोहन की बिहार पीपुल्स पार्टी अब अस्तिव में नहीं है. 90 के दशक में आनंद मोहन लालू प्रसाद यादव के विरोध की राजनीति कर रहे थे. लेकिन आज की तारीख में उनके पुत्र चेतन आनंद राजद से विधायक हैं. उनकी पत्नी लवली आनंद भी राजद में ही हैं.
कौन थे जी कृष्णैया ? : जी कृष्णैया तेलंगाना के महबूबनगर के निवासी थे. कृष्णैया 1985 बिहार कैडर के आईएएस अधिकारी थे. जी कृष्णैया 1994 में गोपालगंज के डीएम यानी जिलाधिकारी थे.