मायापुर : पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में मायापुर और पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए भी यह एक सपने के पूरा होने जैसा है. इस सपने की शुरुआत साल 1976 में हुई थी. 45 साल से भी ज्यादा का समय बीत चुका है और अब जाकर यह सपना साकार होने जा रहा है. कुछ ही सालों में पश्चिम बंगाल में विश्व का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर 2024 तक बनकर तैयार हो जाएगा. यह मंदिर जिसका नाम वैदिक प्लैनेटेरियम है, मायापुर में बनाया जा रहा है और आकार के मामले में यह मंदिर अन्य सभी को पीछे छोड़ देगा. इस मंदिर के तैयार होते ही यह ताज महल, सेंट पॉल चर्च जैसी आधुनिक सभ्यता की पहचान मानी जाने वाली इमारतों की लिस्ट में शामिल हो जाएगा. इस मंदिर में करीब 10,000 भक्त एक साथ प्रार्थना कर सकते हैं.
इस्कॉन के संस्थापक ने रखी थी नींव - मायापुर में बनाया जा रहा वैदिक प्लैनेटेरियम इस्कॉन का मुख्य केंद्र होने वाला है. साल 1976 में इस्कॉन के संस्थापक सबसे पहले प्लैनेटेरियम को बनाने का सपना देखा था. उनका मानना था कि इस्कॉन मंदिर से हटकर एक अलग इमारत होनी चाहिए, यहां वैदिक ज्ञान और विज्ञान को सीखा जा सके. यहां से लोगों को यह जानकारी भी मिले कि इस दुनिया की संरचना कैसे हुई. वह वैदिक ज्ञान के बारे में जागरूकता को फैलना चाह रहे थे.
साल 2016 में बनकर होना था तैयार- फरवरी 2014 में इस इमारत का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। वैदिक प्लैनेटेरियम देखने में यूएस कैपिटल इमारत जैसा लगता है और इसे साल 2016 तक बन कर तैयार होना था, लेकिन इसका निर्माण कार्य कई कारणों के चलते पूरा नहीं हो पाया. इन कारणों में एक कोरोना महामारी का फैलना भी था, जिसके चलते इसका निर्माण कार्य बाधित हुआ.
साल 2024 में मंदिर की होगी शुरुआत- मायापुर इस्कॉन मंदिर के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर, रसिक गौरंग दास ने बताया कि 'अब बताया जा रहा है कि यह मंदिर साल 2024 में बनकर तैयार हो जाएगा. श्री प्रभुपदा का सपना मायापुर में दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू बनाने का था और उनका यह सपना निर्माण के पथ पर है. अनुयायियों की मदद से यह मंदिर साल 2024 में बनकर तैयार हो जाएगा और इसका उद्घाटन भी कर दिया जाएगा. पूरी दुनिया के लोग यहां शांति पाने के लिए आएंगे.'
फोर्ड मोटर कंपनी के मालिक ने भी किया दान- ऐसी जानकारी भी सामने आई है कि इस मंदिर को बनावाने में एलफर्ड फोर्ड ने भी एक अहम भूमिका निभाई है. भविष्य में फोर्ड मोटर कंपनी का मालिकाना हक इन्हीं के हाथों में रहेगा. एलफर्ड फोर्ड ने साल 1975 में इस्कॉन को अपनाया था और अपने नाम को बदलकर अम्बरीश दास कर दिया था. उन्होंने इसके लिए 30 मिलियन डॉलर का दान भी दिया है.
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