नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा मामले में एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका पर केंद्र, पश्चिम बंगाल सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें पश्चिम बंगाल में हाल में हुए विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा की जांच एसआईटी (SIT) से कराने की मांग की गई है. शीर्ष ने गुरुवार को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह नोटिस जारी किया.
पश्चिम बंगाल की एक 60 वर्षीय महिला और एक 17 वर्षीय नाबालिग लड़की ने हाल ही में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा का समर्थन करने पर तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं की ओर से महिलाओं का सामूहिक दुष्कर्म करने के साथ ही लोगों के साथ हिंसा का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
यौन हिंसा की एसआईटी जांच की मांग
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी याचिकाओं में महिलाओं ने अपने मामलों में अदालत की निगरानी में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) या विशेष जांच दल (एसआईटी) जांच की भी मांग की है. यौन हिंसा की एसआईटी जांच की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग आवेदन दायर किए गए हैं.
महिलाओं विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा की सभी घटनाओं की एसआईटी जांच की मांग की है. 60 वर्षीय महिला ने आरोप लगाया कि उसके छह वर्षीय पोते के सामने टीएमसी कार्यकर्ताओं ने 4-5 मई की मध्यरात्रि को उसके साथ दुष्कर्म किया और इसे चुनाव के बाद की प्रकृति का एक जीवंत उदाहरण करार दिया. आरोप लगाया गया है कि सत्ताधारी पार्टी का विरोध करने वालों के परिवार के सदस्यों के खिलाफ पूरे राज्य में हिंसा देखी गई है.
महिला ने कहा कि दो मई को चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद, 100-200 लोगों की भीड़, जिसमें मुख्य रूप से तृणमूल समर्थक शामिल थे, ने उन्हें घेर लिया और परिवार को घर छोड़ने के लिए कहा.
एसआईटी जांच की मांग करते हुए, महिला ने कहा कि स्थानीय पुलिस द्वारा की जा रही जांच की विकृतता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि दुष्कर्म पांच आरोपियों द्वारा किया गया था, जिनके नाम दुष्कर्म पीड़िता द्वारा लिए गए थे, मगर पुलिस ने जानबूझकर प्राथमिकी में पांच आरोपियों में से केवल एक का नाम ही चुना है.
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अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के जरिए दाखिल याचिका में कहा गया है कि असाधारण परिस्थितियों में जनहित याचिका दाखिल की गई है क्योंकि पश्चिम बंगाल के हजारों नागरिकों को विधानसभा चुनाव के दौरान विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का समर्थन करने के लिए टीएमसी के कार्यकर्ता उन्हें धमका रहे, प्रताड़ित कर रहे.
याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता पश्चिम बंगाल के उन हजारों नागरिकों के हितों की वकालत कर रहे हैं जो ज्यादातर हिंदू हैं और भाजपा का समर्थन करने के लिए मुसलमानों द्वारा उन्हें निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वे हिंदुओं को कुचलना चाहते हैं ताकि आने वाले वर्षों में सत्ता उनकी पसंद की पार्टी के पास बनी रहे.
याचिका में कहा गया कि भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करने वाली बिगड़ती स्थिति को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद 355 और अनुच्छेद 356 द्वारा प्रदत्त अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए।. इसमें कहा गया है कि दो मई को विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के तुरंत बाद, टीएमसी कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने अराजकता फैलाना, अशांति पैदा करना शुरू कर दिया और हिंदुओं के घरों और संपत्तियों में आग लगा दी, लूटपाट की और उनका सामान लूट लिया क्योंकि उन्होंने विधानसभा चुनाव में भाजपा का समर्थन किया था. याचिका में कहा गया है कि हिंसा की घटनाओं के दौरान कम से कम 15 भाजपा कार्यकर्ताओं, समर्थकों की जान चली गयी और कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए.
याचिका में कहा गया कि इन परिस्थितियों में, अदालत के तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है और अदालत विरोधी पक्षों को आदेश जारी कर सकती है ताकि पश्चिम बंगाल की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार कार्य करे और निरंतर उल्लंघन के मामले में भारत सरकार को संविधान के अनुच्छेद 355 और 356 के तहत उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया जा सकता है.
याचिका में आरोप लगाया गया है कि विधानसभा चुनाव के दौरान, टीएमसी ने "मुसलमानों की भावनाओं को जगाने और उनसे एकजुट रहने और अपने बेहतर भविष्य के लिए अपनी पार्टी को वोट देने की अपील करते हुए" सांप्रदायिक आधार पर चुनाव लड़ा था.
शीर्ष अदालत पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा से जुड़ी कई याचिकाओं पर पहले से सुनवाई कर रही है.
गौरतलब है कि दो मई को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद राज्य में कई जगहों पर हिंसा हुई थी. भाजपा का आरोप है कि टीएमसी कार्यकर्ताओं ने उसके समर्थकों को खिलाफ हिंसा की और उनके घरों को जला दिया. हिंसा में उसके कई कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है.