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कृषि लोन का लक्ष्य पूरा न करने पर ममता सरकार ने बैंकों के प्रति जताई नाराजगी

इस बैठक में राज्य के कृषि सचिव ओंकार सिंह मीणा भी मौजूद थे. उन्होंने कहा कि अक्सर एसएलबीसी, पश्चिम बंगाल की त्रैमासिक बैठकों या उप-समिति की बैठकों में लिए गए निर्णय बैंक शाखा स्तर के जमीनी स्तर तक नहीं पहुंचते हैं और इसलिए वार्षिक ऋण योजना और वास्तविक ऋण संवितरण के बीच की खाई चौड़ी हो जाती है.

किसानों की हालत चिंताजनक
किसानों की हालत चिंताजनक
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Published : Jan 8, 2022, 3:16 AM IST

कोलकाता: पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने राज्य में कृषि क्षेत्र के लिए वार्षिक लोन योजना को पूरा करने में आनाकानी कर रहे बैंकों पर नाराजगी जाहिर की है. इससे पहले पिछले साल 28 दिसंबर, 2021 को राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) की त्रैमासिक बैठक में राज्य के प्रमुख वित्तीय सलाहकार और राज्य के पूर्व वित्त मंत्री डॉ अमित मित्रा ने इस मुद्दे पर गहरी पीड़ा व्यक्त की थी.

बैठक में मित्रा ने कहा कि चालू वित्त वर्ष 2021-22 के पहले छह महीनों में बैंकों ने केवल 27,952 करोड़ रुपये का कृषि ऋण वितरित किया है, जो वार्षिक ऋण योजना का बमुश्किल 32 प्रतिशत है. उनके अनुसार, किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के रिकॉर्ड भी उतने ही दयनीय हैं. मित्रा ने कहा कि बैठक में बैंकों ने 13.87 लाख केसीसी का भौतिक रूप से वितरण किया है, जो कि 35 लाख के वार्षिक ऋण योजना लक्ष्य का सिर्फ 40 फीसद है.

इस बैठक में राज्य के कृषि सचिव ओंकार सिंह मीणा भी मौजूद थे. उन्होंने कहा कि अक्सर एसएलबीसी, पश्चिम बंगाल की त्रैमासिक बैठकों या उप-समिति की बैठकों में लिए गए निर्णय बैंक शाखा स्तर के जमीनी स्तर तक नहीं पहुंचते हैं और इसलिए वार्षिक ऋण योजना और वास्तविक ऋण संवितरण के बीच की खाई चौड़ी हो जाती है. उन्होंने बैंकिंग प्रतिनिधियों से बैठक में लिए गए निर्णयों का पालन करने के लिए शाखा स्तर के अधिकारियों को अद्यतन करने का अनुरोध किया. वहीं, बैठक में उपस्थित बैंकिंग प्रतिनिधि इस मामले को देखेंगे ताकि शाखा स्तर के अधिकारी एसएलबीसी की त्रैमासिक बैठकों या उप-समिति की बैठकों में लिए गए निर्णय को लागू कर सकें.

बता दें, अमित मित्रा एक बार फिर पश्चिम बंगाल छात्र क्रेडिट कार्ड योजना के तहत ऋण देने के लिए बैंकों की ओर से कथित अनिच्छा के खिलाफ मुखर हो गए. उन्होंने आरोप लगाया कि सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के बड़े बैंकों ने इस मामले में अनिच्छा दिखाई है. उन्होंने कहा कि अभी तक बैंकों ने केवल 7,000 ऋण आवेदन स्वीकृत किए हैं और अन्य 30,000 को अस्थायी स्वीकृति दी है. बैठक में राज्य के मुख्य सचिव एचके द्विवेदी भी मौजूद थे. उन्होंने कहा कि अनिच्छा के कारण योजना का मूल उद्देश्य कुंठित हो रहा है.

भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य महाप्रबंधक रुमा डे और बैंक ऑफ बड़ौदा के उप महाप्रबंधक पीके दास ने राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को आश्वासन दिया कि उनके बोर्ड ने इस योजना को मंजूरी दे दी है और बैंक जल्द ही इस योजना में शामिल हो जाएंगे.

कोलकाता: पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने राज्य में कृषि क्षेत्र के लिए वार्षिक लोन योजना को पूरा करने में आनाकानी कर रहे बैंकों पर नाराजगी जाहिर की है. इससे पहले पिछले साल 28 दिसंबर, 2021 को राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) की त्रैमासिक बैठक में राज्य के प्रमुख वित्तीय सलाहकार और राज्य के पूर्व वित्त मंत्री डॉ अमित मित्रा ने इस मुद्दे पर गहरी पीड़ा व्यक्त की थी.

बैठक में मित्रा ने कहा कि चालू वित्त वर्ष 2021-22 के पहले छह महीनों में बैंकों ने केवल 27,952 करोड़ रुपये का कृषि ऋण वितरित किया है, जो वार्षिक ऋण योजना का बमुश्किल 32 प्रतिशत है. उनके अनुसार, किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के रिकॉर्ड भी उतने ही दयनीय हैं. मित्रा ने कहा कि बैठक में बैंकों ने 13.87 लाख केसीसी का भौतिक रूप से वितरण किया है, जो कि 35 लाख के वार्षिक ऋण योजना लक्ष्य का सिर्फ 40 फीसद है.

इस बैठक में राज्य के कृषि सचिव ओंकार सिंह मीणा भी मौजूद थे. उन्होंने कहा कि अक्सर एसएलबीसी, पश्चिम बंगाल की त्रैमासिक बैठकों या उप-समिति की बैठकों में लिए गए निर्णय बैंक शाखा स्तर के जमीनी स्तर तक नहीं पहुंचते हैं और इसलिए वार्षिक ऋण योजना और वास्तविक ऋण संवितरण के बीच की खाई चौड़ी हो जाती है. उन्होंने बैंकिंग प्रतिनिधियों से बैठक में लिए गए निर्णयों का पालन करने के लिए शाखा स्तर के अधिकारियों को अद्यतन करने का अनुरोध किया. वहीं, बैठक में उपस्थित बैंकिंग प्रतिनिधि इस मामले को देखेंगे ताकि शाखा स्तर के अधिकारी एसएलबीसी की त्रैमासिक बैठकों या उप-समिति की बैठकों में लिए गए निर्णय को लागू कर सकें.

बता दें, अमित मित्रा एक बार फिर पश्चिम बंगाल छात्र क्रेडिट कार्ड योजना के तहत ऋण देने के लिए बैंकों की ओर से कथित अनिच्छा के खिलाफ मुखर हो गए. उन्होंने आरोप लगाया कि सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के बड़े बैंकों ने इस मामले में अनिच्छा दिखाई है. उन्होंने कहा कि अभी तक बैंकों ने केवल 7,000 ऋण आवेदन स्वीकृत किए हैं और अन्य 30,000 को अस्थायी स्वीकृति दी है. बैठक में राज्य के मुख्य सचिव एचके द्विवेदी भी मौजूद थे. उन्होंने कहा कि अनिच्छा के कारण योजना का मूल उद्देश्य कुंठित हो रहा है.

भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य महाप्रबंधक रुमा डे और बैंक ऑफ बड़ौदा के उप महाप्रबंधक पीके दास ने राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को आश्वासन दिया कि उनके बोर्ड ने इस योजना को मंजूरी दे दी है और बैंक जल्द ही इस योजना में शामिल हो जाएंगे.

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