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चीन से फिलहाल हमारा ज्यादा सहयोग नहीं : केंद्र

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Published : Aug 23, 2021, 9:40 PM IST

केंद्र सरकार ने कहा है कि भारत का फिलहाल चीन के साथ ज्यादा सहयोग नहीं है और जहां तक ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmaputra river) की हाइड्रोलॉजिकल जानकारी (hydrological information) साझा करने का सवाल है, इसे पेमेंट के आधार पर साझा किया जा रहा है.

ब्रह्मपुत्र नदी
ब्रह्मपुत्र नदी

नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने कहा है कि भारत का फिलहाल चीन के साथ ज्यादा सहयोग नहीं है और जहां तक ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmaputra river), जिसे चीन में यलुजांगबू कहा जाता है, की हाइड्रोलॉजिकल जानकारी (hydrological information) साझा करने का सवाल है, इसे पेमेंट के आधार पर साझा किया जा रहा है.

जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग (department of water resources, river development and Ganga rejuvenation) के अधिकारियों ने कहा, 'चीन एक ऐसा देश है, जिसके साथ फिलहाल हमारा ज्यादा सहयोग नहीं है, लेकिन वह भुगतान के आधार पर कम से कम यह डेटा साझा कर रहा है.'

उन्होंने कहा कि हम नेपाल से भी डेटा लेते हैं, लेकिन नेपाल हमसे कुछ भी चार्ज नहीं कर रहा है, लेकिन चीन हमें इस डेटा की आपूर्ति के लिए चार्ज कर रहा है. ब्रह्मपुत्र में हमें बाढ़ के मौसम के दौरान तीन स्टेशनों का डेटा मिलता है, यानी 15 मई से 15 अक्टूबर तक, हमें जल स्तर, प्रवाह और वर्षा पर डेटा मिलता है.

चीन के साथ समझौता ज्ञापन ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदी (Brahmaputra and Sutlej river) से संबंधित है. जल संसाधन पर संसदीय स्थायी समिति (Parliamentary standing committee on water resources) की ताजा रिपोर्ट में अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि समझौते पांच-पांच साल के होते हैं और उनका लगातार नवीनीकरण किया जा रहा है.

ब्रह्मपुत्र बेसिन में बाढ़ (Floods in Brahmaputra basin) अक्सर तबाही मचाती है और वर्ष 2000 में एक बड़ी बाढ़ ने कई लोगों की जान, बुनियादी ढांचे और अन्य संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया, जिसके बाद पूर्व चेतावनी प्रणालियों के लिए सीमा पार सहयोग की आवश्यकता थी.

तदनुसार, भारत और चीन के बीच जनवरी 2002 में एक समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding) पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें चीन द्वारा बाढ़ के मौसम में ब्रह्मपुत्र नदी की जल विज्ञान संबंधी जानकारी को भारत में ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet Autonomous Region) में तीन स्टेशनों नुगेशा, यांगकुन और नुक्सिया के लिए साझा किया गया था.

समझौता ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य मुख्य रूप से अरुणाचल प्रदेश, असम और आगे के निचले इलाकों में बाढ़ नियंत्रण और आपदा न्यूनीकरण (control and disaster mitigation) है.

वहीं, हाइड्रोलॉजिकल डेटा में जल स्तर, वर्षा और निर्वहन शामिल हैं. समझौता ज्ञापन जून 2008, को मई 2013 और जून 2018 में पांच वर्षों के लिए नवीनीकृत किया गया था.

इसके बाद, वर्ष 2005 में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में परीचु झील का एक खंडन हुआ, जिसके कारण भारत में सतलुज नदी में भीषण बाढ़ आ गई. इससे हिमाचल प्रदेश में जान-माल का नुकसान हुआ.

इस प्रकार सतलुज नदी (चीन में लैंगकेन जांगबो कहा जाता है) के लिए पूर्व चेतावनी प्रणालियों के लिए सीमा पार सहयोग की आवश्यकता भी महसूस की गई.

इस प्रकार, चीन द्वारा भारत को बाढ़ के मौसम में सतलुज नदी की जल विज्ञान संबंधी जानकारी के प्रावधान के साथ अप्रैल, 2005 में चीन (People's Republic of China ) के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए थे.

पढ़ें - यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एल्ब्रुस पर उत्तराखंड की बेटी शीतल ने लहराया तिरंगा

इस एमओयू के तहत चीनी पक्ष सतलुज स्थित त्सदा स्टेशन की हाइड्रोलॉजिकल जानकारी मुहैया कराता है. इस एमओयू की वैधता पांच साल है. समझौता ज्ञापन 2010 और नवंबर, 2015 में अगले पांच वर्षों के लिए नवीनीकृत किया गया था.

यह कहते हुए कि केंद्र ब्रह्मपुत्र नदी के सभी घटनाक्रमों की सावधानीपूर्वक निगरानी करता है, अधिकारियों ने कहा कि जांगमू में एक जलविद्युत परियोजना (hydropower project at Zangmu) को अक्टूबर 2015 में चीनी अधिकारियों द्वारा पूरी तरह से चालू घोषित किया गया था.

अधिकारियों ने कहा कि सीमा पार नदियों के पानी के लिए काफी स्थापित उपयोगकर्ता अधिकारों के साथ एक निचले तटवर्ती राज्य के रूप में, केंद्र सरकार ने लगातार चीनी अधिकारियों को अपने विचारों और चिंताओं से अवगत कराया है और उनसे यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि निले राज्यों के हितों को नुकसान न पहुंचे.

अधिकारियों ने कहा कि चीनी पक्ष ने हमें कई मौकों पर बताया है कि वे केवल नदी के बहाव वाली जलविद्युत परियोजनाएं चला रहे हैं, जिनमें ब्रह्मपुत्र के पानी को मोड़ना शामिल नहीं है.

अधिकारी ने कहा कि चीन के साथ सीमा पार नदियों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर संस्थागत विशेषज्ञ स्तर के तंत्र के तहत चर्चा की जाती है, जिसे राजनयिक चैनलों के माध्यम से 2006 में स्थापित किया गया था.

नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने कहा है कि भारत का फिलहाल चीन के साथ ज्यादा सहयोग नहीं है और जहां तक ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmaputra river), जिसे चीन में यलुजांगबू कहा जाता है, की हाइड्रोलॉजिकल जानकारी (hydrological information) साझा करने का सवाल है, इसे पेमेंट के आधार पर साझा किया जा रहा है.

जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग (department of water resources, river development and Ganga rejuvenation) के अधिकारियों ने कहा, 'चीन एक ऐसा देश है, जिसके साथ फिलहाल हमारा ज्यादा सहयोग नहीं है, लेकिन वह भुगतान के आधार पर कम से कम यह डेटा साझा कर रहा है.'

उन्होंने कहा कि हम नेपाल से भी डेटा लेते हैं, लेकिन नेपाल हमसे कुछ भी चार्ज नहीं कर रहा है, लेकिन चीन हमें इस डेटा की आपूर्ति के लिए चार्ज कर रहा है. ब्रह्मपुत्र में हमें बाढ़ के मौसम के दौरान तीन स्टेशनों का डेटा मिलता है, यानी 15 मई से 15 अक्टूबर तक, हमें जल स्तर, प्रवाह और वर्षा पर डेटा मिलता है.

चीन के साथ समझौता ज्ञापन ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदी (Brahmaputra and Sutlej river) से संबंधित है. जल संसाधन पर संसदीय स्थायी समिति (Parliamentary standing committee on water resources) की ताजा रिपोर्ट में अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि समझौते पांच-पांच साल के होते हैं और उनका लगातार नवीनीकरण किया जा रहा है.

ब्रह्मपुत्र बेसिन में बाढ़ (Floods in Brahmaputra basin) अक्सर तबाही मचाती है और वर्ष 2000 में एक बड़ी बाढ़ ने कई लोगों की जान, बुनियादी ढांचे और अन्य संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया, जिसके बाद पूर्व चेतावनी प्रणालियों के लिए सीमा पार सहयोग की आवश्यकता थी.

तदनुसार, भारत और चीन के बीच जनवरी 2002 में एक समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding) पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें चीन द्वारा बाढ़ के मौसम में ब्रह्मपुत्र नदी की जल विज्ञान संबंधी जानकारी को भारत में ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet Autonomous Region) में तीन स्टेशनों नुगेशा, यांगकुन और नुक्सिया के लिए साझा किया गया था.

समझौता ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य मुख्य रूप से अरुणाचल प्रदेश, असम और आगे के निचले इलाकों में बाढ़ नियंत्रण और आपदा न्यूनीकरण (control and disaster mitigation) है.

वहीं, हाइड्रोलॉजिकल डेटा में जल स्तर, वर्षा और निर्वहन शामिल हैं. समझौता ज्ञापन जून 2008, को मई 2013 और जून 2018 में पांच वर्षों के लिए नवीनीकृत किया गया था.

इसके बाद, वर्ष 2005 में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में परीचु झील का एक खंडन हुआ, जिसके कारण भारत में सतलुज नदी में भीषण बाढ़ आ गई. इससे हिमाचल प्रदेश में जान-माल का नुकसान हुआ.

इस प्रकार सतलुज नदी (चीन में लैंगकेन जांगबो कहा जाता है) के लिए पूर्व चेतावनी प्रणालियों के लिए सीमा पार सहयोग की आवश्यकता भी महसूस की गई.

इस प्रकार, चीन द्वारा भारत को बाढ़ के मौसम में सतलुज नदी की जल विज्ञान संबंधी जानकारी के प्रावधान के साथ अप्रैल, 2005 में चीन (People's Republic of China ) के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए थे.

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इस एमओयू के तहत चीनी पक्ष सतलुज स्थित त्सदा स्टेशन की हाइड्रोलॉजिकल जानकारी मुहैया कराता है. इस एमओयू की वैधता पांच साल है. समझौता ज्ञापन 2010 और नवंबर, 2015 में अगले पांच वर्षों के लिए नवीनीकृत किया गया था.

यह कहते हुए कि केंद्र ब्रह्मपुत्र नदी के सभी घटनाक्रमों की सावधानीपूर्वक निगरानी करता है, अधिकारियों ने कहा कि जांगमू में एक जलविद्युत परियोजना (hydropower project at Zangmu) को अक्टूबर 2015 में चीनी अधिकारियों द्वारा पूरी तरह से चालू घोषित किया गया था.

अधिकारियों ने कहा कि सीमा पार नदियों के पानी के लिए काफी स्थापित उपयोगकर्ता अधिकारों के साथ एक निचले तटवर्ती राज्य के रूप में, केंद्र सरकार ने लगातार चीनी अधिकारियों को अपने विचारों और चिंताओं से अवगत कराया है और उनसे यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि निले राज्यों के हितों को नुकसान न पहुंचे.

अधिकारियों ने कहा कि चीनी पक्ष ने हमें कई मौकों पर बताया है कि वे केवल नदी के बहाव वाली जलविद्युत परियोजनाएं चला रहे हैं, जिनमें ब्रह्मपुत्र के पानी को मोड़ना शामिल नहीं है.

अधिकारी ने कहा कि चीन के साथ सीमा पार नदियों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर संस्थागत विशेषज्ञ स्तर के तंत्र के तहत चर्चा की जाती है, जिसे राजनयिक चैनलों के माध्यम से 2006 में स्थापित किया गया था.

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