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WB govt vs governor : SC ने बंगाल के विश्वविद्यालयों को लेकर राज्यपाल के रवैय्ये पर जताया असंतोष

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 6, 2023, 7:25 PM IST

पश्चिम बंगाल के विश्वविद्यालयों में नियुक्ति का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. शीर्ष कोर्ट ने शुक्रवार को विश्वविद्यालयों में कुलपतियों के लिए तदर्थ प्राधिकरण पर राज्यपाल के प्रति असंतोष व्यक्त किया. ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता सुमित सक्सेना की रिपोर्ट.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पश्चिम बंगाल के कई विश्वविद्यालयों में कुलपतियों (वीसी) के लिए तदर्थ प्राधिकरण के मुद्दे पर विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति, राज्यपाल सीवी आनंद बोस के रवैय्ये के प्रति अपना असंतोष व्यक्त किया (WB govt vs governor).

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने राज्य सरकार द्वारा दायर एक आवेदन पर नोटिस जारी किया और चांसलर से जवाब मांगा, साथ ही यह भी निर्देश दिया कि ऐसे अधिकृत कुलपतियों का वेतन और भत्ते उसी वेतन-ग्रेड में होंगे जिसके लिए वे मूल रूप से अधिकृत थे और वीसी का नहीं. पीठ ने चांसलर को इस तरह के प्राधिकरण/नियुक्तियां आगे से करने से भी रोक दिया.

पीठ ने यह भी पूछा कि एक संवैधानिक प्राधिकारी होने के नाते चांसलर राज्य या एक अन्य संवैधानिक प्राधिकारी होने के नाते मुख्यमंत्री के साथ बैठकर इस मुद्दे को क्यों नहीं सुलझा सकते, जबकि अदालत ने पहले ही दिन इसका सुझाव दिया था.

पश्चिम बंगाल सरकार ने पीठ को सूचित किया कि न तो राज्यपाल और न ही यूजीसी ने नियमित कुलपतियों की नियुक्ति के लिए एक खोज समिति के लिए अपने नामांकित व्यक्तियों की मांग करने वाले किसी भी संचार का जवाब दिया है.

सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार का प्रतिनिधित्व कर रही वकील आस्था शर्मा के साथ वरिष्ठ वकील ए एम सिंघवी ने कहा कि इस अदालत द्वारा नोटिस जारी करने के बाद भी मामला लंबित है. विश्वविद्यालयों में कई नियुक्तियां की गई हैं. इस बात पर जोर दिया गया कि यह निष्पक्ष नहीं है.

वकील ने कहा कि नियुक्ति आदेश में यह भी उल्लेख नहीं है कि ये नियुक्तियां इस मुकदमे के नतीजे के अधीन होंगी. पीठ ने कहा कि वह उन्हें कार्यवाहक कुलपति के रूप में बने रहने की अनुमति देती है, लेकिन वे किसी भी भत्ते के हकदार नहीं होंगे.

शीर्ष अदालत ने सभी पक्षों से खोज और चयन समिति के गठन के लिए नामांकन देने/फिर से नामांकन करने को कहा. मुख्यमंत्री और पश्चिम बंगाल राज्य उच्च शिक्षा परिषद के नामांकित व्यक्तियों को जोड़ने के राज्य सरकार के अनुरोध पर, पीठ ने कहा कि नामांकित व्यक्ति जमा करें और श्रेणी का उल्लेख करें और 'हम देखेंगे कि कानूनों के आधार पर उक्त समिति का गठन कैसे किया जाए.'

शीर्ष अदालत ने संबंधित पक्षों से वर्तमान मामले में एक तंत्र विकसित करने के संबंध में उस पर भरोसा करने को कहा. कोर्ट ने कहा कि वह देखेंगे कि क्या नामांकित व्यक्तियों में से किसी एक को अदालत नियुक्त करती है और वह उस नामित व्यक्ति को अध्यक्ष बनाने पर भी विचार कर सकती है. पीठ ने दलीलों को एक सप्ताह के भीतर पूरा करने का निर्देश दिया और आगे के निर्देशों के लिए मामले की अगली सुनवाई 31 अक्टूबर को निर्धारित की.

पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के 13 राज्य-संचालित विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की शॉर्टलिस्टिंग और नियुक्ति के लिए एक खोज समिति के नामांकन के लिए प्रसिद्ध वैज्ञानिकों, तकनीशियनों, प्रशासकों, शिक्षाविदों, न्यायविदों या किसी अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तित्व के नाम मांगे थे. इससे पहले, उच्च न्यायालय ने माना था कि चांसलर के पास प्रासंगिक अधिनियमों के अनुसार कुलपतियों को नियुक्त करने की शक्ति है.

याचिकाकर्ता सनत कुमार घोष ने हाईकोर्ट में दायर की थी और पश्चिम बंगाल सरकार ने दावा किया कि राज्य संचालित विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति के आदेश अवैध थे क्योंकि ऐसी नियुक्तियां करने से पहले उच्च शिक्षा विभाग से राज्यपाल द्वारा परामर्श नहीं किया गया था.

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न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने राज्य सरकार द्वारा दायर एक आवेदन पर नोटिस जारी किया और चांसलर से जवाब मांगा, साथ ही यह भी निर्देश दिया कि ऐसे अधिकृत कुलपतियों का वेतन और भत्ते उसी वेतन-ग्रेड में होंगे जिसके लिए वे मूल रूप से अधिकृत थे और वीसी का नहीं. पीठ ने चांसलर को इस तरह के प्राधिकरण/नियुक्तियां आगे से करने से भी रोक दिया.

पीठ ने यह भी पूछा कि एक संवैधानिक प्राधिकारी होने के नाते चांसलर राज्य या एक अन्य संवैधानिक प्राधिकारी होने के नाते मुख्यमंत्री के साथ बैठकर इस मुद्दे को क्यों नहीं सुलझा सकते, जबकि अदालत ने पहले ही दिन इसका सुझाव दिया था.

पश्चिम बंगाल सरकार ने पीठ को सूचित किया कि न तो राज्यपाल और न ही यूजीसी ने नियमित कुलपतियों की नियुक्ति के लिए एक खोज समिति के लिए अपने नामांकित व्यक्तियों की मांग करने वाले किसी भी संचार का जवाब दिया है.

सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार का प्रतिनिधित्व कर रही वकील आस्था शर्मा के साथ वरिष्ठ वकील ए एम सिंघवी ने कहा कि इस अदालत द्वारा नोटिस जारी करने के बाद भी मामला लंबित है. विश्वविद्यालयों में कई नियुक्तियां की गई हैं. इस बात पर जोर दिया गया कि यह निष्पक्ष नहीं है.

वकील ने कहा कि नियुक्ति आदेश में यह भी उल्लेख नहीं है कि ये नियुक्तियां इस मुकदमे के नतीजे के अधीन होंगी. पीठ ने कहा कि वह उन्हें कार्यवाहक कुलपति के रूप में बने रहने की अनुमति देती है, लेकिन वे किसी भी भत्ते के हकदार नहीं होंगे.

शीर्ष अदालत ने सभी पक्षों से खोज और चयन समिति के गठन के लिए नामांकन देने/फिर से नामांकन करने को कहा. मुख्यमंत्री और पश्चिम बंगाल राज्य उच्च शिक्षा परिषद के नामांकित व्यक्तियों को जोड़ने के राज्य सरकार के अनुरोध पर, पीठ ने कहा कि नामांकित व्यक्ति जमा करें और श्रेणी का उल्लेख करें और 'हम देखेंगे कि कानूनों के आधार पर उक्त समिति का गठन कैसे किया जाए.'

शीर्ष अदालत ने संबंधित पक्षों से वर्तमान मामले में एक तंत्र विकसित करने के संबंध में उस पर भरोसा करने को कहा. कोर्ट ने कहा कि वह देखेंगे कि क्या नामांकित व्यक्तियों में से किसी एक को अदालत नियुक्त करती है और वह उस नामित व्यक्ति को अध्यक्ष बनाने पर भी विचार कर सकती है. पीठ ने दलीलों को एक सप्ताह के भीतर पूरा करने का निर्देश दिया और आगे के निर्देशों के लिए मामले की अगली सुनवाई 31 अक्टूबर को निर्धारित की.

पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के 13 राज्य-संचालित विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की शॉर्टलिस्टिंग और नियुक्ति के लिए एक खोज समिति के नामांकन के लिए प्रसिद्ध वैज्ञानिकों, तकनीशियनों, प्रशासकों, शिक्षाविदों, न्यायविदों या किसी अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तित्व के नाम मांगे थे. इससे पहले, उच्च न्यायालय ने माना था कि चांसलर के पास प्रासंगिक अधिनियमों के अनुसार कुलपतियों को नियुक्त करने की शक्ति है.

याचिकाकर्ता सनत कुमार घोष ने हाईकोर्ट में दायर की थी और पश्चिम बंगाल सरकार ने दावा किया कि राज्य संचालित विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति के आदेश अवैध थे क्योंकि ऐसी नियुक्तियां करने से पहले उच्च शिक्षा विभाग से राज्यपाल द्वारा परामर्श नहीं किया गया था.

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