ETV Bharat / bharat

गहराता जा रहा पानी का संकट, जल संरक्षण के उपाय बेहद जरूरी

देश की 64 फीसदी सिंचाई जरूरतों के लिए भूजल का उपयोग होता है. ग्रामीण पेयजल जरूरतों के लिए 85 फीसदी और शहरी जरूरतों के लिए 50 फीसदी से अधिक भूजल का उपयोग किया जाता है. भारत दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है. हर साल 25,000 करोड़ क्यूबिक मीटर से अधिक भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है. जिससे पानी का गंभीर संकट खड़ा होने का खतरा बढ़ गया है. जानिए क्या कहते हैं शहरी विकास मामलों के विशेषज्ञ पुलुर सुधाकर.

Water
Water
author img

By

Published : Apr 12, 2021, 8:54 PM IST

हैदराबाद : औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भूजल के बड़े पैमाने पर उपयोग से शहरों में पानी की भारी कमी हो रही है. 1998-2020 के दौरान बेंगलुरु, दिल्ली और अहमदाबाद में भूजल स्तर 80 प्रतिशत तक गिर गया है. यदि यही प्रवृत्ति जारी रही, तो पानी की कमी का गंभीर खतरा बढ़ जाएगा.

तेजी से बढ़ रहा पानी का संकट

जल संकट दुनिया भर के शहरों को प्रभावित कर रहा है. इसका कारण भूजल की कमी से उत्पन्न खतरा है. इससे प्रभावित भारत दुनिया के 30 देशों में से एक है. हाल ही में जारी अमेरिकी जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार हैदराबाद, दिल्ली, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे शहर डे जीरो 'Day Zero' की स्थिति के बहुत करीब हैं. 2019 में चेन्नई में हुई पानी की कमी हाल ही में लॉकडाउन की याद दिलाती है. जब होटल, रेस्तरां और व्यवसाय बंद हो गए.

वर्ल्ड वाइड फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की रिपोर्ट है कि अगर प्रभावी जल संरक्षण के उपाय नहीं किए गए, तो 2030 तक देश के सभी प्रमुख शहरों को पानी की सख्त कमी का सामना करना पड़ेगा. जल दबाव सूचकांक के अनुसार भारत जल संकट के जोखिम वाले देशों में 46वें स्थान पर है.

व्यवस्था के सामने की चुनौतियां

भूजल की कमी का मुख्य कारण तेजी से शहरीकरण, पानी की बढ़ती खपत, जलवायु परिवर्तन और जल संसाधनों का विनाश है. नीती आयोग द्वारा जारी 'एकीकृत जल प्रबंधन सूचकांक' के अनुसार प्रवास की वजह से शहरों में भीड़भाड़ के कारण पानी की खपत दोगुनी हो रही है. आंकड़े बताते हैं कि 1990 के बाद से प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1.5 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से घट रही है. भारत में शहरों की औसत जनसंख्या वृद्धि दर 49% है. 2035 तक लगभग 15 करोड़ शहरी आबादी को अपनी पानी की जरूरतों को पूरा करना होगा.

नगर पालिकाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती एक व्यापक कार्य योजना तैयार करना है, जो सीमित जल संसाधनों के साथ बढ़ती आबादी की पानी की जरूरतों को पूरा कर सके. हमारे देश की पहचान जलवायु परिवर्तन भेद्यता सूचकांक में एक उच्च खतरे वाले देश के रूप में की गई है. अध्ययनों से पता चलता है कि 2060 तक देश के प्रमुख शहरों में 2015 की तुलना में लगातार पांच प्रतिशत अधिक पानी की कमी होगी. संरक्षित पेयजल आपूर्ति नहीं होने के कारण देश में हर साल दो लाख लोग बीमारियों के कारण मर जाते हैं.

नीति आयोग के अनुसार पानी की गंभीर कमी के कारण सकल घरेलू उत्पाद का नुकसान प्रति वर्ष छह प्रतिशत है. औद्योगिक कचरे के कारण शहरों में जल संसाधन प्रदूषित हो रहे हैं और लोगों को बीमार बना रहे हैं. देश में लगातार बढ़ते जल संकट को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए विशेष योजनाएं तैयार की हैं. सरकार का लक्ष्य 2024 तक देशभर में नलों के माध्यम से पीने का पानी उपलब्ध कराना है और प्रमुख शहरों में सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए अमृत योजना शुरू की है.

पानी की कमी का खतरा

पानी की बढ़ती मांग का मतलब है जल संसाधनों पर बढ़ता दबाव. इस पृष्ठभूमि के खिलाफ मजबूत जल संरक्षण उपाय बहुत आवश्यक हैं. उद्योगों में सौर ऊर्जा का उपयोग पानी के उपयोग को कम कर सकता है. केवल आठ प्रतिशत वर्षा जल वापस जमीन में जाता है. पानी की हर बूंद को जमीन पर संरक्षित और बहाल करने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए. जल संचयन गड्ढों को व्यापक रूप से बढ़ावा दिया जाना चाहिए. शुद्ध अपशिष्ट जल का उपयोग औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए.

औद्योगिक अपशिष्टों को नदी के पानी में प्रवेश से रोकने के लिए सख्त नियंत्रण लागू किया जाना चाहिए. शहरों में तालाबों और झीलों के अतिक्रमण को रोका जाना चाहिए और उन्हें पेयजल जलाशयों के रूप में पुनर्जीवित किया जाना चाहिए. शहरों में पीने के पानी की आपूर्ति में कमी को कम किया जाना चाहिए. नागरिकों को पानी की प्रत्येक बूंद को बहुत मूल्यवान समझना चाहिए और अत्यंत सावधानी के साथ उपयोग करना चाहिए.

यह भी पढ़ें-भारत ने 'स्पूतनिक-वी' वैक्सीन को दी आपातकालीन मंजूरी

नागरिकों और सरकारों के सामूहिक प्रयासों से, ठोस योजना और कुशल जल प्रबंधन प्रणालियों को प्रौद्योगिकी के साथ जोड़ा गया है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी को कुशल जल संरक्षण और प्रबंधन प्रथाओं का पालन करना कर्तव्य और जिम्मेदारी है.

हैदराबाद : औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भूजल के बड़े पैमाने पर उपयोग से शहरों में पानी की भारी कमी हो रही है. 1998-2020 के दौरान बेंगलुरु, दिल्ली और अहमदाबाद में भूजल स्तर 80 प्रतिशत तक गिर गया है. यदि यही प्रवृत्ति जारी रही, तो पानी की कमी का गंभीर खतरा बढ़ जाएगा.

तेजी से बढ़ रहा पानी का संकट

जल संकट दुनिया भर के शहरों को प्रभावित कर रहा है. इसका कारण भूजल की कमी से उत्पन्न खतरा है. इससे प्रभावित भारत दुनिया के 30 देशों में से एक है. हाल ही में जारी अमेरिकी जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार हैदराबाद, दिल्ली, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे शहर डे जीरो 'Day Zero' की स्थिति के बहुत करीब हैं. 2019 में चेन्नई में हुई पानी की कमी हाल ही में लॉकडाउन की याद दिलाती है. जब होटल, रेस्तरां और व्यवसाय बंद हो गए.

वर्ल्ड वाइड फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की रिपोर्ट है कि अगर प्रभावी जल संरक्षण के उपाय नहीं किए गए, तो 2030 तक देश के सभी प्रमुख शहरों को पानी की सख्त कमी का सामना करना पड़ेगा. जल दबाव सूचकांक के अनुसार भारत जल संकट के जोखिम वाले देशों में 46वें स्थान पर है.

व्यवस्था के सामने की चुनौतियां

भूजल की कमी का मुख्य कारण तेजी से शहरीकरण, पानी की बढ़ती खपत, जलवायु परिवर्तन और जल संसाधनों का विनाश है. नीती आयोग द्वारा जारी 'एकीकृत जल प्रबंधन सूचकांक' के अनुसार प्रवास की वजह से शहरों में भीड़भाड़ के कारण पानी की खपत दोगुनी हो रही है. आंकड़े बताते हैं कि 1990 के बाद से प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1.5 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से घट रही है. भारत में शहरों की औसत जनसंख्या वृद्धि दर 49% है. 2035 तक लगभग 15 करोड़ शहरी आबादी को अपनी पानी की जरूरतों को पूरा करना होगा.

नगर पालिकाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती एक व्यापक कार्य योजना तैयार करना है, जो सीमित जल संसाधनों के साथ बढ़ती आबादी की पानी की जरूरतों को पूरा कर सके. हमारे देश की पहचान जलवायु परिवर्तन भेद्यता सूचकांक में एक उच्च खतरे वाले देश के रूप में की गई है. अध्ययनों से पता चलता है कि 2060 तक देश के प्रमुख शहरों में 2015 की तुलना में लगातार पांच प्रतिशत अधिक पानी की कमी होगी. संरक्षित पेयजल आपूर्ति नहीं होने के कारण देश में हर साल दो लाख लोग बीमारियों के कारण मर जाते हैं.

नीति आयोग के अनुसार पानी की गंभीर कमी के कारण सकल घरेलू उत्पाद का नुकसान प्रति वर्ष छह प्रतिशत है. औद्योगिक कचरे के कारण शहरों में जल संसाधन प्रदूषित हो रहे हैं और लोगों को बीमार बना रहे हैं. देश में लगातार बढ़ते जल संकट को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए विशेष योजनाएं तैयार की हैं. सरकार का लक्ष्य 2024 तक देशभर में नलों के माध्यम से पीने का पानी उपलब्ध कराना है और प्रमुख शहरों में सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए अमृत योजना शुरू की है.

पानी की कमी का खतरा

पानी की बढ़ती मांग का मतलब है जल संसाधनों पर बढ़ता दबाव. इस पृष्ठभूमि के खिलाफ मजबूत जल संरक्षण उपाय बहुत आवश्यक हैं. उद्योगों में सौर ऊर्जा का उपयोग पानी के उपयोग को कम कर सकता है. केवल आठ प्रतिशत वर्षा जल वापस जमीन में जाता है. पानी की हर बूंद को जमीन पर संरक्षित और बहाल करने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए. जल संचयन गड्ढों को व्यापक रूप से बढ़ावा दिया जाना चाहिए. शुद्ध अपशिष्ट जल का उपयोग औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए.

औद्योगिक अपशिष्टों को नदी के पानी में प्रवेश से रोकने के लिए सख्त नियंत्रण लागू किया जाना चाहिए. शहरों में तालाबों और झीलों के अतिक्रमण को रोका जाना चाहिए और उन्हें पेयजल जलाशयों के रूप में पुनर्जीवित किया जाना चाहिए. शहरों में पीने के पानी की आपूर्ति में कमी को कम किया जाना चाहिए. नागरिकों को पानी की प्रत्येक बूंद को बहुत मूल्यवान समझना चाहिए और अत्यंत सावधानी के साथ उपयोग करना चाहिए.

यह भी पढ़ें-भारत ने 'स्पूतनिक-वी' वैक्सीन को दी आपातकालीन मंजूरी

नागरिकों और सरकारों के सामूहिक प्रयासों से, ठोस योजना और कुशल जल प्रबंधन प्रणालियों को प्रौद्योगिकी के साथ जोड़ा गया है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी को कुशल जल संरक्षण और प्रबंधन प्रथाओं का पालन करना कर्तव्य और जिम्मेदारी है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.