नई दिल्ली : इंदौर, जिसे देश के सबसे स्वच्छ शहरों में से एक माना जाता है, एशिया के सबसे बड़े बायो-सीएनजी प्लांट (Asia's largest Bio-CNG plant ) के उद्घाटन के साथ स्वच्छता में एक और उच्च मानक स्थापित करने के लिए तैयार है. इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 19 फरवरी को करेंगे (Prime Minister Narendra Modi will inaugurate on 19 February). संयंत्र को 100 प्रतिशत गीले कचरे का उपयोग करके संचालित किया जाएगा, जिससे प्रतिदिन लगभग 18,000 किलोग्राम गैस का उत्पादन होने का अनुमान है. इंदौर नगर निगम ने अनुमान लगाया है कि बायो-सीएनजी की राशि से शहर में रोजाना करीब 400 बसें चलाने में मदद मिलेगी.
यह प्लांट पीपीपी मॉडल पर बनाया गया है, जिससे इंदौर नगर निगम को सालाना 2.5 करोड़ रुपये की आमदनी होगी. अधिकारियों ने दावा किया कि यह न केवल कैलोरी मान में सुधार करेगा, बल्कि बायो-सीएनजी की प्रभावशीलता भी बढ़ाएगा. इंदौर के कलेक्टर मनीष सिंह ने कहा, 'विकास घनी आबादी वाले शहरों की वायु गुणवत्ता को शुद्ध करने में मदद करेगा.ये भी पढ़ें- PM मोदी ठाणे और दिवा को जोड़ने वाली रेललाइन राष्ट्र को करेंगे समर्पित550 मीट्रिक टन की कुल क्षमता के साथ यह संयंत्र 96 प्रतिशत शुद्ध मीथेन गैस के साथ सीएनजी का उत्पादन करेगा. संयंत्र को पीपीपी मॉडल और निजी एजेंसी के सहयोग से स्थापित किया गया है.' उद्घाटन समारोह में 20 राज्यों के स्वच्छ भारत मिशन के मिशन निदेशक और नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अधिकारी शामिल होंगे.
तैयार बायोगैस में 55-60 प्रतिशत होता मीथेन
जैविक कूड़े को डीप बंकर में लोड करते हैं, फिर वहां से ग्रैब क्रेन से उठाकर प्री-ट्रीटमेंट एरिया में मिलिंग होती है. इसके बाद इसे स्लरी में कंवर्ट करते हैं. स्लरी को डायजर्स में डाइजेस्ट किया जाता है और उससे बायोगैस बनाई जाती है. इसके बाद बायोगैस को स्टोरेज एरिया में ले जाया जाता है, जिसमें मीथेन 55-60 प्रतिशत होता है. इसके बाद फिर उसे गैस क्लीनिंग और अपग्रेडेशन में ले जाया जाता है.
महीने भर से कम वक्त तक ये डाइजस्टर टैंक स्लरी को पचाते हैं
सबसे पहले शहर के कचरे को इस बंकर में डाला जाता है. ग्रैब क्रेन की मदद से इसे प्रोसेसिंग इक्विपमेंट तक पहुंचाकर अजैविक पदार्थों को अलग किया जाता है. फिर सेपरेशन हैमर गीले कचरे को अच्छी गुणवत्ता के फीड यानी स्लरी में बदल देता है. पूरी प्रक्रिया कंट्रोल रूम के कंप्यूटर और मशीनों से संचालित होती है. हैमर मिल द्वारा तैयार किए गए स्लरी को पूर्व अपघटन टैंकों में भेजा जाता है. आम भाषा में महीने भर से कम वक्त तक ये डाइजस्टर टैंक स्लरी को पचाते हैं, जिससे इनका बायो मिथेनेशन हो सके और एक रासायनिक प्रक्रिया से यहां बायो गैस तैयार होती है.
पढ़ें: PM मोदी ठाणे और दिवा को जोड़ने वाली रेललाइन राष्ट्र को करेंगे समर्पित
400 बसों को चलाने की है योजना
इस गैस में मीथेन 55-60 प्रतिशत होता है, जिसे गैस पाइपलाइन से स्टोरेज गुब्बारों में भेजा जाता है. ये खास तरह के गुब्बारों के अंदर भी एक गुब्बारा होता है, जिसके बीच में हवा होती है. ये सस्ते, लेकिन बेहद मजबूत हैं. यहां से सिलेंडर भरे जाते हैं और गैस स्टेशन भी तैयार है. यहां से 400 बसे और 1000 से ज्यादा गाड़ियां चलाने की योजना है. रोजाना 17-18 हजार लीटर डीजल बचाने की योजना है.
15 महीने में ही तैयार हो गया प्लांट
संयंत्र को 18 महीने में बनाया जाना था, लेकिन कोरोना की चुनौतियों के बावजूद ये संयंत्र 15 महीने में बनकर तैयार हो गया. अब इंदौर की तैयारी स्वच्छता का छक्का लगाने की है. इंदौर सबसे साफ शहर है इसकी सबसे बड़ी वजह यहां के लोग हैं. लगातार पांच बार देश का सबसे स्वच्छ शहर बनने के बाद अब कचरे से गैस बनाकर बस चलाने का ये शानदार प्लांट नई कहानी लिख रहा है. मतलब साफ है कि इंदौर को स्वच्छता और उससे जुड़े प्रयोग करने में कोई पछाड़ नहीं सकता.