नई दिल्ली : हमारे धार्मिक मान्यताओं में कहा जाता है कि वेदव्यास जी कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास महर्षि पराशर और सत्यवती के पुत्र थे. उनको भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से 21वें अवतार के रूप में माना जाता है. दुनिया भर में चर्चित महाभारत ग्रंथ का संपूर्ण लेखन कार्य भगवान् गणेश ने महर्षि वेदव्यास के मुख से सुन-सुनकर किया था.
महर्षि वेद व्यास को संपूर्ण मानव जाति का आदिगुरु कहा जाता है. इसीलिए उनको सर्वोपरि गुरू भी माना जाता है. हिन्दू ग्रंथों में मिलने वाले वर्णन के अनुसार, उनका जन्म लगभग 3000 साल पहले आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हुआ था. वेद व्यास का मूल नाम द्वैपायन था. इनका जन्म वेद व्यास महर्षि पराशर और सत्यवती के पुत्र के रूप में हुआ था. वेद व्यास कौरवों और पांडवों की दादी देवी सत्यवती के पुत्र थे.
कहा जाता है कि जन्म होते ही वह एक बड़े बालक के रूप में विकसित हो गये थे. उसके बाद वह अपनी माता सत्यवती से बोले कि, ''हे माता !.. आप जब कभी भी किसी विपत्ति में या किसी कार्यवश मुझे स्मरण करेंगी, मैं तत्काल उपस्थित हो जाउँगा." इतना कह कर वे तपस्या करने के लिये द्वैपायन द्वीप चले गये थे. द्वैपायन द्वीप में तपस्या करने के कारण उनका पूरा शरीर धीरे-धीरे काला हो गया. काले शरीर के कारण उन्हें कृष्ण द्वैपायन कहा जाने लगा. आगे चल कर जब इन्होंने वेदों का विभाजन किया और लोगों को समझने वाली भाषा में जानकारी देने लायक बनाया तो वे वेद व्यास के नाम से विख्यात हो गये. इस तरह से उनको कृष्ण द्वैपायन वेद व्यासजी कहा जाता है.
यहां है सबसे पुरानी प्रतिमा
पुराणों तथा महाभारत के रचयिता महर्षि का मन्दिर व्यासपुरी (व्यासनगर) में आज भी विद्यमान है. यह स्थान जो काशी से लगभग 5 मील की दूरी पर चंदौली जिले में मौजूद है. महाराज काशी नरेश के रामनगर दुर्ग में भी पश्चिम भाग में व्यासेश्वर की मूर्ति विराजमान है, जिसे छोटे वेदव्यास के नाम से पुकारा जाता है. इसको वेद व्यास की सबसे प्राचीन मूर्ति कहा जाता है. व्यास जी द्वारा काशी को शाप दे दिया गया था. इसी के कारण विश्वेश्वर ने व्यासजी को काशी से निष्कासित कर दिया गया था. तब व्यासजी लोलार्क मंदिर के आग्नेय कोण में गंगाजी के पूर्वी तट पर जाकर अपना स्थान बनाया और यही मंदिर व्यास मंदिर के नाम से जाना जाता है.