शहडोल। मध्य प्रदेश में सियासी पारा चढ़ने लगा है, भले ही मानसून का मौसम चल रहा है, प्रदेश में बारिश झमाझम हो रही है, चारों ओर पानी-पानी है, लेकिन इस बीच राजनीतिक तापमान लगातार बढ़ता ही जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी की ओर से मध्य प्रदेश में कमान अमित शाह खुद संभाल चुके हैं, और आए दिन मध्यप्रदेश के दौरे कर रहे हैं, और उनके दौरों के बाद अब भारतीय जनता पार्टी का संगठन भी तेजी के साथ एक्टिव हो चुका है, तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी इसमें पीछे नहीं है इस बार पूरा जोर लगा रही है. कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी और राहुल गांधी भी प्रदेश में एक्टिव हो चुके हैं.
इस बीच देशभर में मध्य प्रदेश का विन्ध्य क्षेत्र सुर्खियों में है और इस क्षेत्र में अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर तो है ही साथ ही कांग्रेस भी अपनी पूरी निगाहें बनाई हुई है, और अपने शीर्ष नेता राहुल गांधी की सभा कराने जा रही है. इतना ही नहीं विंध्य नई राजनीतिक पार्टियों को लेकर भी अब सुर्खियां बटोर रहा है आखिर ऐसी क्या वजह है कि, मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र को नई पार्टियों का लॉन्चिंग ट्रैक कहा जा रहा है, कैसे विन्ध्य क्षेत्र बीजेपी और कांग्रेस के लिए हर चुनाव में खतरे की घंटी बना रहता है.
विन्ध्य कभी खुद भी एक प्रदेश था: मध्य प्रदेश का विन्ध्य क्षेत्र जो चुनाव आते ही देशभर में सुर्खियों में आ जाता है, कभी ये विन्ध्य प्रदेश हुआ करता था. मध्य प्रदेश के गठन से पहले विन्ध्य अलग प्रदेश था, जिसकी राजधानी रीवा हुआ करती थी. आजादी के बाद सेंट्रल इंडिया एजेंसी ने पूर्वी भारत की रियासतों को मिलाकर 1948 में विंध्य प्रदेश का निर्माण किया था. विंध्य क्षेत्र के बारे में बता दें कि पारंपरिक रूप से विंध्याचल पर्वत के आसपास का यह पठारी भाग है, यहां बघेली बोली जाती है, विंध्य प्रदेश में 1952 में पहली बार विधानसभा का गठन हुआ था, और विंध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित शंभूनाथ शुक्ल थे, पंडित शंभूनाथ शुक्ल का नाम विंध्य क्षेत्र में अछूता नहीं है, यह शहडोल के रहने वाले थे.
विंध्य प्रदेश करीब 4 साल तक अस्तित्व में रहा, और फिर 1 नवंबर 1956 को जब मध्य प्रदेश का गठन किया गया तो विंध्य प्रदेश को इसमें विलय कर दिया गया और नया मध्यप्रदेश मिल गया था. हालांकि इस दौरान इस बात का काफी विरोध भी हुआ था, और आज भी विन्ध्य को नया प्रदेश बनाने की मांग लगातार उठती रहती है, और अब इसी विन्ध्य को प्रदेश बनाने के मुद्दे को लेकर विंध्य में एक नई पार्टी का ऐलान भी कर दिया गया है.
नई पार्टियों का लॉन्चिंग ट्रैक: एक तरह से कहा जाए तो मध्यप्रदेश के विन्ध्य क्षेत्र में 30 विधानसभा सीटें हैं और इस क्षेत्र में आपको हर तरह के लोग मिल जाएंगे. यहां ब्राह्मण, ठाकुर, कुर्मी वोटर तो हैं ही इसके अलावा शहडोल संभाग की तरफ आपको आदिवासी बहुल इलाका भी मिलेगा, और यहां आदिवासी वोटर्स की भी अच्छी खासी संख्या है, जिसमें गोंड़, बैगा और कोल समाज के लोग हैं. देखा जाए तो विन्ध्य का अपना एक अलग ही राजनीतिक माहौल रहा है, और यहां लगातार उलटफेर भी होते रहे हैं. यह वही विंध्य क्षेत्र है जहां से सपा और बसपा जैसी पार्टियों की भी मध्यप्रदेश में एंट्री हो हुई है. यह वही विंध्य क्षेत्र है जहां से देश की पहली किन्नर विधायक चुनी गई, ये वही विन्ध्य क्षेत्र है जहां से आम आदमी पार्टी की भी एमपी में एंट्री हो चुकी है, ये वही विन्ध्य है जहां विन्ध्य जनता पार्टी का एलान हुआ, एक तरह से विन्ध्य नई पार्टियों के लिए लॉन्चिंग ट्रैक बनता नजर आ रहा है.
बीजेपी विधायक की बगावत बढ़ाएगी मुश्किल: विंध्य क्षेत्र में इस बार बीजेपी विधायक की बगावत भारतीय जनता पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं, क्योंकि विंध्य प्रदेश को दोबारा अस्तित्व में लाने के प्रयास में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले ही सत्ताधारी पार्टी के विधायक नारायण त्रिपाठी ने बगावत करके एक नई पार्टी का ऐलान कर दिया है. विंध्य क्षेत्र के सतना जिले के मैहर से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी की नई पार्टी का नाम विन्ध्य जनता पार्टी है और इस पार्टी ने विंध्य क्षेत्र की 30 विधानसभा सीटों को मिलाकर टोटल 43 सीटों में अभी चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया है. जिसके बाद इस क्षेत्र में राजनीति और गरमा गई है, क्योंकि यह पार्टी इस मुद्दे पर ही बनाई गई है कि "हमारा विंध्य में हमें वापस लौटा दो" और इसके लिए नारायण त्रिपाठी जहां भी जाते हैं वो एक नारा भी कह रहे हैं तुम मुझे 30 दो मैं तुम्हें 2024 में विंध्य प्रदेश दूंगा.
नए राजनीतिक विकल्प देता रहा है विन्ध्य: वैसे तो देखा जाए तो मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों का वर्चस्व रहा है और इन्हीं पार्टियों का हर जगह दबदबा भी रहता है लेकिन विन्ध्य एक ऐसा क्षेत्र रहा है, जहां से दूसरी पार्टियों को भी मध्यप्रदेश में मौका मिलता रहा है, और उसकी वजह है कभी एक अलग राज्य के रूप में पहचान रखने वाले विन्ध्य ने प्रदेश की राजनीति में विकल्प बनने के लिए मशक्कत करने वाले पार्टियों को पैर जमाने का मौका दिया है.
बसपा की विंध्य में एंट्री: मध्यप्रदेश में विन्ध्य क्षेत्र के रास्ते ही कई राजनीतिक दलों को एंट्री हुई है. साल 1991 में बसपा को विन्ध्य ने ही मध्यप्रदेश में एंट्री दिया था, 1991 के लोकसभा चुनाव में भीम सिंह मध्य प्रदेश से बसपा के पहले सांसद चुने गए थे, बुद्धसेन पटेल और देवराज पटेल भी लोकसभा पहुंचे थे, इसका असर यह हुआ कि बसपा की जैसे ही इस क्षेत्र में एंट्री हुई उसने दलित वोटों का ध्रुवीकरण इस कदर किया कि भाजपा कांग्रेस को भी अब इस बात को ध्यान में रखकर क्षेत्र में चुनाव लड़ना पड़ता है.
सपा की विंध्य में एंट्री: बसपा ही नहीं सपा की भी एंट्री विन्ध्य क्षेत्र से ही मध्यप्रदेश में हुई है. विंध्य क्षेत्र का कुछ हिस्सा यूपी से लगा हुआ है और वही वजह भी है कि बसपा और सपा जैसी पार्टियों का असर क्षेत्र में देखने को मिल जाता है, समाजवादी पार्टी ने भी विन्ध्य क्षेत्र में एंट्री की और सीधी के गोपद बनास से कृष्ण कुमार सिंह भंवर, देवसर से वंशमणि वर्मा और सतना के मैहर से नारायण त्रिपाठी को विधानसभा में विन्ध्य की जनता ने चुनकर भेजा था और मध्यप्रदेश में सपा की एंट्री भी इसके साथ ही विन्ध्य से हो गई, हालांकि सपा ने इसके बाद प्रदेश में अपनी जड़ें जमाने की काफी कोशिश की और मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी को सपा का प्रदेश अध्यक्ष भी बना दिया था लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो पाए.
निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी को मौका: देश की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी के बाद आम आदमी पार्टी भी गजब सुर्खियों में रहती है. दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार भी है, और यह पार्टी अब धीरे-धीरे देश भर में अपनी जड़ें जमाने में जुटी हुई है, मध्यप्रदेश में भी आम आदमी पार्टी की एंट्री हो चुकी है और आम आदमी पार्टी की एंट्री मध्यप्रदेश में विन्ध्य के रास्ते ही हुई है, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को विन्ध्य के सिंगरौली से एंट्री मिली है, प्रदेश में नगर निकाय के चुनाव में विंध्य क्षेत्र के सिंगरौली से आम आदमी पार्टी को नगर निगम चुनाव में जीत मिली और उसी के साथ ही आम आदमी पार्टी की विंध्य क्षेत्र में एंट्री हुई.
विन्ध्य में बीजेपी-कांग्रेस की राह नहीं है आसान: मध्यप्रदेश के विन्ध्य क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की राह आसान नहीं है, और आगामी चुनाव यहां कितना चुनौती भरा है, ये दोनों पार्टियां खुद भी जानती हैं, और प्रदेश की राजनीति में यह क्षेत्र कितना अहम किरदार निभाता है. यहां के आंकड़े बताते हैं, इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शहडोल जिला का दौरा कर चुके हैं. अमित शाह भी विंध्य क्षेत्र के सतना में कोल समाज के महाकुंभ में शामिल हो चुके हैं, तो वहीं विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी की जनसभा होने वाली है.
इसके साथ ही इस क्षेत्र में राहुल गांधी की भी एंट्री होने जा रही है, क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस दोनों को ही पता है कि विन्ध्य क्षेत्र में ज्यादा सीट लाना मतलब सत्ता में वापसी की चाभी मिल जाना. दोनों ही पार्टियों को पता है कि यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां की जनता बदलाव करती रहती है और नए नेताओं को भी नए पार्टियों को भी विकल्प के तौर पर मौका दे देती है इसलिए बीजेपी जहां अपनी एक भी सीट खोना नहीं चाहती है, तो वहीं कांग्रेस खोया वर्चस्व हासिल करना चाहती है.
आंकड़ों में समझें विन्ध्य की राजनीति: मध्यप्रदेश के विन्ध्य की राजनीति में कैसे दूसरे राजनीतिक दलों को विकल्प के तौर पर मौके मिलते रहे हैं और क्यों भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के लिए विन्ध्य अहम है, इसे ऐसे समझ सकते हैं.
- 2018 विधानसभा चुनाव: साल 2018 के विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस अपनी सरकार बनाने में कामयाब हुई थी तब इस विंध्य क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी को 30 सीटों में से 24 सीट मिली थी, जबकि कांग्रेस सिर्फ 6 सीट पर ही सिमट गई थी. विन्ध्य क्षेत्र में दूसरे दल की पार्टियों को भी यहां के लोग वोट देते रहे हैं इसे ऐसे समझा जा सकता है कि 2018 के चुनाव में बसपा 2 सीटों पर नंबर दो की पोजीशन पर रही थी, वहीं एक-एक सीट पर समाजवादी पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रत्याशी दूसरे नंबर पर आए थे, मतलब बीजेपी और कांग्रेस के अलावा दूसरे दलों को भी लोग यहां वोट देते रहे हैं, जो नए दलों के लिए संभावनाएं बता रहा हैं.
- 2013 विधानसभा चुनाव: साल 2013 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 30 सीटों में से 16 सीट में जीत मिली थी जबकि कांग्रेस को 12 सीटों पर जीत मिली थी. इस चुनाव में बीएसपी के दो विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे, यहां खास बात है और इसके अलावा बीएसपी के 5 कैंडिडेट दो नंबर पर रहे यहां भाजपा को 16 सीटों पर जीत मिली थीं.
- 2008 विधानसभा चुनाव: साल 2008 के विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो विंध्य क्षेत्र में भाजपा को यहां फिर से बंपर जीत मिली थी. भारतीय जनता पार्टी ने 30 सीट में से 24 सीट जीती थी, 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बहुत ही करारी हार हुई थी. पार्टी को मात्र 2 सीटें मिली थी, यहां तक कि कांग्रेस से ज्यादा तो बसपा को सीट मिल गई थी बसपा के तीन प्रत्याशियों को जीत मिली थीं.
इन चुनाव परिणामों से समझ सकते हैं कि किस तरह से विन्ध्य क्षेत्र में बीजेपी और कांग्रेस के अलावा दूसरी पार्टियों को भी समय-समय पर यहां के वोटर्स पसंद करते रहे हैं. ऐसे में विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर बनाई गई पार्टी विन्ध्य जनता पार्टी भारतीय जनता पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है, साथ ही आम आदमी पार्टी भी यहां किसी न किसी राजनीतिक दल का खेल बिगाड़ने का काम कर सकती है.
बीजेपी-कांग्रेस के लिए बड़ा खतरा: विंध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने थे शंभूनाथ शुक्ल, तो वो कांग्रेस के ही नेता थे कभी विन्ध्य क्षेत्र में कांग्रेस की तूती बोलती थी, लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस का वर्चस्व यहां से खत्म होता गया और अब हालात बहुत ही खराब हैं, अब पिछले कुछ दशक से यह क्षेत्र बीजेपी का गढ़ बन चुका है. एक ओर जहां बीजेपी के लिए अपने वर्चस्व को बनाये रखने की चुनौती है क्योंकि विंध्य क्षेत्र बीजेपी का सेफ जोन बन चुका है, और यहां से बंपर सीट मिलती है, कहीं उस पर ना कोई पार्टी सेंध लगा दे. तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस को इस बार यह उम्मीद है कि विन्ध्य की जनता उन्हें इस बार मौका दे सकती है और यहां उनकी सीटें बढ़ सकती हैं, बशर्ते कोई दूसरी पार्टी यहां उनके वोट बैंक पर सेंध ना लगा दे. दोनों के लिए विंध्य क्षेत्र अब वर्चस्व की लड़ाई है, बीजेपी के लिए जहां अपना वर्चस्व इस क्षेत्र में बरकरार रखने की चुनौती है तो कांग्रेस के लिए खोया वर्चस्व हासिल करने की चुनौती.
घतरे की घंटी: बहरहाल एक ओर मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी विन्ध्य प्रदेश की मांग को लेकर जहां नई पार्टी गठित करके आगामी विधानसभा चुनाव से पहले विंध्य क्षेत्र में नया राजनीतिक भूचाल ला चुके हैं, तो वहीं ये वही आम आदमी पार्टी है जिसने दिल्ली में पहली बार नगर निगम से ही शुरुआत की थी, और फिर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो गई थी और आज दिल्ली और पंजाब दो जगह पर इनकी सरकार है, ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए ये किसी बड़े खतरे की घंटी से कम नहीं हैं और इसीलिए बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के शीर्ष नेताओं की नजर अब इस क्षेत्र में टिकी हुई है.