वाराणसी: 7 मार्च 2006 को संकट मोचन और कैंट रेलवे स्टेशन में हुए सीरियल ब्लास्ट में 16 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी और कई लोग घायल हो गए थे. इस हादसे के पीड़ित संतोष साहनी ने सीरियल बम धमाकों के मुख्य आरोपी वलीउल्लाह को फांसी मिलने पर न्याय व्यवस्था पर भरोसा जताया है. साथ ही उन्होंने कहा कि उस धमाके के बाद उनकी जिंदगी ही बदल गई. ऐसी बदहाली आई कि अब तो रोज जिंदगी में धमाके हो रहे हैं. उनका कहना है कि वह हर रोज घुट-घुट कर जीने पर मजबूर है क्योंकि बम धमाके के बाद उसके एक पैर खराब होने की वजह से डॉक्टरों ने उसे उसके शरीर से अलग कर दिया. ऐसे में परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.
वाराणसी के पक्के महाल यानी पुराने बनारस के ब्रह्मा घाट इलाके के रहने वाले संतोष साहनी आज 2006 का वह मंजर याद करके कांप जाते हैं, क्योंकि संतोष उस वक्त अपने एक नजदीकी की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए संकट मोचन मंदिर पहुंचे थे. संकट मोचन मंदिर की उस दास्तान को बताते हुए संतोष आज भी डर रहे थे. उन्होंने बताया कि 7 मार्च 2006 की शाम लगभग 5:30 बजे वह संकट मोचन पहुंचे और शादी समारोह में शामिल हुए इस दौरान शादी की रस्में निभाई जा रही थी और वहीं पर मौजूद थे खड़े होकर शादी की रस्में देखते हुए आपस में एक दूसरे से बातचीत चल ही रही थी कि शाम 6:15 पर जोरदार धमाके की आवाज सुनाई दी.
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धमाका इतना तेज था कि वह बेहोश हो गए लगभग 2 घंटे बाद उनकी आंखें खुली तो वह अस्पताल में थे, अस्पताल में उनके पैर पूरी तरह से खून से लथपथ थे. डॉक्टरों ने उनकी जिंदगी बचाने के लिए पैर काट दिया. संतोष का कहना है कि इस बम ब्लास्ट के बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह से बर्बाद हो गई एक लाख रुपए सरकारी मदद के तौर पर उस वक्त सरकार ने दिए. कुछ नेता कुछ दिनों तक घर के चक्कर लगाते रहे लेकिन अब तो कोई पूछने वाला ही नहीं है.
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हालात यह हैं कि जहां वह काम करते थे वहां से उन्हें यह कहकर हटा दिया गया कि तुम्हारा एक पैर खराब है और तुम किसी काम के नहीं, जबकि दूसरे जगहों पर उसे कोई काम देने को तैयार ही नहीं है. अपना काम करने के लिए पैसा ही नहीं है जिसकी वजह से आज भी उस बम धमाके के दौरान मिले जख्म भरने के लिए डॉक्टरी इलाज पर्याप्त मात्रा में मिल भी नहीं पा रहा है.
संतोष का कहना है आज इस बात की बेहद खुशी है कि इस धमाके के आरोपी वलीउल्ला को फांसी की सजा मिल गई, जख्म तो कम हुए लेकिन भरे नहीं हैं, क्योंकि मैं इस ब्लास्ट में बच तो गया लेकिन हर रोज मेरी जिंदगी में एक धमाका हो रहा है. जिसकी आवाज सिर्फ मैं ही सुन सकता हूं. संतोष कहना है कि आज मेरी जिंदगी नर्क से बदतर है जिंदगी बचने के बाद एक पैर पर जीवन जीना बहुत मुश्किल है रोजी रोटी कमाना मुश्किल हो गया है और परिवार के सामने बड़ा संकट है.
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