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अध्याय पांच : घर में गलत स्थान पर भूमिगत जल संग्रह बन सकता है संतान हानि और पड़ोसियों से ईर्ष्या का कारण

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Published : Feb 5, 2021, 6:02 AM IST

वास्तु, जिसके उपायों में छिपे हैं कई लाभ. अक्सर लोगों को कठोर परिश्रम के बावजूद प्रगति का मार्ग नहीं मिलता, लेकिन वास्तु एक ऐसी कुंजी है, जिसके कुछ उपायों के प्रयोगों से आपको कई प्रकार के लाभ प्राप्त हो सकते हैं. कई बार घर में पैसा भी नहीं टिकता है तो कई बार घर पर कोई न कोई बीमार रहता है .अगर आपके घर में भी ऐसा हो रहा है तो इसकी वजह वास्तुदोष भी हो सकता है. जानें, वास्तु के लाभ और खास उपाय.

वास्तु शास्त्र
वास्तु शास्त्र

हैदराबाद : बहुत सारे रोगों का कारण भूमिगत जल की स्थिति होती है. घर में हम जहां कुआ, बोरिंग या भूमिगत टैंक बनाते हैं, वे कब और कितना परिणाम देंगे, यह हमें मालूम नहीं होता. किसी विशिष्ट भूमिगत ऊर्जा नाड़ी को जलाशय के माध्यम से जब हम विकृत कर देते हैं, तो वह शरीर के किसी न किसी अंग में कोई न कोई रोग उत्पन्न कर देती है.

  • उत्तर दिशा मध्य में भूमिगत जलाशय धन प्रदायक माने गए हैं. उत्तर में जलाशय न केवल धन देता है बल्कि संतान को भी सुंदर और निरोगी बनाता है. ऐसे व्यक्तियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अच्छी होती है. वे लोग स्थिर गति होते हैं, यद्यपि कभी-कभी चंचल स्वभाव का प्रदर्शन करते हैं.
  • उत्तर-पूर्व में जलाशय होने पर शास्त्रों में पुष्टि होना बताया गया है अर्थात् भवन में रहने वाले सभी लोगों के जीवन में सुख-समृद्धि और शांति होती है. यह जलाशय उत्तर में स्थित जलाशय की तुलना में तीव्र गति से धन नहीं देता परंतु एक परिवार के सभी प्राणियों की सर्वांगीण उन्नति का माध्यम अवश्य बनता है, चाहे उसकी गतिविधि धीमी ही हो.
    vastu
    जानें वास्तु के लाभ और खास उपाय.
  • पूर्व दिशा का जल साधन पड़ोसियों से ईर्ष्या और संतान को हानि वाला बताया गया है. पूर्व दिशा में जल साधन से जो रोग उत्पन्न होते हैं, उनका संबंध नाभि प्रदेश से नीचे वाले अंगों में जल के आधिक्य या जल की कमी से होने वाले रोगों से हैं.
  • अग्निकोण में जल साधन से शरीर में कांति का अभाव, सनस्ट्रोक, यौन अंगों से संबंधित बीमारियां, डिप्रेशन, स्नायविक दौर्बल्य जैसे रोग देता है. यहां का जलाशय अल्प संतान, संतान से विवाद तथा उनके कारण मानसिक अशांति देता है. शरीर के निर्जलीकरण या डिहाइड्रेशन का कारण प्रायः अग्निकोण में स्थित जलाशय होता है.
  • दक्षिण दिशा में जलाशय होने पर महिला रोगी रहती है.
  • नैर्ऋत्य कोण का जलाशय धन हानि, संतान से तीव्र मतभेद, परिवार में विद्वेष तथा जल से उत्पन्न होने वाले रोगों की संभावना बनाता है.
  • पश्चिम दिशा का जलाशय शरीर में रसाधिक्य देता है. ऐसे जातकों को थाइराइड से संबंधित कष्ट हो सकते हैं. यह जलाशय धन से उत्पन्न बीमारियां भी देता है.
  • ब्रह्म स्थान में अर्थात् भूखण्ड के केन्द्र स्थान में कुआ या बोरिंग होने से वंश परम्परा का लोप हो जाता है और विनाश आता है. आर्थिक सम्पन्नता लाते हैं.

यह भी पढ़ें-

अध्याय एक : जानिए वास्तु पुरुष की स्थापना से जुड़ी कथा

अध्याय दो : आपके घर के शास्त्रीय पक्ष के रक्षक हैं 'विश्वकर्मा'

अध्याय तीन : हर प्लॉट के अंदर होते हैं 45 देवता, जानिए वास्तु चक्र के इन देवताओं के बारे में

अध्याय चार : अपने सपनों के घर का द्वार वराहमिहिर की बताई योजना के अनुसार बनवाएं

इन सभी स्थितियों में जलाशय भूखण्ड की सीमा के अंदर होने के परिणाम बताए गए हैं. यदि जलाशय भूखण्ड से बाहर किसी भी दिशा में हो तो भी उसका प्रभाव होता है. भूखण्ड से बाहर पश्चिम का जल सम्पन्नता लाता है. उत्तर और उत्तर-पूर्व के जलाशय शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छे सिद्ध होते हैं.

लेखक - पंडित सतीश शर्मा, सुप्रसिद्ध वास्तुशास्त्री

(ईमेल - satishsharma54@gmail.com)

हैदराबाद : बहुत सारे रोगों का कारण भूमिगत जल की स्थिति होती है. घर में हम जहां कुआ, बोरिंग या भूमिगत टैंक बनाते हैं, वे कब और कितना परिणाम देंगे, यह हमें मालूम नहीं होता. किसी विशिष्ट भूमिगत ऊर्जा नाड़ी को जलाशय के माध्यम से जब हम विकृत कर देते हैं, तो वह शरीर के किसी न किसी अंग में कोई न कोई रोग उत्पन्न कर देती है.

  • उत्तर दिशा मध्य में भूमिगत जलाशय धन प्रदायक माने गए हैं. उत्तर में जलाशय न केवल धन देता है बल्कि संतान को भी सुंदर और निरोगी बनाता है. ऐसे व्यक्तियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अच्छी होती है. वे लोग स्थिर गति होते हैं, यद्यपि कभी-कभी चंचल स्वभाव का प्रदर्शन करते हैं.
  • उत्तर-पूर्व में जलाशय होने पर शास्त्रों में पुष्टि होना बताया गया है अर्थात् भवन में रहने वाले सभी लोगों के जीवन में सुख-समृद्धि और शांति होती है. यह जलाशय उत्तर में स्थित जलाशय की तुलना में तीव्र गति से धन नहीं देता परंतु एक परिवार के सभी प्राणियों की सर्वांगीण उन्नति का माध्यम अवश्य बनता है, चाहे उसकी गतिविधि धीमी ही हो.
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    जानें वास्तु के लाभ और खास उपाय.
  • पूर्व दिशा का जल साधन पड़ोसियों से ईर्ष्या और संतान को हानि वाला बताया गया है. पूर्व दिशा में जल साधन से जो रोग उत्पन्न होते हैं, उनका संबंध नाभि प्रदेश से नीचे वाले अंगों में जल के आधिक्य या जल की कमी से होने वाले रोगों से हैं.
  • अग्निकोण में जल साधन से शरीर में कांति का अभाव, सनस्ट्रोक, यौन अंगों से संबंधित बीमारियां, डिप्रेशन, स्नायविक दौर्बल्य जैसे रोग देता है. यहां का जलाशय अल्प संतान, संतान से विवाद तथा उनके कारण मानसिक अशांति देता है. शरीर के निर्जलीकरण या डिहाइड्रेशन का कारण प्रायः अग्निकोण में स्थित जलाशय होता है.
  • दक्षिण दिशा में जलाशय होने पर महिला रोगी रहती है.
  • नैर्ऋत्य कोण का जलाशय धन हानि, संतान से तीव्र मतभेद, परिवार में विद्वेष तथा जल से उत्पन्न होने वाले रोगों की संभावना बनाता है.
  • पश्चिम दिशा का जलाशय शरीर में रसाधिक्य देता है. ऐसे जातकों को थाइराइड से संबंधित कष्ट हो सकते हैं. यह जलाशय धन से उत्पन्न बीमारियां भी देता है.
  • ब्रह्म स्थान में अर्थात् भूखण्ड के केन्द्र स्थान में कुआ या बोरिंग होने से वंश परम्परा का लोप हो जाता है और विनाश आता है. आर्थिक सम्पन्नता लाते हैं.

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इन सभी स्थितियों में जलाशय भूखण्ड की सीमा के अंदर होने के परिणाम बताए गए हैं. यदि जलाशय भूखण्ड से बाहर किसी भी दिशा में हो तो भी उसका प्रभाव होता है. भूखण्ड से बाहर पश्चिम का जल सम्पन्नता लाता है. उत्तर और उत्तर-पूर्व के जलाशय शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छे सिद्ध होते हैं.

लेखक - पंडित सतीश शर्मा, सुप्रसिद्ध वास्तुशास्त्री

(ईमेल - satishsharma54@gmail.com)

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