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ICMR Report : मॉडरेट असर वाला टीका भारत में टीबी के खिलाफ लड़ाई में होगा कारगर

आईसीएमआर के अध्ययन में इस बात का भी पता चला है कि वयस्कों और किशोरों के बीच बैसिल कैलमेट गुएरिन (बीसीजी) के पुन: टीकाकरण को लेकर भी रुचि बढ़ रही है. वर्तमान में, टीबी के खिलाफ एकमात्र लाइसेंस प्राप्त टीका बीसीजी है, जो माइकोबैक्टीरियम बोविस का जीवित-क्षीण टीका रूप है. लगभग एक सदी से उपयोग में आने वाले बीसीजी टीके का मुख्य लाभ छोटे बच्चों को जन्म के समय टीबी के गंभीर रूपों से बचाना है.

ICMR Report
प्रतिकात्मक तस्वीर
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Published : May 3, 2023, 10:49 AM IST

नई दिल्ली: भारत में टीकाकरण से तपेदिक (टीबी) के इलाज में काफी मदद मिल सकती है. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) का दावा है कि टीकाकरण के बाद टीबी में मरीजों में 50 प्रतिशत की कमी आ सकती है. हाल ही में आईसीएमआर के एक अध्ययन से इस धारणा को बल मिला है. आईसीएमआर ने कहा है कि टीबी के मामलों से लड़ने में टीकाकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. आईसीएमआर ने बताया कि अभी परीक्षण के चरण से गुजर रहे वैक्सीन ने कुछ उम्मीद भरे परिणाम दिखाये हैं.

टीबी के लिए तीन नये वैक्सीन ट्रायल के तीसरे चरण में : आईसीएमआर ने बताया कि वर्तमान में कई टीबी वैक्सीन के ट्रायल चल रहे हैं. इनमें तीन वैक्सीन वयस्कों और किशोरों के लिए है. जो अपने ट्रायल के तीसरे चरण में है. संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक टीबी को पूरी तरह से खत्म करने का लक्ष्य रखा है. जबकि भारत ने अपने लिए इससे पांच साल पहले यानी साल 2025 तक टीबी से पूरी तरह मुक्ति पाने का लक्ष्य रखा है. साल 2016 में, भारत में 423,000 टीबी के कारण मौत के शिकार हुए. जबकि उसी साल दुनिया भर में टीबी के कारण करीब 10 लाख 40 हजार लोगों की मौत हुई थी. इस तरह से देखें तो दुनिया में टीबी के कारण होने वाली कुल मौतों में एक तिहाई हिस्सेदारी भारत की है.

टीकाकरण टीबी के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण हथियार : गौरतलब है कि भारत में टीबी से होने वाली 7.9 फीसदी मौतें तंबाकू के कारण होती हैं. आईसीएमआर के अध्ययन में कहा गया है कि भारत जैसे देश में जहां मरीजों की संख्या इतनी अधिक है, टीकाकरण टीबी के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण हथियार हो सकता है. आईसीएमआर ने कहा वह टीकाकरण रणनीतियों के संभावित प्रभाव की गणना के लिए गणितीय मॉडलिंग को एक सहायक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहा है.

भारत में टीबी के लिहाज से खतरे में रहने वाली आबादी कुल आबादी का 16 प्रतिशत: अध्ययन में आगे कहा गया है कि बीमारी को रोकने वाला टीका, संक्रमण रोकने वाले टीके की तुलना में अधिक प्रभावशाली होगा. निष्कर्षों के अनुसार, एक बार जब वैक्सीन सामान्य लोगों के बीच उपलब्ध हो जायेगा तो यह संक्रमण रोकने वाला टीका 2023-2030 के बीच 12 प्रतिशत मामलों को रोक सकेगा जबकि बीमारी को रोकने वाला टीका 29 प्रतिशत मामलों को रोक सकेगा. आईसीएमआर ने कहा कि भारत में टीबी के लिहाज से खतरे में रहने वाली आबादी, यानी ऐसी आबादी जिन्हें टीबी होने की संभावना ज्यादा है कुल आबादी का लगभग 16 प्रतिशत है.

टीबी के कुल मामलों में 31 प्रतिशत मरीज की आयु 15 वर्ष से अधिक : अध्ययन में कहा गया है कि इस आबादी को लक्ष्य करके किये गये टीकाकरण से लगभग 50 प्रतिशत संभावित टीबी के मरीजों को बचाया जा सकता है. आईसीएमआर ने भारतीय राष्ट्रीय प्रसार सर्वेक्षण (2019-2021) के हवाले से बताया है कि टीबी के कुल मामलों में 31 प्रतिशत मरीज 15 वर्ष से अधिक आयु के हैं. टीके के 50 प्रतिशत प्रभाव के बारे में बताते हुए आईसीएमआर के अध्ययन में कहा गया है कि इसका कारण है कि टीबी के संक्रमण के काफी बाद उसके लक्षण सामने आते हैं. ऐसे में जिन्हें संक्रमण के बाद वैक्सीन लगाया जायेगा उनपर वैक्सीन का असर नहीं होगा.

सकारात्मक प्रभाव दिखने में लग सकता है कुछ साल का वक्त : ऐसे में संक्रमण रोकने वाले वैक्सीन का सकारात्मक प्रभाव दिखने में कुछ साल का वक्त लग सकता है. अध्ययन में यह भी कहा गया है कि टीबी के लिहाज से खतरे में रहने वाली आबादी के बीच वैक्सीन को लेकर जागरुकता का अभाव है. जागरुकता की कमी के कारण इस आबादी में टीकाकरण को लेकर उत्साह भी कम है. आईसीएमआर ने अपने अध्ययन में कहा है कि तमाम जमीनी जटिलताओं के बाद भी टीकाकरण के प्रभाव से टीबी से होने वाली मौतों में 40 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है.

बीसीजी का पुन: टीकाकरण भी एक विकल्प : आईसीएमआर के अध्ययन में इस बात पर जोर डाला गया है कि यदि वैक्सीन जारी होने शुरुआती चरणों में भारत में टीबी के लिहाज से खतरे में रहने वाली आबादी को ध्यान में रखते हुए लक्षित टीकाकरण अभियान चलाया जाये. प्रमुख चिकित्सा अनुसंधान संस्थान ने कहा है कि वर्तमान में जो टीके विकसित हो रहे हैं उनके पूरी तरह से तैयार होने में कुछ वक्त लग सकता है. ऐसे में बीसीजी का पुन: टीकाकरण अल्पावधि में टीबी से लड़ाई में एक मूल्यवान हथियार साबित हो सकता है.

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नई दिल्ली: भारत में टीकाकरण से तपेदिक (टीबी) के इलाज में काफी मदद मिल सकती है. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) का दावा है कि टीकाकरण के बाद टीबी में मरीजों में 50 प्रतिशत की कमी आ सकती है. हाल ही में आईसीएमआर के एक अध्ययन से इस धारणा को बल मिला है. आईसीएमआर ने कहा है कि टीबी के मामलों से लड़ने में टीकाकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. आईसीएमआर ने बताया कि अभी परीक्षण के चरण से गुजर रहे वैक्सीन ने कुछ उम्मीद भरे परिणाम दिखाये हैं.

टीबी के लिए तीन नये वैक्सीन ट्रायल के तीसरे चरण में : आईसीएमआर ने बताया कि वर्तमान में कई टीबी वैक्सीन के ट्रायल चल रहे हैं. इनमें तीन वैक्सीन वयस्कों और किशोरों के लिए है. जो अपने ट्रायल के तीसरे चरण में है. संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक टीबी को पूरी तरह से खत्म करने का लक्ष्य रखा है. जबकि भारत ने अपने लिए इससे पांच साल पहले यानी साल 2025 तक टीबी से पूरी तरह मुक्ति पाने का लक्ष्य रखा है. साल 2016 में, भारत में 423,000 टीबी के कारण मौत के शिकार हुए. जबकि उसी साल दुनिया भर में टीबी के कारण करीब 10 लाख 40 हजार लोगों की मौत हुई थी. इस तरह से देखें तो दुनिया में टीबी के कारण होने वाली कुल मौतों में एक तिहाई हिस्सेदारी भारत की है.

टीकाकरण टीबी के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण हथियार : गौरतलब है कि भारत में टीबी से होने वाली 7.9 फीसदी मौतें तंबाकू के कारण होती हैं. आईसीएमआर के अध्ययन में कहा गया है कि भारत जैसे देश में जहां मरीजों की संख्या इतनी अधिक है, टीकाकरण टीबी के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण हथियार हो सकता है. आईसीएमआर ने कहा वह टीकाकरण रणनीतियों के संभावित प्रभाव की गणना के लिए गणितीय मॉडलिंग को एक सहायक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहा है.

भारत में टीबी के लिहाज से खतरे में रहने वाली आबादी कुल आबादी का 16 प्रतिशत: अध्ययन में आगे कहा गया है कि बीमारी को रोकने वाला टीका, संक्रमण रोकने वाले टीके की तुलना में अधिक प्रभावशाली होगा. निष्कर्षों के अनुसार, एक बार जब वैक्सीन सामान्य लोगों के बीच उपलब्ध हो जायेगा तो यह संक्रमण रोकने वाला टीका 2023-2030 के बीच 12 प्रतिशत मामलों को रोक सकेगा जबकि बीमारी को रोकने वाला टीका 29 प्रतिशत मामलों को रोक सकेगा. आईसीएमआर ने कहा कि भारत में टीबी के लिहाज से खतरे में रहने वाली आबादी, यानी ऐसी आबादी जिन्हें टीबी होने की संभावना ज्यादा है कुल आबादी का लगभग 16 प्रतिशत है.

टीबी के कुल मामलों में 31 प्रतिशत मरीज की आयु 15 वर्ष से अधिक : अध्ययन में कहा गया है कि इस आबादी को लक्ष्य करके किये गये टीकाकरण से लगभग 50 प्रतिशत संभावित टीबी के मरीजों को बचाया जा सकता है. आईसीएमआर ने भारतीय राष्ट्रीय प्रसार सर्वेक्षण (2019-2021) के हवाले से बताया है कि टीबी के कुल मामलों में 31 प्रतिशत मरीज 15 वर्ष से अधिक आयु के हैं. टीके के 50 प्रतिशत प्रभाव के बारे में बताते हुए आईसीएमआर के अध्ययन में कहा गया है कि इसका कारण है कि टीबी के संक्रमण के काफी बाद उसके लक्षण सामने आते हैं. ऐसे में जिन्हें संक्रमण के बाद वैक्सीन लगाया जायेगा उनपर वैक्सीन का असर नहीं होगा.

सकारात्मक प्रभाव दिखने में लग सकता है कुछ साल का वक्त : ऐसे में संक्रमण रोकने वाले वैक्सीन का सकारात्मक प्रभाव दिखने में कुछ साल का वक्त लग सकता है. अध्ययन में यह भी कहा गया है कि टीबी के लिहाज से खतरे में रहने वाली आबादी के बीच वैक्सीन को लेकर जागरुकता का अभाव है. जागरुकता की कमी के कारण इस आबादी में टीकाकरण को लेकर उत्साह भी कम है. आईसीएमआर ने अपने अध्ययन में कहा है कि तमाम जमीनी जटिलताओं के बाद भी टीकाकरण के प्रभाव से टीबी से होने वाली मौतों में 40 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है.

बीसीजी का पुन: टीकाकरण भी एक विकल्प : आईसीएमआर के अध्ययन में इस बात पर जोर डाला गया है कि यदि वैक्सीन जारी होने शुरुआती चरणों में भारत में टीबी के लिहाज से खतरे में रहने वाली आबादी को ध्यान में रखते हुए लक्षित टीकाकरण अभियान चलाया जाये. प्रमुख चिकित्सा अनुसंधान संस्थान ने कहा है कि वर्तमान में जो टीके विकसित हो रहे हैं उनके पूरी तरह से तैयार होने में कुछ वक्त लग सकता है. ऐसे में बीसीजी का पुन: टीकाकरण अल्पावधि में टीबी से लड़ाई में एक मूल्यवान हथियार साबित हो सकता है.

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