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उत्तराखंड टनल हादसा : क्या कॉन्ट्रैक्टर ने की नियमों की अनदेखी ?

contractor defied rules in Uttarakhand tunnel collapse : उत्तराखंड में टनल हादसे के सात दिन हो चुके हैं. यहां पर 41 मजदूर फंसे हुए हैं. उन्हें बाहर निकालने को लेकर प्रयास जारी हैं. उम्मीद जताई जा रही है कि इस ऑपरेशन को जल्द से जल्द पूरा कर लिया जाएगा. अब सवाल ये उठ रहा है कि आखिर इस तरह की स्थिति उत्पन्न ही क्यों हुई कि मजदूरों का जीवन खतरे में पड़ गया ? क्या कहीं कॉन्ट्रैक्टर ने नियमों की अनदेखी तो नहीं की ? पेश है वरिष्ठ पत्रकार अरुणिम भुइंया की एक रिपोर्ट.

Uttarakhand
टनल हादसा, उत्तराखंड
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 19, 2023, 6:14 PM IST

Updated : Nov 30, 2023, 12:53 PM IST

नई दिल्ली : उत्तराखंड में जहां पर हादसा हुआ है, उस टनल के निर्माण का ठेका हैदराबाद की एक कंपनी को सौंपा गया था. इसे सरकारी कंपनी नेशनल हाइवे एंड इन्फ्रांस्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लि. ने टेंडर जारी किया था.

दरअसल, टनल दो तरीके से बनाए जाते हैं. पहला तरीका है- ड्रिलिंग और ब्लास्टिंग, और दूसरा तरीका है बोरिंग मेथड. यह कंपनी पहले तरीके से टनल बना रहा है. इसमें एक्सप्लोसिव का कंट्रोल तरीके से प्रयोग किया जाता है. इसके लिए गैस प्रेशर ब्लास्टिंग पायरोटेक्निक का प्रयोग करके पत्थरों की खुदाई की जाती है.

इस मामले के जानकार एसपी सती ने ईटीवी भारत को बताया कि आमतौर पर हिमालय क्षेत्र में ड्रिलिंग और ब्लास्टिंग की अनुमति प्रदान नहीं की जाती है. सती कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री वीर चंद्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं.

उन्होंने कहा कि इस कंपनी के पास टनल बोरिंग मशीन नहीं है, इसलिए वह डायनामाइट ब्लास्टिंग मेथड का प्रयोग कर रहे हैं. लेकिन मुझे लग रहा है कि उसके लिए जो सुरक्षा के उपाय उठाए जाने चाहिए थे, उसे नहीं उठाया गया.

सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रूड़की के वरिष्ठ वैज्ञानिक कौशिक पंडित ने ईटीवी भारत को बताया -

सिल्क्यारा पोर्टल या फिर टनल के एंट्री प्वाइंट से 200 मीटर के रेंज में ढांचा टूटा है. छत का गिरना कई वजहों से हो सकता है. उनमें से एक कारण टनल के निर्माण में तेज गति से आगे बढ़ना हो सकता है. बहुत संभव है उन्होंने निर्धारित सीमा से अधिक एक्सप्लोसिव का इस्तेमाल किया होगा. इसकी वजह से टनेल एक्सिस के चारों ओर रॉक मास कमजोर हो गया. और इसने शियर जोन को बहुत ही कमजोर कर दिया.

शियर जोन पृथ्वी के क्रस्ट या उपरी मेंटल के अंदर एक पतला क्षेत्र है, जो चट्टान के खिसकने की वजह से डिफॉर्म्ड हो गया है. ऊपरी परत में जहां पहले से चट्टान भंगुर होती है, शियर जोन ने फॉल्ट का रूप से लिया.

कौशिक पंडित ने आगे कहा -

मई 2024 तक इस प्रोजेक्ट को पूरा किया जाना था. लेकिन अब इसे समय पर पूरा नहीं किया जा सकेगा. इसके निर्माण की शुरुआत 2018 में की गई थी. आठ महीने पहले भी एक इसी तरह की घटना हुई थी, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर नहीं हुई थी.

विशेषज्ञ मानते हैं कि कहीं न कहीं इंजीनियरिंग स्तर पर दोष है. विशेषज्ञों के अनुसार नॉरवेजियन टनेलिंग मेथड और न्यू ऑस्ट्रियन टनेलिंग मेथड हैं, जिनका अक्सर प्रयोग किया जाता है. यहां पर पहले मेथड का प्रयोग किया गया. इसमें ड्रिल होल करने के बाद डायनामाइट से ब्लास्ट कराया जाता है. उसके बाद अगले छह से 24 घंटे तक उस एरिया को यूं ही रखा जाता है. फिर प्राइमरी सपोर्ट इंस्टॉल किया जाता है. इसके लिए स्टील लैटिस गर्डर या स्टील रिब, रॉक बॉल्ट्स, शॉटक्रेट का स्प्रे किया जाता है. इसके चार या छह महीने बाद वाटर प्रूफिंग मेंब्रेन के ऊपर फाइनल सपोर्ट बनाया जाता है. इसके बाद आप इसमें बदलाव नहीं कर सकते हैं.

सूत्रों के अनुसार जहां पर ढांचा गिरा, प्राइमरी सपोर्ट 2019 में बना था. इसके छह महीने बाद कॉन्ट्रैक्टर ने फाइनल सपोर्ट नहीं बनाया. चार साल तक वहां पर प्राइमरी स्ट्रक्चर यूं ही रहा. ऐसा लगता है कि कॉन्ट्रैक्टर इस काम को पूरा करने की जल्दी में था और उसने ठीक से प्रक्रिया पूरी नहीं की. दूसरी वजह यह है कि हिमालय एक बहुत ही नाजुक क्षेत्र है और यहां पर भूगर्भीय सरप्राइजेज होते रहते हैं. शियर जोन हिट होने की वजह से यह दुर्घटना हुई. जिस रेस्क्यू ऑपरेशन की शुरुआत की गई थी, वह गत शुक्रवार को प्रभावित हुआ. मुख्य मकसद 80 सेमी के एक पाइप डालने की है, ताकि उसके जरिए वर्कर्स को बाहर निकाला जा सके.

ये भी पढ़ें : उत्तरकाशी टनल हादसा: कैसे बचेगी 41 मजदूरों की जान, जानिए रेस्क्यू ऑपरेशन का प्लान, 6 विकल्पों पर काम

नई दिल्ली : उत्तराखंड में जहां पर हादसा हुआ है, उस टनल के निर्माण का ठेका हैदराबाद की एक कंपनी को सौंपा गया था. इसे सरकारी कंपनी नेशनल हाइवे एंड इन्फ्रांस्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लि. ने टेंडर जारी किया था.

दरअसल, टनल दो तरीके से बनाए जाते हैं. पहला तरीका है- ड्रिलिंग और ब्लास्टिंग, और दूसरा तरीका है बोरिंग मेथड. यह कंपनी पहले तरीके से टनल बना रहा है. इसमें एक्सप्लोसिव का कंट्रोल तरीके से प्रयोग किया जाता है. इसके लिए गैस प्रेशर ब्लास्टिंग पायरोटेक्निक का प्रयोग करके पत्थरों की खुदाई की जाती है.

इस मामले के जानकार एसपी सती ने ईटीवी भारत को बताया कि आमतौर पर हिमालय क्षेत्र में ड्रिलिंग और ब्लास्टिंग की अनुमति प्रदान नहीं की जाती है. सती कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री वीर चंद्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं.

उन्होंने कहा कि इस कंपनी के पास टनल बोरिंग मशीन नहीं है, इसलिए वह डायनामाइट ब्लास्टिंग मेथड का प्रयोग कर रहे हैं. लेकिन मुझे लग रहा है कि उसके लिए जो सुरक्षा के उपाय उठाए जाने चाहिए थे, उसे नहीं उठाया गया.

सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रूड़की के वरिष्ठ वैज्ञानिक कौशिक पंडित ने ईटीवी भारत को बताया -

सिल्क्यारा पोर्टल या फिर टनल के एंट्री प्वाइंट से 200 मीटर के रेंज में ढांचा टूटा है. छत का गिरना कई वजहों से हो सकता है. उनमें से एक कारण टनल के निर्माण में तेज गति से आगे बढ़ना हो सकता है. बहुत संभव है उन्होंने निर्धारित सीमा से अधिक एक्सप्लोसिव का इस्तेमाल किया होगा. इसकी वजह से टनेल एक्सिस के चारों ओर रॉक मास कमजोर हो गया. और इसने शियर जोन को बहुत ही कमजोर कर दिया.

शियर जोन पृथ्वी के क्रस्ट या उपरी मेंटल के अंदर एक पतला क्षेत्र है, जो चट्टान के खिसकने की वजह से डिफॉर्म्ड हो गया है. ऊपरी परत में जहां पहले से चट्टान भंगुर होती है, शियर जोन ने फॉल्ट का रूप से लिया.

कौशिक पंडित ने आगे कहा -

मई 2024 तक इस प्रोजेक्ट को पूरा किया जाना था. लेकिन अब इसे समय पर पूरा नहीं किया जा सकेगा. इसके निर्माण की शुरुआत 2018 में की गई थी. आठ महीने पहले भी एक इसी तरह की घटना हुई थी, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर नहीं हुई थी.

विशेषज्ञ मानते हैं कि कहीं न कहीं इंजीनियरिंग स्तर पर दोष है. विशेषज्ञों के अनुसार नॉरवेजियन टनेलिंग मेथड और न्यू ऑस्ट्रियन टनेलिंग मेथड हैं, जिनका अक्सर प्रयोग किया जाता है. यहां पर पहले मेथड का प्रयोग किया गया. इसमें ड्रिल होल करने के बाद डायनामाइट से ब्लास्ट कराया जाता है. उसके बाद अगले छह से 24 घंटे तक उस एरिया को यूं ही रखा जाता है. फिर प्राइमरी सपोर्ट इंस्टॉल किया जाता है. इसके लिए स्टील लैटिस गर्डर या स्टील रिब, रॉक बॉल्ट्स, शॉटक्रेट का स्प्रे किया जाता है. इसके चार या छह महीने बाद वाटर प्रूफिंग मेंब्रेन के ऊपर फाइनल सपोर्ट बनाया जाता है. इसके बाद आप इसमें बदलाव नहीं कर सकते हैं.

सूत्रों के अनुसार जहां पर ढांचा गिरा, प्राइमरी सपोर्ट 2019 में बना था. इसके छह महीने बाद कॉन्ट्रैक्टर ने फाइनल सपोर्ट नहीं बनाया. चार साल तक वहां पर प्राइमरी स्ट्रक्चर यूं ही रहा. ऐसा लगता है कि कॉन्ट्रैक्टर इस काम को पूरा करने की जल्दी में था और उसने ठीक से प्रक्रिया पूरी नहीं की. दूसरी वजह यह है कि हिमालय एक बहुत ही नाजुक क्षेत्र है और यहां पर भूगर्भीय सरप्राइजेज होते रहते हैं. शियर जोन हिट होने की वजह से यह दुर्घटना हुई. जिस रेस्क्यू ऑपरेशन की शुरुआत की गई थी, वह गत शुक्रवार को प्रभावित हुआ. मुख्य मकसद 80 सेमी के एक पाइप डालने की है, ताकि उसके जरिए वर्कर्स को बाहर निकाला जा सके.

ये भी पढ़ें : उत्तरकाशी टनल हादसा: कैसे बचेगी 41 मजदूरों की जान, जानिए रेस्क्यू ऑपरेशन का प्लान, 6 विकल्पों पर काम

Last Updated : Nov 30, 2023, 12:53 PM IST
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