देहरादून (उत्तराखंड): उत्तराखंड में भारतीय पुलिस सेवा की विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) की मुहर लगने के बाद कई अधिकारियों को प्रमोशन मिला है. जिसमें आईपीएस अधिकारी अरुण मोहन जोशी, आईपीएस अधिकारी स्वीटी अग्रवाल, आईपीएस अधिकारी अनंत शंकर ताकवाले और राजीव स्वरूप अधिकारी शामिल हैं. वैसे तो सभी अधिकारी तेज तर्रार अधिकारी हैं, लेकिन चर्चा जिस अधिकारी की हो रही है, वो हैं अरुण मोहन जोशी. जो देश में सबसे कम उम्र के आईजी बने हैं.
उत्तराखंड के अरुण मोहन जोशी साल 2006 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. जिस वक्त वे आईपीएस बने थे, उनकी उम्र मात्र 23 साल की थी. उस समय वे सबसे कम उम्र के आईपीएस अधिकारी बने थे. इसके बाद साल 2004 बैच के आईपीएस अधिकारी गौरव राजपूत साल 2022 में सबसे कम उम्र के आईजी बने थे, लेकिन अब गौरव राजपूत का रिकॉर्ड भी अरुण मोहन जोशी ने तोड़ दिया है.
अरुण मोहन जोशी मात्र 40 साल की उम्र में आईजी पद संभालने वाले देश के सबसे पहले अधिकारी बन गए हैं. अपनी कार्यशैली की वजह से हमेशा चर्चाओं में रहने वाले अरुण मोहन जोशी को लेकर हर कोई बहुत कुछ जानना चाहता है. ऐसे में आईपीएस की तैयारी कर रहे छात्र उन्हें पढ़ना चाहते हैं और उनकी तरह देश सेवा करना चाहते हैं.
छोटे से गांव से ताल्लुक रखते हैं अरुण मोहन जोशी: उत्तराखंड के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर के चकराता क्षेत्र के छोटे से गांव मुंधौल में जन्मे आईपीएस अरुण मोहन जोशी को लोग तब से ही पसंद करने लग गए थे, जब लोगों ने उन्हें 23 साल की उम्र में पुलिस की वर्दी में देखा. अरुण मोहन जोशी ने आईआईटी रुड़की से इंजीनियरिंग की है.
अरुण जोशी एक मध्यम परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता सरकारी नौकरी में थे तो ऐसे में एक जगह से दूसरी जगह पिता के ट्रांसफर के साथ ही वो भी इधर से उधर जाते रहे. तीन भाई और एक बहन वाले इस परिवार में अरुण मोहन जोशी ही आईपीएस बने.
आखिरकार क्यों पुलिस डिपार्टमेंट में आए अरुण जोशी: अरुण मोहन जोशी कहते हैं कि अक्सर ऐसा होता है कि आप स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही सोच लेते हैं कि बड़ा होकर मुझे क्या बनना है और क्या करना है? लेकिन उनके मामले में ऐसा नहीं था. उन्होंने 9वीं क्लास तक ये नहीं सोचा था कि उन्हें क्या बनना है? घर का माहौल ऐसा नहीं था कि इतना सोचने का मौका मिले. उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे उन्हें बात समझ आई और वो आईपीएस बन गए. उन्होंने इसका श्रेय अपने पिता को दिया है.
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बचपन में ही छीन गया था मां का प्यार, छोटी बहन ने रखा ख्याल: अरुण मोहन जोशी ने बताया कि जब वो छोटे थे, तब ही उनकी मां का निधन हो गया था. मां का प्यार भी ठीक से मिल नहीं पाया, लेकिन पिता ने प्यार में कोई कमी नहीं की. उनकी छोटी बहन थीं, जो भले ही छोटी थी, लेकिन समझदारी में सभी से बड़ी थी. वो ही उनका बखूबी ख्याल रखती थी. उन्होंने बताया कि वो गांव में छोटे से घर में रहा करते थे. बचपन से लेकर आज तक उनकी पिता ने हमेशा से ही एक दोस्त बनकर साथ दिया.
पिता ने कहा था पुलिस अधिकारी बनो, भाई बनाते थे खाना: अरुण मोहन जोशी कहते हैं कि जब वो आईआईटी रुड़की गए. तब उन्होंने देखा कि उनकी साथी अलग-अलग फील्ड में जाने की बात कर रहे थे. उस समय भी उनके पिता ने उनका साथ दिया और पुलिस में जाने के लिए प्रेरित किया. ऐसे में उन्होंने पिता के कहने पर अपनी तैयारी की और पुलिस डिपार्टमेंट में आ गए. उन्होंने बताया कि जब वो दिल्ली में पढाई कर रहे थे, तब बड़े भाई उनके लिए खाना बनाया करते थे.
मां नहीं थीं, लिहाजा छोटी बहन ने मां की तरह ख्याल रखा. जीवन में एक दौर ऐसा भी आया, जब उन्हें लगने लगा था कि सब कुछ कठिन है, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. पढ़ाई को लेकर कभी परिवार का दबाव नहीं था. पिता ने हमेशा कंधे पर हाथ रख कर आगे बढ़ने के लिए कहा. उसका असर ये हुआ कि वो आज एक पुलिस अधिकारी हैं.
कई बड़े जिलों में हुई तैनाती, चुनौतियों से ऐसे पाया पार: अरुण मोहन जोशी कहते हैं कि कोई भी जिम्मेदारी या काम, बड़ी या छोटी नहीं होती है. शुरुआत थोड़ी कठिनाई जरूर आती है, लेकिन उस कठिनाई से भी आप कुछ न कुछ सीखते जरूर हैं. उन्होंने जहां भी ड्यूटी की, वहां डिपार्टमेंट ने उनका पूरा साथ दिया. वो गढ़वाल और कुमाऊं के कई जिलों में तैनात रहे. सीबीसीआईडी से लेकर तमाम जगहों पर उनकी तैनाती रही.
अरुण मोहन जोशी ने बताया कि सबसे बड़ा मोड़ तब आया, जब डिपार्टमेंट और सरकार ने उन्हें उत्तराखंड के सबसे महत्वपूर्ण जिला हरिद्वार का एसएसपी बनाया. उनके लिए यह जिम्मेदारी बहुत बड़ी थी, लेकिन कभी उसे बड़ा समझकर नहीं देखा. शुरू से लेकर आज तक हर काम में वो अपना 100 परसेंट देते हैं. आगे भी देते रहेंगे. आगे जो भी नया असाइनमेंट उन्हें डिपार्टमेंट देगा, उस काम को वो पूरी मेहनत करेंगे.
हर तैनाती से कुछ न कुछ मिलती है सीख: अरुण मोहन जोशी कहते हैं कि वो हर तैनाती में बेहद खुश रहे हैं. फिर वो पीएससी हो या उत्तराखंड विजिलेंस में डीआईजी पद हो या फिर एसएसपी की कमान. इसके अलावा मौजूदा समय में आईजी पद हों, वे कहते हैं कि हर तैनाती में उन्हें बहुत कुछ नया देखने को मिलता है. जिससे वो हर दिन में कुछ न कुछ नया सीखते भी हैं. पीएससी में उन्होंने देखा है कि आखिरकार एक पुलिसकर्मी किस तरह से अपना जीवन यापन करता है.
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जोशी कहते हैं कि लोगों के मन में पुलिस के प्रति कई धारणाएं हैं, लेकिन कोई अगर एक पुलिसकर्मी या उसके परिवार का जीवन नजदीक से देखें तो उन्हें मालूम होगा कि किन परिस्थितियों में पुलिस काम करती है. भगवान को मानने के सवाल पर उन्होंने कहा कि जब उनकी तैनाती हरिद्वार में हुई थी, तब से भगवान के प्रति उनकी आस्था और बढ़ गई. वे चाहते हैं कि भगवान उन्हें सत्य के रास्ते पर चलाते रहे.
क्या अरुण मोहन जोशी को डर लगता है? इस सवाल पर अरुण मोहन जोशी कहते हैं कि उन्हें बस इस बात से डर लगता है कि कभी उनसे जाने अनजाने में कोई ऐसा कदम न उठे, जिसकी वजह से वो अपनी ही निगाहों में गिर जाएं. उनका कहना है कि वो जब भी मंदिर जाते हैं, तब यही प्रार्थना करते हैं कि भविष्य में वो कोई ऐसा कदम न उठाएं, जिससे किसी का अहित हो.
आईपीएस बनने की चाह रखने वालों के लिए संदेश: आईपीएस अरुण मोहन जोशी का कहना है कि जीवन में कुछ बनने और पाने के लिए पढ़ाई जरूरी है, लेकिन किसी भी तरह से बच्चे पर दबाव न बनाएं. जो भी छात्र तैयारी कर रहे हैं, वो जितने भी घंटे पढ़ें, पूरे ध्यान से पढ़ें. सुबह का वक्त पढ़ाई के लिए अनुकूल रहता है. इसलिए छात्र फ्रेश दिमाग से तैयारी करें. अच्छी कोचिंग लें और अपने सीनियर या टीचर का मार्गदर्शन लेते रहे हैं. मेहनत और साफ नियत से किया हुआ कोई भी काम असफल नहीं होता है. भले ही देर लगती है, लेकिन सफलता जरूर मिलती है.
कई बड़े खुलासे के बाद चर्चाओं में आए अरुण मोहन जोशी: बता दें कि 5 साल की सर्विस के बाद ही अरुण मोहन जोशी को हरिद्वार का एसएसपी बना दिया गया था. इससे पहले वे उत्तरकाशी के एसपी के अलावा रुड़की में एएसपी और कुमाऊं में भी कई जगह अपनी सेवाएं दे चुके थे. उन्हें अंतिम फील्ड पोस्ट सितंबर 2019 में मिली थी. जब उन्हें बतौर एसएसपी देहरादून की कमान सौंपी गई थी. हरिद्वार में एसएसपी रहते हुए उन्होंने कुछ ऐसे काम किए, जिन्हें लोग आज भी नहीं भूल पाते हैं.
हरिद्वार में लगने वाले कांवड़ मेले के दौरान अरुण मोहन जोशी ने ही पहली बार हजारों वाहनों की पार्किंग की एक ऐसी व्यवस्था की थी, जिसको लोग और प्रशासन आज भी फॉलो कर रहा है. इतना ही नहीं मुंबई में सीएसटी रेलवे स्टेशन से बच्ची की गुमशुदगी ने पूरे देश में हल्ला मचा दिया था.
अरुण जोशी के ही कार्यकाल में उस बच्ची को न केवल हरिद्वार से बरामद किया गया था. बल्कि, आरोपी को भी हरिद्वार पुलिस ने गिरफ्तार किया था. तब अरुण मोहन जोशी सुर्खियों में आ गए थे. इसके साथ ही देहरादून में 500 कैमरे लगवाने का मामला हो या फिर किटी कांड का खुलासा. देहरादून में चर्चित डकैती से लेकर कई बड़े अपराधों पर लगाम लगाने के मामले में उनकी पुलिसिंग को सभी ने सराहा.