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जोशीमठ भू धंसाव मामले में देर से जागी 'सरकार', गिरने की कगार पर सैकड़ों घर

ऐतिहासिक जोशीमठ के अस्तित्व को बचाने के लिए जिस तरह से आपाधापी मची है. अगर पहले ही जोशीमठ मामले में गंभीरता दिखाई गई होती तो आज यह नौबत नहीं आती है. साल 1976 में जारी मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट को भी दरकिनार किया. इसके बाद तीन सालों से आ रही दरारों और लोगों के आंदोलन पर सरकार नहीं जागी. अब मामला हाथ से बाहर जा चुका है, तब तमाम प्रयास किए जा रहे हैं. जानिए सरकार से कहां हुई चूक और अब तक मामले में क्या-क्या हुआ...

Joshimath land subsidence
जोशीमठ मामले में देर से जागी सरकार
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Published : Jan 10, 2023, 8:14 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड के जोशीमठ में यह हालात अचानक से नहीं बने हैं, बल्कि बीते 3 सालों से घरों में दरार की खबरें आ रही थी. साल 1976 में भी जोशीमठ में भू धंसाव की घटना हुई थी. जिसके बाद मिश्रा कमेटी ने इस पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी. जिसमें उन्होंने आगाह किया था कि ये पूरा जोन ही भू धंसाव की चपेट में है, लेकिन किसी ने भी इस रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लिया. जिस तरह से बीते 10 दिनों में इससे निपटने को लेकर सरकार और प्रशासन में हड़कंप मचा है, अगर इससे निपटने की तैयारी पहले ही कर ली जाती तो शायद इस तरह के हालात पैदा न होते. आज जोशीमठ शहर की स्थिति ये है कि 723 इमारतों में दरारें आ चुकी हैं, जिनमें से 86 घर असुरक्षित क्षेत्र में हैं. वहीं प्रशासन ने अभीतक 131 परिवार अस्थायी रूप से विस्थापित हुए हैं.

देर से जागा सिस्टमः जोशीमठ में दरार और भू धंसाव 3 साल पहले से शुरू हो गया था. उस समय रविग्राम और मारवाड़ी में कई मकानों में पड़ी रही दरारें ये संकेत दे रही थी कि जमीन के नीचे कुछ हलचल हो रही है. जो आने वाले समय में बड़ा संकट लेकर आएगा, लेकिन हर बार जिला प्रशासन और सरकार मामले में हीलाहवाली करती रही. हर बार प्रशासन से पूछे जाने पर एक ही जवाब मिलता कि जमीन की तलाश की जा रही है.

वही, बीते 10 दिनों से जिस तरह सरकार ने इस पूरे मामले पर गंभीरता दिखाई है, अगर पहले ही इस तरह की गंभीरता दिखाई गई होती तो आज ऐसी नौबत नहीं आती. आज स्थिति ये हो गई है कि लोगों को मजबूरन अपने घर छोड़ने पड़ रहे हैं. उन्हें घरों से बाहर निकाल कर स्कूल, बारात घर जैसी जगहों पर ठहराया जा रहा है. सरकार उनके विस्थापन की प्रक्रिया पहले ही पूरी कर लेती तो आज आपाधापी की स्थिति देखने को नहीं मिलती.

जानकार बोले 'हमने खुद बुलाई आपदा': जोशीमठ में हो रहे भू धंसाव को लेकर जाने माने पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के बेटे राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि यह आपदा आई नहीं है बल्कि हम लोगों ने इसे बुलाया है. उत्तराखंड के जोशीमठ ही नहीं गढ़वाल और कुमाऊं के कई शहरों में इस तरह के हालात बन रहे हैं. उनका साफ कहना है कि पहले पहाड़ों में लकड़ी या पत्थरों के घर हुआ करते थे, लेकिन आज हमने जोशीमठ में बहुमंजिला इमारत बना डाले हैं.

उनका कहना है कि हम यह भूल रहे हैं कि यह शहर कभी समुंदर हुआ करते थे. हिमालय अभी भी कम उम्र का है. ऐसे में उसी हिमालय के सीने को लगातार चीर कर कभी पावर प्रोजेक्ट तो कभी दूसरे प्रोजेक्ट के जरिए उस पर बोझ डाल रहे हैं. पहाड़ों में नेता भी सिर्फ विकास का मतलब कंक्रीट के जंगल को ही मानते हैं. जबकि, हमें यह समझना होगा कि नदी किनारे बने शहर बेहद संवेदनशील हैं.

राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि अगर ऋषिकेश से बदरीनाथ तक जाते हैं तो चारों तरफ अब मकान, होटल और बड़े-बड़े कॉम्प्लेक्स नजर आते हैं. जबकि, यह पूरा एरिया भूकंप प्रभावित जोन में आता है. इसके साथ ही जो प्लेटलेट्स हैं, वो भी लगातार खिसक रहे हैं. जिससे जमीन के अंदर हलचल पैदा हो रही है. वहीं, राजीव नयन बहुगुणा बताते हैं कि इसे एक शुरुआत मान सकते हैं. इस तरह के हालात उत्तरकाशी, नैनीताल में देख चुके हैं, लेकिन बावजूद इसके सरकारें और नीति नियंता सुध नहीं ले रहे हैं.
ये भी पढ़ेंः क्या पाताल में समा जाएगा जोशीमठ? ऐतिहासिक विरासत ज्योर्तिमठ पर भी खतरा

जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति का आरोपः जोशीमठ बचाओ आंदोलन समिति के संयोजक अतुल सती साल 2004 से इस आंदोलन के साथ जुड़े हुए हैं. अतुल सती भी मानते हैं कि जोशीमठ में जो कुछ भी हो रहा है, अगर उसे पहले ही देखा जाता तो हालात इतने खराब नहीं होते. अतुल सती का साफ कहना है कि अभी तो यह शुरुआत है. जोशीमठ और उसके आसपास के इलाके में बहुत बड़ी आपदा या संकट आने वाले समय में आ सकता है.

बता दें कि समाजसेवी अतुल सती समेत 500 से ज्यादा लोग 14 महीने से जोशीमठ की इस स्थिति को सरकार तक पहुंचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं. अतुल सती कहते हैं कि जब उन्होंने आंदोलन शुरू किया था, तब उन्होंने सरकार से पूरे इलाके की सर्वे करने की मांग की थी, लेकिन सरकार देर से जागी और रिपोर्ट तैयार की. जिसमें सारा दोष जोशीमठ के लोगों पर ही थोप दिया गया था.

अतुल सती बताते हैं कि उन्होंने खुद जून 2022 में इसका अध्ययन करवाया था. जिसमे संकट की बात सामने आई थी, लेकिन अगस्त महीने में सरकार ने जो टीम भेजी, उसकी रिपोर्ट में फिर वही हुआ. जिस पर उनकी ओर से विरोध दर्ज करवाया गया. उसके बाद अक्टूबर-नवंबर में भी विरोध हुआ. मामले को लेकर आपदा सचिव से भी मुलाकात की गई, लेकिन कोई हल नहीं निकला.

उन्होंने बताया कि संघर्ष समिति ने जोशीमठ में दरार की समस्या को लेकर एक जनवरी को सीएम धामी से मुलाकात की थी. उसके बाद 4 जनवरी को जोशीमठ के लोगों ने मशाल जुलूस निकला, तब जाकर सरकार समेत अन्य लोग हरकत में आए. उनका आरोप है कि अभी भी सिर्फ बयानबाजी हो रही है. कोई ठोस निर्णय नहीं हो रहा है. जिस पर संतुष्टि जताई जा सके.

जोशीमठ मामले में अब तक क्या-क्या हुआ? चमोली जिला प्रशासन ने बीती 5 जनवरी को बीआरओ के अंतर्गत निर्मित हेलंग बाईपास और एनटीपीसी तपोवन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना के निर्माण कार्यों पर रोक लगाई. बीती 7 जनवरी को सीएम पुष्कर धामी जोशीमठ के लिए रवाना हुए. जहां उन्होंने हवाई और स्थलीय निरीक्षण किया. करीब 2 घंटे बिताने के बाद सीएम धामी देहरादून के लिए रवाना हुए. जहां उन्होंने सचिवालय में बैठक कर जोशीमठ में मकानों को खाली करने के आदेश दिए.

वहीं, 8 जनवरी को पीएम मोदी ने जोशीमठ मामले को लेकर सीएम धामी से फोन पर बातचीत की. इस मामले में पीएमओ में बैठक भी हुई. जबकि, 9 जनवरी को जोशीमठ में आर्मी, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ को तैनात किया गया. इसके बाद 10 जनवरी को दो बड़े होटल माउंट व्यू और मलारी इन को तोड़ने का काम शुरू हुआ.

आज यानी मंगलवार 10 जनवरी को सांसद और केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने मौके का दौरा किया. इसके साथ ही उमा भारती भी मौके पर पहुंची है. जिस कंपनी के ऊपर आरोप लग रहे हैं, उसने भी 5 जनवरी को अपनी सफाई दी. एनटीपीसी ने प्रेस नोट जारी कर कहा कि भू धंसाव से हमारा कोई लेना देना नहीं है. वही, सरकार जब तक पीड़ित लोगों के लिए कोई व्यवस्था नहीं हो जाती है, तब तक उन्हें 4 हजार रुपए दिए जाएंगे.
ये भी पढ़ेंः हाइड्रो पावर परियोजना, सुरंग और एक धंसता शहर! उत्तराखंड में प्रोजेक्ट पर छिड़ी बहस

अभी क्या हो रहा काम? मुख्य सचिव एसएस संधू ने कहा कि भूस्खलन से किसी प्रकार का जानमाल का नुकसान न हो. इसके लिए सबसे पहले परिवारों को शिफ्ट किया जाए और उस बिल्डिंग को प्राथमिकता के आधार पर ध्वस्त किए जाएं, जो ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है. जिन स्थानों पर प्रभावित परिवारों को रखा गया है, उन स्थानों पर उनके रहने खाने की उचित व्यवस्था हो. साथ ही यह भी ध्यान रखा जाए कि प्रभावित नागरिकों एवं शासन प्रशासन के मध्य किसी प्रकार का कम्युनिकेशन गैप न हो.

उच्चाधिकारी भी लगातार प्रभावित परिवारों के संपर्क में रहें और परिस्थितियों पर नजर बनाए रखें. मुख्य सचिव ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि भू धंसाव के कारण मोबाइल नेटवर्क भी प्रभावित हो सकता है. मोबाइल टावर अन्यत्र सुरक्षित स्थान में शिफ्ट करें या नए टावर लगा कर संचार व्यवस्था को मजबूत बनाया जाए. उन्होंने कहा कि स्थानीय लोगों को साथ लेकर एक असेसमेंट कमेटी बनाई जाए. रोजाना पूरे क्षेत्र में टीम भेज कर निरीक्षण करवाया जाए कि पिछले 24 घंटे में किस प्रकार का और कितना परिवर्तन हुआ?

जो भवन ज्यादा प्रभावित हैं, उन्हें प्राथमिकता पर ध्वस्त किया जाए. मुख्य सचिव संधू ने कहा कि जोशीमठ के स्थिर क्षेत्र के लिए ड्रेनेज और सीवेज प्लान पर भी काम शुरू किया जाए. भवनों को ध्वस्त करने में विशेषज्ञों का सहयोग लिया जाए. ताकि ध्वस्तीकरण में कोई अन्य हानि न हो. साथ ही कंट्रोल रूम को 24 घंटे एक्टिव मोड पर रखा जाए और आमजन को किसी भी प्रकार की आपात स्थिति में संपर्क करने के लिए प्रचार प्रसार किया जाए.

देहरादूनः उत्तराखंड के जोशीमठ में यह हालात अचानक से नहीं बने हैं, बल्कि बीते 3 सालों से घरों में दरार की खबरें आ रही थी. साल 1976 में भी जोशीमठ में भू धंसाव की घटना हुई थी. जिसके बाद मिश्रा कमेटी ने इस पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी. जिसमें उन्होंने आगाह किया था कि ये पूरा जोन ही भू धंसाव की चपेट में है, लेकिन किसी ने भी इस रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लिया. जिस तरह से बीते 10 दिनों में इससे निपटने को लेकर सरकार और प्रशासन में हड़कंप मचा है, अगर इससे निपटने की तैयारी पहले ही कर ली जाती तो शायद इस तरह के हालात पैदा न होते. आज जोशीमठ शहर की स्थिति ये है कि 723 इमारतों में दरारें आ चुकी हैं, जिनमें से 86 घर असुरक्षित क्षेत्र में हैं. वहीं प्रशासन ने अभीतक 131 परिवार अस्थायी रूप से विस्थापित हुए हैं.

देर से जागा सिस्टमः जोशीमठ में दरार और भू धंसाव 3 साल पहले से शुरू हो गया था. उस समय रविग्राम और मारवाड़ी में कई मकानों में पड़ी रही दरारें ये संकेत दे रही थी कि जमीन के नीचे कुछ हलचल हो रही है. जो आने वाले समय में बड़ा संकट लेकर आएगा, लेकिन हर बार जिला प्रशासन और सरकार मामले में हीलाहवाली करती रही. हर बार प्रशासन से पूछे जाने पर एक ही जवाब मिलता कि जमीन की तलाश की जा रही है.

वही, बीते 10 दिनों से जिस तरह सरकार ने इस पूरे मामले पर गंभीरता दिखाई है, अगर पहले ही इस तरह की गंभीरता दिखाई गई होती तो आज ऐसी नौबत नहीं आती. आज स्थिति ये हो गई है कि लोगों को मजबूरन अपने घर छोड़ने पड़ रहे हैं. उन्हें घरों से बाहर निकाल कर स्कूल, बारात घर जैसी जगहों पर ठहराया जा रहा है. सरकार उनके विस्थापन की प्रक्रिया पहले ही पूरी कर लेती तो आज आपाधापी की स्थिति देखने को नहीं मिलती.

जानकार बोले 'हमने खुद बुलाई आपदा': जोशीमठ में हो रहे भू धंसाव को लेकर जाने माने पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के बेटे राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि यह आपदा आई नहीं है बल्कि हम लोगों ने इसे बुलाया है. उत्तराखंड के जोशीमठ ही नहीं गढ़वाल और कुमाऊं के कई शहरों में इस तरह के हालात बन रहे हैं. उनका साफ कहना है कि पहले पहाड़ों में लकड़ी या पत्थरों के घर हुआ करते थे, लेकिन आज हमने जोशीमठ में बहुमंजिला इमारत बना डाले हैं.

उनका कहना है कि हम यह भूल रहे हैं कि यह शहर कभी समुंदर हुआ करते थे. हिमालय अभी भी कम उम्र का है. ऐसे में उसी हिमालय के सीने को लगातार चीर कर कभी पावर प्रोजेक्ट तो कभी दूसरे प्रोजेक्ट के जरिए उस पर बोझ डाल रहे हैं. पहाड़ों में नेता भी सिर्फ विकास का मतलब कंक्रीट के जंगल को ही मानते हैं. जबकि, हमें यह समझना होगा कि नदी किनारे बने शहर बेहद संवेदनशील हैं.

राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि अगर ऋषिकेश से बदरीनाथ तक जाते हैं तो चारों तरफ अब मकान, होटल और बड़े-बड़े कॉम्प्लेक्स नजर आते हैं. जबकि, यह पूरा एरिया भूकंप प्रभावित जोन में आता है. इसके साथ ही जो प्लेटलेट्स हैं, वो भी लगातार खिसक रहे हैं. जिससे जमीन के अंदर हलचल पैदा हो रही है. वहीं, राजीव नयन बहुगुणा बताते हैं कि इसे एक शुरुआत मान सकते हैं. इस तरह के हालात उत्तरकाशी, नैनीताल में देख चुके हैं, लेकिन बावजूद इसके सरकारें और नीति नियंता सुध नहीं ले रहे हैं.
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जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति का आरोपः जोशीमठ बचाओ आंदोलन समिति के संयोजक अतुल सती साल 2004 से इस आंदोलन के साथ जुड़े हुए हैं. अतुल सती भी मानते हैं कि जोशीमठ में जो कुछ भी हो रहा है, अगर उसे पहले ही देखा जाता तो हालात इतने खराब नहीं होते. अतुल सती का साफ कहना है कि अभी तो यह शुरुआत है. जोशीमठ और उसके आसपास के इलाके में बहुत बड़ी आपदा या संकट आने वाले समय में आ सकता है.

बता दें कि समाजसेवी अतुल सती समेत 500 से ज्यादा लोग 14 महीने से जोशीमठ की इस स्थिति को सरकार तक पहुंचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं. अतुल सती कहते हैं कि जब उन्होंने आंदोलन शुरू किया था, तब उन्होंने सरकार से पूरे इलाके की सर्वे करने की मांग की थी, लेकिन सरकार देर से जागी और रिपोर्ट तैयार की. जिसमें सारा दोष जोशीमठ के लोगों पर ही थोप दिया गया था.

अतुल सती बताते हैं कि उन्होंने खुद जून 2022 में इसका अध्ययन करवाया था. जिसमे संकट की बात सामने आई थी, लेकिन अगस्त महीने में सरकार ने जो टीम भेजी, उसकी रिपोर्ट में फिर वही हुआ. जिस पर उनकी ओर से विरोध दर्ज करवाया गया. उसके बाद अक्टूबर-नवंबर में भी विरोध हुआ. मामले को लेकर आपदा सचिव से भी मुलाकात की गई, लेकिन कोई हल नहीं निकला.

उन्होंने बताया कि संघर्ष समिति ने जोशीमठ में दरार की समस्या को लेकर एक जनवरी को सीएम धामी से मुलाकात की थी. उसके बाद 4 जनवरी को जोशीमठ के लोगों ने मशाल जुलूस निकला, तब जाकर सरकार समेत अन्य लोग हरकत में आए. उनका आरोप है कि अभी भी सिर्फ बयानबाजी हो रही है. कोई ठोस निर्णय नहीं हो रहा है. जिस पर संतुष्टि जताई जा सके.

जोशीमठ मामले में अब तक क्या-क्या हुआ? चमोली जिला प्रशासन ने बीती 5 जनवरी को बीआरओ के अंतर्गत निर्मित हेलंग बाईपास और एनटीपीसी तपोवन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना के निर्माण कार्यों पर रोक लगाई. बीती 7 जनवरी को सीएम पुष्कर धामी जोशीमठ के लिए रवाना हुए. जहां उन्होंने हवाई और स्थलीय निरीक्षण किया. करीब 2 घंटे बिताने के बाद सीएम धामी देहरादून के लिए रवाना हुए. जहां उन्होंने सचिवालय में बैठक कर जोशीमठ में मकानों को खाली करने के आदेश दिए.

वहीं, 8 जनवरी को पीएम मोदी ने जोशीमठ मामले को लेकर सीएम धामी से फोन पर बातचीत की. इस मामले में पीएमओ में बैठक भी हुई. जबकि, 9 जनवरी को जोशीमठ में आर्मी, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ को तैनात किया गया. इसके बाद 10 जनवरी को दो बड़े होटल माउंट व्यू और मलारी इन को तोड़ने का काम शुरू हुआ.

आज यानी मंगलवार 10 जनवरी को सांसद और केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने मौके का दौरा किया. इसके साथ ही उमा भारती भी मौके पर पहुंची है. जिस कंपनी के ऊपर आरोप लग रहे हैं, उसने भी 5 जनवरी को अपनी सफाई दी. एनटीपीसी ने प्रेस नोट जारी कर कहा कि भू धंसाव से हमारा कोई लेना देना नहीं है. वही, सरकार जब तक पीड़ित लोगों के लिए कोई व्यवस्था नहीं हो जाती है, तब तक उन्हें 4 हजार रुपए दिए जाएंगे.
ये भी पढ़ेंः हाइड्रो पावर परियोजना, सुरंग और एक धंसता शहर! उत्तराखंड में प्रोजेक्ट पर छिड़ी बहस

अभी क्या हो रहा काम? मुख्य सचिव एसएस संधू ने कहा कि भूस्खलन से किसी प्रकार का जानमाल का नुकसान न हो. इसके लिए सबसे पहले परिवारों को शिफ्ट किया जाए और उस बिल्डिंग को प्राथमिकता के आधार पर ध्वस्त किए जाएं, जो ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है. जिन स्थानों पर प्रभावित परिवारों को रखा गया है, उन स्थानों पर उनके रहने खाने की उचित व्यवस्था हो. साथ ही यह भी ध्यान रखा जाए कि प्रभावित नागरिकों एवं शासन प्रशासन के मध्य किसी प्रकार का कम्युनिकेशन गैप न हो.

उच्चाधिकारी भी लगातार प्रभावित परिवारों के संपर्क में रहें और परिस्थितियों पर नजर बनाए रखें. मुख्य सचिव ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि भू धंसाव के कारण मोबाइल नेटवर्क भी प्रभावित हो सकता है. मोबाइल टावर अन्यत्र सुरक्षित स्थान में शिफ्ट करें या नए टावर लगा कर संचार व्यवस्था को मजबूत बनाया जाए. उन्होंने कहा कि स्थानीय लोगों को साथ लेकर एक असेसमेंट कमेटी बनाई जाए. रोजाना पूरे क्षेत्र में टीम भेज कर निरीक्षण करवाया जाए कि पिछले 24 घंटे में किस प्रकार का और कितना परिवर्तन हुआ?

जो भवन ज्यादा प्रभावित हैं, उन्हें प्राथमिकता पर ध्वस्त किया जाए. मुख्य सचिव संधू ने कहा कि जोशीमठ के स्थिर क्षेत्र के लिए ड्रेनेज और सीवेज प्लान पर भी काम शुरू किया जाए. भवनों को ध्वस्त करने में विशेषज्ञों का सहयोग लिया जाए. ताकि ध्वस्तीकरण में कोई अन्य हानि न हो. साथ ही कंट्रोल रूम को 24 घंटे एक्टिव मोड पर रखा जाए और आमजन को किसी भी प्रकार की आपात स्थिति में संपर्क करने के लिए प्रचार प्रसार किया जाए.

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