देहरादून : उत्तराखंड के जंगलों में भयंकर आग लगी है. यह आग अमेजन के जंगलों में लगी आग से उत्पन्न त्रासदी की याद दिलाती है. उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग पिछले 24 घंटों से धधक रही है. केंद्र सरकार ने आग पर काबू पाने के लिए रविवार को दो हेलीकॉप्टर भेजे हैं.
वनाग्नि की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने तत्काल प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों, वन विभाग, आपदा प्रबंधन विभाग और सभी जिलाधिकारियों की आपात बैठक बुलाई. स्थिति से निपटने के लिए उठाए जा रहे कदमों का जायजा लिया. उत्तराखंड में इस साल सामान्य से कम बारिश होने के कारण जंगल में आग लगने की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं.
सरकारी सूत्रों ने बताया कि जंगल में लगी आग अभी काबू से बाहर नहीं हुई है और उससे निपटने के तमाम उपाय किए जा रहे हैं. बैठक में बताया गया कि इस फायर सीजन में अब तक वनाग्नि की 983 घटनाएं हुई हैं, जिससे 1,292 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है. वर्तमान में 40 जगहों पर आग लगी हुई है. नैनीताल, अल्मोड़ा, टिहरी गढ़वाल और पौड़ी गढ़वाल जिले वनाग्नि से अधिक प्रभावित है. वनाग्नि को रोकने के लिए 12 हजार वन कर्मी लगे हुए हैं, जबकि 1,300 फायर क्रू स्टेशन बनाए गए हैं.
अधिकारियों के अवकाश पर लगी रोक
मुख्यमंत्री के निर्देश पर वन विभाग के सभी अधिकारियों के अवकाश पर रोक लगा दी गई है. सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को अपने कार्यक्षेत्र में बने रहने को कहा गया है. प्रदेश भर में तैनात किए गए फायर वाचर्स को चौबीस घंटे निगरानी करने के निर्देश दिए गए हैं. केंद्र इसे लेकर लगातार संपर्क में है.
मुख्यमंत्री रावत ने बताया कि आग पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा दो हेलीकॉप्टर उपलब्ध कराए गए हैं. इस संबंध में उनकी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से फोन पर बात हुई थी, जिसमें उन्होंने उत्तराखंड को हर संभव सहायता के प्रति आश्वस्त किया. रावत ने कहा कि शाह ने आवश्यकता होने पर राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) की टीमें भेजने की बात भी कही है.
आग बुझाने के लिए भीमताल झील से पानी
मुख्यमंत्री ने कहा कि एक हेलीकॉप्टर गढ़वाल क्षेत्र के गौचर में रहेगा, जो श्रीनगर से पानी लेगा. जबकि, दूसरा हेलीकॉप्टर कुमाऊं क्षेत्र के हल्द्वानी में रहेगा और भीमताल झील से पानी लेगा. उन्होंने इसमें वन पंचायतों सहित स्थानीय लोगों का सहयोग लेने को कहा. साथ ही सतर्क किया कि इस बात का ध्यान रखा जाए कि बच्चे और बुजुर्ग आग बुझाने के लिए ना जाएं.
उन्होंने कहा कि वन संरक्षण उत्तराखंडवासियों की परंपरा में है. परंतु कुछ शरारती तत्व जान बूझकर वनों में आग लगाते हैं. उन्होंने अधिकारियों को ऐसे तत्वों की पहचान कर उनके विरूद्ध कठोर कार्रवाई करने के निर्देश दिए. बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा कि भविष्य में वनाग्नि की घटनाओं को न्यूनतम करने के लिए एक दीर्घकालिक योजना बनाई जाए. तहसील और ब्लॉक स्तर पर नियंत्रण कक्ष और दमकल केंद्र स्थापित किए जाएं.
जंगल में आग लगने की वजह
जानकारों के मुताबिक 2 से 3 साल में मौसम में बदलाव और कम बारिश आग लगने की प्रमुख वजह में से एक है. बताया गया है कि इस बार करीब 65% वर्षा कम हुई है, जिससे जंगल शुष्क स्थिति में हैं. ऐसे में जंगलों में सूखी पत्तियां, पेड़ और लकड़ियों की वजह से आग तेजी से लगी. लॉकडाउन के बाद अचानक जंगलों में लोगों की आवाजाही का बढ़ना भी आग लगने की बड़ी वजहों में एक है.
लॉकडाउन से आग की घटनाओं में कमी
उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक मान सिंह ने कहा कि पिछले साल गर्मियों में जंगलों में आग की घटनाएं कम हुई हैं, क्योंकि लॉकडाउन लागू होने के दौरान लोग जंगलों में कम ही गए. वहीं पिछले साल बारिश में भी कमी देखी गई.
क्या कहते हैं आंकड़ें
- वर्ष 2015 में जंगल में आग लगने की वजह से न किसी व्यक्ति की मौत हुई और न ही कोई जख्मी हुआ.
- साल 2016 में जंगल में लगी आग की वजह से प्रदेश में 6 लोगों की मौत हुई थी और 31 लोग घायल हुए थे.
- साल 2017 में जंगल में लगी आग की वजह से किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई. लेकिन आग की चपेट में आने से एक शख्स जख्मी हुआ था.
- साल 2018 में आग की वजह से किसी व्यक्ति की मौत नहीं हुई. इन मामलों में 6 लोग आग की चपेट में आने से झुलस गए.
- साल 2019 में आग से एक व्यक्ति की मौत हुई और 15 लोग घायल हुए.
- साल 2020 में आग की वजह से प्रदेश में दो व्यक्तियों की मौत और एक जख्मी हुआ.
- साल 2021 में अभी तक आग की वजह से 4 लोगों की मौत और 2 लोग जख्मी हुए हैं.
मंडलवार नुकसान के आंकड़े
- गढ़वाल मंडल में बीते चार महीनों में आग लगने की 430 घटनाएं हो चुकी हैं. जिसमें 501 हेक्टेयर जंगल जले हैं. इस आग में 6350 पेड़ जले हैं. कुल मिलाकर 18 लाख 44 हजार 700 रुपये का नुकसान हुआ है.
- कुमाऊं मंडल में बीते चार महीने में आग लगने की 276 घटनाएं सामने आईं. आग की घटनाओं में 396 हेक्टेयर जंगल जल गए और 2603 लोग इन घटनाओं में प्रभावित हुए. साथ ही 11 लाख 45 हजार 260 रुपये का नुकसान हुआ है.
- उत्तराखंड के वाइल्ड लाइफ क्षेत्र में कुल 17 घटनाएं हुईं, जिसमें 20.9 हेक्टेयर जंगल जले और 28,838 का नुकसान हुआ.
- आंकड़ों पर गौर करें तो बीते चार महीने में प्रदेश के जंगलों में आग लगने की 723 घटनाएं हुईं. इस दौरान 30 लाख 18 हजार 798 रुपये का नुकसान हुआ.
लोगों की लापरवाही एक बड़ा कारण
बारिश की कमी से जंगलों में ज्यादातर कांटेदार झाड़ियों और सूखी लकड़ियों की भरमार हो जाती है, जो जरा सी चिंगारी पर भी बहुत जल्दी आग पकड़ती हैं. ऐसे में लोगों की छोटी सी लापरवाही भी एक बहुत बड़ी गलती बन जाती है.
कभी सिगरेट पीते-पीते वहीं पर माचिस की तीली या कैंप पर आए लोगों द्वारा रोशनी के लिए लापरवाही से जलाई गई लकड़ियों से पूरे जंगल में आग फैल जाती है. मान सिंह के अनुसार, इस साल गर्मी के दौरान जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ सकती हैं. हालांकि, इससे निपटने के लिए अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं.
जंगलों में आग लगने से आस-पास के ग्रामीणों को भी भारी परेशानियों और नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. कई लोगों ने अपने बाग-बगीचे खो दिए.