हैदराबाद : उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी राजनीति में जिन्ना, हिंदुत्व, मुसलमान की स्वाभाविक एंट्री हो चुकी है. कांग्रेस और सपा के नेता के बयानों से राजनीति गरमा चुकी है. लखीमपुर खीरी की घटना के बाद कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी और समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव खुद को धाकड़ विपक्ष साबित करने की होड़ कर चुके हैं. गठबंधन के ताने-बाने बुने जा रहे हैं. मगर बहुजन समाजवादी पार्टी की नेता मायावती खामोश हैं. पार्टी के दूसरे नेता भी चुप ही है. अभी तक बीएसपी के किसी नेता ने ऐसा विवादस्पद बयान नहीं दिया है, जिसकी चर्चा राजनीतिक गलियारे में हुई हो.
पिछले 6 महीने में सिर्फ एक राजनीतिक अभियान : पिछले 6 महीने से चल रही सियासी गहमा-गहमा के बीच बहुजन समाजवादी पार्टी का एक राजनीतिक अभियान चर्चा में आया. जुलाई में पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र के नेतृत्व में 'प्रबुद्ध वर्ग विचार संगोष्ठी' हुई थी, जिसमें 'जय भीम-जय भारत' के अलावा 'जयश्रीराम' और 'जय परशुराम' का उद्घोष हुआ था. ब्राह्मणों को रिझाने के लिए शुरू किए इस अभियान से बीएसपी ने सोशल इंजीनियरिंग के पुराने आजमाए हुए फॉर्मूले पर काम शुरू किया. 2007 में इसी सोशल इंजीनियरिंग की बदौलत बसपा ने 30.43% वोट हासिल किए थे और मायावती ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी.
2012 के बाद से लगातार कम हो रहा है वोट प्रतिशत : मगर 2012 में बीएसपी का ग्राफ गिरना शुरू हुआ, विधानसभा चुनाव में पार्टी को 25.91% वोट मिले. 2014 के आम चुनाव में पार्टी 19.82 % पर सिमट गई और उसका खाता भी नहीं खुला. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में 22.23 फीसदी वोट और 19 सीटें मिलीं. 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी से गठबंधन के बाद भी 12.5% वोटरों ने साथ दिया मगर पार्टी10 सीट जीतने में सफल हो गई. अगर 2022 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी अगर प्रमुख विपक्षी दल के करीब नहीं पहुंचती हैं तो पार्टी के अस्तित्व पर संकट आ जाएगा.
विधानसभा चुनाव से पहले मायावती की मुश्किल
- 2007 के दौर के कई बड़े नेता स्वामी प्रसाद मौर्य, नसीमुद्दीन सिद्दकी, ब्रजेश पाठक जैसे नेता बीएसपी छोड़कर दूसरी पार्टियों में शामिल हो चुके हैं.
- समाजवादी पार्टी और बीजेपी लगातार बीएसपी को तोड़ रही है. बीएसपी के 10 विधायक समाजवादी पार्टी का दामन थाम चुके हैं. विधान परिषद में भी पार्टी कमजोर हो रही है.
- पार्टी की नेता मायावती ने साफ किया है कि वह विधानसभा चुनाव के लिए किसी दल से गठबंधन नहीं करेगी जबकि अन्य सभी दल राजनीतिक गठजोड़ कर चुके हैं.
- दलित वोट बैंक में सेंधमारी के कारण बीएसपी की स्थिति चुनाव दर चुनाव कमजोर हुई. बीजेपी गैर जाटव दलित वोटरों का समर्थन हासिल करने में कामयाब रही.
- कोरोना से मौत, हाथरस और लखीमपुर खीरी घटना के बाद मायावती की प्रतिक्रिया ठंडी रही. पार्टी के नेता घटनास्थल पर नहीं पहुंचे और धरना-प्रदर्शन से कड़ा विरोध भी दर्ज नहीं कराया. इससे बीजेपी का विरोध करने वाले वोटरों में गलत संदेश गया कि सीबीआई के डर से मायावती सक्रिय नहीं हुई. चुनाव में यह संदेश मुश्किल भरा हो सकता है.
बसपा सुप्रीमो मायावती ने क्या की है चुनाव की तैयारी : मायावती सोशल इंजीनियरिंग के तहत ब्राह्मण, मुसलमान और दलित को साथ लाने के फार्मूले पर काम कर रही हैं. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Elections 2022) के मद्देनजर पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र के नेतृत्व में 'प्रबुद्ध वर्ग विचार संगोष्ठी' के तहत ब्राह्मण सम्मेलन हो रहे हैं. प्रदेश के विधानसभा क्षेत्रों में एक प्रभारी के साथ सह प्रभारी के अलावा अल्पसंख्यक बूथ अध्यक्ष बनाए गए है. बूथ अध्यक्ष मुस्लिम समुदाय के बीच जाकर बीएसपी की नीतियों के बारे में बता रहे हैं.
पार्टी लगातार अपने कैंडिडेट फाइनल कर रही है. इससे पार्टी प्रत्याशियों को क्षेत्र में जाकर प्रचार करने का अवसर मिलेगा. कानपुर देहात, प्रयागराज, कौशांबी, मऊ और आजमगढ़ की अधिकतर सीटों पर उम्मीदवार तय कर दिए गए हैं.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में ऐसा पहली बार होगा, जब बहुजन समाज पार्टी घोषणा पत्र जारी करेगी. बताया जाता है कि इस बार पार्टी दलित महापुरुषों के स्मारक आदि के बजाय उन मुद्दों को घोषणा पत्र में शामिल करेंगी, जिस पर लोग योगी सरकार से नाराज हैं. मायावती वित्त विहीन शिक्षक और संस्कृत स्कूलों को सरकारी सुविधाएं देने का वादा पहले ही कर चुकी हैं. घोषणापत्र में शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य संबंधित घोषणा भी होगी.