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Uttar Pradesh Assembly Election: जाट वोटों के लिए भाजपा चल रही ये चाल - uttar pradesh assembly election

भारतीय जनता पार्टी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट बहुल इलाकों में इस बात का प्रचार-प्रसार सबसे ज्यादा कर रही है कि यदि वह पार्टी को वोट नहीं देंगे तो विकास की धारा वहीं की वहीं थम जाएगी. उत्तर प्रदेश का विकास 20 साल पीछे चला जाएगा. वहीं, दूसरी तरफ आरएलडी की तरफ जाट मतदाताओं के झुकाव को देखते हुए उन्हें कैराना और मुजफ्फरनगर जैसी घटनाओं की याद तो दोबारा दिलाई ही जा रही है. पढ़ें, ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की रिपोर्ट.

भाजपा चल रही ये चाल
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Published : Jan 28, 2022, 8:08 PM IST

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (uttar pradesh assembly election) के प्रथम चरण के 58 सीटों के लिए चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ना चाहती है. पार्टी को यह पता है कि प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के सभी चरणों में से पहले चरण का चुनाव दल के लिए अत्यंत चुनौतीपूर्ण है. इसलिए भाजपा विकास कार्यों के साथ-साथ जाट समुदाय और किसानों की नाराजगी को देखते हुए एंटी फार्मर्स और एंटी जाट परसेप्शन की लड़ाई भी लड़ रही है, जिसमें पार्टी के वरिष्ठ नेता मतदाताओं को यह कहते भी देखे गए हैं कि यदि वह भाजपा को वोट नहीं देंगे तो उत्तर प्रदेश का विकास 20 साल पीछे चला जाएगा.

जानकारी के मुताबिक, भारतीय जनता पार्टी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट बहुल इलाकों में इस बात का प्रचार-प्रसार सबसे ज्यादा कर रही है कि यदि वह पार्टी को वोट नहीं देंगे तो विकास की धारा वहीं की वहीं थम जाएगी. उत्तर प्रदेश का विकास 20 साल पीछे चला जाएगा. वहीं, दूसरी तरफ आरएलडी की तरफ जाट मतदाताओं के झुकाव को देखते हुए उन्हें कैराना और मुजफ्फरनगर जैसी घटनाओं की याद तो दोबारा दिलाई ही जा रही है. साथ ही दिल्ली मेरठ हाईवे, दिल्ली यमुना एक्सप्रेसवे, जेवर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट, जैसी तमाम उपलब्धियों को गिनाकर इसे पांच साल और आगे बढ़ाने की अपील भी की जा रही है.

यही नहीं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश को लेकर भाजपा इतनी ज्यादा सतर्क है कि गृह मंत्री अमित शाह का, एक ही हफ्ते में मथुरा और ग्रेटर नोएडा के दो दौरे लगाए गए और हर जगह गृहमंत्री मतदाताओं से यह अपील करते नजर आए कि यदि वह भाजपा को दोबारा वोट नहीं देंगे तो इस क्षेत्र का विकास 20 साल पीछे चला जाएगा. उन्होंने यहां तक कहा कि भाजपा परसेप्शन की लड़ाई लड़ रही है.

सूत्रों की मानें तो भाजपा पिछले एक साल से चले किसान आंदोलन को लेकर इस इलाके में हुई पार्टी की फजीहत से खासा परेशान है और यही वजह है कि किसान और जाट नेताओं को पूरे इलाके में डोर टू डोर कैंपेन की ड्यूटी लगाई गई है. यही नहीं, भाजपा लोगों के मन में बने इस परसेप्शन से कि 'पार्टी किसानों के खिलाफ है', हर हाल में छुटकारा पाना चाहती है.

इसलिए गृह मंत्री ने भी अपने दौरे में बार-बार यह बात कही है कि विपक्षी पार्टियां भाजपा के लिए दुष्प्रचार कर किसानों को उनके खिलाफ भड़का रहे हैं. जबकि पार्टी लगातार गन्ना किसानों के लिए कर्ज माफी की दिशा में कई कदम उठा चुकी है. यहां तक कि पार्टी किसान बिल को वापस लेने का भी हवाला बार-बार अपने चुनाव प्रचार में दे रही है.

ग्रेटर नोएडा के शारदा यूनिवर्सिटी में प्रभावी मतदाता संवाद के तहत गृह मंत्री अमित शाह ने यह बात कही कि आने वाला चुनाव एक एमएलए, मंत्री या मुख्यमंत्री का निर्णय लेने के लिए नहीं है, बल्कि यह चुनाव उत्तर प्रदेश के अगले 20 साल के भविष्य के लिए लड़ा जा रहा है. उन्होंने यहां तक कहा कि 20 साल पहले की उत्तर प्रदेश की कहानी तो सिर्फ बुआ भतीजे की कहानी बयां करती है, जिसमें माफियाओं का शासन था और राज्य में कोई निवेश नहीं करना चाहता था. गृह मंत्री का यह वक्तव्य मतदाताओं को चेतावनी देने वाला था और बार-बार गृहमंत्री अपने प्रत्येक सभा में अखिलेश यादव के शासनकाल के कानून व्यवस्था को याद दिलाने की कोशिश में जुटे नजर आ रहे है.

बता दें कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के पहले दो चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लगभग 100 सीटों पर चुनाव होगा. 2017 में इन सीटों में से 76 प्रतिशत सीटें, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अंतर्गत आते थे, भाजपा ने जीती थी, लेकिन पिछले एक साल चले किसान आंदोलन के बाद इस क्षेत्र की परिस्थितियां और समीकरण बदल गए हैं. पार्टी अपने इंटरनल सर्वे को देखते हुए इस समीकरण को बदलने की कोशिश में जुटी हुई है, जिसका जिम्मा खुद गृह मंत्री अमित शाह संभाले हुए हैं.

जाट समुदाय की नाराजगी पर पूछे जाने पर भाजपा के बागपत से सांसद और जाट नेता, डॉ. सत्यपाल सिंह ने कहा कि कोई भी जाट समुदाय का सदस्य या नेता, भाजपा से नाराज नहीं है. इस तरह की बैठक पहले भी अलग-अलग समुदाय के लोगों के साथ होती आई है, जिसमें ब्राह्मण समुदाय के साथ भी हाल ही में बैठक बुलाई गई थी. उन्होंने कहा कि इस चुनाव में सभी जाति के लोग मिलकर भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में जबरदस्त जीत दिलाएंगे.

इस सवाल पर कि सपा और आरएलडी के गठबंधन से भारतीय जनता पार्टी को कितना नुकसान हो सकता है और पार्टी क्या इसी डर की वजह से आरएलडी के नेता को बार-बार निमंत्रण भेज रही है, डॉ सत्यपाल सिंह ने कहा कि सपा और आरएलडी का कोई खास जनाधार नहीं है. जमीनी हकीकत यह है कि भारतीय जनता पार्टी को किसान और जाट दोनों ही लोगों का समर्थन मिल रहा है.

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (uttar pradesh assembly election) के प्रथम चरण के 58 सीटों के लिए चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ना चाहती है. पार्टी को यह पता है कि प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के सभी चरणों में से पहले चरण का चुनाव दल के लिए अत्यंत चुनौतीपूर्ण है. इसलिए भाजपा विकास कार्यों के साथ-साथ जाट समुदाय और किसानों की नाराजगी को देखते हुए एंटी फार्मर्स और एंटी जाट परसेप्शन की लड़ाई भी लड़ रही है, जिसमें पार्टी के वरिष्ठ नेता मतदाताओं को यह कहते भी देखे गए हैं कि यदि वह भाजपा को वोट नहीं देंगे तो उत्तर प्रदेश का विकास 20 साल पीछे चला जाएगा.

जानकारी के मुताबिक, भारतीय जनता पार्टी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट बहुल इलाकों में इस बात का प्रचार-प्रसार सबसे ज्यादा कर रही है कि यदि वह पार्टी को वोट नहीं देंगे तो विकास की धारा वहीं की वहीं थम जाएगी. उत्तर प्रदेश का विकास 20 साल पीछे चला जाएगा. वहीं, दूसरी तरफ आरएलडी की तरफ जाट मतदाताओं के झुकाव को देखते हुए उन्हें कैराना और मुजफ्फरनगर जैसी घटनाओं की याद तो दोबारा दिलाई ही जा रही है. साथ ही दिल्ली मेरठ हाईवे, दिल्ली यमुना एक्सप्रेसवे, जेवर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट, जैसी तमाम उपलब्धियों को गिनाकर इसे पांच साल और आगे बढ़ाने की अपील भी की जा रही है.

यही नहीं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश को लेकर भाजपा इतनी ज्यादा सतर्क है कि गृह मंत्री अमित शाह का, एक ही हफ्ते में मथुरा और ग्रेटर नोएडा के दो दौरे लगाए गए और हर जगह गृहमंत्री मतदाताओं से यह अपील करते नजर आए कि यदि वह भाजपा को दोबारा वोट नहीं देंगे तो इस क्षेत्र का विकास 20 साल पीछे चला जाएगा. उन्होंने यहां तक कहा कि भाजपा परसेप्शन की लड़ाई लड़ रही है.

सूत्रों की मानें तो भाजपा पिछले एक साल से चले किसान आंदोलन को लेकर इस इलाके में हुई पार्टी की फजीहत से खासा परेशान है और यही वजह है कि किसान और जाट नेताओं को पूरे इलाके में डोर टू डोर कैंपेन की ड्यूटी लगाई गई है. यही नहीं, भाजपा लोगों के मन में बने इस परसेप्शन से कि 'पार्टी किसानों के खिलाफ है', हर हाल में छुटकारा पाना चाहती है.

इसलिए गृह मंत्री ने भी अपने दौरे में बार-बार यह बात कही है कि विपक्षी पार्टियां भाजपा के लिए दुष्प्रचार कर किसानों को उनके खिलाफ भड़का रहे हैं. जबकि पार्टी लगातार गन्ना किसानों के लिए कर्ज माफी की दिशा में कई कदम उठा चुकी है. यहां तक कि पार्टी किसान बिल को वापस लेने का भी हवाला बार-बार अपने चुनाव प्रचार में दे रही है.

ग्रेटर नोएडा के शारदा यूनिवर्सिटी में प्रभावी मतदाता संवाद के तहत गृह मंत्री अमित शाह ने यह बात कही कि आने वाला चुनाव एक एमएलए, मंत्री या मुख्यमंत्री का निर्णय लेने के लिए नहीं है, बल्कि यह चुनाव उत्तर प्रदेश के अगले 20 साल के भविष्य के लिए लड़ा जा रहा है. उन्होंने यहां तक कहा कि 20 साल पहले की उत्तर प्रदेश की कहानी तो सिर्फ बुआ भतीजे की कहानी बयां करती है, जिसमें माफियाओं का शासन था और राज्य में कोई निवेश नहीं करना चाहता था. गृह मंत्री का यह वक्तव्य मतदाताओं को चेतावनी देने वाला था और बार-बार गृहमंत्री अपने प्रत्येक सभा में अखिलेश यादव के शासनकाल के कानून व्यवस्था को याद दिलाने की कोशिश में जुटे नजर आ रहे है.

बता दें कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के पहले दो चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लगभग 100 सीटों पर चुनाव होगा. 2017 में इन सीटों में से 76 प्रतिशत सीटें, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अंतर्गत आते थे, भाजपा ने जीती थी, लेकिन पिछले एक साल चले किसान आंदोलन के बाद इस क्षेत्र की परिस्थितियां और समीकरण बदल गए हैं. पार्टी अपने इंटरनल सर्वे को देखते हुए इस समीकरण को बदलने की कोशिश में जुटी हुई है, जिसका जिम्मा खुद गृह मंत्री अमित शाह संभाले हुए हैं.

जाट समुदाय की नाराजगी पर पूछे जाने पर भाजपा के बागपत से सांसद और जाट नेता, डॉ. सत्यपाल सिंह ने कहा कि कोई भी जाट समुदाय का सदस्य या नेता, भाजपा से नाराज नहीं है. इस तरह की बैठक पहले भी अलग-अलग समुदाय के लोगों के साथ होती आई है, जिसमें ब्राह्मण समुदाय के साथ भी हाल ही में बैठक बुलाई गई थी. उन्होंने कहा कि इस चुनाव में सभी जाति के लोग मिलकर भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में जबरदस्त जीत दिलाएंगे.

इस सवाल पर कि सपा और आरएलडी के गठबंधन से भारतीय जनता पार्टी को कितना नुकसान हो सकता है और पार्टी क्या इसी डर की वजह से आरएलडी के नेता को बार-बार निमंत्रण भेज रही है, डॉ सत्यपाल सिंह ने कहा कि सपा और आरएलडी का कोई खास जनाधार नहीं है. जमीनी हकीकत यह है कि भारतीय जनता पार्टी को किसान और जाट दोनों ही लोगों का समर्थन मिल रहा है.

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