जयपुर. बचपन में किस्से कहानियों में जब मीराबाई ने अपने पति के रूप में भगवान कृष्ण को स्वीकार किया तो आजीवन उनकी बनकर ही रह गईं. जयपुर जिले के गोविंदगढ़ कस्बे के नरसिंहपुरा गांव की पूजा सिंह भी कुछ इसी तरह से ठाकुरजी के लिए अपने जीवन को समर्पित कर चुकी हैं. पूजा सिंह ने बाकायदा एक विवाह समारोह में परिजनों और शुभचिंतकों के बीच ठाकुरजी की प्रतिमा के साथ विवाह से जुड़ी सभी रीति-रिवाज को संपन्न किया और खुद को मीरा की तर्ज पर आजन्म ठाकुरजी को सौंप दिया. इस विवाह समारोह में हल्दी की रस्म हुई तो मेहंदी भी रचाई गई. बाकायदा विनायक पूजन हुआ और 7 फेरे लेने के बाद पूजा ठाकुर जी के साथ विदा भी हुईं.
पूजा और पंडित की हुई बात और हो गया विवाह : पूजा सिंह ने बचपन से ही ठान लिया था कि जिस तरह से अक्सर लोगों के बीच शादी के बाद झगड़े होते हैं, वह शादी नहीं करेंगी. 25 बरस पूरे करने के बाद पूजा के लिए कई रिश्ते आए और उनके 30 साल का होने तक कई बार रिश्तों के लिए लोगों ने संपर्क भी किया. लेकिन पूजा इसके लिए राजी नहीं हुईं. परिजन मिन्नतें करते रहे और पूजा शादी से इनकार करती रहीं. आखिरकार तुलसी विवाह के बारे में जानने के बाद एक दिन मंदिर जाकर पूजा ने अपने मन की बात पंडित जी से की तो हिंदू विवाह विधि-विधान के अनुसार उन्हें इस बात की जानकारी मिली कि वह ठाकुरजी से भी विवाह कर सकती हैं.
इसके बाद पूजा ने अपनी शादी के लिए पिता और बाकी परिजनों को मनाने की कोशिश की. दूसरी ओर पूजा के परिजनों ने भी उन्हें इस बात के लिए राजी करने का प्रयास किया कि वह अपने लिए सामाजिक रीति-रिवाज के अनुसार ही किसी योग्य वर का चुनाव करें. लेकिन अपना इरादा जाहिर कर चुकी पूजा ने तो मन ही मन ठाकुरजी को पति-परमेश्वर के रूप में स्वीकार कर लिया था. इस शादी में पूजा की मां ने उनका साथ दिया, लेकिन विदाई तक (Pooja Singh Unique Wedding) पिता नहीं आए. 8 दिसंबर के दिन इस विवाह समारोह को संपन्न किया गया.
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आम शादी की तरह हुई रस्म-ओ-रिवाज : पूजा सिंह की मां ने बताया कि इस शादी के लिए जब उनकी बेटी ने अपने मन की बात बताई, तो उन्हें इससे कोई आपत्ति नहीं थी. उन्हें लगा कि शादी नहीं करने से बेहतर है कि ठाकुरजी से ही नाता जोड़ दिया जाए. पूजा की मां ने इसी मन के साथ हर रस्म को बढ़-चढ़कर निभाया और पारंपरिक रीति-रिवाज के अनुसार ही मांगलिक कार्यों को संपन्न करवाया गया. ठाकुरजी को बाकायदा पोशाक और सिंहासन उपहार स्वरूप भेंट किया गया. महिला संगीत का कार्यक्रम हुआ, मेहंदी की सेरेमनी हुई, हल्दी भी लगाई गई और विवाह की तारीख पर मंत्रोच्चार के बीच रीत-नीति के अनुसार शादी को संपन्न करवाया गया.
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शादी में करीबी रिश्तेदारों के अलावा पूजा की सखी सहेली अभी आई कुल 300 के करीब मेहमान शादी के गवाह बने और दो से ढाई लाख रुपए के बीच कुल खर्च हुआ. 30 साल की पूजा सिंह पॉलिटिकल साइंस से एमए हैं. पिता प्रेम सिंह बीएसएफ से रिटायर हैं और एमपी में सिक्योरिटी एजेंसी चलाते हैं. मां रतन कंवर गृहणी हैं. तीन छोटे भाई हैं, अंशुमान सिंह, युवराज और शिवराज. तीनों कॉलेज और स्कूल की पढ़ाई कर रहे हैं. ठाकुरजी से विवाह का फैसला (Pooja Marry to God) उनका खुद का था. शुरू में समाज, रिश्तेदार और परिवार के लोग इस पर सहमत नहीं हुए, लेकिन फिर मां ने जरूर बेटी की इच्छा का सम्मान कर सहमति दे दी थी.
बाधाओं पर भारी विधि का विधान : पूजा की शादी को संपन्न करवाने वाले पंडित आचार्य राकेश शास्त्री ने बताया कि ग्रामीण पृष्ठभूमि के माहौल में इस शादी को संपन्न करवाने के लिए उनके सामने कई चुनौतियां थीं, लेकिन उन्होंने हिंदू संस्कारों के मुताबिक ही इस वैवाहिक कार्यक्रम को पूर्ण करवाया था. इसलिए उन्हें इस बाबत किसी तरह की कोई परेशानी का अनुभव नहीं हुआ. शास्त्री ने बताया कि भगवान विष्णु शालिग्राम जी से कन्या का विवाह शास्त्रोक्त है. जिस तरह से वृंदा तुलसी ने विष्णु भगवान का सौभाग्य प्राप्त करने के लिए ठाकुरजी से विवाह किया है, यह ठीक वैसे ही है. पहले भी ऐसे विवाह होते आए हैं. कर्मठगुरु पुस्तक में विवरण पृष्ठ संख्या 75 पर दिया गया है. विष्णु भगवान से कन्या वरण कर सकती है. तुलसी विवाह भी इसी प्रकार का पर्याय है.
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बदल गया ठाकुरजी की पूजा का जीवन : 'दो साल से मैं यह विवाह करना चाहती थी, लेकिन आखिरकार यह अब हुआ है. मैंने परमेश्वर को ही अपना पति बना लिया है. लोग कहते थे कि सुहागन होना लड़की के लिए सौभाग्य की बात होती है. भगवान तो अमर होते हैं, इसलिए मैं भी अब हमेशा के लिए सुहागन हो गई हूं.' शादी के बाद पूजा अपने घर पर ही रहती हैं और ठाकुरजी मंदिर में लौट चुके हैं. पूजा उनके लिए सवेरे भोग बनाकर ले जाती हैं. पूजा ने उनके लिए पोशाक बनाई है और शाम को वह दर्शन के लिए भी जाती हैं. शादी के बाद पूजा ने घर में भी अपने रोजमर्रा के जीवन में तब्दीलियां की है. अब उन्होंने अपने कमरे में एक छोटा सा ठाकुरजी का मंदिर बना लिया है, जिसके सामने वह सो जाती हैं और सुबह-शाम ठाकुरजी को भोग अर्पित करती हैं. कभी-कभी पूजा अपने हाथ से ठाकुरजी के लिए पोशाक भी तैयार करती हैं. वह रोजाना शाम ठाकुरजी के मंदिर जाना अपनी नित्य दिनचर्या का हिस्सा बना चुकी हैं.
मीरा ने भी खुद को सौंप दिया था गिरधर गोपाल को : भक्त शिरोमणि मीरा और कृष्ण के प्रति उनका समर्पण भला कौन नहीं जानता. मीरा ने कृष्ण को अपनाया तो आजीवन उन्हीं के लिए समर्पित रहीं. आब पूजा भी मीरा की राह पर खुद को ठाकुरजी को सौंप चुकी हैं. यहां तक कि हिंदू रीति-रिवाज में मांग भरने की रस्म के लिए उपयोग में लाई जाने वाली सिंदूर के स्थान पर पूजा ने ठाकुरजी को प्रिय चंदन का उपयोग किया और अपनी मांग में विवाह की रस्म के बीच चंदन ही लगाया. ठाकुरजी को दूल्हा बनाकर गांव के मंदिर से पूजा सिंह के घर लाया गया. मंत्रोच्चार हुआ और मंगल गीत गाए गए. पिता नहीं आए तो मां ने फेरों में बैठकर कन्यादान किया. इसके बाद विदाई हुई. परिवार की ओर से कन्यादान और जुहारी के 11000 रुपए दिए गए. ठाकुरजी को एक सिंहासन और पोशाक दी गई.