कुल्लू: दुनिया भर में कुल्लू घाटी को देव भूमि के नाम से जाना जाता है. एक तरफ जहां कुल्लू में दशहरा और होली का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. वहीं कुल्लू में बसंत पंचमी के त्योहार को मनाने का भी अपना अनूठा तरीका है. वीरवार को कुल्लू में बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाएगा. जिसके साथ ही कुल्लू में होली का त्याेहार भी शुरू हो जाएगा. वृंदावन की तर्ज पर यहां भी बसंत पंचमी के साथ होली का आगाज भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा से हो जाता है.
26 जनवरी को कुल्लू के ढालपुर स्थित रथ मैदान में मनाए जाने वाले बसंत उत्सव में भगवान रघुनाथ अपने निवास स्थल से पूरे लाव लश्कर सहित रथ मैदान पहुंचेंगे. इसके बाद यहां पर भगवान की रथ यात्रा निकाली जाएगी और इस रथ यात्रा के साथ ही यहां पर होली का आगाज हो जाएगा, जो अगले 40 दिन यानी होली महोत्सव तक जारी रहेगा.
40 दिन पहले ही होली का आगाज: कुल्लू जिले में देशभर की होली से एक दिन पूर्व होली मनाने की परंपरा है. वहीं, इसका आयोजन एक दो दिन नहीं बल्कि 40 दिन तक चलता है. बसंत पंचमी में भगवान रघुनाथ के ढालपुर आगमन के बाद से ही कुल्लू की होली का आगाज होता है. इसके बाद लगातार भगवान रघुनाथ के मंदिर में होली गायन होता है. बैरागी समुदाय के लोग एक दूसरे के घरों और मंदिरों में जाकर होली मनाते हुए गुलाल उड़ाते हैं और होली के गीत गाते हैं. उसके बाद जब होली को आठ दिन शेष रहते हैं तो उस दिन से इस समुदाय की होली में होलाष्ठक शुरू होते हैं. जिसमें इस समुदाय के लोग भगवान रघुनाथ को हर दिन गुलाल लगाते हैं और आठवें दिन होली का उत्सव मनाया जाता है.
गुलाल लगाने की है अनोखी परंपरा: कुल्लू में बैरागी समुदाय के लोग एक अनोखी होली परंपरा को संजोए हुए हैं. इस समुदाय के लोग अपने से बड़ों के मुंह और सिर में गुलाल नहीं लगाते, बल्कि वे रिश्तों की मर्यादाओं का सम्मान करते हुए बड़ों के चरणों में गुलाल फेंकते हैं और उनकी उम्र से बडे़ लोग छोटे व्यक्ति के सिर पर गुलाल फेंक कर आशीर्वाद प्रदान करते हैं. जबकि हम उम्र के लोग एक दूसरे के मुंह पर गुलाल लगाते हैं और इस उत्सव को मनाते हैं. लिहाजा, बैरागी समुदाय के लोगों द्वारा मनाई जाने वाली यह होली रिश्तों की अहमियत से काफी मायने रखती है.
वसंत पंचमी पर निकलती है भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा: जानकारों के मुताबिक जब वसंत पंचमी के अवसर पर भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा रघुनाथपुर से निकलती है, तो वहां से हनुमान का वेश धारण किए हुए बैरागी समुदाय का व्यक्ति लोगों पर गुलाल डालना शुरू कर देता है. इसके बाद पैदल यात्रा रथ मैदान पहुंचती है. जहां पर रथ में विराज कर भगवान रघुनाथ अपने अस्थायी शिविर पहुंचते हैं. इस रथ को रस्सियों से खींचकर अस्थायी शिविर तक लाया जाता है. इस दौरान जिस पर यह गुलाल गिरता है, वह शुभ माना जाता है. इसके बाद भगवान रघुनाथ की पूजा अर्चना और भरत मिलाप होने के बाद भगवान रघुनाथ से लोग आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और शाम को रघुनाथ जी वापस रघुनाथपुर चले जाते हैं.
40 दिनों तक गाए जाते हैं ब्रज के पारंपरिक गीत: इस बैरागी समुदाय के लोग विशेष होली मनाते हैं. उनकी यह होली ब्रज में मनाई जाने वाली होली की तर्ज पर होती है. ब्रज की भाषा में होली के गीत वृंदावन के बाद कुल्लू घाटी में ही गूंजते हैं. परंपरागत इन गीतों को गाते हुए यह समुदाय 40 दिनों तक इस होली उत्सव को मनाता है. होली के इन गीतों को रंगत देने के लिए बैरागी समुदाय के लोग डफली और झांझ आदि पारंपरिक साज का इस्तेमाल करते हैं. इन साजों का प्रयोग भी सिर्फ ब्रज में ही होता है.
इस समुदाय द्वारा मनाई जाने वाली यह होली भगवान रघुनाथ से भी जुड़ी हुई है. इसके अलावा इस होली का संबंध नग्गर के झीड़ी और राधा कृष्ण मंदिर नग्गर ठावा से भी है. यहां पर इस समुदाय के गुरु पेयहारी बाबा रहते थे और उन्हीं की याद में इस समुदाय के लोग टोली बनाकर नग्गर के ठावा और झीड़ी में जाकर भी होली के गीत गाते हैं. समुदाय के लोग हर साल उनके तपोस्थली में होली से एक दिन पहले जाते हैं और पूरा दिन होली के गीत गाकर उनका आशीर्वाद लेते हैं.
मथुरा-वृंदावन से कुल्लू आए थे पूर्वज: बैरागी समुदाय के लोगों का कहना है कि उनके पूर्वज मथुरा, वृंदावन, अवध से यहां आए थे. इसलिए होली पर अवधी भाषा में ही ज्यादा गीत गाए जाते हैं. उन्होंने बताया कि ठावा मंदिर में भी होली गायन किया जाता है और 1653 से लगातार इसका निर्वाहन किया जा रहा है. भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने कहा भगवान रघुनाथ जी के कुल्लू आगमन से ही बसंत पंचमी के साथ होली महोत्सव शुरू हो जाता है. आज भी लोग पुरातन संस्कृति को संजोए हुए हैं. बैरागी समुदाय के लोग रोजाना भगवान रघुनाथ के मंदिर में आकर होली गीत गाते हैं. इस बार भी यह कार्यक्रम धूमधाम से आयोजित किया जाएगा.
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