नई दिल्ली : भारत में कोविड-19 महामारी के कारण कठिन समय था क्योंकि उस दौरान बेरोजगारी अधिक थी. उक्त जानकारी यूनिसेफ इंडिया द्वारा भारतीय मानव विकास संस्थान (IHD) के साथ साझेदारी में संकलित रिपोर्ट में बुधवार को दी गई. रिपोर्ट के मुताबिक जून-जुलाई 2020 में बेरोजगारी बढ़ने के बावजूद दिसंबर, 2020 तक भारत में बेरोजगारी 8-9 प्रतिशत पर थी. दिसंबर के आंकड़े कोरोना महामारी के पूर्व के स्तर जैसे थे.
रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के बाद उपलब्ध नौकरियों की खराब गुणवत्ता के कारण न केवल कम भुगतान किया जाता रहा बल्कि कार्यकर्ता के पास कौशल के अनुरूप काम नहीं था. इस दौरान अधिकांश परिवारों को विशेषकर ग्रामीण इलाकों में मजदूरी के काम में कमी के कारण कम आय का सामना करना पड़ा.
इस अध्ययन को 13 सिविल सोसाइटी संगठनों और इसके 300 स्थानों पर रहने वाले 300 सामुदायिक स्वयंसेवकों के माध्यम से पूरा किया गया. इस दौरान मई और दिसंबर 2020 के बीच चार दौर में डेटा एकत्र किया गया. इसमें सात राज्यों के 12 जिलों को शामिल किया गया था. अध्ययन के अंतर्गत देश में शहरी झुग्गीवासियों, ग्रामीण समुदायों और बच्चों जैसे कमजोर समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली महामारी, लॉकडाउन और पोस्ट-लॉकडाउन चुनौतियों की तत्काल सामाजिक और आर्थिक लागत का आकलन किया गया.
इतना ही नहीं इसमें 2020 में कमजोर समूहों द्वारा आजीविका, भोजन की उपलब्धता, स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और बुनियादी सार्वजनिक सेवाओं जैसे स्वास्थ्य, पोषण और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं तक पहुंच पर प्रभाव पर ध्यान दिया गय. हालांकि यह रिपोर्ट अभी जारी की जा रही है, लेकिन इससे जानकारी भविष्य के लिए मानवीय आपात स्थितियों से निपटने में उपयोगी होगी.
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वहीं रिपोर्ट के निष्कर्षों में कहा गया है कि अगस्त-सितंबर में कोविड-19 के इलाज की पहुंच में शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों में सुधार हुआ. इसके अलावा अगस्त-सितंबर और दिसंबर में महामारी संबंधी लॉकडाउन के बाद गर्भावस्था संबंधी सेवाओं के लिए सरकारी सुविधाओं तक पहुंच में सकारात्मक सुधार हुआ. साथ ही दिसंबर में, एमसीपी / जच्चा बच्चा / ममता कार्ड की शहरी क्षेत्रों में (82 प्रतिशत) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (94 प्रतिशत) में अधिक थी. हालांकि, गर्भवती महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में अभी भी सुधार हुआ है, लेकिन जागरूक महिलाओं में से केवल एक तिहाई को ही सरकारी योजना के तहत मातृत्व लाभ प्राप्त हुआ है.
यूनिसेफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में बाल टीकाकरण पर अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा. हालांकि अगस्त-सितंबर 2020 में बच्चों के टीकाकरण की स्थिति में सुधार हुआ. लेकिन दिसंबर 2020 में, 81 प्रतिशत ग्रामीण माताओं व 71 प्रतिशत शहरी माताओं ने बताया कि उन्होंने एक वर्ष से कम उम्र के अपने बच्चों का टीकाकरण कराया है. साथ ही यह भी कहा गया कि महामारी की पहली लहर के दौरान, लॉकडाउन का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में अधिक गंभीर था. वहीं सामाजिक सेवाओं के वितरण के लिए शहरी बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की जरूरत है.