नई दिल्ली : यूक्रेन पर अचानक गुरुवार की सुबह रूस ने सैन्य कार्रवाई की है. उसके प्रमुख शहरों पर हमला किया है. इस घटनाक्रम ने भारत को एक बड़ा अवसर दिया है, जिसे उसे दोनों हाथों से लपकना चाहिए.
बुधवार को नई दिल्ली में रूसी दूतावास में चार्ज डी एफ़ेयर रोमन बाबुश्किन (Roman Babushkin) ने कहा 'भारत वैश्विक शक्ति के रूप में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है. भारत स्थिति के अनुसार संतुलित और स्वतंत्र स्टैंड लेता है, रूस इसका स्वागत करता है.'
गुरुवार को भारत में यूक्रेन के राजदूत इगोर पोलिखा (Igor Polikha) ने भारत से सक्रिय हस्तक्षेप की मांग की. उन्होंने कहा कि 'हम इस संकट की स्थिति में भारत सरकार के अधिक अनुकूल रवैये की उम्मीद कर रहे हैं. यह सच्चाई का क्षण है. नियति का क्षण... हम इंतजार कर रहे हैं, भारत से मदद की गुहार लगा रहे हैं.'
रूस ने यूक्रेन में सामने आ रहे संकट पर भारत के रुख की प्रशंसा की. भारत में यूक्रेन के राजदूत ने जिस तरह से भारतीय दखल की मांग की, यह उन संबंधों को रेखांकित करता है कि भारत दोनों पक्षों के लिए कितना मायने रखता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुरुवार रात को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फोन करने की उम्मीद है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सहित शीर्ष मंत्रियों के साथ गुरुवार देर शाम बैठक भी की है.
भारत को खाद्य तेल का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता होने के अलावा, यूक्रेन कई भारतीय सैन्य उपकरणों और प्लेटफार्मों के पुर्जों का समर्पित आपूर्तिकर्ता रहा है. भारत के साथ उसके सोवियत युग के संबंध हैं.
दूसरी ओर, रूस पिछले आठ दशकों से भारत का आजमाया हुआ मित्र रहा है. रूस के साथ प्रगाढ़ संबंधों के तहत दिसंबर 2021 में एक समझौते को 2031 तक बढ़ा दिया गया है. देश में करीब 60 प्रतिशत हथियार, प्लेटफॉर्म और सिस्टम या तो रूस के हैं या फिर रूस के सहयोग से उन्हें बनाया गया है. जमीनी हकीकत ये भी है कि अगर भारत यूक्रेन का पक्ष लेता है तो रूस नाराज होगा और रूस का समर्थन करने पर अमेरिका और पश्चिमी देश नाराज होंगे. ये दोनों स्थितियां भारतीय अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर असर डाल सकती हैं.
यूरोपीय संघ (ईयू) सहित अमेरिका के नेतृत्व वाले ब्लॉक द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बीच ये प्रबल संभावना है कि रूस के साथ चीन, ईरान समेत कुछ अन्य राष्ट्र शामिल हो सकते हैं. ये भारत के बिना एक वैकल्पिक आर्थिक समूह बनाने की कोशिश कर सकते हैं.
भारत क्या कर सकता है?
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कुमार संजय सिंह कहते हैं भारत के लिए फायदेमंद साबित होने वाली एकमात्र स्थिति ये है कि वह दोनों पक्षों के लिए बातचीत का मंच प्रदान कर सकता है. नॉन एलाइनमेंट (NAM) की पुरानी स्थिति को भारत ने छोड़ दिया है. प्रधानमंत्री मोदी ने NAM की बैठक को मिस कर दिया है. भारत की वर्तमान स्थिति, यदि वह इसके साथ बनी रहती है, तो न तो अमेरिका और न ही रूस भारत को पूर्ण विश्वास में ले पाएगा. संयुक्त राष्ट्र में यह पहले ही दो बार यूक्रेन मुद्दे पर रूस के खिलाफ मतदान से दूर रहा है. भारत के लिए सबसे अच्छी और एकमात्र भूमिका मध्यस्थ की भूमिका निभाने की है क्योंकि इसमें दोनों युद्धरत पक्षों का विश्वास हासिल है.
भारत ऐसी स्थिति में समान रूप से तैनात देशों का एक समूह बनाकर अपनी भूमिका निभा सकता है. उसे आदर्श कदम के रूप में रूस और यूरोपीय संघ के बीच मध्यस्थता करना होगा, क्योंकि अगर रूस और यूरोपीय संघ के बीच समझौता हो सकता है तो रूस और अमेरिका के बीच भी समझौता हो सकता है. कुछ समान विचारधारा वाले देश जो भारत के साथ समूह बना सकते हैं, उनमें संयुक्त अरब अमीरात, हंगरी, ब्राजील आदि हो सकते हैं. पहले से ही रूस और यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्थाएं कई तरीकों से एकीकृत और आपस में जुड़ी हुई हैं, जिनका विघटन केवल सभी संबंधित पक्षों के लिए हानिकारक होगा.
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भारत को कदम बढ़ाने में जो मदद मिलेगी वह यह है कि भारत के यूरोपीय संघ के तीन बड़े देशों, फ्रांस, जर्मनी और इटली के साथ बहुत अच्छे संबंध हैं. अगर वह ऐसा कर सका तो उसके कई फायदे नजर आएंगे. अमेरिका और रूस की शत्रुता को भी वश में किया जा सकता है. भारत के पक्ष में जिस तरह इन देशों का साथ रहा है, इन देशों के साथ काम करना और राष्ट्रों के समूह में अपनी मजबूत पकड़ जमाना ही शायद समय की मांग है.
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