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मराठी मानुष का भावनात्मक मुद्दा उठाकर अपने गुट को मजबूत कर रहे ठाकरे

एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे फिर से मराठी मानुष और मराठी अस्मिता के मुद्दे को उठा रहे हैं. उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उनकी खोयी हुई साख वापस आ जाएगी. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यही वह मुद्दा है, जिसके बूते शिवसेना ने अपने अस्तित्व को नया आयाम दिया था, और बहुत संभव है कि इसी के बल पर ठाकरे फिर से अपने आप को पुनर्जीवित करने का सपना संजो रहे हों.

Uddhav Thackeray
उद्धव ठाकरे
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Published : Aug 14, 2022, 2:27 PM IST

मुंबई : उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना ने पार्टी के भीतर बगावत के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और बागी विधायकों के गुट पर प्रहार तेज करते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने दिल्ली के 'शासकों' के आगे घुटने टेक दिए हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि बाल ठाकरे द्वारा स्थापित शिवसेना को किनारे किया जा रहा है, पार्टी अपनी जड़ों की ओर लौट रही है तथा मराठी गौरव के मुद्दे को उठा रही है.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थन से 30 जून को मुख्यमंत्री बने शिंदे तब से कई बार दिल्ली के फेरे लगा चुके हैं, चाहे वह उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ हो या उनके बिना. उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में आठ अगस्त को मुख्य खबर में 'दिल्ली' पर महाराष्ट्र का अपमान करने का आरोप लगाया गया, क्योंकि मुख्यमंत्री शिंदे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली नीति आयोग की शासी परिषद की बैठक के बाद सामूहिक तस्वीर खिंचवाने के दौरान पिछली पंक्ति में खड़ा किया गया था.

खबर में कहा गया था, 'दिल्लीश्वर (शिवसेना अक्सर इस शब्द का इस्तेमाल भाजपा नीत केंद्र सरकार और उसके नेताओं के लिए करती है) ने महाराष्ट्र का अपमान किया क्योंकि प्रधानमंत्री, अन्य मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों के चक्कर में मुख्यमंत्री शिंदे को अंतिम पंक्ति में खड़ा किया गया.' राज्य मंत्रिमंडल के नौ अगस्त को हुए बहुप्रतीक्षित विस्तार के बाद शिवसेना ने अगले दिन 'सामना' में अपने संपादकीय में शिंदे की राष्ट्रीय राजधानी के सात बार फेरे लगाकर दिल्ली के सामने 'झुकने' के लिए आलोचना की.

संपादकीय में कहा गया कि जब मुगल शासक औरंगजेब ने मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी को 5,000 दरबारियों की कतार में खड़ा किया था तो वह अपने आत्म-सम्मान की खातिर दरबार छोड़कर चले गए थे. सामना में 11 अगस्त को छपे एक अन्य संपादकीय में कहा गया कि दिल्ली के सामने 'घुटने टेकने' वाले शिंदे को यह समझना चाहिए कि बिहार के उनके समकक्ष नीतीश कुमार ने दिखाया है कि वह उनके (भाजपा) बिना भी मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं.

पार्टी ने दिल्ली और केंद्रीय एजेंसियों के दबाव के आगे झुकने के लिए बागी विधायकों की भी आलोचना की. यह आलोचना केवल सामना के संपादकीय तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि शिवसेना नेताओं ने अपने भाषणों में भी बागियों पर निशाना साधा.

शिवसेना की युवा इकाई 'युवा सेना' के प्रमुख आदित्य ठाकरे ने इस महीने की शुरुआत में सिंधुदुर्ग में एक रैली में कहा था, 'महाराष्ट्र के खिलाफ साजिश रची गयी है.' उन्होंने कहा था, 'हमारे राज्यपाल से लेकर ऐसे लोग (भाजपा नेताओं का संदर्भ देते हुए) महाराष्ट्र को तोड़ना और पांच हिस्सों में बांटना चाहते हैं.' सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज के संजय कुमार ने दावा किया कि शिंदे और बागियों का दिल्ली के सामने आत्मसमर्पण करना सही बात नहीं है.

कुमार ने कहा, 'भाजपा के मुकाबले कम सीटें होने बावजूद उसने मुख्यमंत्री का पद शिवसेना नेता को दे दिया. मंत्रिमंडल विस्तार में 18 में से आधे मंत्री पद शिवसेना के बागी गुट के पास गए. तो यह दिल्ली के समक्ष घुटने टेकना कैसे हो सकता है ?'

वरिष्ठ पत्रकार और जय महाराष्ट्र : हा शिवसेना नवाचा इतिहास आहे के लेखक प्रकाश अकोलकर ने कहा कि शिवसेना के बनने के पीछे की वजहों में से एक केंद्र-राज्य के संबंधों में असहमति और 1960 के दशक में महाराष्ट्र तथा मराठी मानुष के साथ किया जा रहा अन्याय था. अकोलकर ने कहा, 'इसलिए इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि वे अपनी जड़ों की ओर लौट गए हैं.'

इतिहास में देखे तो ठाकरे परिवार के सदस्य कभी दिल्ली नहीं गए, लेकिन वरिष्ठ भाजपा नेता जैसे कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी हमेशा मातोश्री आते थे. उद्धव ठाकरे भी कभी-कभार ही दिल्ली आते थे. मुख्यमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान वह केवल दो बार दिल्ली गए. हालांकि, शिंदे महज 40 दिन के अपने कार्यकाल में सात बार राष्ट्रीय राजधानी गए.

अकोलकर ने कहा, 'अब एकनाथ शिंदे नीत बागी खेमे ने हिंदुत्व के मुद्दे पर ठाकरे को धोखा दे दिया है इसलिए उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना के पास मराठी मानुष और मराठी गौरव ही एकमात्र विकल्प है.'

ये भी पढ़ें : भाजपा 'वॉशिंग मशीन' की तरह : शिवसेना ने तंज कसा

मुंबई : उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना ने पार्टी के भीतर बगावत के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और बागी विधायकों के गुट पर प्रहार तेज करते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने दिल्ली के 'शासकों' के आगे घुटने टेक दिए हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि बाल ठाकरे द्वारा स्थापित शिवसेना को किनारे किया जा रहा है, पार्टी अपनी जड़ों की ओर लौट रही है तथा मराठी गौरव के मुद्दे को उठा रही है.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थन से 30 जून को मुख्यमंत्री बने शिंदे तब से कई बार दिल्ली के फेरे लगा चुके हैं, चाहे वह उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ हो या उनके बिना. उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में आठ अगस्त को मुख्य खबर में 'दिल्ली' पर महाराष्ट्र का अपमान करने का आरोप लगाया गया, क्योंकि मुख्यमंत्री शिंदे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली नीति आयोग की शासी परिषद की बैठक के बाद सामूहिक तस्वीर खिंचवाने के दौरान पिछली पंक्ति में खड़ा किया गया था.

खबर में कहा गया था, 'दिल्लीश्वर (शिवसेना अक्सर इस शब्द का इस्तेमाल भाजपा नीत केंद्र सरकार और उसके नेताओं के लिए करती है) ने महाराष्ट्र का अपमान किया क्योंकि प्रधानमंत्री, अन्य मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों के चक्कर में मुख्यमंत्री शिंदे को अंतिम पंक्ति में खड़ा किया गया.' राज्य मंत्रिमंडल के नौ अगस्त को हुए बहुप्रतीक्षित विस्तार के बाद शिवसेना ने अगले दिन 'सामना' में अपने संपादकीय में शिंदे की राष्ट्रीय राजधानी के सात बार फेरे लगाकर दिल्ली के सामने 'झुकने' के लिए आलोचना की.

संपादकीय में कहा गया कि जब मुगल शासक औरंगजेब ने मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी को 5,000 दरबारियों की कतार में खड़ा किया था तो वह अपने आत्म-सम्मान की खातिर दरबार छोड़कर चले गए थे. सामना में 11 अगस्त को छपे एक अन्य संपादकीय में कहा गया कि दिल्ली के सामने 'घुटने टेकने' वाले शिंदे को यह समझना चाहिए कि बिहार के उनके समकक्ष नीतीश कुमार ने दिखाया है कि वह उनके (भाजपा) बिना भी मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं.

पार्टी ने दिल्ली और केंद्रीय एजेंसियों के दबाव के आगे झुकने के लिए बागी विधायकों की भी आलोचना की. यह आलोचना केवल सामना के संपादकीय तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि शिवसेना नेताओं ने अपने भाषणों में भी बागियों पर निशाना साधा.

शिवसेना की युवा इकाई 'युवा सेना' के प्रमुख आदित्य ठाकरे ने इस महीने की शुरुआत में सिंधुदुर्ग में एक रैली में कहा था, 'महाराष्ट्र के खिलाफ साजिश रची गयी है.' उन्होंने कहा था, 'हमारे राज्यपाल से लेकर ऐसे लोग (भाजपा नेताओं का संदर्भ देते हुए) महाराष्ट्र को तोड़ना और पांच हिस्सों में बांटना चाहते हैं.' सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज के संजय कुमार ने दावा किया कि शिंदे और बागियों का दिल्ली के सामने आत्मसमर्पण करना सही बात नहीं है.

कुमार ने कहा, 'भाजपा के मुकाबले कम सीटें होने बावजूद उसने मुख्यमंत्री का पद शिवसेना नेता को दे दिया. मंत्रिमंडल विस्तार में 18 में से आधे मंत्री पद शिवसेना के बागी गुट के पास गए. तो यह दिल्ली के समक्ष घुटने टेकना कैसे हो सकता है ?'

वरिष्ठ पत्रकार और जय महाराष्ट्र : हा शिवसेना नवाचा इतिहास आहे के लेखक प्रकाश अकोलकर ने कहा कि शिवसेना के बनने के पीछे की वजहों में से एक केंद्र-राज्य के संबंधों में असहमति और 1960 के दशक में महाराष्ट्र तथा मराठी मानुष के साथ किया जा रहा अन्याय था. अकोलकर ने कहा, 'इसलिए इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि वे अपनी जड़ों की ओर लौट गए हैं.'

इतिहास में देखे तो ठाकरे परिवार के सदस्य कभी दिल्ली नहीं गए, लेकिन वरिष्ठ भाजपा नेता जैसे कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी हमेशा मातोश्री आते थे. उद्धव ठाकरे भी कभी-कभार ही दिल्ली आते थे. मुख्यमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान वह केवल दो बार दिल्ली गए. हालांकि, शिंदे महज 40 दिन के अपने कार्यकाल में सात बार राष्ट्रीय राजधानी गए.

अकोलकर ने कहा, 'अब एकनाथ शिंदे नीत बागी खेमे ने हिंदुत्व के मुद्दे पर ठाकरे को धोखा दे दिया है इसलिए उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना के पास मराठी मानुष और मराठी गौरव ही एकमात्र विकल्प है.'

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