नई दिल्ली : देश के सबसे बड़े अस्पताल दिल्ली एम्स (Delhi AIIMS) में अगर आप कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का इलाज करवाना चाहते हैं तो इसमें लंबा समय लग सकता है. कैंसर लेवल की जांच के लिए होने वाले पेट स्कैन टेस्ट (Pet Scan Test) के लिए यहां दो महीने से ज्यादा समय तक मरीजों को इंतजार करना पड़ रहा है. यह जवाब एम्स प्रशासन की तरफ से एक RTI (RTI For Pet Scan Test) जवाब में दिया गया है, जो बेहद ही हैरान करने वाला है.
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता धनंजय जैन ने बताया कि दिल्ली एम्स देश का सबसे बड़ा अस्पताल है. यहां पर अलग-अलग राज्यों से लोग अपनी गंभीर बीमारियों का इलाज (Treatment of Serious Diseases) करवाने आते हैं. यहां पर कैंसर के इलाज (Cancer Treatment) के लिए भी अलग डिपार्टमेंट बना हुआ है, लेकिन यहां आम लोगों के लिए इलाज करा पाना आसान नहीं है. उन्हें पता चला था कि एम्स में लोगों को कैंसर विभाग में इलाज के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है. जबकि ऐसी गंभीर बीमारी में तुरंत इलाज चाहिए. अन्यथा मरीज की जान भी जा सकती है. इसलिए उन्होंने एम्स के कैंसर विभाग (Cancer Department of AIIMS) में एक RTI डाली थी, जिसका चौंकाने वाला जवाब मिला है.
जांच के लिए केवल दो मशीन
अधिवक्ता धनंजय जैन ने बताया कि उन्होंने RTI के माध्यम से पूछा था कि एम्स में पेट/सीटी स्कैन (Pet CT Scan in AIIMS) के लिए कितनी मशीनें हैं. इसके जवाब में बताया गया कि उनके पास इस जांच के लिए केवल दो मशीनें हैं. उन्होंने दूसरा सवाल पूछा था कि एक दिन में वह कितने टेस्ट करते हैं. इसके जवाब में बताया गया कि रोजाना 30 से 40 पेट/सीटी स्कैन टेस्ट ही एम्स में हो पाते हैं. तीसरा सवाल उन्होंने पूछा था कि यह टेस्ट करवाने के लिए मरीज को कितना इंतजार करना पड़ता है. इसके जवाब में बताया गया कि टेस्ट के लिए मरीज को दो महीने के बाद का समय दिया जाता है. उन्हें जानकर बड़ी हैरानी हुई कि देश के सबसे बड़े अस्पताल में कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के लेवल का पता लगाने के लिए ही मरीज को दो माह तक इंतजार करना पड़ रहा है. इसके बाद उसको इलाज के लिए नंबर आता है.
अधिवक्ता ने बताया कि गंभीर रूप से बीमार शख्स कैसे दो महीने तक टेस्ट के लिए इंतजार कर सकता है. कहीं न कहीं ऐसे लोग बाहर टेस्ट करवाने के लिए मजबूर हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि प्राइवेट लैब में यह टेस्ट 25 हजार रुपये तक का होता है. बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग हैं जो यह कीमत चुका नहीं सकते. ऐसे में उनके पास दो माह तक इंतजार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है. उन्होंने बताया कि यह हालत केवल कैंसर विभाग में नहीं, बल्कि एम्स अस्पताल के ओपीडी (AIIMS Hospital OPD) तक में देखने को मिलती है. यहां पर किसी भी बस अड्डे या लंगर वाली जगह से ज्यादा भीड़ मरीजों की होती है. उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है.
जमीनी स्तर पर हकीकत अलग
अधिवक्ता धनंजय जैन ने बताया कि मरीज जब देश के सबसे बड़े अस्पताल में इलाज के लिए जाता है तो उसे राहत की उम्मीद होती है, लेकिन जमीनी स्तर पर उसे कोई राहत नहीं मिल रही है. सरकार जनता को उसके भरण-पोषण एवं इलाज का ध्यान रखने का दावा करती है, लेकिन एम्स अस्पताल का जवाब बताता है कि मरीजों को सरकार के भरोसे नहीं रहना चाहिए. उन्हें लगता है कि सरकार को तुरंत एम्स में मशीन और टेक्नीशियन बढ़ाने चाहिए. ताकि लोगों को समय पर इलाज मिले. अभी की स्थिति चिंता का विषय है. जिसकी आर्थिक हालत ठीक नहीं है, उसे इलाज मिलना मुश्किल है. उन्होंने कहा कि इस स्थिति में अगर सुधार नहीं आया तो वह अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे.
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