बेंगलुरु : ट्विटर इंडिया के प्रबंध निदेशक (एमडी) मनीष माहेश्वरी ने कर्नाटक उच्च न्यायालय से उत्तर प्रदेश पुलिस की ओर से जारी एक नोटिस को रद्द करने का बृहस्पतिवार को अनुरोध किया. इस नोटिस में सोशल मीडिया मंच पर सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील वीडियो अपलोड करने और प्रसारित करने को लेकर दर्ज मामले के संबंध में उन्हें व्यक्तिगत रूप से गाजियाबाद के एक थाने में उपस्थिति होने का निर्देश दिया गया है.
न्यायमूर्ति जी नरेंद्र की एकल पीठ के समक्ष माहेश्वरी की ओर से पेश हुए वकील सी वी नागेश ने दलील दी कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41-ए के तहत नोटिस बिना अधिकार और बिना कानूनी मंजूरी के जारी किया गया है.
उन्होंने दावा किया कि पहला नोटिस सीआरपीसी की धारा 160 के तहत 17 जून को जारी किया गया था. वकील ने दलील दी कि सीआरपीसी की धारा 160 के तहत कानूनी दायित्व उस व्यक्ति पर आधारित है जो उस स्थान पर रहता है जो उस थाना क्षेत्र के अधिकार क्षेत्र में आता है जहां अपराध दर्ज किया गया है.
नागेश ने कहा कि धारा 160 के तहत नोटिस जारी होने के बाद माहेश्वरी ने जांचकर्ताओं को बताया कि उन्हें इस मामले के बारे में कुछ भी नहीं पता है. उन्होंने कहा कि अगर माहेश्वरी उनके सामने व्यक्तिगत रूप से पेश हो भी जाते हैं तो भी उनका जवाब वही रहेगा.
वकील ने आरोप लगाया, आईओ (जांच अधिकारी जवाब से) संतुष्ट नहीं हुए, क्योंकि एक गुप्त एजेंडा है. फिर उन्होंने (आईओ) क्या किया, उन्होंने सीआरपीसी की धारा 41-ए के तहत शक्तियों का इस्तेमाल किया, जो सही नहीं है.
वकील ने दलील दी, कानून उन्हें (आईओ को) ऐसा करने का अधिकार नहीं देता है. यह एक ऐसा कार्य है जो कानून की मंजूरी के बिना किया गया है. नागेश ने कहा कि ट्विटर के एमडी बेंगलुरु में रहते हैं और उनका कार्यालय शहर में है.
माहेश्वरी ने पहले संकेत दिया था कि वह वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए जांच में सहयोग करने को तैयार हैं. मामले को शुक्रवार को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है.
पढ़ें :- ट्विटर को नए आईटी मंत्री की खरी-खरी, करना होगा नियमों का पालन
गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) पुलिस ने 21 जून को सीआरपीसी की धारा 41-ए के तहत नोटिस जारी कर माहेश्वरी को 24 जून को सुबह साढ़े 10 बजे लोनी बॉर्डर थाने में रिपोर्ट करने को कहा था. माहेश्वरी ने कर्नाटक उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया क्योंकि वह कर्नाटक के बेंगलुरु में रहते हैं.
24 जून को, उच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश में, गाजियाबाद पुलिस को उनके खिलाफ कोई भी दंडात्मक कार्रवाई करने से रोक दिया. न्यायमूर्ति नरेंद्र ने यह भी कहा था कि अगर पुलिस उनसे पूछताछ करना चाहती है, तो वे डिजिटल माध्यम से कर सकती है.
गाजियाबाद पुलिस ने 15 जून को ट्विटर इंक, ट्विटर कम्युनिकेशंस इंडिया प्राईवेट लिमिटेड (ट्विटर इंडिया), समाचार वेबसाइट 'द वायर', पत्रकार मोहम्मद जुबैर और राणा अय्यूब के अलावा कांग्रेस नेता सलमान निज़ामी, मस्कूर उस्मानी, शमा मोहम्मद और लेखक सबा नकवी के खिलाफ मामला दर्ज किया था.
उनके खिलाफ एक वीडियो के प्रसारित होने को लेकर मामला दर्ज किया गया था, जिसमें अब्दुल समद सैफी नाम के एक बुजुर्ग आरोप लगा रहे हैं कि कुछ युवकों ने पांच जून को उनकी पिटाई की और उनसे 'जय श्री राम' का नारा लगाने के लिए भी कहा. पुलिस के अनुसार, वीडियो को सांप्रदायिक अशांति फैलाने के लिए साझा किया गया था.
(पीटीआई-भाषा)