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Tripura Election 2023: त्रिपुरा चुनाव परिणाम को वाम मोर्चा ने बताया 'अप्रत्याशित'

वाम मोर्चा ने त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के नतीजों को 'अप्रत्याशित' बताते हुए दावा किया कि भाजपा विरोधी दलों के बीच मतों के बंटवारे से पार्टी को कम सीटें मिलने के बावजूद चुनाव जीतने में मदद मिली.

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Published : Mar 4, 2023, 2:00 PM IST

अगरतला : त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के नतीजों के सामने आने के बाद वाम मोर्चा ने इसे 'अप्रत्याशित' बताया है. वाम मोर्चा ने दावा किया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विरोधी दलों के बीच मतों के बंटवारे से भाजपा को कम सीटें मिलने के बावजूद चुनाव जीतने में मदद मिली. वाम मोर्चा ने यह भी दावा किया कि हाल में संपन्न चुनावों में करीब 60 प्रतिशत जनादेश भाजपा के खिलाफ था, क्योंकि चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत 39 प्रतिशत रहा. वाम मोर्चा के संयोजक नारायण कर ने शुक्रवार को एक समाचार विज्ञप्ति में कहा, "अगर पांच साल के कुशासन और लोगों की राय को देखें तो परिणाम संतोषजनक नहीं हैं। भाजपा के खिलाफ करीब 60 प्रतिशत जनादेश यह दर्शाता है कि लोग एक खास पार्टी पर भरोसा नहीं करते." इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत 2018 के 43.59 प्रतिशत के मुकाबले 39 प्रतिशत रह गया है. साठ- सदस्यीय विधानसभा में उसकी सीट भी 36 के मुकाबले 32 हो गयी हैं.

माकपा का मत प्रतिशत भी 42.70 प्रतिशत से कम होकर 24 प्रतिशत रह गया है, जबकि कांग्रेस ने अपने मत प्रतिशत में सुधार किया है और यह 1.41 प्रतिशत से बढ़कर 8.56 प्रतिशत पर पहुंच गया है. टिपरा मोठा को करीब 20 प्रतिशत वोट मिले और उसने आदिवासी इलाकों में 13 सीट जीती. कर ने कहा कि भाजपा विरोधी दलों के बीच मत विभाजन से कम सीट होने के बावजूद भाजपा का सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ है. कुछ इलाकों में चुनाव-बाद हिंसा पर चिंता जताते हुए उन्होंने सरकार, प्रशासन तथा पुलिस से ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए हरसंभव कदम उठाने का अनुरोध किया. बता दें कि सत्ता विरोधी लहर और टिपरा मोठा के अच्छे प्रदर्शन के बावजूद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने मिशन पूर्वोत्तर में त्रिपुरा में सत्ता बरकरार रखते हुए मनोबल बढ़ाने वाली जीत दर्ज की है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परिणामों की घोषणा के बाद पूर्वोत्तर सहित विभिन्न चुनावों में भाजपा की लगातार जीत का श्रेय पार्टी की सरकारों के कार्यों, उनकी कार्य संस्कृति तथा पार्टी कार्यकर्ताओं के समर्पण की त्रिवेणी को दिया. त्रिपुरा में भाजपा-आईपीएफटी गठबंधन ने 60 सदस्यीय विधानसभा में 33 सीट जीतकर लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी की है. 2018 के चुनाव की तुलना में दोनों दलों को 10 सीट कम मिली हैं, लेकिन स्पष्ट जनादेश के कारण नई पार्टी टिपरा मोठा की मदद के बिना गठबंधन पांच साल तक शासन कर सकता है. टिपरा मोठा ने 13 सीट पर जीत दर्ज की. पूर्ववर्ती राजघराने के वंशज प्रद्योत किशोर देबबर्मा ने दो साल पहले टिपरा मोठा का गठन किया था. वाम-कांग्रेस गठबंधन ने 14 सीट हासिल कीं. देबबर्मा की पार्टी ने जनजातीय क्षेत्र में वाम दल के वोट में सेंध लगाई.

राज्य में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का प्रदर्शन बेहद खराब रहा. टीएमसी ने 28 सीट पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसे कहीं भी सफलता नहीं मिली. टीएमसी का वोट प्रतिशत (0.88 प्रतिशत) नोटा से भी कम रहा. भाजपा ने 55 सीट पर चुनाव लड़ा और 32 पर जीत हासिल की. वर्ष 2018 की तुलना में भाजपा को तीन सीट कम मिलीं. इंडीजेनस पीपुल्‍स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) केवल एक सीट जीत सकी जबकि पिछले चुनाव में पार्टी को आठ सीट मिली थीं. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने 25 साल तक त्रिपुरा पर शासन करने के बाद 2018 में सत्ता खो दी थी. पिछली बार पार्टी ने केवल 16 सीट पर जीत दर्ज की थी. इस बार पार्टी ने 47 सीट पर चुनाव लड़ा और 24.62 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी के साथ 11 सीट पर जीत हासिल की. कांग्रेस ने 13 निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन पार्टी तीन सीट ही जीत पाई। कांग्रेस की वोट हिस्सेदारी 8.56 प्रतिशत रही.

(पीटीआई-भाषा)

अगरतला : त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के नतीजों के सामने आने के बाद वाम मोर्चा ने इसे 'अप्रत्याशित' बताया है. वाम मोर्चा ने दावा किया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विरोधी दलों के बीच मतों के बंटवारे से भाजपा को कम सीटें मिलने के बावजूद चुनाव जीतने में मदद मिली. वाम मोर्चा ने यह भी दावा किया कि हाल में संपन्न चुनावों में करीब 60 प्रतिशत जनादेश भाजपा के खिलाफ था, क्योंकि चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत 39 प्रतिशत रहा. वाम मोर्चा के संयोजक नारायण कर ने शुक्रवार को एक समाचार विज्ञप्ति में कहा, "अगर पांच साल के कुशासन और लोगों की राय को देखें तो परिणाम संतोषजनक नहीं हैं। भाजपा के खिलाफ करीब 60 प्रतिशत जनादेश यह दर्शाता है कि लोग एक खास पार्टी पर भरोसा नहीं करते." इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत 2018 के 43.59 प्रतिशत के मुकाबले 39 प्रतिशत रह गया है. साठ- सदस्यीय विधानसभा में उसकी सीट भी 36 के मुकाबले 32 हो गयी हैं.

माकपा का मत प्रतिशत भी 42.70 प्रतिशत से कम होकर 24 प्रतिशत रह गया है, जबकि कांग्रेस ने अपने मत प्रतिशत में सुधार किया है और यह 1.41 प्रतिशत से बढ़कर 8.56 प्रतिशत पर पहुंच गया है. टिपरा मोठा को करीब 20 प्रतिशत वोट मिले और उसने आदिवासी इलाकों में 13 सीट जीती. कर ने कहा कि भाजपा विरोधी दलों के बीच मत विभाजन से कम सीट होने के बावजूद भाजपा का सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ है. कुछ इलाकों में चुनाव-बाद हिंसा पर चिंता जताते हुए उन्होंने सरकार, प्रशासन तथा पुलिस से ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए हरसंभव कदम उठाने का अनुरोध किया. बता दें कि सत्ता विरोधी लहर और टिपरा मोठा के अच्छे प्रदर्शन के बावजूद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने मिशन पूर्वोत्तर में त्रिपुरा में सत्ता बरकरार रखते हुए मनोबल बढ़ाने वाली जीत दर्ज की है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परिणामों की घोषणा के बाद पूर्वोत्तर सहित विभिन्न चुनावों में भाजपा की लगातार जीत का श्रेय पार्टी की सरकारों के कार्यों, उनकी कार्य संस्कृति तथा पार्टी कार्यकर्ताओं के समर्पण की त्रिवेणी को दिया. त्रिपुरा में भाजपा-आईपीएफटी गठबंधन ने 60 सदस्यीय विधानसभा में 33 सीट जीतकर लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी की है. 2018 के चुनाव की तुलना में दोनों दलों को 10 सीट कम मिली हैं, लेकिन स्पष्ट जनादेश के कारण नई पार्टी टिपरा मोठा की मदद के बिना गठबंधन पांच साल तक शासन कर सकता है. टिपरा मोठा ने 13 सीट पर जीत दर्ज की. पूर्ववर्ती राजघराने के वंशज प्रद्योत किशोर देबबर्मा ने दो साल पहले टिपरा मोठा का गठन किया था. वाम-कांग्रेस गठबंधन ने 14 सीट हासिल कीं. देबबर्मा की पार्टी ने जनजातीय क्षेत्र में वाम दल के वोट में सेंध लगाई.

राज्य में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का प्रदर्शन बेहद खराब रहा. टीएमसी ने 28 सीट पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसे कहीं भी सफलता नहीं मिली. टीएमसी का वोट प्रतिशत (0.88 प्रतिशत) नोटा से भी कम रहा. भाजपा ने 55 सीट पर चुनाव लड़ा और 32 पर जीत हासिल की. वर्ष 2018 की तुलना में भाजपा को तीन सीट कम मिलीं. इंडीजेनस पीपुल्‍स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) केवल एक सीट जीत सकी जबकि पिछले चुनाव में पार्टी को आठ सीट मिली थीं. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने 25 साल तक त्रिपुरा पर शासन करने के बाद 2018 में सत्ता खो दी थी. पिछली बार पार्टी ने केवल 16 सीट पर जीत दर्ज की थी. इस बार पार्टी ने 47 सीट पर चुनाव लड़ा और 24.62 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी के साथ 11 सीट पर जीत हासिल की. कांग्रेस ने 13 निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन पार्टी तीन सीट ही जीत पाई। कांग्रेस की वोट हिस्सेदारी 8.56 प्रतिशत रही.

(पीटीआई-भाषा)

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