मुंगेर: बिहार में कोरोना संक्रमण बढ़ने के साथ ही इससे बचने के लिए लोग जहां मास्क लगा रहे हैं वहीं मुंगेर जिले के 'उब्भीवनवर्षा' गांव के आदिवासी सखुआ के पत्ते का मास्क लगाकर अपना बचाव कर रहे हैं. यह गांव बरियारपुर प्रखंड के रतनपुर पंचायत के अंतर्गत आता है. पत्तों के बने मास्क के इस्तेमाल से स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.
पत्तों के मास्क से व्यवस्था पर सवाल
ग्रामीण दीपा टुड्डू, अजय टुड्डू, सुखिया देवी आदि ग्रामीणों ने बताया कि अभी जानलेवा कोरोना बहुत ज्यादा फैला हुआ है और सरकारी स्तर पर हमारी आज तक कोरोना जांच नहीं की गई है. यहां तक की कोरोना की वैक्सीन भी नहीं लगाई गई है और न ही मास्क और सेनिटाइजर दिया गया है.
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वहीं ग्रामीण दीपा टुड्डू ने बताया कि हम सभी ग्रामीण मजदूरी करने के साथ सखुआ के पत्तों से भोज पत्तल बनाकर अपना जीवन यापन करते हैं. कोरोना के डर से बाहर काम करने के किए नहीं जा रहे हैं. गांव में ही हम लोग इन पत्तों से पत्तल बनाते हैं. एक जगह कई लोग रहते हैं. इस कारण सखुआ के पत्तों से ही मास्क बनाकर पहन लेते हैं और गांव में ही मास्क लगाकर रहते हैं.
दूसरे गांव के लोग उड़ाते हैं मजाक
इन लोगों ने कहा कि एक दो बार हम लोग जब दूसरे गांव भोज पत्तों की बिक्री करने ये पत्ते वाले मास्क पहनकर गए तो हम लोगों का ग्रामीण मजाक उड़ाने लगे. इस कारण हम लोग कोरोना महामारी से बचने के लिए गांव में ही सखुआ के पत्तों का मास्क बनाकर पहन लेते हैं और जंगल पत्ता चुनने के लिए चले जाते हैं.
इस बारे में पीपा टुड्डू ने कहा कि कोरोना वायरस की जानकारी मिली तो लगा कि खुद ही उपाय करना पड़ेगा, क्योंकि गांव से आसपास के सारे इलाके बहुत दूर हैं. वहीं प्रखंड से दूर होने के कारण हमें कोई सरकारी सुविधा नहीं मिल पाती.
सरकारी सुविधा का नहीं मिलता लाभ
ग्रामीणों ने सरकारी स्तर पर मास्क, सेनिटाइजर उपलब्ध कराने के साथ ही सभी ग्रामीणों की कोरोना जांच कराने की बात कही. इस पर आदिवासी लोगों का कहना है कि सरकार के द्वारा कोरोना से बचने के लिए जो टीका लगाया जा रहा है, वो टीका यहीं शिविर लगाकर लगाया जान चाहिए. गांव से प्रखंड की दूरी लगभग 15 किलोमीटर दूर है. इस कारण सभी ग्रामीणों को सभी चीज यहीं गांव में ही उपलब्ध करा दी जाए.