रायपुर: reservation bill in chhattisgarh छत्तीसगढ़ में आरक्षण बिल पर एक बार फिर पेंच फंसता नजर आ रहा है. क्योंकि राज्यपाल ने इस बिल पर हस्ताक्षर करने के पहले कई बिंदुओं पर विचार करने की बात कही है. जिसके बाद यह मामला फिलहाल लटकता नजर आ रहा है. जो आने वाले दिनों में एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है. वहीं राजनीति और संविधान दोनों के जानकारों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में आरक्षण का यह मुद्दा अभी हल होता नजर नहीं आ रहा है. raipur news update
"बिल से संतुष्ट हो जाऊंगी तो हस्ताक्षर कर दूंगी": आरक्षण बिल के मुद्दे पर शनिवार के राज्यपाल का एक बड़ा बयान सामने आया है जिसमें उन्होंने कहा है कि "हाईकोर्ट ने 58 प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर दिया है. यहां तो बढ़कर 76 प्रतिशत हो गया है. अगर आरक्षण केवल आदिवासी जनजाति समाज का होता तो मुझे तत्काल हस्ताक्षर करने में कोई दिक्कत नहीं थी. आरक्षण बिल की पूरी जांच के बाद हस्ताक्षर करूंगी." राज्यपाल अनुसुईया उइके ने यह बयान धमतरी के रेस्ट हाउस में पत्रकारों से चर्चा के दौरान दिया है. अनुसुईया उइके ने कहा है कि "2012 का 58 प्रतिशत वाला बिल कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित किया था. अभी नए बिल में सरकार की क्या तैयारी है. ये देखना जरूरी है कि नए बिल की जांच में समय लग रहा है. जैसे ही मैं नए बिल पर सरकार की तैयारी से संतुष्ट हो जाऊंगी, हस्ताक्षर कर दूंगी."
"संविधान के प्रावधानों को जानना जरूरी": राज्यपाल के इस बयान ने एक बार फिर छत्तीसगढ़ की राजनीति में हलचल ला दिया है. यह आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर प्रदेश में तूल पकड़ सकता है. आरक्षण बिल को लेकर संविधान विशेषज्ञ एवं निर्वाचन विश्लेषक रिटायर्ड आईएएस डॉ सुशील त्रिवेदी का कहना है कि "यदि राज्यपाल के द्वारा किसी विधेयक को मंजूरी देनी है. तो उसके पहले यह आवश्यक है कि संविधान में उसके लिए क्या प्रावधान और नियम है. न्यायकपालिका के द्वारा अलग अलग जो निर्णय दिए गए हैं. उन सभी पर विचार किया जाए. इसलिए वे शुरू से ही कह रहीं थी कि विधि सलाहकार से बात करने के बाद हस्ताक्षर करूंगी."
"क्वांटिफायबल डाटा के आधार पर आरक्षण दिया गया है": सुशील त्रिवेदी ने आगे कहा कि "इस बीच उन्होंने राज सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाया और उनसे आरक्षण देने का आधार पूछा. तब उन्हें पता चला कि क्वांटिफायबल डाटा के आधार पर आरक्षण दिया गया है. क्योंकि साल 2011 के बाद जनगणना ही नहीं हुई है. ऐसे में एक छोटे से सर्वे के आधार पर यह डाटा तैयार किया गया है. जिसे चैलेंज किया जा सकता है. यही वजह है कि राज्यपाल ने कहा है कि वे किस आधार पर इस आरक्षण बिल को मंजूरी दे. जबकि न्यायालय ने 58 प्रतिशत आरक्षण को भी खारिज कर दिया था. अब ऐसे में 76 प्रतिशत आरक्षण को मंजूरी कैसे दी जा सकती है."
"राष्ट्रपति को विचार के लिए भेजा जा सकता है": सुशील त्रिवेदी ने कहा कि "राज्यपाल का यह बयान एक तरीके से संकेत है कि वे आरक्षण बिल पर विचार कर रही है. यह भी हो सकता है कि राज्यपाल इस बिल को सरकार को वापस कर दें. यदि राज्य सरकार को वापस नहीं करती हैं. तो हो सकता है कि वे इस बिल को राष्ट्रपति को विचार के लिए भेज दें. इस बयान के यह भी मायने हो सकता है कि वे इस बिल पर हस्ताक्षर ना करें.
"आरक्षण बिल लंबी प्रक्रिया है": सुशील त्रिवेदी आगे बताते हैं कि "जिस आधार पर छत्तीसगढ़ में आरक्षण लाया गया है. उसे लागू करना संभव नहीं है. ऐसे में एक बार आप सभी को विचार करना होगा और किसी भी परिस्थिति में आरक्षण को 50 प्रतिशत के अंदर ही रखना होगा. यदि आप यह कहे कि संविधान में संशोधन कर इस आरक्षण को 76 प्रतिशत किया जाए और उसे अनुसूची 9 में शामिल कर लिया जाए. लेकिन यह एक लंबी प्रक्रिया है. झारखंड पहले से ही 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण दे चुका हैं. लेकिन उसे अब तक मंजूरी नहीं मिली है."
"बिल को लागू करना कठिन": राज्यपाल के हस्ताक्षर करने या ना करने और बिल वापस करने की समय सीमा को लेकर जब सवाल किया गया तब सुशील त्रिवेदी का कहना है कि "वह राज्यपाल का विशेषाधिकार है कि वह इस बिल पर विचार करने के लिए चाहे जितना लंबा समय ले सकती हैं." यह आरक्षण का बिल कहां आकर फंस जाएगा इस बात की जानकारी शायद सरकार को भी रही होगी इस सवाल के जवाब में सुशील त्रिवेदी ने कहा कि "ऐसा नहीं है, सरकार को यह बात पता थी. तभी तो उन्होंने विधानसभा में बिल पास करने के दौरान इसे अनुसूची में शामिल करने की बात कही थी. जिससे इस बिल को न्यायालय में चैलेंज न किया जा सके. सरकार को मालूम था कि इस बिल को लागू करना कठिन होगा और यह बात कांग्रेस भाजपा सहित सभी राजनीतिक दलों को पता थी."
"50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण लागू करना मुश्किल": वहीं इस पूरे मामले पर वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा का कहना है कि "यह पहले ही समझ में आ गया था कि छत्तीसगढ़ में 50 प्रतिशत से अधिक का बिल भले पास हो जाए. लेकिन उसे लागू करना संभव नहीं होगा. राज्यपाल का यह बयान भी उसी ओर इशारा करता है. अब राज्यपाल इस बिल को अपने पास विचार के लिए रख सकती हैं. जिसकी कोई समय सीमा नहीं है. या फिर इस बिल को राष्ट्रपति के पास राय जानने के लिए भेज सकती हैं. यह दो प्रमुख बिंदु सामने आ रहे हैं. हालांकि इसमें तीसरा बिंदु यह भी है कि राज्यपाल इस बिल को कुछ सुझाव के साथ राज्य सरकार को वापस कर दें. लेकिन राज्य सरकार के द्वारा यह बिल दोबारा राज्यपाल के पास भेजा गया तो उन्हें उस पर हस्ताक्षर करना होगा.
"आगामी विधानसभा चुनाव में आरक्षण प्रमुख मुद्दा": शशांक शर्मा ने आगे बताया कि "एक बार फिर प्रदेश में आरक्षण का मुद्दा वहीं पर आकर वापस रुक गया है. जहां से वह शुरू हुआ था. कुल मिलाकर कह सकते हैं कि राज्य सरकार किसी भी परिस्थिति में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दे सकती है. ऐसे में कहा जा सकता है कि आगामी विधानसभा चुनाव के लिए आरक्षण एक प्रमुख मुद्दा होगा.
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अब तक का घटनाक्रम: बता दे की छत्तीसगढ़ विधानसभा में आरक्षण बिल 2 दिसंबर को पारित हो गया था. उसी रात राज्य सरकार के मंत्री इस बिल को राजभवन पहुंचे थे. जहां उन्होंने राज्यपाल को बिल सौपते हुए जल्द से जल्द हस्ताक्षर करने का आग्रह किया था. राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद यह बिल लागू हो जाना था. लेकिन आज तक राज्यपाल के द्वारा इस बिल पर हस्ताक्षर नहीं किए गए हैं. जबकि राज्यपाल ने कहा था कि जैसे ही यह बिल उनके पास आएगा वह बिना देरी तत्काल उस उस पर हस्ताक्षर कर देंगी. लेकिन उन्होंने उस पर तत्काल हस्ताक्षर नहीं किया. बाद में राज्यपाल ने खुद इस बात की जानकारी दी कि शनिवार और रविवार छुट्टी होने की वजह से वह इस बिल पर विधि सलाह नहीं ले पाई है. इसलिए सोमवार को विधि सलाह लेकर इस पर हस्ताक्षर कर देंगे. लेकिन आज दिनांक तक इस बिल पर हस्ताक्षर नहीं हुआ है.