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परंपरा या अंधविश्वास: मन्नत पूरी करवाने के लिए जान से खिलवाड़, खुद को गायों से रौंदवाते हैं लोग - STRANGE RITUAL IN UJJAIN

उज्जैन के भिडवाद में मान्यता पूरी करवाने के लिए लोग खुद को गायों से रौंदवाते हैं. लोगों की आस्था है कि ऐसा करने से उनकी मन्नत पूरी होती है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. ये मंजर देखकर आम लोग हैरान भले ही हो जाते है, लेकिन इन ग्रामीणों के लिए यह आम बात है.

परंपरा या अंधविश्वास
परंपरा या अंधविश्वास
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Published : Nov 6, 2021, 6:42 AM IST

उज्जैन : हिंदुस्तान ने वैज्ञानिक तरक्की के जरिए भले ही दुनियाभर में अपनी मजबूत पहचान बना ली है, लेकिन आज भी कई ऐसी परंपराएं हैं जिसे लोग जान पर खेलकर निभाते आ रहे हैं. ऐसी ही परंपरा उज्जैन के भिडावद गांव में लोग भी निभा रहे हैं. इसके तहत लोग जमीन पर लेट जाते हैं, फिर गायों के झुंड को लोगों के ऊपर से निकाला जाता है.

इसमें लोगों को चोट भी आती है, लेकिन लोग इसे करते हैं. लोगों की मान्यता है कि ऐसा करने से मनोकामना पूरी हो जाती है. ये मंजर देखकर आम लोग भले ही दातों तले उंगली चबा लेते हों, लेकिन इन लोगों के लिए ये आम बात है.

सदियों से चली आ रही ये परंपरा उज्जैन से 75 किलोमीटर दूर बड़नगर तहसील के भिडावद गांव में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. परंपरा के अनुसार मन्नत मांगने वाले सात लोगों को दीपावली के पांच दिन पहले ग्यारस से ही माता भवानी के मंदिर में रहना होता है.

मन्नत पूरी करवाने के लिए जान से खिलवाड़

इस दौरान लोग उपवास भी करते हैं, फिर दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन को सातों लोगों को मंदिर में पूजा के बाद जूलूस के रूप में गांव में घुमाया जाता है. इसके बाद इन लोगों को जमीन पर लेटाया जाता है. फिर पूरे गांव की गायों के झुंड के रूप में इन लोगों के ऊपर से निकाला जाता है.

आज तक नहीं हुआ कोई बड़ा हादसा
ग्रामीणों की इस परंपरा में अटूट आस्था है. ग्रामीण बताते हैं कि हर साल अपनी मन्नत पूरी करने के लिए कई लोग यह उपवास रखते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. लेकिन आज तक कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ. कुछ मामूली चोटें जरूर लगती हैं, लेकिन माता रानी की कृपा से किसी की आज तक जान नहीं गई. इस परंपरा को देखने के लिए दूसरे गांव के ग्रामीण भी अन्नकूट के दिन यहां पहुंचते हैं.

पढ़ें - 200 साल पुरानी परंपरा पर प्रशासन का पहरा, दूसरे साल भी नहीं हुआ हिंगोट युद्ध

'मामला आस्था का है'
पशु प्रेमी और सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे का कहना है, कि हमारे देश में बहुत सी परंपराएं आस्था से जुड़ी हुई हैं. ऐसी ही यह परंपरा है. जिसमें लोग नीचे लेटे हैं और ऊपर से गायों का झुंड गुजरता है. हालांकि इसमें कई बार लोगों को चोट भी आती है. कई बार लोग गंभीर रूप से भी घायल हो चुके हैं. लेकिन इसके बाद भी लोग इस परंपरा का निर्वाहन कर रहे हैं. हालांकि देखा जाए तो इसकी कोई वैज्ञानिक रिजल्ट नहीं है. ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि इससे शारीरिक रूप से कोई फायदा होता है. लेकिन क्योंकि मामला आस्था से जुड़ा है इसलिए लोग इसका पालन कर रहे हैं.

उज्जैन : हिंदुस्तान ने वैज्ञानिक तरक्की के जरिए भले ही दुनियाभर में अपनी मजबूत पहचान बना ली है, लेकिन आज भी कई ऐसी परंपराएं हैं जिसे लोग जान पर खेलकर निभाते आ रहे हैं. ऐसी ही परंपरा उज्जैन के भिडावद गांव में लोग भी निभा रहे हैं. इसके तहत लोग जमीन पर लेट जाते हैं, फिर गायों के झुंड को लोगों के ऊपर से निकाला जाता है.

इसमें लोगों को चोट भी आती है, लेकिन लोग इसे करते हैं. लोगों की मान्यता है कि ऐसा करने से मनोकामना पूरी हो जाती है. ये मंजर देखकर आम लोग भले ही दातों तले उंगली चबा लेते हों, लेकिन इन लोगों के लिए ये आम बात है.

सदियों से चली आ रही ये परंपरा उज्जैन से 75 किलोमीटर दूर बड़नगर तहसील के भिडावद गांव में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. परंपरा के अनुसार मन्नत मांगने वाले सात लोगों को दीपावली के पांच दिन पहले ग्यारस से ही माता भवानी के मंदिर में रहना होता है.

मन्नत पूरी करवाने के लिए जान से खिलवाड़

इस दौरान लोग उपवास भी करते हैं, फिर दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन को सातों लोगों को मंदिर में पूजा के बाद जूलूस के रूप में गांव में घुमाया जाता है. इसके बाद इन लोगों को जमीन पर लेटाया जाता है. फिर पूरे गांव की गायों के झुंड के रूप में इन लोगों के ऊपर से निकाला जाता है.

आज तक नहीं हुआ कोई बड़ा हादसा
ग्रामीणों की इस परंपरा में अटूट आस्था है. ग्रामीण बताते हैं कि हर साल अपनी मन्नत पूरी करने के लिए कई लोग यह उपवास रखते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. लेकिन आज तक कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ. कुछ मामूली चोटें जरूर लगती हैं, लेकिन माता रानी की कृपा से किसी की आज तक जान नहीं गई. इस परंपरा को देखने के लिए दूसरे गांव के ग्रामीण भी अन्नकूट के दिन यहां पहुंचते हैं.

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'मामला आस्था का है'
पशु प्रेमी और सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे का कहना है, कि हमारे देश में बहुत सी परंपराएं आस्था से जुड़ी हुई हैं. ऐसी ही यह परंपरा है. जिसमें लोग नीचे लेटे हैं और ऊपर से गायों का झुंड गुजरता है. हालांकि इसमें कई बार लोगों को चोट भी आती है. कई बार लोग गंभीर रूप से भी घायल हो चुके हैं. लेकिन इसके बाद भी लोग इस परंपरा का निर्वाहन कर रहे हैं. हालांकि देखा जाए तो इसकी कोई वैज्ञानिक रिजल्ट नहीं है. ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि इससे शारीरिक रूप से कोई फायदा होता है. लेकिन क्योंकि मामला आस्था से जुड़ा है इसलिए लोग इसका पालन कर रहे हैं.

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