नई दिल्ली : संसद के शीतकालीन सत्र (winter session) से पहले विपक्ष और किसान संगठनों (farmers organisation) के साथ साथ अब देश के ट्रेड यूनियन भी मोदी सरकार पर दबाव बनाने के लिए लामबंद हो रहे हैं. गुरुवार को दिल्ली के जंतर मंतर पर देश के दस ट्रेड यूनियनों का एक कन्वेंशन आयोजित हुआ जिसमें सभी ट्रेड यूनियन और उनके फेडरेशन से एकजुट हो कर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने का निर्णय लिया है.
बता दें कि संसद का शीतकालीन सत्र 29 नवंबर से शुरु हो रहा है लेकिन इससे पहले 26 नवंबर को कृषि कानूनों के विरोध में शुरु हुए आंदोलन का एक वर्ष पूरा हो रहा है. मजदूर संगठनों ने भी 26 नवंबर को देशव्यापी प्रदर्शन का आवाह्न कर दिया है और कहा है कि अब देश के मजदूर और किसान एक साथ मिल कर नए श्रम कानून, कृषि कानून और निजीकरण के विरोध में लड़ाई को आगे बढ़ाएंगे.
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन्स के महासचिव तपन सेन (tapan sinha) ने बताया कि वह पहले भी किसान आंदोलन का समर्थन करते रहे हैं लेकिन आज आयोजित नेशनल कन्वेंशन में यह निर्णय लिया गया है कि संसद सत्र के दौरान ही देश भर में दो दिनों की हड़ताल की जाएगी.
25 नवंबर को दिल्ली के सभी ट्रेड यूनियन (trade union) अपनी मांगों के साथ एक दिन की हड़ताल करेंगे. हड़ताल के साथ वह किसानों के संघर्ष का भी समर्थन करेंगे. इसी तरह से अलग अलग सैक्टर के यूनियन अब अपने अपने कार्यक्रम करेंगे. तपन सेन ने जानकारी दी कि संभव है कि बैंकिंग और वित्तिय सैक्टर में काम कर रहे लोग भी दिसंबर में 2 दिन की हड़ताल करें.
प्रमुख मुद्दों के बारे में बताते हुए तपन सेन ने कहा कि सबसे पहला मुद्दा निजीकरण का है, जिसका सभी ट्रेड यूनियन लगातार विरोध करते रहे हैं. दूसरा मुद्दा लेबर कोड यानी नए श्रम कानून का है और तीसरा प्रमुख मुद्दा कृषि कानून है.
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कृषि कानूनो की तरह ही ट्रेड यूनियन भी लेबर कोड को रद्द करने की मांग कर रहे हैं. सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन्स (CITU) के महासचिव तपन सेन ने कहा कि यदि सरकार इन लेबर कोड को रद्द नहीं करती है तो श्रमिक ही अपने संगठित शक्ति से इन्हें निरस्त कर देंगे. नए श्रम कानूनों को इस प्रकार बनाया गया है जिससे ट्रेड यूनियन की शक्ति को खत्म किया जा सके.
हालांकि तीन कृषि कानून रद्द करना और एमएसपी पर कानून से ट्रेड यूनियन का संबंध नहीं है लेकिन तपन सेन कहते हैं कि अब ये उनकी मांगों का आन्तरिक हिस्सा बन चुका है. सरकार ये सभी कानून देश के कॉर्पोरेट के इशारे पर ले कर आई है क्योंकि सरकार वही चला रहे हैं. सरकार में जो लोग हैं वह केवल कॉर्पोरेट के राजनीतिक एजेंट हैं.
क्या श्रमिक भी किसानों की तरह ही धरने पर बैठेंगे ?
तपन सेन का कहना है कि कृषि और श्रमिक क्षेत्र दोनों इस मामले में अलग हैं. किसान लंबे समय तक धरना प्रदर्शन जारी रख कर संघर्ष कर सकते हैं क्योंकि उनके खेत और खेती अपनी जगह ही रहेंगे लेकिन कामगारों के लिए उनके नौकरी के अलवा कोई अन्य आजीविका श्रोत नहीं होते और उन्हें अपने काम पर जाना ही पड़ता है. लिहाजा ट्रेड यूनियन किसी लंबे हड़ताल या धरना प्रदर्शन की तैयारी तो नहीं कर रहे लेकिन सरकार के नीतियों के विरोध में उनका संघर्ष जरूर जारी रहेगा.