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TIPRA Chief Quits Politics : त्रिपुरा के 'महाराजा' ने राजनीति से किया तौबा, पर नहीं बताई 'असली' वजह

त्रिपुरा के 'महाराजा' ने राजनीति से संन्यास ले लिया. उन्होंने इसकी असली वजह नहीं बताई है. हालांकि, उन्होंने यह जरूर कहा कि वह राजनीति से हटकर लोगों की सेवा करना चाहते हैं.

Tipra chief says goodbye to politics
त्रिपुरा के प्रद्योत किशोर ने राजनीति से लिया संन्यास
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Published : Jul 4, 2023, 7:06 PM IST

अगरतला : त्रिपुरा में टिपरा मोथा के अध्यक्ष प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने राजनीति से संन्यास लेने का फैसला किया है. मंगलवार को उन्होंने घोषणा की कि वह अब समाज को कुछ देना चाहते हैं, इसलिए राजनीति का मार्ग त्याग रहे हैं. उन्हें त्रिपुरा का 'राजा' कहा जाता है.

पीके माणिक्य देबबर्मा त्रिपुरा के 185वें किंग कीर्ति बिक्रम किशोर देबबर्मा के बेटे हैं. उन्होंने शिलांग से पढ़ाई पूरी की है. जब राज्य में किंगडम व्यवस्था का पटाक्षेप हो गया, तो देबबर्मा राजनीति में चले आए. शुरुआत में वह कांग्रेस पार्टी से जुड़े. वह सांसद भी बने. उनकी पत्नी भी कांग्रेस से विधायक बनीं.

  • #WATCH | "I don't want to do politics anymore, I want to give something to the people. I have decided to give something to people and quit politics and public life...": Pradyot Kishore Manikya Debbarma, Tipra Motha chief pic.twitter.com/KtkriV929C

    — ANI (@ANI) July 4, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

कांग्रेस पार्टी ने प्रद्योत को त्रिपुरा कांग्रेस का अध्यक्ष भी नियुक्त किया. स्थानीय लोग उन्हें 'महाराजा' साहेब के नाम से जानते हैं. वह आदिवासी समाज के बीच बहुत अधिक लोकप्रिय रहे हैं. उनकी इसी लोकप्रियता की वजह से दूसरी पार्टियां भी उनका सम्मान करती हैं. उनकी एक अपील पर आदिवासी समाज पूरी तरह से उनके साथ खड़ा होता रहा है. आम तौर पर उनका राजनीतिक विरोध नहीं होता था.

2019 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ने का ऐलान कर दिया. उसके बाद उन्होंने टिपरा मोथा के नाम से अपना संगठन बनाया. उस समय प्रद्योत ने घोषणा की थी कि यह लोगों को उनका हक दिलाने का काम करेगा, इसका किसी भी राजनीतिक दल से कोई लेना-देना नहीं होगा. लेकिन 2021 में उनकी पार्टी स्थानीय चुनाव में खड़ी हो गई. चुनाव में उन्हें आधी से ज्यादा सीटें भी मिलीं. उसके बाद वह अपने संगठन से बहुत अधिक उम्मीदें करने लगे.

  • Thank you everyone for wishing me on my birthday! This year for me is going to be the one of personal sacrifice for the larger good of our people ,community and nation . pic.twitter.com/ZvunFyC9S4

    — Pradyot_Tripura (@PradyotManikya) July 4, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

आदिवासी इलाकों की पैरवी करने वाले टिपरा मोथा के प्रमुख प्रद्योत किशोर ने 'ग्रेटर टिपरालैंड' को लेकर राजनीति शुरू कर दी. वह उनके एरिया में बसने वाले बाहरी लोगों का विरोध करते थे. खासकर बांग्लादेशियों का. उन्होंने कहा कि इन बंगलादेशियों की वजह से ही स्थानीय लोगों को कष्ट हो रहा है, उनके हक मारे जा रहे हैं. ये बांग्लादेशी बांग्लादेश के गठन के समय आए थे.

  • #WATCH | Tipra Motha Party (TMP) chief Pradyot Bikram Manikya Deb Barman speaks on his meeting with Union Home Minister Amit Shah, says, "We met with the HM on a core demand of greater Tipraland, constitutional solution for the greater Tipraland. We met him along with other… pic.twitter.com/vooUOEpkQ2

    — ANI (@ANI) July 1, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

त्रिपुरा में दो तिहाई लोग बांग्ला भाषा बोलते हैं. इसलिए उन्होंने आदिवासियों के नाम पर राजनीति की शुरुआत की थी. उन्हें लगता था कि आदिवासी समाज पर उनकी अपील का असर होगा.

इस साल हुए विधानसभा चुनाव में टिपरा मोथा को बहुत उम्मीदें थीं. उन्हें लग रहा था कि वह किंग मेकर की भूमिका में आ सकते हैं. आदिवासी समाज के बीच लोकप्रिय होने की वजह से कांग्रेस और भाजपा दोनों ही 'सशंकित' थीं. लेकिन चुनाव परिणाम ने प्रद्योत की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. उन्हें 60 में से मात्र 13 सीटें मिलीं. ऊपर से भाजपा लगातार दोबारा सत्ता में आ गई. इस चुनाव के बाद माना जाने लगा कि प्रद्योत का आदिवासियों पर भी प्रभाव घट गया. हालांकि, यह पता नहीं है कि अचानक से उन्होंने राजनीति से हटने का मन क्यों बनाया.

ये भी पढ़ें : भाजपा ने आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब और झारखंड में नए प्रदेश अध्यक्ष बनाए

अगरतला : त्रिपुरा में टिपरा मोथा के अध्यक्ष प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने राजनीति से संन्यास लेने का फैसला किया है. मंगलवार को उन्होंने घोषणा की कि वह अब समाज को कुछ देना चाहते हैं, इसलिए राजनीति का मार्ग त्याग रहे हैं. उन्हें त्रिपुरा का 'राजा' कहा जाता है.

पीके माणिक्य देबबर्मा त्रिपुरा के 185वें किंग कीर्ति बिक्रम किशोर देबबर्मा के बेटे हैं. उन्होंने शिलांग से पढ़ाई पूरी की है. जब राज्य में किंगडम व्यवस्था का पटाक्षेप हो गया, तो देबबर्मा राजनीति में चले आए. शुरुआत में वह कांग्रेस पार्टी से जुड़े. वह सांसद भी बने. उनकी पत्नी भी कांग्रेस से विधायक बनीं.

  • #WATCH | "I don't want to do politics anymore, I want to give something to the people. I have decided to give something to people and quit politics and public life...": Pradyot Kishore Manikya Debbarma, Tipra Motha chief pic.twitter.com/KtkriV929C

    — ANI (@ANI) July 4, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

कांग्रेस पार्टी ने प्रद्योत को त्रिपुरा कांग्रेस का अध्यक्ष भी नियुक्त किया. स्थानीय लोग उन्हें 'महाराजा' साहेब के नाम से जानते हैं. वह आदिवासी समाज के बीच बहुत अधिक लोकप्रिय रहे हैं. उनकी इसी लोकप्रियता की वजह से दूसरी पार्टियां भी उनका सम्मान करती हैं. उनकी एक अपील पर आदिवासी समाज पूरी तरह से उनके साथ खड़ा होता रहा है. आम तौर पर उनका राजनीतिक विरोध नहीं होता था.

2019 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ने का ऐलान कर दिया. उसके बाद उन्होंने टिपरा मोथा के नाम से अपना संगठन बनाया. उस समय प्रद्योत ने घोषणा की थी कि यह लोगों को उनका हक दिलाने का काम करेगा, इसका किसी भी राजनीतिक दल से कोई लेना-देना नहीं होगा. लेकिन 2021 में उनकी पार्टी स्थानीय चुनाव में खड़ी हो गई. चुनाव में उन्हें आधी से ज्यादा सीटें भी मिलीं. उसके बाद वह अपने संगठन से बहुत अधिक उम्मीदें करने लगे.

  • Thank you everyone for wishing me on my birthday! This year for me is going to be the one of personal sacrifice for the larger good of our people ,community and nation . pic.twitter.com/ZvunFyC9S4

    — Pradyot_Tripura (@PradyotManikya) July 4, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

आदिवासी इलाकों की पैरवी करने वाले टिपरा मोथा के प्रमुख प्रद्योत किशोर ने 'ग्रेटर टिपरालैंड' को लेकर राजनीति शुरू कर दी. वह उनके एरिया में बसने वाले बाहरी लोगों का विरोध करते थे. खासकर बांग्लादेशियों का. उन्होंने कहा कि इन बंगलादेशियों की वजह से ही स्थानीय लोगों को कष्ट हो रहा है, उनके हक मारे जा रहे हैं. ये बांग्लादेशी बांग्लादेश के गठन के समय आए थे.

  • #WATCH | Tipra Motha Party (TMP) chief Pradyot Bikram Manikya Deb Barman speaks on his meeting with Union Home Minister Amit Shah, says, "We met with the HM on a core demand of greater Tipraland, constitutional solution for the greater Tipraland. We met him along with other… pic.twitter.com/vooUOEpkQ2

    — ANI (@ANI) July 1, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

त्रिपुरा में दो तिहाई लोग बांग्ला भाषा बोलते हैं. इसलिए उन्होंने आदिवासियों के नाम पर राजनीति की शुरुआत की थी. उन्हें लगता था कि आदिवासी समाज पर उनकी अपील का असर होगा.

इस साल हुए विधानसभा चुनाव में टिपरा मोथा को बहुत उम्मीदें थीं. उन्हें लग रहा था कि वह किंग मेकर की भूमिका में आ सकते हैं. आदिवासी समाज के बीच लोकप्रिय होने की वजह से कांग्रेस और भाजपा दोनों ही 'सशंकित' थीं. लेकिन चुनाव परिणाम ने प्रद्योत की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. उन्हें 60 में से मात्र 13 सीटें मिलीं. ऊपर से भाजपा लगातार दोबारा सत्ता में आ गई. इस चुनाव के बाद माना जाने लगा कि प्रद्योत का आदिवासियों पर भी प्रभाव घट गया. हालांकि, यह पता नहीं है कि अचानक से उन्होंने राजनीति से हटने का मन क्यों बनाया.

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