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धमकी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता है : एमपी हाई कोर्ट

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की एकलपीठ ने एक युवक को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप से एक महिला को मुक्त करते हुए कहा कि धमकी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता है

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Published : Mar 18, 2021, 7:27 PM IST

जबलपुर : मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की एकलपीठ ने एक युवक को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप से एक महिला को मुक्त करते हुए कहा कि धमकी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता है. साथ ही उसके खिलाफ जिला अदालत में लंबित प्रकरण को खारिज करने के निर्देश दिए हैं.

न्यायमूर्ति अंजली पालो ने तीन मार्च को जारी आदेश में कहा है कि धमकी आत्महत्या करने का कारण हो सकती है. लेकिन इसे आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता है. अदालत ने कहा कि यदि मृतक युवक को याचिकाकर्ता महिला द्वारा ब्लैकमेल किया गया है तो वह इस महिला के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकता था. सरकारी वकील पी घोष ने बृहस्पतिवार को कहा कि याचिकाकर्ता का एक युवक के साथ प्रेम संबंध था और वह इस युवक को शादी करने के लिए मजबूर कर रही थी. जिसे युवक ने ठुकरा दिया था.

घोष ने बताया कि याचिकाकर्ता महिला ने कथित रूप से इस युवक को ब्लैकमेल किया था और धमकी दी थी. यदि वह उससे शादी नहीं करेगा तो वह उसके एवं उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ मामला दर्ज करवाएगी. साथ ही उन्हें झूठे मामले में फंसवाएगी. उन्होंने कहा कि आरोपी महिला 17 जनवरी 2020 को युवक के घर जबरदस्ती घुस गई थी और परिजनों के विरोध के बाद वह युवक के घर से लौट आई थी. घोष ने कहा कि इसके बाद वह 26 जनवरी 2020 को पुनः युवक के घर रहने पहुंच गई और 28 जनवरी तक वहां रही.

सरकारी वकील ने कहा कि इसी दौरान 28 जनवरी को इस युवक ने आत्महत्या कर ली थी. उन्होंने कहा कि इसके बाद इस महिला के खिलाफ जबलपुर जिले की बरगी पुलिस थाने में भादंवि की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत मामला दर्ज किया गया था. घोष ने बताया कि महिला ने अपने खिलाफ की गई इस आपरधिक कार्रवाई को अदालत में चुनौती दी और कहा कि उसने इस आत्महत्या मामले में उसे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से उकसाया नहीं है. मृतक युवक अपनी समस्या को दूर करने के लिए कोई अन्य कदम उठा सकता था.

यह भी पढ़ें-असम में बोले पीएम मोदी- कांग्रेस में न नेता है न नीति है और न ही विचारधारा

वहीं, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सुशील कुमार मिश्रा ने कहा कि मेरी मुवक्किल की तरफ से उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आदेश के हवाला देते हुए कहा गया कि याचिकाकर्ता ने ऐसा कुछ अपमानजनक नहीं कहा था. जिससे कोई अपमानित होकर आत्महत्या कर ले. याचिकाकर्ता धमकी दे रही थी या दवाब बना रही थी तो वह पुलिस में शिकायत दर्ज करवा सकता था. युवक ने अपनी परेशानियों के कारण आत्महत्या की है.

जबलपुर : मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की एकलपीठ ने एक युवक को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप से एक महिला को मुक्त करते हुए कहा कि धमकी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता है. साथ ही उसके खिलाफ जिला अदालत में लंबित प्रकरण को खारिज करने के निर्देश दिए हैं.

न्यायमूर्ति अंजली पालो ने तीन मार्च को जारी आदेश में कहा है कि धमकी आत्महत्या करने का कारण हो सकती है. लेकिन इसे आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता है. अदालत ने कहा कि यदि मृतक युवक को याचिकाकर्ता महिला द्वारा ब्लैकमेल किया गया है तो वह इस महिला के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकता था. सरकारी वकील पी घोष ने बृहस्पतिवार को कहा कि याचिकाकर्ता का एक युवक के साथ प्रेम संबंध था और वह इस युवक को शादी करने के लिए मजबूर कर रही थी. जिसे युवक ने ठुकरा दिया था.

घोष ने बताया कि याचिकाकर्ता महिला ने कथित रूप से इस युवक को ब्लैकमेल किया था और धमकी दी थी. यदि वह उससे शादी नहीं करेगा तो वह उसके एवं उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ मामला दर्ज करवाएगी. साथ ही उन्हें झूठे मामले में फंसवाएगी. उन्होंने कहा कि आरोपी महिला 17 जनवरी 2020 को युवक के घर जबरदस्ती घुस गई थी और परिजनों के विरोध के बाद वह युवक के घर से लौट आई थी. घोष ने कहा कि इसके बाद वह 26 जनवरी 2020 को पुनः युवक के घर रहने पहुंच गई और 28 जनवरी तक वहां रही.

सरकारी वकील ने कहा कि इसी दौरान 28 जनवरी को इस युवक ने आत्महत्या कर ली थी. उन्होंने कहा कि इसके बाद इस महिला के खिलाफ जबलपुर जिले की बरगी पुलिस थाने में भादंवि की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत मामला दर्ज किया गया था. घोष ने बताया कि महिला ने अपने खिलाफ की गई इस आपरधिक कार्रवाई को अदालत में चुनौती दी और कहा कि उसने इस आत्महत्या मामले में उसे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से उकसाया नहीं है. मृतक युवक अपनी समस्या को दूर करने के लिए कोई अन्य कदम उठा सकता था.

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वहीं, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सुशील कुमार मिश्रा ने कहा कि मेरी मुवक्किल की तरफ से उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आदेश के हवाला देते हुए कहा गया कि याचिकाकर्ता ने ऐसा कुछ अपमानजनक नहीं कहा था. जिससे कोई अपमानित होकर आत्महत्या कर ले. याचिकाकर्ता धमकी दे रही थी या दवाब बना रही थी तो वह पुलिस में शिकायत दर्ज करवा सकता था. युवक ने अपनी परेशानियों के कारण आत्महत्या की है.

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