नई दिल्ली : समय-समय पर वैक्सीन की गुणवत्ता पर सवाल उठाने वाली राज्य सरकारें आज वैक्सीन की डिमांड सबसे ज्यादा कर रही हैं. यही नहीं विपक्ष के वह तमाम नेता जो वैक्सीन लेने के बाद कोवैक्सीन की गुणवत्ता पर सवाल उठा रहे थे आज वैक्सीन की कमी को लेकर सरकार से सवाल पूछ रहे हैं.
भारत में जब से कोविड-19 की वैक्सीन तैयार हुई यदि तेज गति से टीकाकरण हुआ होता तो शायद कोरोना मरीजों की इतनी संख्या न होती.
शुरुआती दौर में कुछ सरकार की कमी और कुछ विपक्षी पार्टी के नेताओं द्वारा वैक्सीन को लेकर फैलाया गया भ्रम रहा कि आम जनता काफी दिनों तक संशय में रही कि इसे लगवाया जाए या नहीं. यही वजह है कि भारत सरकार का टीकाकरण का जो लक्ष्य था उससे काफी कम लोगों ने 3 महीने में टीका लगवाया.
देखा जाए तो इसके लिए पूरी तरह से कुछ राज्यों सरकार और विपक्ष के नेता दोषी हैं. आइए देखते हैं कि किस तरह से भारत की वैक्सीन और भारत के वैज्ञानिकों पर क्रमवार सवाल उठाए गए.
कोरोना की दूसरी लहर इतनी तेजी से भारत में कैसे फैली इसके पीछे की मुख्य वजह देखी जाए तो कहीं ना कहीं प्रशासनिक लापरवाही भी रही. पहली वेब कम होते ही सरकारों ने यह सोच लिया था कि शायद अब भारत से कोरोना वायरस का खात्मा हो चुका है, जबकि डब्ल्यूएचओ बार-बार यह चेतावनी दे रहा था कि कई देशों में दूसरी लहर आ सकती है. भारत का नाम भी इसमें शुमार था. उन देशों को तमाम तैयारियां कर लेने की चेतावनी भी दी गई थी.
यही नही भारत में कोविड तैयारियों को लेकर राज्य और केंद्र सरकार लापरवाह तो हो ही गई थी साथ ही टीके को लेकर भी राजनीति होती रही. आरोप-प्रत्यारोप के दौर में ही पहला महीना गुजर गया. इसका असर आम लोगों पर सीधा सीधा पड़ा और जो सरकार ने लक्ष्य रखा था उससे काफी कम लोगों ने टीकाकरण करवाया. जब प्रधानमंत्री ने खुद टीका लगवाया उसके बाद टीकाकरण की प्रक्रिया में कुछ तेजी तो आई लेकिन फिर भी रह रह कर इस पर सवाल उठाए जाते रहे.
किन नेताओं और राज्य सरकारों ने टीकाकरण पर उठाए सवाल
- 2 जनवरी 2021 को उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि मुझे इस टीके पर कोई भरोसा नहीं. यह भाजपा का टीका है जिसे मैं नहीं लगवाऊंगा और आज अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में टीकाकरण की गति धीमी होने के आरोप लगा रहे हैं.
- 3 जनवरी को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने बयान दिया कि कोविड-19 से बचाव के लिए तैयार कोवैक्सीन प्रीमेच्योर है और इसे नहीं लेना चाहिए. यह बयान तब आया था जब देश में नए केसेस की संख्या 16504 तक पहुंची थी.
- 31 जनवरी 2021 को जब देश में उस दिन नए मरीजों की संख्या 11436 थी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने बयान दिया कोरोना वायरस का आउटब्रेक नियंत्रण में है. लोगों को डरने की जरूरत नहीं. जाहिर तौर पर ऐसे गैर जिम्मेदाराना बयान ने कहीं ना कहीं टीकाकरण पर असर डाला और लोग लापरवाह हो गए.
- 10 फरवरी 2021 को जिस दिन देश में नए मरीजों की संख्या 12923 थी. प्रियंका गांधी ने बयान दिया कि किसान अपने कदम पीछे ना लें. किसान बिल को वह खत्म करवा कर रहेंगे. ऐसे में जब इन वरिष्ठ नेताओं को टीकाकरण पर जोर दिया जाना चाहिए था तब यह भीड़ जुटाने की बात कर रहे थे.
- इसी तरह 11 फरवरी 2021 को छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री पीएस देव का बयान आया कि कोई भी टीका सुरक्षित नहीं है. ऐसे में जब ये टीका क्लीनिकल ट्रायल मोड में हो इस बयान से कहीं ना कहीं लोगों के बीच टीके को लेकर भ्रम की स्थिति बनी. लोग टीके को लेकर संशय की स्थिति में देखे गए.
- हद तो तब हो गई जब पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 15 फरवरी 2021 को यहां तक कह दिया कि वह कोवैक्सीन का वितरण पंजाब में होने ही नहीं देंगे जबकि उस दिन देश में नए मरीजों की संख्या 9121 थी. इसके कुछ दिनों बाद से ही पंजाब में कोरोना के मरीजों का आउटब्रेक काफी ज्यादा बढ़ा लेकिन टीकाकरण की प्रक्रिया बहुत ही धीमी रही. आज यह सरकारें भी वैक्सीन की कमी की बात कर रही हैं.
- इसी तरह 5 मार्च 2021 को जब देश में आए कोरोनावायरस के तहत मरीजों की संख्या 8284 थी, केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन की तरफ से संशय की स्थिति दिखाए जाने के बाद जनवरी में जो केरल के लिए वैक्सीन भेजे गए थे वह मार्च तक इस्तेमाल नहीं हुए.
- 4 अप्रैल तक देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना की दूसरी वेब का कहर जारी था तब अपने राज्य में जरूरी दवाइयां और ऑक्सीजन सिलेंडर के इंतजाम करने के बजाए अरविंद केजरीवाल किसानों के समर्थन में बयान दे रहे थे. यहां तक कह दिया कि हम किसानों को उनके आंदोलन के लिए पूरा समर्थन देते हैं. साथ ही कहा कि मैं किसी भी कीमत पर इस आंदोलन की सफलता के लिए सैक्रिफाइस करने को तैयार हूं.
- 23 अप्रैल को वैक्सीन को लेकर प्रधानमंत्री की तरफ से बुलाई गई बैठक में बंगाल की मुख्यमंत्री ने आने से मना कर दिया. ये प्रधानमंत्री की तरफ से बुलाई गई तीसरी बैठक थी. इससे पहले कोरोना से संबंधित दो बैठक में पहले ही मुख्यमंत्री आने से मना कर चुकी थीं.
यह आंकड़े ये बताते हैं कि दूसरे फेस में बढ़ते हुए कोरोना के कहर को लेकर यह सरकारें और नेता कितने लापरवाह हैं. ऐसे समय में जब देश में और राज्य-राज्य में टीकाकरण अभियान को तेज गति दी जानी चाहिए थी, कोई नेता वैक्सीन पर सवाल उठा रहा था तो कोई किसान आंदोलन में व्यस्त था. समय पर तमाम चेतावनी के बावजूद कोरोना से निपटने की तैयारी नहीं की गई. यही वजह है कि देश में कोरोना की स्थिति भयावह हो गई. जब स्थितियां अनियंत्रित हो गईं तो आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हुआ और घटिया राजनीति. मगर इस बीच कोरोना पुणे देश में अपने भयंकर रूप में पांव पसार चुका था शुरुआती दौर में मात्र दिल्ली और महाराष्ट्र के आंकड़े ही देश में आ रहे आंकड़ों का 80% थे. हालांकि धीरे-धीरे देश के अन्य राज्यों में भी यह स्थिति भयावह होती गई और आज हालात यह हैं कि राज्य और केंद्र दोनों ही सरकारों के नियंत्रण से बाहर हो चुके हैं.
विपक्षी पार्टियों को भ्रम फैलाने से बचना चाहिए : गोपाल
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल का कहना है कि लगातार विपक्षी पार्टियां वैक्सीन को लेकर सवाल उठा रहीं थी. जबकि कोरोना की दूसरी लहर धीरे-धीरे देश में फिर से वापस आ रही थी. यह लोग बस वैक्सीन की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे थे जबकि ऐसे समय में इन्हें कोरोना की पूरी तैयारी अपने-अपने राज्यों में कर लेनी चाहिए थी.
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार लगातार राज्यों को वैक्सीन भेज रही थी और कई राज्यों ने तो स्टॉक जमा करके रख लिया था. उनका वितरण तक नहीं किया था और अब जब कोरोना की इतनी तेज लहर अनियंत्रित हो चुकी है तो वैक्सीन की कमी के भी आरोप लगा रहे हैं. विपक्षी पार्टियों को भ्रम फैलाने से बचना चाहिए.
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उन्होंने कहा कि विपक्षी पार्टियां यदि समय पर एहतियात बरततीं और अपने-अपने राज्य में पूरी तैयारियां कर लेतीं और वैक्सीन की प्रक्रिया को तेज गति देतीं तो आज देश में यह हालात नहीं होते. उन्होंने कहा कि केंद्र लगातार उन्हें मदद कर रहा था बावजूद राज्य सरकारें लापरवाह थीं.