नई दिल्ली : दिल्ली में अक्टूबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच दर्ज किए गए वायु प्रदूषण में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्थित कोयला आधारित 11 तापीय बिजली घरों की हिस्सेदारी सात प्रतिशत थी, जबकि इसमें (वायु प्रदूषण में) वाहनों से निकलने वाले प्रदूषकों की हिस्सेदारी 14 प्रतिशत रही. पीएम 2.5 प्रदूषकों को लेकर एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है.
अध्ययन का निष्कर्ष इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि दिल्ली सरकार ने हाल ही में उच्चतम न्यायालय से शहर में स्थित उन तापीय बिजली घरों को बंद करने संबंध निर्देश देने को कहा है जो पुरानी, प्रदूषण फैलाने वाली तकनीक का उपयोग कर रहे हैं.
केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने एक अप्रैल को संशोधित नियमों के साथ एक अधिसूचना जारी कर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से 10 किलोमीटर के दायरे में और 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में स्थित तापीय बिजली घरों को 2022 के अंत तक नये उत्सर्जन नियमों का पालन करने की अनुमति दे दी थी.
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नीतियों का अध्ययन करने वाली दिल्ली स्थित गैर लाभकारी संस्था काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायरमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) ने अपने ताजा विश्लेषण में कहा, हमने पाया कि एनसीआर में स्थित तापीय बिजली घरों से ऊर्जा उत्पादन अक्टूबर-नवंबर के महीनों में, इसी अवधि में 2019 के मुकाबले क्रमश: 25 और 70 प्रतिशत कम था.
एल. एस. कुरींजी, अदील खान और तनुश्री गांगुली के अनुसंधान दल ने पाया कि अक्टूबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच दिल्ली-एनसीआर के 11 तापीय बिजली घरों का प्रदूषण में औसत योगदान सात प्रतिशत का रहा है.