ETV Bharat / bharat

चीन जो कुछ भी करता है, उसकी कीमत होती है- विशेषज्ञ - चीन जो कुछ भी करता है उसकी कीमत होती है

कोरोना वायरस दुनियाभर में कहर बरपा रहा है. कुछ देशों में संक्रमण पहले की तुलना में और अधिक तेजी से फैल रहा है. पड़ोसी देश नेपाल दो तरह की समस्याओं से जूझ रहा है. एक तो वहां राजनीतिक अस्थिरता चरम पर है और दूसरा कोरोना की दूसरी लहर से समूचे देश को अपनी जकड़ में ले रखा है. ऐसे में नेपाल को वैक्सीन देने के एवज में चीन लगातार दबाव बना रहा है. ताकि वो अपने मंसूबों में कामयाब हो सके. इस पर पूर्व राजदूत जितेंद्र त्रिपाठी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

चीन
चीन
author img

By

Published : Jun 5, 2021, 11:17 AM IST

नई दिल्ली : एक तरफ जहां पूरी दुनिया कोरोना महामारी (corona pandemic) की खतरनाक लहर का सामना कर रही है, वहीं दूसरी तरफ चीन की वैक्सीन (China's vaccine) रणनीति में कुछ और ही खिचड़ी पक रही है. इस पर पूर्व राजदूत जितेंद्र त्रिपाठी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा, जब पूरी दुनिया कोविड-19 के आतंक से जूझ रही है और खासकर भारत गंभीर स्थिति से गुजर रहा है. वैक्सीन की अनुपलब्धता के कारण एक नई परेशानी खड़ी हो गई है. इस दौरान चीन ने नेपाल को वैक्सीन की पेशकश करना काफी उपयुक्त समझा. चीन नेपाली क्षेत्र में अप्रतिबंधित प्रवेश चाहता है.

पूर्व राजदूत जितेंद्र त्रिपाठी की ईटीवी भारत से खास बातचीत

कोरोना वायरस दुनियाभर में कहर बरपा रहा है. कुछ देशों में संक्रमण पहले की तुलना में और अधिक तेजी से फैल रहा है. पड़ोसी देश नेपाल दो तरह की समस्याओं से जूझ रहा है. एक तो वहां राजनीतिक अस्थिरता चरम पर है और दूसरा कोरोना की दूसरी लहर से समूचे देश को अपनी जकड़ में ले रखा है. ऐसे में चीन ने नेपाल को एक मिलियन से अतिरिक्त वैक्सीन देने की घोषणा की है.

उन्होंने आगे कहा, चीन का टीका कूटनीति नेपाल में बाधा उत्पन्न कर सकता है. नेपाल में टीकों की खरीद उतना आसान नहीं लगता, जितना लगता है. विशेषज्ञों का मानना ​​है कि चीन की शर्त है कि नेपाल वाणिज्यिक खरीद के लिए एक गैर-प्रकटीकरण समझौते पर हस्ताक्षर करें. नेपाल को इस तरह के गैर-प्रकटीकरण समझौतों पर हस्ताक्षर करने पर जोर देते हुए चीन राजनीतिक, कूटनीतिक या यहां तक ​​कि आर्थिक लाभ प्राप्त करने के एवज में टीके उपलब्ध कराकर स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश करेगा.

पढ़ें-भारत में पाए गए कोरोना के वेरिएंट पर ज्यादा प्रभावकारी नहीं है फाइजर : लांसेट

इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए ओआरएफ में रणनीतिक अध्ययन कार्यक्रम के प्रमुख निदेशक, प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा, चीन के पास उन चीजों को करने का रिकॉर्ड है जहां, विभिन्न प्रकार की लागतें जुड़ी हुई हैं. मानवीय प्रयास भी प्रतीत होते हैं.

यह पूछे जाने पर कि चीन द्वारा नेपाल को एक गैर-प्रकटीकरण समझौते पर हस्ताक्षर करने के संभावित कारण क्या हो सकते हैं. पूर्व राजनयिक त्रिपाठी ने कहा, मेरा मानना है कि चीनी फर्मों की इस मदद के पीछे कुछ एजेंडा छिपा हो सकता है, क्योंकि अगर नेपाल गैर-प्रकटीकरण पर हस्ताक्षर करता है तो इस समझौते से कोई न कोई लाभ जरूर होगा. जैसा कि नेपाल किसी भी तरह बस टीके पाना जाता है तो मुमकिन है कि चीनी कंपनियां इसके लिए कुछ नियम, शर्तें और कीमतें तय करेंगीं.

उन्होंने आगे कहा, इस बात की पूरी संभावना है कि कीमतें नकद में नहीं, बल्कि 'वस्तु के रूप में' होंगी. शायद ऐसा करके चीन नेपाल को कुछ रियायतें देने और पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) को कहीं तैनात करने व भारत पर या भारत के खिलाफ अपनी गतिविधियों के साथ-साथ खुफिया सूचनाओं को साझा करने के लिए कहेगा.

जितेंद्र त्रिपाठी ने आगे कहा, नेपाल को जहां तक संभव हो इस मुद्दे पर टिके रहना चाहिए और उस समय तक भारत पर्याप्त वैक्सीन उपलब्ध कर पाएगा, इस बीच रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों से भी टीके आएंगे. उन्होंने आगे कहा, नेपाल के नियमों के अनुसार गैर-प्रकटीकरण समझौतों पर तभी हस्ताक्षर किए जाते हैं, जब सरकार रक्षा संबंधी सामग्री की खरीद का फैसला करती है और अन्य सभी खरीद के विवरण का खुलासा नेपाल में मौजूदा कानून के अनुसार किया जाना चाहिए.

वहीं, इस तरह के गुप्त समझौते के तहत टीकों की खरीद में प्रमुख मुद्दा यह है कि नेपाल के पास सार्वजनिक खरीद के लिए वर्तमान में इस तरह के सौदों पर हस्ताक्षर करने का कोई दिशानिर्देश नहीं है. एक गैर प्रकटीकरण समझौता क्या है? एक गैर-प्रकटीकरण समझौता एक कानूनी रूप से बाध्यकारी अनुबंध है, जो एक ऑफ-रिकॉर्ड संबंध स्थापित करता है. यदि नेपाल चीन के साथ एक गैर-प्रकटीकरण समझौते पर हस्ताक्षर करता है, तो इसका अर्थ होगा गोपनीयता. दोनों पक्षों में से कोई भी कीमत सहित विवरण का खुलासा नहीं कर सकता है.

पढ़ें-निजी अस्पतालों के कोविड टीकों के आंकड़ों पर मीडिया की खबरें सही नहीं : सरकार

पंत के मुताबिक इस बीच इस बीच की संभावना है कि नेपाल जैसे देशों के लिए ये लागत बहुत महंगी हो सकती है, जैसा कि बेल्ट एंड रोड पहल ने देशों को कर्ज के जाल में फंसाकर किया है. यह चीन चाल है. मेरा मानना ​​है कि चीन संकट का फायदा उठाकर दक्षिण एशिया में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि वह देख रहा है कि भारत बैकफुट पर है और पड़ोसी देशों से टीके की मांग कर रहा है. चीन इस स्थिति का फायदा उठाने के लिए सब कुछ करेगा.

पंत ने कहा कि यह समय अमेरिका के लिए इस क्षेत्र में इस अवसर पर उठने और यह सुनिश्चित करने का है कि दक्षिण एशिया के देश, हिंद महासागर क्षेत्र और बड़ी कमजोरियों वाले छोटे देश भू-राजनीतिक उद्देश्यों के लिए संकट का उपयोग करने की चीनी रणनीति के शिकार न हों. उन्होंने कहा कि चीनी आक्रमण का मुकाबला करने के लिए क्वाड देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की आवश्यकता को गंभीरता से प्राथमिकता देनी चाहिए, जो इस साल के क्वाड शिखर सम्मेलन के एजेंडे का हिस्सा है.

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नेपाल ने सीरम से चार डॉलर प्रति खुराक पर दो मिलियन खुराक खरीदने के लिए सहमति व्यक्त की गई थी और इस सौदे में एक गैर-प्रकटीकरण समझौता शामिल नहीं था. जैसे ही चीन ने एकतरफा सौदों को लागू करने की कोशिश की, बांग्लादेश ने चीनी टीकों को खारिज कर दिया और भारत की कोविशील्ड खुराक पहले प्राप्त की.

नई दिल्ली : एक तरफ जहां पूरी दुनिया कोरोना महामारी (corona pandemic) की खतरनाक लहर का सामना कर रही है, वहीं दूसरी तरफ चीन की वैक्सीन (China's vaccine) रणनीति में कुछ और ही खिचड़ी पक रही है. इस पर पूर्व राजदूत जितेंद्र त्रिपाठी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा, जब पूरी दुनिया कोविड-19 के आतंक से जूझ रही है और खासकर भारत गंभीर स्थिति से गुजर रहा है. वैक्सीन की अनुपलब्धता के कारण एक नई परेशानी खड़ी हो गई है. इस दौरान चीन ने नेपाल को वैक्सीन की पेशकश करना काफी उपयुक्त समझा. चीन नेपाली क्षेत्र में अप्रतिबंधित प्रवेश चाहता है.

पूर्व राजदूत जितेंद्र त्रिपाठी की ईटीवी भारत से खास बातचीत

कोरोना वायरस दुनियाभर में कहर बरपा रहा है. कुछ देशों में संक्रमण पहले की तुलना में और अधिक तेजी से फैल रहा है. पड़ोसी देश नेपाल दो तरह की समस्याओं से जूझ रहा है. एक तो वहां राजनीतिक अस्थिरता चरम पर है और दूसरा कोरोना की दूसरी लहर से समूचे देश को अपनी जकड़ में ले रखा है. ऐसे में चीन ने नेपाल को एक मिलियन से अतिरिक्त वैक्सीन देने की घोषणा की है.

उन्होंने आगे कहा, चीन का टीका कूटनीति नेपाल में बाधा उत्पन्न कर सकता है. नेपाल में टीकों की खरीद उतना आसान नहीं लगता, जितना लगता है. विशेषज्ञों का मानना ​​है कि चीन की शर्त है कि नेपाल वाणिज्यिक खरीद के लिए एक गैर-प्रकटीकरण समझौते पर हस्ताक्षर करें. नेपाल को इस तरह के गैर-प्रकटीकरण समझौतों पर हस्ताक्षर करने पर जोर देते हुए चीन राजनीतिक, कूटनीतिक या यहां तक ​​कि आर्थिक लाभ प्राप्त करने के एवज में टीके उपलब्ध कराकर स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश करेगा.

पढ़ें-भारत में पाए गए कोरोना के वेरिएंट पर ज्यादा प्रभावकारी नहीं है फाइजर : लांसेट

इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए ओआरएफ में रणनीतिक अध्ययन कार्यक्रम के प्रमुख निदेशक, प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा, चीन के पास उन चीजों को करने का रिकॉर्ड है जहां, विभिन्न प्रकार की लागतें जुड़ी हुई हैं. मानवीय प्रयास भी प्रतीत होते हैं.

यह पूछे जाने पर कि चीन द्वारा नेपाल को एक गैर-प्रकटीकरण समझौते पर हस्ताक्षर करने के संभावित कारण क्या हो सकते हैं. पूर्व राजनयिक त्रिपाठी ने कहा, मेरा मानना है कि चीनी फर्मों की इस मदद के पीछे कुछ एजेंडा छिपा हो सकता है, क्योंकि अगर नेपाल गैर-प्रकटीकरण पर हस्ताक्षर करता है तो इस समझौते से कोई न कोई लाभ जरूर होगा. जैसा कि नेपाल किसी भी तरह बस टीके पाना जाता है तो मुमकिन है कि चीनी कंपनियां इसके लिए कुछ नियम, शर्तें और कीमतें तय करेंगीं.

उन्होंने आगे कहा, इस बात की पूरी संभावना है कि कीमतें नकद में नहीं, बल्कि 'वस्तु के रूप में' होंगी. शायद ऐसा करके चीन नेपाल को कुछ रियायतें देने और पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) को कहीं तैनात करने व भारत पर या भारत के खिलाफ अपनी गतिविधियों के साथ-साथ खुफिया सूचनाओं को साझा करने के लिए कहेगा.

जितेंद्र त्रिपाठी ने आगे कहा, नेपाल को जहां तक संभव हो इस मुद्दे पर टिके रहना चाहिए और उस समय तक भारत पर्याप्त वैक्सीन उपलब्ध कर पाएगा, इस बीच रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों से भी टीके आएंगे. उन्होंने आगे कहा, नेपाल के नियमों के अनुसार गैर-प्रकटीकरण समझौतों पर तभी हस्ताक्षर किए जाते हैं, जब सरकार रक्षा संबंधी सामग्री की खरीद का फैसला करती है और अन्य सभी खरीद के विवरण का खुलासा नेपाल में मौजूदा कानून के अनुसार किया जाना चाहिए.

वहीं, इस तरह के गुप्त समझौते के तहत टीकों की खरीद में प्रमुख मुद्दा यह है कि नेपाल के पास सार्वजनिक खरीद के लिए वर्तमान में इस तरह के सौदों पर हस्ताक्षर करने का कोई दिशानिर्देश नहीं है. एक गैर प्रकटीकरण समझौता क्या है? एक गैर-प्रकटीकरण समझौता एक कानूनी रूप से बाध्यकारी अनुबंध है, जो एक ऑफ-रिकॉर्ड संबंध स्थापित करता है. यदि नेपाल चीन के साथ एक गैर-प्रकटीकरण समझौते पर हस्ताक्षर करता है, तो इसका अर्थ होगा गोपनीयता. दोनों पक्षों में से कोई भी कीमत सहित विवरण का खुलासा नहीं कर सकता है.

पढ़ें-निजी अस्पतालों के कोविड टीकों के आंकड़ों पर मीडिया की खबरें सही नहीं : सरकार

पंत के मुताबिक इस बीच इस बीच की संभावना है कि नेपाल जैसे देशों के लिए ये लागत बहुत महंगी हो सकती है, जैसा कि बेल्ट एंड रोड पहल ने देशों को कर्ज के जाल में फंसाकर किया है. यह चीन चाल है. मेरा मानना ​​है कि चीन संकट का फायदा उठाकर दक्षिण एशिया में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि वह देख रहा है कि भारत बैकफुट पर है और पड़ोसी देशों से टीके की मांग कर रहा है. चीन इस स्थिति का फायदा उठाने के लिए सब कुछ करेगा.

पंत ने कहा कि यह समय अमेरिका के लिए इस क्षेत्र में इस अवसर पर उठने और यह सुनिश्चित करने का है कि दक्षिण एशिया के देश, हिंद महासागर क्षेत्र और बड़ी कमजोरियों वाले छोटे देश भू-राजनीतिक उद्देश्यों के लिए संकट का उपयोग करने की चीनी रणनीति के शिकार न हों. उन्होंने कहा कि चीनी आक्रमण का मुकाबला करने के लिए क्वाड देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की आवश्यकता को गंभीरता से प्राथमिकता देनी चाहिए, जो इस साल के क्वाड शिखर सम्मेलन के एजेंडे का हिस्सा है.

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नेपाल ने सीरम से चार डॉलर प्रति खुराक पर दो मिलियन खुराक खरीदने के लिए सहमति व्यक्त की गई थी और इस सौदे में एक गैर-प्रकटीकरण समझौता शामिल नहीं था. जैसे ही चीन ने एकतरफा सौदों को लागू करने की कोशिश की, बांग्लादेश ने चीनी टीकों को खारिज कर दिया और भारत की कोविशील्ड खुराक पहले प्राप्त की.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.