ETV Bharat / bharat

पहाड़ों ने हमेशा फोटोग्राफरों को किया आकर्षित

पहाड़ों के आकर्षक फोटो दुनियाभर में पसंद किए जाते हैं. मसूरी की पहाड़ियों पर फोटो खींचकर यहां की खूबसूरती को दुनियाभर में दिखाने में कई फोटोग्राफरों का हाथ रहा है. चाहे वह मसूरी के फोटो स्टूडियो हों या देहरादून के सभी की इसमें अहम भूमिका रही है. जानिए पहाड़ों की खूबसूरती को कैमरे में कैद करने वाले फोटोग्राफर और स्टूडियो के बारे में प्रसिद्ध लेखक गणेश सैली क्या लिखते हैं.

THE WRONG END OF THE CAMERA
पहाड़ों ने हमेशा फोटोग्राफरों को किया आकर्षित
author img

By

Published : Sep 24, 2022, 5:20 PM IST

Updated : Sep 24, 2022, 5:33 PM IST

देहरादून : पहाड़ों ने हमेशा ही फोटोग्राफरों को अपनी ओर आकर्षित किया है. यही वजह है कि ब्रिटिश फोटोग्राफर सैमुअल बॉर्न ने जुलाई 1853 में प्राचीन मॉल रोड की एक छवि को कैमरे में कैद करने के लिए बैसेट हॉल के ऊपर की पहाड़ी पर चढ़ाई की थी. इसके तुरंत बाद ही 29 वर्षीय बैंक क्लर्क अल्फ्रेड रस्ट भी यहां पहुंचे थे. वहीं बाद में अल्फ्रेड रस्ट के बेटे जूलियन रस्ट ने अपना स्टूडियो, लॉक स्टॉक और बैरल को किन्से ब्रदर्स को बेच दिया था. इसके दस्तावेज कलेक्टर ऑफिस में मौजूद होंगे.

इसी कड़ी में आगे रीजेंट हाउस के भूतल पर आपको डीएस बोरा एंड संस मिलेगा. इनके पास देहरादून के कनॉट प्लेस में हिल स्टूडियो भी है. वहीं, लॉकडाउन के दौरान मसूरी की पुरानी तस्वीरों की मेरी अंतहीन खोज ने मुझे प्रसिद्ध धर्म सिंह बोरा की सबसे छोटी बेटी विनीता के साथ बातचीत करने के लिए प्रेरित किया, जो अब मुंबई में रह रही हैं. उन्होंने बताया कि हमारे पास फोटो के निगेटिव से पूरा कमरा भरा पड़ा था, लेकिन सब कुछ खो गया क्योंकि हमारे भाइयों ने पिता के व्यवसाय में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. लंबी सांस भरते हुए उन्होंने कहा कि हम उस समय यह सब जानने के लिए बहुत छोटे थे.

वहीं नवविवाहित जोड़ों के उनके अद्भुत स्टूडियो चित्रों ने इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया के 'दे वर वेड' (They were Wed) पेज में अपना स्थान बनाया था. क्यूरेटर बीके जोशी जो कि दून पुस्तकालय के मानद सचिव थे वह बारलोगंज में पले बढ़े थे. उन्होंने मुझे बताया कि उनकी दुकान की खिड़की पर धरम सिंह बोरा की बेहतरीन तस्वीरें लगी हुई थीं. उन दिनों, स्टूडियो में फोटो लेने का मतलब था इसके लिए तैयार होना. आप कैसे दिखेंगे ये उस पर निर्भर करता था, जो आपका फोटो खींच रहा है. वह एक कुशल कलाकार थे, जो घंटों सीट को व्यवस्थित और पुनर्व्यवस्थित करते थे, सर्वोत्तम प्रोफ़ाइल चुनते थे, और पूरी तरह से संतुष्ट होने तक फ्लैश लाइट को ठीक करते थे. यही वजह है कि पूरी प्रक्रिया में अक्सर काफी समय लगता था, लेकिन तब भी न तो फोटोग्राफर और न ही फोटो के लिए बैठे व्यक्ति को कोई बड़ी जल्दबाजी होती थी.

उनके सभी फोटो को पतले पेंट ब्रश और काली स्याही या पेंसिल से अच्छी तरह तराश कर कार्डबोर्ड पर लगाया गया था. यही उनकी विशेषता स्कूल की ग्रुप तस्वीरों में थी. वहीं हर साल शिक्षा सत्र समाप्त होने से ठीक पहले स्टूडेंट स्कूली ड्रेस पहनकर ग्रुप फोटो खिंचवाना पसंद करते थे. उसके लिए बड़े कैमरे और स्टैंड की जरूरत होती थी, साथ में अन्य कई सामान भी स्कूल लाए जाते थे. इन्हें उठाने के लिए भी एक व्यक्ति अलग से साथ होता था. जैसे ही वह अपना कैमरा सेट करते, हमें एक साफ-सुथरी व्यवस्थित व्यवस्था में बैठने के लिए कहा जाता. सबसे पहले कुछ बच्चे जमीन में बैठते, उसके पीछे कुर्सियां होती थीं, जिन शिक्षक और अन्य स्टॉफ बैठता, फिर कुर्सियों के पीछे लंबे बच्चे खड़े होते.

फिर, कैमरे को ढंकने के लिए एक काले कपड़े की मदद ली जाती, ताकि बेहतर तस्वीर आ सके. फोटो क्लिक करने से पहले फोटोग्राफर अपने हिसाब से लोगों को एडजस्ट करते थे. इसके साथ ही सभी से कहा जाता कि अपने बाल अच्छी तरह से संवार लें, ताकि बेहतर फोटो आए. फोटोग्राफर सभी को कैमरे की ओर देखने के लिए कहते. इस दौरान पूरी तरह से खामोशी होती, जिसे कैमरे की क्लिक का इंतजार रहता. फिर जादुई शब्द गूंजते 'स्माइल, प्लीज' और शटर क्लिक.

ऐसे ही एक फोटोग्राफर ईश्वर लाल तनेजा लंढौर में थे, जो बंटवारे के बाद मुल्तान से यहां आए थे. हमेशा भूरी सलवार-कमीज पहनने वाले तनेजा पहाड़ी लोगों की छवियां क्लिक करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे. वह ऐसे फोटोग्राफर थे, जो हिल स्टेशन पर पहली बार रंगीन प्रिंट लाए थे. इतना ही नहीं उनके शोकेस में उनके मित्र सरन लाल कपूर की फोटो थी. कपूर रेमिंगटन टाइपराइटर रिपेयर शॉप के मालिक थे. वह हाथ में स्टिक लिए हुए थे. उस दौरान पिक्चर पैलेस में यूनियन चर्च के पास तीन फीट ऊंचे बर्फ के टीले थे. मुझे वह दिन याद है जब डाक से प्रिंट आया था. इस दौरान आधा शहर उनके फोटो स्टूडियो को देखने के लिए उमड़ पड़ा था. एक साथ अक्सर सैर पर जाने वाले दोनों दोस्तों की विचारधारा 1962 के चीनी आक्रमण के दौरान अलग हो गई. तनेजा की वामपंथी सोच कपूर के उदार विचारों से टकरा गई. नतीजा यह हुआ कि एक पल को हमेशा के लिए संजोकर रखना इन कलाकारों के लिए एक बटन के एक क्लिक से कहीं अधिक था, जिन्होंने कैमरे के पीछे इतना वक्त बिताया.

ये भी पढ़ें - फेयरलॉन पैलेस : नेपाल के निर्वासित प्रधानमंत्री देव शमशेर राणा ने मसूरी को बनाया था अपना दूसरा घर

देहरादून : पहाड़ों ने हमेशा ही फोटोग्राफरों को अपनी ओर आकर्षित किया है. यही वजह है कि ब्रिटिश फोटोग्राफर सैमुअल बॉर्न ने जुलाई 1853 में प्राचीन मॉल रोड की एक छवि को कैमरे में कैद करने के लिए बैसेट हॉल के ऊपर की पहाड़ी पर चढ़ाई की थी. इसके तुरंत बाद ही 29 वर्षीय बैंक क्लर्क अल्फ्रेड रस्ट भी यहां पहुंचे थे. वहीं बाद में अल्फ्रेड रस्ट के बेटे जूलियन रस्ट ने अपना स्टूडियो, लॉक स्टॉक और बैरल को किन्से ब्रदर्स को बेच दिया था. इसके दस्तावेज कलेक्टर ऑफिस में मौजूद होंगे.

इसी कड़ी में आगे रीजेंट हाउस के भूतल पर आपको डीएस बोरा एंड संस मिलेगा. इनके पास देहरादून के कनॉट प्लेस में हिल स्टूडियो भी है. वहीं, लॉकडाउन के दौरान मसूरी की पुरानी तस्वीरों की मेरी अंतहीन खोज ने मुझे प्रसिद्ध धर्म सिंह बोरा की सबसे छोटी बेटी विनीता के साथ बातचीत करने के लिए प्रेरित किया, जो अब मुंबई में रह रही हैं. उन्होंने बताया कि हमारे पास फोटो के निगेटिव से पूरा कमरा भरा पड़ा था, लेकिन सब कुछ खो गया क्योंकि हमारे भाइयों ने पिता के व्यवसाय में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. लंबी सांस भरते हुए उन्होंने कहा कि हम उस समय यह सब जानने के लिए बहुत छोटे थे.

वहीं नवविवाहित जोड़ों के उनके अद्भुत स्टूडियो चित्रों ने इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया के 'दे वर वेड' (They were Wed) पेज में अपना स्थान बनाया था. क्यूरेटर बीके जोशी जो कि दून पुस्तकालय के मानद सचिव थे वह बारलोगंज में पले बढ़े थे. उन्होंने मुझे बताया कि उनकी दुकान की खिड़की पर धरम सिंह बोरा की बेहतरीन तस्वीरें लगी हुई थीं. उन दिनों, स्टूडियो में फोटो लेने का मतलब था इसके लिए तैयार होना. आप कैसे दिखेंगे ये उस पर निर्भर करता था, जो आपका फोटो खींच रहा है. वह एक कुशल कलाकार थे, जो घंटों सीट को व्यवस्थित और पुनर्व्यवस्थित करते थे, सर्वोत्तम प्रोफ़ाइल चुनते थे, और पूरी तरह से संतुष्ट होने तक फ्लैश लाइट को ठीक करते थे. यही वजह है कि पूरी प्रक्रिया में अक्सर काफी समय लगता था, लेकिन तब भी न तो फोटोग्राफर और न ही फोटो के लिए बैठे व्यक्ति को कोई बड़ी जल्दबाजी होती थी.

उनके सभी फोटो को पतले पेंट ब्रश और काली स्याही या पेंसिल से अच्छी तरह तराश कर कार्डबोर्ड पर लगाया गया था. यही उनकी विशेषता स्कूल की ग्रुप तस्वीरों में थी. वहीं हर साल शिक्षा सत्र समाप्त होने से ठीक पहले स्टूडेंट स्कूली ड्रेस पहनकर ग्रुप फोटो खिंचवाना पसंद करते थे. उसके लिए बड़े कैमरे और स्टैंड की जरूरत होती थी, साथ में अन्य कई सामान भी स्कूल लाए जाते थे. इन्हें उठाने के लिए भी एक व्यक्ति अलग से साथ होता था. जैसे ही वह अपना कैमरा सेट करते, हमें एक साफ-सुथरी व्यवस्थित व्यवस्था में बैठने के लिए कहा जाता. सबसे पहले कुछ बच्चे जमीन में बैठते, उसके पीछे कुर्सियां होती थीं, जिन शिक्षक और अन्य स्टॉफ बैठता, फिर कुर्सियों के पीछे लंबे बच्चे खड़े होते.

फिर, कैमरे को ढंकने के लिए एक काले कपड़े की मदद ली जाती, ताकि बेहतर तस्वीर आ सके. फोटो क्लिक करने से पहले फोटोग्राफर अपने हिसाब से लोगों को एडजस्ट करते थे. इसके साथ ही सभी से कहा जाता कि अपने बाल अच्छी तरह से संवार लें, ताकि बेहतर फोटो आए. फोटोग्राफर सभी को कैमरे की ओर देखने के लिए कहते. इस दौरान पूरी तरह से खामोशी होती, जिसे कैमरे की क्लिक का इंतजार रहता. फिर जादुई शब्द गूंजते 'स्माइल, प्लीज' और शटर क्लिक.

ऐसे ही एक फोटोग्राफर ईश्वर लाल तनेजा लंढौर में थे, जो बंटवारे के बाद मुल्तान से यहां आए थे. हमेशा भूरी सलवार-कमीज पहनने वाले तनेजा पहाड़ी लोगों की छवियां क्लिक करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे. वह ऐसे फोटोग्राफर थे, जो हिल स्टेशन पर पहली बार रंगीन प्रिंट लाए थे. इतना ही नहीं उनके शोकेस में उनके मित्र सरन लाल कपूर की फोटो थी. कपूर रेमिंगटन टाइपराइटर रिपेयर शॉप के मालिक थे. वह हाथ में स्टिक लिए हुए थे. उस दौरान पिक्चर पैलेस में यूनियन चर्च के पास तीन फीट ऊंचे बर्फ के टीले थे. मुझे वह दिन याद है जब डाक से प्रिंट आया था. इस दौरान आधा शहर उनके फोटो स्टूडियो को देखने के लिए उमड़ पड़ा था. एक साथ अक्सर सैर पर जाने वाले दोनों दोस्तों की विचारधारा 1962 के चीनी आक्रमण के दौरान अलग हो गई. तनेजा की वामपंथी सोच कपूर के उदार विचारों से टकरा गई. नतीजा यह हुआ कि एक पल को हमेशा के लिए संजोकर रखना इन कलाकारों के लिए एक बटन के एक क्लिक से कहीं अधिक था, जिन्होंने कैमरे के पीछे इतना वक्त बिताया.

ये भी पढ़ें - फेयरलॉन पैलेस : नेपाल के निर्वासित प्रधानमंत्री देव शमशेर राणा ने मसूरी को बनाया था अपना दूसरा घर

Last Updated : Sep 24, 2022, 5:33 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.