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राज्यसभा में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (संशोधन) विधेयक पारित - नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च संशोधन विधेयक

राज्यसभा में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (संशोधन) विधेयक पारित हो गया है.

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Published : Dec 9, 2021, 5:28 PM IST

Updated : Dec 9, 2021, 6:49 PM IST

नई दिल्ली : राज्यसभा में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (संशोधन) विधेयक पारित हो गया है.

विभिन्न दलों के सदस्यों ने यह विचार राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान संशोधन विधेयक 2021 पर चर्चा में भाग लेते हुए व्यक्त किए. इससे पहले विधेयक को चर्चा एवं पारित करने के लिए पेश करते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि देश में फार्मा एक विकसित क्षेत्र बन गया है. उन्होंने कहा कि इस समय करीब 10 हजार से अधिक फार्मा कंपनी भारत में हैं और कई भारतीय कंपनियां विश्व में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरह काम कर रही हैं.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (संशोधन) विधेयक पारित

उन्होंने कहा कि अब इस बात की आवश्यकता महसूस की जा रही है कि भारत की जरूरत के अनुसार फार्मा क्षेत्र में विकास और अनुसंधान कार्य किए जाएं. उन्होंने कहा कि फार्मा क्षेत्र में शिक्षा और अनुसंधान के मकसद से राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान को स्थापित किया गया था.

उन्होंने कहा कि पहले इस संस्थान को पंजाब के मोहाली में स्थापित किया गया था और बाद में देश में ऐसे छह और संस्थान खोले गये. उन्होंने कहा कि इस संशोधन विधेयक का मकसद फार्मा शिक्षा में समन्वय लाना है.

स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि बड़ी फार्मा कंपनियों के पास अपने अनुसंधान केंद्र होते हैं किंतु छोटी फार्मा कंपनियों के पास यह सुविधा नहीं होती. उन्होंने कहा कि इस विधेयक में ऐसे प्रावधान किए गये हैं कि लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योग (एमएसएमई) कंपनियां अपने अनुसंधान कार्यों एवं समस्याओं के लिए राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान से संपर्क कर उसकी मदद ले सकती हैं.

विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के नीरज डांगी ने कहा कि यह आवश्यकता महसूस की जा रही है कि भारत की जरूरतों के अनुसार देश के फार्मा क्षेत्र में अनुसंधान कार्य किए जाएं. उन्होंने कहा कि आज भारत सस्ती जेनरिक दवाओं का उत्पादन कर विश्व की जरूरतों को पूरा कर रहा है.

उन्होंने कहा कि लिए राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान की सातों इकाइयों में सीटों को बढ़ाया जाना चाहिए ताकि अधिक लोगों को फार्मा शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिल सके. उन्होंने कहा कि इस संस्थान के निदेशक मंडल में एक अनुसूचित जाति या जनजाति वर्ग का सदस्य होना चाहिए.

डांगी ने कहा कि कोरोना-19 महामारी के बाद देश ने इस बात को समझ लिया है कि फार्मा क्षेत्र की शिक्षा और अनुसंधान में काफी काम किए जाने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के लिए अधिक बजट दिया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान की स्थापना अन्य राज्यों में भी की जानी चाहिए.

डांगी ने आरोप लगाया कि पिछले सात सालों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय सहित राष्ट्रीय महत्व के शिक्षा संस्थानों में ‘‘सत्तावादी हमलों’’ में बहुत वृद्धि हुई जिनका उद्देश्य लोकतंत्र की संस्कृति को समाप्त करना और असंतोष की आवाज को कुचलना है. उन्होंने कहा कि राजग की उपलब्धियों का यदि विश्लेषण करें तो यह पाते हैं कि भाजपा की ‘लोकतंत्र पर हमले’ की शैली रही है.

पढ़ें :- जननीय प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक को संसद की मंजूरी, सरोगेसी (विनियमन) विधेयक रास में पारित

उन्होंने कहा कि भाजपा नीत केंद्र सरकार ने शिक्षा का व्यावसायीकरण, केंद्रीकरण और निजीकरण किया है. उन्होंने कहा कि उसका उद्देश्य शिक्षा को नियंत्रण से मुक्त करना और निजी पूंजी के मार्ग को प्रशस्त करना है.

कांग्रेस सदस्य ने दावा किया कि राजग सरकार ने शोध कार्य के मूल सिद्धांतों को पूरी तरह समाप्त कर दिया है. उन्होंने कहा कि जेएनयू एवं अन्य संस्थानों में सीटों में कटौती से शोध कार्यों पर प्रतिकूल असर पड़ा है. उन्होंने दावा किया कि अनुसंधान कार्यों को समाप्त करने का काम एक रणनीति के तहत हो रहा है.

डांगी ने कहा कि विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों में संकाय की काफी कमी है जिससे अनुसंधान कार्य प्रभावित हो रहे हैं.

सपा के रामगोपाल यादव ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि विधेयक में राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान को राष्ट्रीय महत्व की संस्था का दर्जा देने का प्रावधान है. उन्होंने कहा कि जब भी किसी संस्था को पूर्व में यह दर्जा दिया गया तो उसमें अन्य पिछड़ा वर्ग तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति का आरक्षण समाप्त कर दिया गया.

उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री से पूछा कि क्या विधेयक के कानून बनने के बाद राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान में भी ऐसा ही होने जा रहा है? उन्होंने कहा कि इस संस्थान से संबंधित परिषद में अन्य पिछड़ा वर्ग तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग का एक सदस्य रखा जाना चाहिए.

भाजपा के अनिल जैन ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि कोरोना महामारी के बाद देश में जो सातों राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान हैं, उनको राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा दिया जाना और भी जरूरी हो गया है. अभी तक यह दर्जा केवल मोहाली स्थित संस्थान को ही प्राप्त है.

पढ़ें :- लोकसभा में एक टिप्पणी को लेकर थरूर और दुबे के बीच वार-पलटवार

उन्होंने कहा कि भारत को न केवल दवाओं के उत्पादन बल्कि दवाओं के अनुसंधान के क्षेत्र में सिरमौर बनाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है. उन्होंने कहा कि इस सपने को पूरा करने में यह विधेयक कानून बनने के बाद महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.

तृणमूल कांग्रेस के अबीर रंजन विश्वास ने कहा कि राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान को केवल राष्ट्रीय महत्व का दर्जा देने से काम नहीं चलेगा बल्कि इनको संकाय सहित अन्य सुविधाएं भी समय रहते देना होगा. उन्होंने कहा कि इस विधेयक में इस बात का निर्देश होना चाहिए कि निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों में दी जा रही फार्मा क्षेत्र की शिक्षा में एकरूपता हो.

द्रमुक सदस्य के आर एन राजेश कुमार ने तमिल में अपनी बात रखी और फार्मा क्षेत्र में अनुसंधान की आवश्यकताओं पर बल दिया.

बता दें कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (संशोधन) विधेयक, 2021, जिसे 15 मार्च, 2021 को लोकसभा में पेश किया गया था, की रासायनिक और उर्वरक पर स्थायी समिति द्वारा जांच की गई और इसकी रिपोर्ट 4 अगस्त, 2021 को संसद में पेश की गई. विधेयक छह अतिरिक्त राष्ट्रीय औषधि शिक्षा और अनुसंधान संस्थान को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान घोषित करता है. विधेयक में फार्मास्युटिकल शिक्षा और अनुसंधान और मानकों के रखरखाव के विकास को सुनिश्चित करने के लिए विधेयक के तहत संस्थानों के बीच गतिविधियों का समन्वय करने के लिए एक परिषद बनाने का प्रावधान है.

(एजेंसी इनपुट)

नई दिल्ली : राज्यसभा में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (संशोधन) विधेयक पारित हो गया है.

विभिन्न दलों के सदस्यों ने यह विचार राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान संशोधन विधेयक 2021 पर चर्चा में भाग लेते हुए व्यक्त किए. इससे पहले विधेयक को चर्चा एवं पारित करने के लिए पेश करते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि देश में फार्मा एक विकसित क्षेत्र बन गया है. उन्होंने कहा कि इस समय करीब 10 हजार से अधिक फार्मा कंपनी भारत में हैं और कई भारतीय कंपनियां विश्व में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरह काम कर रही हैं.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (संशोधन) विधेयक पारित

उन्होंने कहा कि अब इस बात की आवश्यकता महसूस की जा रही है कि भारत की जरूरत के अनुसार फार्मा क्षेत्र में विकास और अनुसंधान कार्य किए जाएं. उन्होंने कहा कि फार्मा क्षेत्र में शिक्षा और अनुसंधान के मकसद से राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान को स्थापित किया गया था.

उन्होंने कहा कि पहले इस संस्थान को पंजाब के मोहाली में स्थापित किया गया था और बाद में देश में ऐसे छह और संस्थान खोले गये. उन्होंने कहा कि इस संशोधन विधेयक का मकसद फार्मा शिक्षा में समन्वय लाना है.

स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि बड़ी फार्मा कंपनियों के पास अपने अनुसंधान केंद्र होते हैं किंतु छोटी फार्मा कंपनियों के पास यह सुविधा नहीं होती. उन्होंने कहा कि इस विधेयक में ऐसे प्रावधान किए गये हैं कि लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योग (एमएसएमई) कंपनियां अपने अनुसंधान कार्यों एवं समस्याओं के लिए राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान से संपर्क कर उसकी मदद ले सकती हैं.

विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के नीरज डांगी ने कहा कि यह आवश्यकता महसूस की जा रही है कि भारत की जरूरतों के अनुसार देश के फार्मा क्षेत्र में अनुसंधान कार्य किए जाएं. उन्होंने कहा कि आज भारत सस्ती जेनरिक दवाओं का उत्पादन कर विश्व की जरूरतों को पूरा कर रहा है.

उन्होंने कहा कि लिए राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान की सातों इकाइयों में सीटों को बढ़ाया जाना चाहिए ताकि अधिक लोगों को फार्मा शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिल सके. उन्होंने कहा कि इस संस्थान के निदेशक मंडल में एक अनुसूचित जाति या जनजाति वर्ग का सदस्य होना चाहिए.

डांगी ने कहा कि कोरोना-19 महामारी के बाद देश ने इस बात को समझ लिया है कि फार्मा क्षेत्र की शिक्षा और अनुसंधान में काफी काम किए जाने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के लिए अधिक बजट दिया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान की स्थापना अन्य राज्यों में भी की जानी चाहिए.

डांगी ने आरोप लगाया कि पिछले सात सालों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय सहित राष्ट्रीय महत्व के शिक्षा संस्थानों में ‘‘सत्तावादी हमलों’’ में बहुत वृद्धि हुई जिनका उद्देश्य लोकतंत्र की संस्कृति को समाप्त करना और असंतोष की आवाज को कुचलना है. उन्होंने कहा कि राजग की उपलब्धियों का यदि विश्लेषण करें तो यह पाते हैं कि भाजपा की ‘लोकतंत्र पर हमले’ की शैली रही है.

पढ़ें :- जननीय प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक को संसद की मंजूरी, सरोगेसी (विनियमन) विधेयक रास में पारित

उन्होंने कहा कि भाजपा नीत केंद्र सरकार ने शिक्षा का व्यावसायीकरण, केंद्रीकरण और निजीकरण किया है. उन्होंने कहा कि उसका उद्देश्य शिक्षा को नियंत्रण से मुक्त करना और निजी पूंजी के मार्ग को प्रशस्त करना है.

कांग्रेस सदस्य ने दावा किया कि राजग सरकार ने शोध कार्य के मूल सिद्धांतों को पूरी तरह समाप्त कर दिया है. उन्होंने कहा कि जेएनयू एवं अन्य संस्थानों में सीटों में कटौती से शोध कार्यों पर प्रतिकूल असर पड़ा है. उन्होंने दावा किया कि अनुसंधान कार्यों को समाप्त करने का काम एक रणनीति के तहत हो रहा है.

डांगी ने कहा कि विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों में संकाय की काफी कमी है जिससे अनुसंधान कार्य प्रभावित हो रहे हैं.

सपा के रामगोपाल यादव ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि विधेयक में राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान को राष्ट्रीय महत्व की संस्था का दर्जा देने का प्रावधान है. उन्होंने कहा कि जब भी किसी संस्था को पूर्व में यह दर्जा दिया गया तो उसमें अन्य पिछड़ा वर्ग तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति का आरक्षण समाप्त कर दिया गया.

उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री से पूछा कि क्या विधेयक के कानून बनने के बाद राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान में भी ऐसा ही होने जा रहा है? उन्होंने कहा कि इस संस्थान से संबंधित परिषद में अन्य पिछड़ा वर्ग तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग का एक सदस्य रखा जाना चाहिए.

भाजपा के अनिल जैन ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि कोरोना महामारी के बाद देश में जो सातों राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान हैं, उनको राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा दिया जाना और भी जरूरी हो गया है. अभी तक यह दर्जा केवल मोहाली स्थित संस्थान को ही प्राप्त है.

पढ़ें :- लोकसभा में एक टिप्पणी को लेकर थरूर और दुबे के बीच वार-पलटवार

उन्होंने कहा कि भारत को न केवल दवाओं के उत्पादन बल्कि दवाओं के अनुसंधान के क्षेत्र में सिरमौर बनाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है. उन्होंने कहा कि इस सपने को पूरा करने में यह विधेयक कानून बनने के बाद महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.

तृणमूल कांग्रेस के अबीर रंजन विश्वास ने कहा कि राष्ट्रीय फार्मास्यूटिक्लस शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान को केवल राष्ट्रीय महत्व का दर्जा देने से काम नहीं चलेगा बल्कि इनको संकाय सहित अन्य सुविधाएं भी समय रहते देना होगा. उन्होंने कहा कि इस विधेयक में इस बात का निर्देश होना चाहिए कि निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों में दी जा रही फार्मा क्षेत्र की शिक्षा में एकरूपता हो.

द्रमुक सदस्य के आर एन राजेश कुमार ने तमिल में अपनी बात रखी और फार्मा क्षेत्र में अनुसंधान की आवश्यकताओं पर बल दिया.

बता दें कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (संशोधन) विधेयक, 2021, जिसे 15 मार्च, 2021 को लोकसभा में पेश किया गया था, की रासायनिक और उर्वरक पर स्थायी समिति द्वारा जांच की गई और इसकी रिपोर्ट 4 अगस्त, 2021 को संसद में पेश की गई. विधेयक छह अतिरिक्त राष्ट्रीय औषधि शिक्षा और अनुसंधान संस्थान को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान घोषित करता है. विधेयक में फार्मास्युटिकल शिक्षा और अनुसंधान और मानकों के रखरखाव के विकास को सुनिश्चित करने के लिए विधेयक के तहत संस्थानों के बीच गतिविधियों का समन्वय करने के लिए एक परिषद बनाने का प्रावधान है.

(एजेंसी इनपुट)

Last Updated : Dec 9, 2021, 6:49 PM IST
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