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बंगाल : कभी पीतल के बर्तन बनाने का था हब, अब दाे जून राेटी जुटाना मुश्किल - Bengal

केंजाकुरा, पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले में बसी एक बस्ती है. केंजाकुरा के पीतल के बर्तन इसे राज्य में एक विशिष्ट पहचान दिलाता था लेकिन समय के साथ यहां लाेगाें ने बांस और बेंत की चीजें बनानी शुरू की लेकिन काेराेना की वजह से अब उससे भी दाे वक्त की राेटी जुटाना मुश्किल हाे रहा है.

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Published : Jun 8, 2021, 11:14 AM IST

Updated : Jun 8, 2021, 1:00 PM IST

बांकुड़ा (पश्चिम बंगाल) : पश्चिम बंगाल के इस गांव को छोटे और मध्यम स्तर के उद्यमों से जोड़ा गया है. ज्यादातर लाेग स्थानीय भाषा में पीतल के बर्तन या 'कंशर बाशोन' बनाने से जुड़े थे. ग्रामीणों का कहना है कि उनकी दिनचर्या की शुरुआत इसी से हाेती थी. पीतल की बर्तनों पर दस्तकारी का काम किया जाता था और फिर इस हद तक पॉलिश की जाती थी कि इस पर आंखे नहीं ठहरती.

शिल्पकाराें का कहना है कि केंजाकुरा में लगभग 300 इकाइयां थीं जहां पीतल के बर्तन बनाए जाते थे. आज यह संख्या घटकर मात्र 50 रह गई है और इनमें से कई इकाइयों के पास प्रतिदिन कार्य नहीं हाेते.

पीतल के बर्तनों का बंगाल के साथ-साथ देश के अन्य राज्यों में भी व्यापक बाजार था. अब गांव से लेकर शहर तक स्टेनलेस स्टील, फाइबर, बोन चाइना के बर्तन का इस्तेमाल हाेता है. यहां लाेगाें ने बेंत और बांस की चीजें बनाना शुरू किया और इससे अपना गुजर बसर कर रहे थे लेकिन काेराेना महामारी की वजह से इसकी बिक्री कम हाे गई.

काेराेना की वजह से दूसरे गांव में इन्हें जाने नहीं दिया जाता इस वजह से बिक्री नहीं हाे पा रही है. लाेगाें काे दाे वक्त राेटी जुटाना भी मुश्किल हाे रहा है.

इसे भी पढ़ें : स्वच्छ पेयजल तक लाेगाें की पहुंच काेराेना से प्रभावित

केंजाकुरा के शिल्पकार अब अपने कुछ दुखों को दूर करने के लिए कुछ सरकारी सहायता की उम्मीद कर रहे हैं.

बांकुड़ा (पश्चिम बंगाल) : पश्चिम बंगाल के इस गांव को छोटे और मध्यम स्तर के उद्यमों से जोड़ा गया है. ज्यादातर लाेग स्थानीय भाषा में पीतल के बर्तन या 'कंशर बाशोन' बनाने से जुड़े थे. ग्रामीणों का कहना है कि उनकी दिनचर्या की शुरुआत इसी से हाेती थी. पीतल की बर्तनों पर दस्तकारी का काम किया जाता था और फिर इस हद तक पॉलिश की जाती थी कि इस पर आंखे नहीं ठहरती.

शिल्पकाराें का कहना है कि केंजाकुरा में लगभग 300 इकाइयां थीं जहां पीतल के बर्तन बनाए जाते थे. आज यह संख्या घटकर मात्र 50 रह गई है और इनमें से कई इकाइयों के पास प्रतिदिन कार्य नहीं हाेते.

पीतल के बर्तनों का बंगाल के साथ-साथ देश के अन्य राज्यों में भी व्यापक बाजार था. अब गांव से लेकर शहर तक स्टेनलेस स्टील, फाइबर, बोन चाइना के बर्तन का इस्तेमाल हाेता है. यहां लाेगाें ने बेंत और बांस की चीजें बनाना शुरू किया और इससे अपना गुजर बसर कर रहे थे लेकिन काेराेना महामारी की वजह से इसकी बिक्री कम हाे गई.

काेराेना की वजह से दूसरे गांव में इन्हें जाने नहीं दिया जाता इस वजह से बिक्री नहीं हाे पा रही है. लाेगाें काे दाे वक्त राेटी जुटाना भी मुश्किल हाे रहा है.

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केंजाकुरा के शिल्पकार अब अपने कुछ दुखों को दूर करने के लिए कुछ सरकारी सहायता की उम्मीद कर रहे हैं.

Last Updated : Jun 8, 2021, 1:00 PM IST
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