श्रीनगर: 'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म (The Kashmir Files movie ) इन दिनों काफी चर्चा में है. इस फिल्म के कारण कश्मीरी पंडितों के विस्थापन और मरने वालों की संख्या पर बहस छिड़ गयी है. निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की इस फिल्म को कई राज्यों में टैक्स-फ्री दिखाया जा रहा है. लेखक सलिल त्रिपाठी ने अपने ट्विटर हैंडल पर श्रीनगर जिला पुलिस मुख्यालय से सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत प्राप्त जानकारी पोस्ट किया जिसमें कहा गया, 'तो आप तथ्य चाहते थे? हर नागरिक की मौत एक त्रासदी है. हर अतिशयोक्तिपूर्ण अलंकरण एक झूठ है.'
ये ट्वीट जंगल की आग की तरह फैल गया और सभी ने कश्मीरी पंडितों की मौत पर सवाल उठाने शुरू कर दिये. दिलचस्प बात यह है कि पिछले साल ईटीवी भारत ने भी इस आरटीआई के बारे में रिपोर्ट दी थी. पिछले साल 27 नवंबर को श्रीनगर जिला पुलिस मुख्यालय ने एक आरटीआई के जवाब में दावा किया था कि पिछले तीन दशकों में आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर में 89 कश्मीरी पंडितों सहित 1,724 लोगों की हत्या की है.
हरियाणा के समालखा (पानीपत) के एक आरटीआई कार्यकर्ता पीपी कपूर के एक सवाल के जवाब में श्रीनगर जिला पुलिस मुख्यालय के एक डीएसपी ने कहा, '1990 में आतंकवाद की शुरुआत के बाद से 89 कश्मीरी पंडित मारे गए हैं, जबकि इसी अवधि के दौरान अन्य धर्मों के 1,635 लोग मारे गए. कपूर ने ईटीवी भारत को बताया, 'कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा मारे गए लोगों में से लगभग पांच प्रतिशत कश्मीरी पंडित हैं. अधिकारियों ने अभी तक पुनर्वासित कश्मीरी पंडितों की संख्या के बारे में जानकारी नहीं दी है.'
उन्होंने कहा, 'भाजपा कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ नहीं कर रही है. वे केवल उनके नाम पर राजनीति कर रहे हैं. सूचना सभी तक पहुंचनी चाहिए ताकि किसी गैर-हिंदू को कठिनाइयों का सामना न करना पड़े.' उन्होंने आगे कहा, 'घाटी में आतंकवाद की शुरुआत के बाद से लगभग 1.54 लाख लोगों में शामिल हिंदुओं, मुसलमानों और सिखों ने घाटी छोड़ दी है. जबकि 81,448 हिंदू, 949 मुस्लिम और 1,542 सिख सरकार से सहायता प्राप्त नहीं कर रहे थे.'
कपूर की दूसरी आरटीआई के जवाब में जम्मू-कश्मीर के राहत और पुनर्वास आयुक्त कार्यालय के आंकड़ों से पता चलता है कि आतंकवाद के कारण घाटी से पलायन करने वाले 1.54 लाख लोगों में से 88 प्रतिशत (1.35 लाख लोग) कश्मीरी पंडित थे. कश्मीरी पंडितों को केंद्र और राज्य सरकार द्वारा वित्तीय सहायता सहित प्रदान की जाने वाली अन्य दूसरी सुविधाओं के बारे में एक सवाल के जवाब में यह कहा गया कि प्रत्येक पंजीकृत कश्मीरी प्रवासी को 3,250 रुपये का मासिक भत्ता मिलता है. साथ ही नौ किलो चावल, दो किलो आटा और एक किलो चीनी भी दिया जाता है.
कश्मीर का राजनीतिक इतिहास पुस्तक में एम. रसगुत्रा लिखते हैं, '1990 में 300000 पंडित पुरुष, महिलाएं और बच्चे आतंकवादियों की धमकियों के कारण घाटी से भाग गए और वे जम्मू सहित अन्य जगहों पर संगठित शरणार्थी शिविरों में रहने लगे.' रसगुत्रा के दावों का विरोध करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार खालिद बशीर अहमद ने अपनी पुस्तक कश्मीर एक्सपोज़िंग द मिथ बिहाइंड द नैरेटिव में लिखते हैं, '1981 की जनगणना के अनुसार, कश्मीर में हिंदुओं की कुल आबादी (गैर-कश्मीरियों सहित) 124,078 थी. 1971 से 1981 के दशक में समुदाय की 6.75 प्रतिशत वृद्धि को देखते हुए 1991 में उनकी जनसंख्या 132,453 होगी.
केंद्र ने पिछले साल मार्च में संसद को यह भी बताया कि 1990 के दशक से लगभग 3,800 कश्मीरी प्रवासी कश्मीर लौट आए हैं और अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से 520 प्रधानमंत्री पैकेज के तहत नौकरी करने के लिए लौट आए हैं. प्रासंगिक रूप से कुछ पंडित समूह कहते रहे हैं कि 1990 में बड़ी संख्या में उनके समुदाय के लोग मारे गए जिसके कारण उन्हें कश्मीर घाटी से पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
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वर्ष 1990 के बाद भी पंडितों की हत्या की कुछ घटनाएं हुईं. ये वे लोग थे जो 1990 के प्रवास के बाद पीछे छूट गए थे. उनमें से कई 1995 और 2004 के बीच वंधमा गांदरबल, संग्रामपुरा, बडगाम और नादेमर्ग शोपियां में मारे गए थे. दिलचस्प बात यह है कि तत्कालीन पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य सैयद बशारत बुखारी के एक सवाल के जवाब में राजस्व मंत्री रमन भल्ला ने 23 मार्च, 2010 को जम्मू-कश्मीर विधानसभा को बताया था कि कश्मीर में 1989 से 2004 तक 219 पंडित मारे गए थे. 2004 के बाद से किसी भी कश्मीरी पंडित की हत्या नहीं हुई है.
मंत्री ने कहा था कि सरकार ने प्रत्येक मौत के लिए एक लाख रुपये की अनुग्रह राशि भी दी है. इसके अलावा आतंकवाद के कारण पंडितों की संपत्ति को हुए नुकसान के मुआवजे के रूप में 39,64,91,838 रुपये का भुगतान किया गया है.