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102 साल बाद भी ताजा हैं जख्म, निहत्थों पर बरसाईं गई थी गोलियां

आज जलियांवाला बाग हत्याकांड के 102 साल पूरे हो रहे हैं. इस हत्याकांड में जहां करीब एक हजार लोग शहीद हुए, वहीं, हजारों लोग घायल भी हुए थे. आखिर क्या हुआ था उस दिन, जानें पूरी कहानी.

Jallianwala Bagh Commemoration Day
आज पूरे हो रहे जलियांवाला बाग हत्याकांड के 102 साल
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Published : Apr 13, 2021, 8:30 AM IST

Updated : Apr 13, 2021, 9:37 AM IST

हैदराबाद : देश की आजादी के इतिहास में 13 अप्रैल का दिन एक दुखद घटना के साथ दर्ज है. वह वर्ष 1919 का 13 अप्रैल का दिन था, जब जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए जमा हुए हजारों भारतीयों पर अंग्रेज हुक्मरान ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं. पंजाब के अमृतसर जिले में ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर के नजदीक जलियांवाला बाग नाम के इस बगीचे में अंग्रेजों की गोलीबारी से घबराई बहुत सी औरतें अपने बच्चों को लेकर जान बचाने के लिए कुएं में कूद गईं. निकास का रास्ता संकरा होने के कारण बहुत से लोग भगदड़ में कुचले गए और हजारों लोग गोलियों की चपेट में आए.

Jallianwala Bagh Commemoration Day
याद में बनाया गया स्मारक

बता दें, इस हत्याकांड को आज 102 साल पूरे हो रहे हैं. आज भी उस दिन की काली तस्वीरों को लोग भूला नहीं पाए है.

  • जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया था.
  • 1951 में भारत सरकार ने जलियांवाला बाग हत्याकांड में जान गंवाने वाले उन सभी भारतीय क्रांतिकारियों को याद करते हुए एक स्मारक स्थापित किया था.
  • यह स्मारक आज भी संघर्ष और बलिदान का प्रतीक है और युवाओं में देशभक्ति की भावना को बढ़ाता है. मार्च 2019 में याद-ए-जलियन संग्रहालय का उद्घाटन किया गया था. जो नरसंहार को दिखाने के लिए किया स्थापित किया गया था.

एक नजर में जलियांवाला बाग हत्याकांड

रोलेट एक्ट (काला अधिनियम) 10 मार्च, 1919 को पारित किया गया था, जिसमें सरकार को बिना किसी मुकदमे के किसी भी व्यक्ति को देशद्रोही या कारावास में रखने के लिए अधिकृत किया गया था. इससे देशव्यापी अशांति फैल गई. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने रौलट एक्ट के विरोध में सत्याग्रह शुरू किया.

7 अप्रैल 1919 को गांधी ने रौलट एक्ट का विरोध करने के तरीकों का उल्लेख करते हुए सत्याग्रही नामक एक लेख प्रकाशित किया था.

  • ब्रिटिश अधिकारियों ने इस सत्याग्रह में भाग लेने वाले महात्मा गांधी समेत तमाम लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए चर्चा की.
  • ब्रिटिश अधिकारियों ने कार्रवाई करते हुए गांधीजी के पंजाब में प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी. इसके साथ-साथ यह भी कहा गया कि अगर इस आदेश की अवहेलना हो तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए.
  • पंजाब के तत्कालीन लेफ्टीनेंट गवर्नर सर माइकल ओ डायर (1912-1919) ने सुझाव दिया कि गांधी को बर्मा भेज दिया गया, लेकिन उनके साथियों ने इसका विरोध किया क्योंकि उन्हें लगा कि यह जनता को भड़का सकता है.
  • डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल, दो प्रमुख नेता जो हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे, उन्होंने अमृतसर में रोलेट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन किया.
  • 9 अप्रैल 1919 को रामनवमी के दिन डायर ने तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर इरविंग को डॉ. सत्यपाल और डॉ. किचलू को गिरफ्तार करने के आदेश दिए थे.
  • 19 नवंबर, 1919 को अमृता बाजार पत्रिका ने हंटर कमीशन के सामने इरविंग के गवाह के बारे में जानकारी दी और ब्रिटिश अधिकारियों की मानसिकता पर प्रकाश डाला.
  • 10 अप्रैल 1919 को अपने दो नेताओं को रिहा करने की मांग को लेकर प्रदर्शनकारियों ने डिप्टी कमिश्नर के आवास तक मार्च निकाला. इस मार्च के दौरान कई लोग घायल हुए और मारे भी गए. प्रदर्शनकारियों ने लाठियों और पत्थरों से जवाबी हमला किए और अपने रास्ते में आने वाले हर अंग्रेजों पर हमले भी किए.
  • इस हादसे में एक मिस शेरवुड और अमृतसर के मिशन स्कूल के अधीक्षक पर हमला भी किया गया था.

13 अप्रैल, 1919 - जलियांवाला बाग नरसंहार

Jallianwala Bagh Commemoration Day
विरोध-प्रदर्शन करते स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
  • रौलट एक्ट पारित करने के बाद पंजाब सरकार ने सभी विरोधों को दबाने का प्रयास किया.
  • 13 अप्रैल 1919 को जनता बैसाखी मनाने के लिए एकत्रित हुई थी, हालांकि, ब्रिटिश अधिकारियों के दृष्टिकोण से यह एक राजनीतिक सभा थी.
  • गैरकानूनी सभा को प्रतिबंधित करने वाले जनरल डायर के आदेशों के बावजूद जलियांवाला बाग में लोग इकट्ठा हुए. जहां दो प्रस्तावों पर चर्चा होनी थी. एक 10 अप्रैल को हुई गोलीबारी की निंदा करना और दूसरा अधिकारियों को अपने नेताओं को रिहा करने का अनुरोध करना.
  • जब इस बात की जानकारी जनरल डायर के पास पहुंची तो वह अपने सैनिकों के साथ जलियांवाला आया.
  • उसने जलियांवाला में प्रवेश किया और अपने सैनिकों को तैनात किया. इसके बाद उन्हें बिना किसी चेतावनी के गोली चलाने का आदेश दिया. लोग वहां से बाहर निकलने के लिए भागे, लेकिन डायर ने अपने सैनिकों को बाहर निकलने वाले स्थान पर तैनात कर दिया और गोली चलाने का आदेश दिया.
  • जनरल डायर के सैनिक 10 से 15 मिनट तक लगातार फायरिंग करते रहे. इस फायरिंग में 1650 राउंड फायर किए गए. फायरिंग तब तक होती रही जब तक गोला बारूद खत्म नहीं हो गए. जनरल डायर और इरविंग ने इस फायरिंग में करीब 291 लोगों की मौत का अनुमान लगाया था, हालांकि, मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता वाली एक समिति सहित अन्य रिपोर्टों में मृतकों का आंकड़ा 500 से अधिक था.

100 वर्षों के बाद 2019 में ब्रिटेन ने जलियांवाला बाग नरसंहार को एक शर्मनाक दाग बताया.

13 अप्रैल 1919 को एक ब्रिटिश जनरल ने अपनी सेना को अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों की भीड़ पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था, जिसमें सैकड़ों भारतीय मारे गए थे. करीब 100 साल बाद ब्रिटिश इंडिया के इतिहास में इस घटना को उत्पीड़न और अत्याचार की सबसे शर्मनाक कहानियों में से एक बताया गया.

2019 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने जलियांवाला बाग नरसंहार पर अफसोस जताते हुए कहा कि वास्तव में यह 'शर्मनाक' था, हालांकि एक औपचारिक माफी नहीं मांगी.

Jallianwala Bagh Commemoration Day
इसी कुएं में कूदे थे हजारों लोग
  • जलियांवाला बाग नरसंहार में कितने लोग मारे गए?

जलियांवाला बाग नरसंहार के दौरान हुई मौतों की संख्या पर कोई आधिकारिक डेटा नहीं था, लेकिन अंग्रेजों की आधिकारिक जांच में पता चला कि 379 मौतें हुईं. वहीं, कांग्रेस ने कहा कि नरसंहार में 1000 से अधिक लोगों की मौत हुई.

  • राजनीतिक पृष्ठभूमि

अप्रैल 1919 का नरसंहार एक सामान्य घटना नहीं थी, बल्कि एक ऐसी घटना थी जिसमें भीड़ के साथ अत्याचार हुआ था. यह समझने के लिए कि 13 अप्रैल 1919 को क्या हुआ, इससे पहले की घटनाओं पर एक नजर जरूर डालनी चाहिए.

हैदराबाद : देश की आजादी के इतिहास में 13 अप्रैल का दिन एक दुखद घटना के साथ दर्ज है. वह वर्ष 1919 का 13 अप्रैल का दिन था, जब जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए जमा हुए हजारों भारतीयों पर अंग्रेज हुक्मरान ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं. पंजाब के अमृतसर जिले में ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर के नजदीक जलियांवाला बाग नाम के इस बगीचे में अंग्रेजों की गोलीबारी से घबराई बहुत सी औरतें अपने बच्चों को लेकर जान बचाने के लिए कुएं में कूद गईं. निकास का रास्ता संकरा होने के कारण बहुत से लोग भगदड़ में कुचले गए और हजारों लोग गोलियों की चपेट में आए.

Jallianwala Bagh Commemoration Day
याद में बनाया गया स्मारक

बता दें, इस हत्याकांड को आज 102 साल पूरे हो रहे हैं. आज भी उस दिन की काली तस्वीरों को लोग भूला नहीं पाए है.

  • जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया था.
  • 1951 में भारत सरकार ने जलियांवाला बाग हत्याकांड में जान गंवाने वाले उन सभी भारतीय क्रांतिकारियों को याद करते हुए एक स्मारक स्थापित किया था.
  • यह स्मारक आज भी संघर्ष और बलिदान का प्रतीक है और युवाओं में देशभक्ति की भावना को बढ़ाता है. मार्च 2019 में याद-ए-जलियन संग्रहालय का उद्घाटन किया गया था. जो नरसंहार को दिखाने के लिए किया स्थापित किया गया था.

एक नजर में जलियांवाला बाग हत्याकांड

रोलेट एक्ट (काला अधिनियम) 10 मार्च, 1919 को पारित किया गया था, जिसमें सरकार को बिना किसी मुकदमे के किसी भी व्यक्ति को देशद्रोही या कारावास में रखने के लिए अधिकृत किया गया था. इससे देशव्यापी अशांति फैल गई. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने रौलट एक्ट के विरोध में सत्याग्रह शुरू किया.

7 अप्रैल 1919 को गांधी ने रौलट एक्ट का विरोध करने के तरीकों का उल्लेख करते हुए सत्याग्रही नामक एक लेख प्रकाशित किया था.

  • ब्रिटिश अधिकारियों ने इस सत्याग्रह में भाग लेने वाले महात्मा गांधी समेत तमाम लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए चर्चा की.
  • ब्रिटिश अधिकारियों ने कार्रवाई करते हुए गांधीजी के पंजाब में प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी. इसके साथ-साथ यह भी कहा गया कि अगर इस आदेश की अवहेलना हो तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए.
  • पंजाब के तत्कालीन लेफ्टीनेंट गवर्नर सर माइकल ओ डायर (1912-1919) ने सुझाव दिया कि गांधी को बर्मा भेज दिया गया, लेकिन उनके साथियों ने इसका विरोध किया क्योंकि उन्हें लगा कि यह जनता को भड़का सकता है.
  • डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल, दो प्रमुख नेता जो हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे, उन्होंने अमृतसर में रोलेट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन किया.
  • 9 अप्रैल 1919 को रामनवमी के दिन डायर ने तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर इरविंग को डॉ. सत्यपाल और डॉ. किचलू को गिरफ्तार करने के आदेश दिए थे.
  • 19 नवंबर, 1919 को अमृता बाजार पत्रिका ने हंटर कमीशन के सामने इरविंग के गवाह के बारे में जानकारी दी और ब्रिटिश अधिकारियों की मानसिकता पर प्रकाश डाला.
  • 10 अप्रैल 1919 को अपने दो नेताओं को रिहा करने की मांग को लेकर प्रदर्शनकारियों ने डिप्टी कमिश्नर के आवास तक मार्च निकाला. इस मार्च के दौरान कई लोग घायल हुए और मारे भी गए. प्रदर्शनकारियों ने लाठियों और पत्थरों से जवाबी हमला किए और अपने रास्ते में आने वाले हर अंग्रेजों पर हमले भी किए.
  • इस हादसे में एक मिस शेरवुड और अमृतसर के मिशन स्कूल के अधीक्षक पर हमला भी किया गया था.

13 अप्रैल, 1919 - जलियांवाला बाग नरसंहार

Jallianwala Bagh Commemoration Day
विरोध-प्रदर्शन करते स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
  • रौलट एक्ट पारित करने के बाद पंजाब सरकार ने सभी विरोधों को दबाने का प्रयास किया.
  • 13 अप्रैल 1919 को जनता बैसाखी मनाने के लिए एकत्रित हुई थी, हालांकि, ब्रिटिश अधिकारियों के दृष्टिकोण से यह एक राजनीतिक सभा थी.
  • गैरकानूनी सभा को प्रतिबंधित करने वाले जनरल डायर के आदेशों के बावजूद जलियांवाला बाग में लोग इकट्ठा हुए. जहां दो प्रस्तावों पर चर्चा होनी थी. एक 10 अप्रैल को हुई गोलीबारी की निंदा करना और दूसरा अधिकारियों को अपने नेताओं को रिहा करने का अनुरोध करना.
  • जब इस बात की जानकारी जनरल डायर के पास पहुंची तो वह अपने सैनिकों के साथ जलियांवाला आया.
  • उसने जलियांवाला में प्रवेश किया और अपने सैनिकों को तैनात किया. इसके बाद उन्हें बिना किसी चेतावनी के गोली चलाने का आदेश दिया. लोग वहां से बाहर निकलने के लिए भागे, लेकिन डायर ने अपने सैनिकों को बाहर निकलने वाले स्थान पर तैनात कर दिया और गोली चलाने का आदेश दिया.
  • जनरल डायर के सैनिक 10 से 15 मिनट तक लगातार फायरिंग करते रहे. इस फायरिंग में 1650 राउंड फायर किए गए. फायरिंग तब तक होती रही जब तक गोला बारूद खत्म नहीं हो गए. जनरल डायर और इरविंग ने इस फायरिंग में करीब 291 लोगों की मौत का अनुमान लगाया था, हालांकि, मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता वाली एक समिति सहित अन्य रिपोर्टों में मृतकों का आंकड़ा 500 से अधिक था.

100 वर्षों के बाद 2019 में ब्रिटेन ने जलियांवाला बाग नरसंहार को एक शर्मनाक दाग बताया.

13 अप्रैल 1919 को एक ब्रिटिश जनरल ने अपनी सेना को अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों की भीड़ पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था, जिसमें सैकड़ों भारतीय मारे गए थे. करीब 100 साल बाद ब्रिटिश इंडिया के इतिहास में इस घटना को उत्पीड़न और अत्याचार की सबसे शर्मनाक कहानियों में से एक बताया गया.

2019 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने जलियांवाला बाग नरसंहार पर अफसोस जताते हुए कहा कि वास्तव में यह 'शर्मनाक' था, हालांकि एक औपचारिक माफी नहीं मांगी.

Jallianwala Bagh Commemoration Day
इसी कुएं में कूदे थे हजारों लोग
  • जलियांवाला बाग नरसंहार में कितने लोग मारे गए?

जलियांवाला बाग नरसंहार के दौरान हुई मौतों की संख्या पर कोई आधिकारिक डेटा नहीं था, लेकिन अंग्रेजों की आधिकारिक जांच में पता चला कि 379 मौतें हुईं. वहीं, कांग्रेस ने कहा कि नरसंहार में 1000 से अधिक लोगों की मौत हुई.

  • राजनीतिक पृष्ठभूमि

अप्रैल 1919 का नरसंहार एक सामान्य घटना नहीं थी, बल्कि एक ऐसी घटना थी जिसमें भीड़ के साथ अत्याचार हुआ था. यह समझने के लिए कि 13 अप्रैल 1919 को क्या हुआ, इससे पहले की घटनाओं पर एक नजर जरूर डालनी चाहिए.

Last Updated : Apr 13, 2021, 9:37 AM IST
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