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लोकसभा में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जजों की सेवा और सैलरी से जुड़े विधेयक पर चर्चा

संसद के शीतकालीन सत्र का आज सातवां दिन है. लोक सभा में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जजों की सेवा और सैलरी से जुड़े विधेयक पर चर्चा की जा रही है.

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Published : Dec 7, 2021, 4:00 PM IST

Updated : Dec 7, 2021, 7:56 PM IST

नई दिल्ली : संसद के शीतकालीन सत्र का आज सातवां दिन है. लोक सभा में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जजों की सेवा और सैलरी से जुड़े विधेयक पर चर्चा की जा रही है.

लोकसभा में विधेयक पर चर्चा

उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्तें) संशोधन विधेयक, 2021 (The High Court and Supreme Court Judges (Salaries and Conditions of Service) Amendment Bill, 2021) उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों के वेतन अधिनियम में संशोधन करेगा.

चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने शीर्ष अदालतों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु पर अपनी बात रखी. उन्होंने अदालतों में लंबित मामलों की संख्या का भी मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा, एक न्यायाधीश जितनी जल्दी सेवानिवृत्त होता है, वह सरकार के बदलते नियमों के प्रति उतना ही संवेदनशील होता है.

शशि थरूर का बयान

भाजपा सांसद पीपी चौधरी ने सरकार से न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया.

चेन्नई से डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने कहा, सत्तारूढ़ सरकार न्यायपालिका को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है. उन्होंने सरकार से न्यायपालिका प्रणाली में हस्तक्षेप न करने का अनुरोध किया. दिल्ली में रहने वाले वकील के पास सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच है, लेकिन छोटे स्थानों के लोग ऐसा नहीं कर सकते हैं. उन्होंने कहा, यह समानता नहीं है.

उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजाति समुदाय के केवल पांच न्यायाधीश हैं. उन्होंने कहा कि सभी को यह महसूस करना चाहिए कि वे व्यवस्था का हिस्सा हैं. हमें न्याय व्यवस्था में विश्वास है, लेकिन हाल के घटनाक्रम ने आम जनता के बीच संदेह पैदा कर दिया है. सांसद दयानिधि मारन ने कहा, सरकार के पक्ष में फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद सरकार में शामिल होते हैं.

पश्चिम बंगाल के सेरामपुर से टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि भारत में 5.4 करोड़ मामले उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित हैं. उन्होंने कहा कि पिछले दो सालों में भारत ने हर मिनट 23 मामले लंबित रहे हैं. कल्याण बनर्जी ने कहा कि आज हमारी न्याय वितरण प्रणाली गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है. उन्होंने सवाल किया कि फास्ट-ट्रैक अदालतों का क्या हुआ. फास्ट-ट्रैक अदालतों के समक्ष भी कई मामले लंबित हैं. टीएमसी सांसद ने आरोप लगाया कि कॉलेजियम उन वकीलों की सिफारिश करता है जो भारतीय जनता पार्टी के करीबी हैं.

उन्होंने कहा, तीन महिला वकील हैं जिनके नामों की सिफारिश की गई थी, लेकिन उन्हें कभी जज नहीं बनाया गया. क्या केंद्र सरकार संविधान के अनुच्छेद 144 (समानता के अधिकार) का उल्लंघन नहीं कर रही है. जजों की वेकैंसी को लेकर उठे सवाल के जवाब में भाजपा सांसद चौधरी ने कहा कि पिछले दो वर्षों में 400 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई है.

कल्याण बनर्जी ने कहा कि न्याय प्रणाली की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए चार न्यायाधीशों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. फिर उनमें से एक सीजेआई बन गया और सेवानिवृत्ति के बाद, वह राज्यसभा सदस्य बन गया. उन्होंने कॉलेजियम से अपने तरीकों पर पुनर्विचार करने के लिए कहा.

शिवसेना सांसद अरविंद गणपत सावंत ने सवाल किया कि क्या लोकतंत्र के चार स्तंभ वास्तव में स्वतंत्र हैं. उन्होंने आरोप लगया कि कुछ खास विचारधारा से जुड़े लोग चारों स्तम्भों पर मोर्चा संभाल रहे हैं. उन्होंने शिक्षकों की पेंशन का मुद्दा भी उठाया.

बिहार से जद (यू) सांसद महाबली सिंह ने कहा, वह न्यायाधीशों की पेंशन बढ़ाने और इस बिल का स्वागत करते हैं. उन्होंने कहा कि लेकिन हम देखते हैं कि न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद अन्य सरकारी संगठनों में शामिल हो रहे हैं. हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उन न्यायाधीशों को कई पेंशन न मिले. कॉलेजियम प्रणाली संवैधानिक नहीं है. उन्होंने सवाल किया कि अदालतों में लंबित मामलों के लिए कौन जिम्मेदार है? उन्होंने आरोप लगाया कि कॉलेजियम व्यवस्था जाति व्यवस्था की तरह है, और इसमें (कॉलेजियम) रिश्तेदारों को बढ़ावा दिया जाता है. कौशल और प्रतिभा वाले लोगों को नजरअंदाज कर दिया जाता है और जिनके पास ज्ञान नहीं होता है, लेकिन केवल रिश्तेदारी के चलते उन्हें न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया जाता है.

जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग से नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद हसनैन मसूदी ने कहा, कई सदस्यों ने पेंडेंसी के मुद्दे को दोहराया है, लेकिन जब तक आप सिस्टम को सशक्त नहीं करते हैं, तब तक आप पेंडेंसी से कैसे निपट सकते हैं, और ऐसा नहीं किया जा रहा है. उन्होंने कहा, रिक्तियों को उचित व्यवस्था के बिना नहीं भरा जा सकता है. उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्तें) संशोधन विधेयक ऐसी कोई चीज नहीं है जो प्रतिभाओं को आकर्षित करे.

सांसद महम्मद बशीर ने कहा, न्यायपालिका कई मामलों में लाचारी दिखाती है. उन्होंने आरोप लगाया कि AFSPA जैसे कानूनों का खुलेआम दुरुपयोग हो रहा है, लेकिन ऐसे कठोर कानूनों के संबंध में कुछ नहीं किया गया है. दुर्भाग्य से अदालतें केवल मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चुप हैं. उन्होंने कहा, दुनिया में कहीं भी जज, जजों की नियुक्ति नहीं करते हैं और हमें इस प्रथा से दूर होने की जरूरत है.

केरल के कोल्लम से आरएसपी सांसद एन.के. प्रेमचंद्रन ने कहा, कोर्ट की शक्तियों को अलग करने पर बात करते हुए भारतीय न्यायिक प्रणाली स्वतंत्र रही है. भारतीय न्यायपालिका की विश्वसनीयता काफी अधिक रही है. लेकिन, दुर्भाग्य से, पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं. उन्होंने सरकार से राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक को संसद में वापस लाने की अपील की.

पढ़ें : हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जजों की सेवा और सैलरी से जुड़ा विधेयक लोक सभा में पेश

बता दें कि कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रिरिजू ने 30 नवंबर, 2021 को लोकसभा में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन एवं सेवा शर्त) संशोधन बिल, 2021 को पेश किया था. बिल निम्नलिखित में संशोधन का प्रयास करता है: (i) उच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन एवं सेवा शर्त) एक्ट, 1954 और (ii) सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन एवं सेवा शर्त) एक्ट, 1958. ये कानून भारत के उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन और सेवा की शर्तों को रेगुलेट करते हैं.

एक्ट के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के सभी रिटायर्ड न्यायाधीश और उनके परिवार के सदस्य पेंशन या फैमिली पेंशन के हकदार होते हैं. उन्हें एक निर्दिष्ट पैमाने के अनुसार एक निश्चित आयु प्राप्त करने पर पेंशन या फैमिली पेंशन की अतिरिक्त राशि भी मिलती है. इस पैमाने में पांच आयु वर्ग हैं (न्यूनतम 80, 85, 90, 95 और 100 वर्ष) और आयु के साथ अतिरिक्त राशि बढ़ती जाती है (पेंशन या फैमिली पेंशन के 20% से 100%). बिल स्पष्ट करता है कि व्यक्ति अतिरिक्त पेंशन या फैमिली पेंशन का उस महीने की पहली तारीख से ही हकदार हो जाएगा, जिस महीने में वह संबंधित आयु वर्ग के अंतर्गत न्यूनतम आयु का हो रहा होगा.

नई दिल्ली : संसद के शीतकालीन सत्र का आज सातवां दिन है. लोक सभा में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जजों की सेवा और सैलरी से जुड़े विधेयक पर चर्चा की जा रही है.

लोकसभा में विधेयक पर चर्चा

उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्तें) संशोधन विधेयक, 2021 (The High Court and Supreme Court Judges (Salaries and Conditions of Service) Amendment Bill, 2021) उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों के वेतन अधिनियम में संशोधन करेगा.

चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने शीर्ष अदालतों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु पर अपनी बात रखी. उन्होंने अदालतों में लंबित मामलों की संख्या का भी मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा, एक न्यायाधीश जितनी जल्दी सेवानिवृत्त होता है, वह सरकार के बदलते नियमों के प्रति उतना ही संवेदनशील होता है.

शशि थरूर का बयान

भाजपा सांसद पीपी चौधरी ने सरकार से न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया.

चेन्नई से डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने कहा, सत्तारूढ़ सरकार न्यायपालिका को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है. उन्होंने सरकार से न्यायपालिका प्रणाली में हस्तक्षेप न करने का अनुरोध किया. दिल्ली में रहने वाले वकील के पास सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच है, लेकिन छोटे स्थानों के लोग ऐसा नहीं कर सकते हैं. उन्होंने कहा, यह समानता नहीं है.

उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजाति समुदाय के केवल पांच न्यायाधीश हैं. उन्होंने कहा कि सभी को यह महसूस करना चाहिए कि वे व्यवस्था का हिस्सा हैं. हमें न्याय व्यवस्था में विश्वास है, लेकिन हाल के घटनाक्रम ने आम जनता के बीच संदेह पैदा कर दिया है. सांसद दयानिधि मारन ने कहा, सरकार के पक्ष में फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद सरकार में शामिल होते हैं.

पश्चिम बंगाल के सेरामपुर से टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि भारत में 5.4 करोड़ मामले उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित हैं. उन्होंने कहा कि पिछले दो सालों में भारत ने हर मिनट 23 मामले लंबित रहे हैं. कल्याण बनर्जी ने कहा कि आज हमारी न्याय वितरण प्रणाली गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है. उन्होंने सवाल किया कि फास्ट-ट्रैक अदालतों का क्या हुआ. फास्ट-ट्रैक अदालतों के समक्ष भी कई मामले लंबित हैं. टीएमसी सांसद ने आरोप लगाया कि कॉलेजियम उन वकीलों की सिफारिश करता है जो भारतीय जनता पार्टी के करीबी हैं.

उन्होंने कहा, तीन महिला वकील हैं जिनके नामों की सिफारिश की गई थी, लेकिन उन्हें कभी जज नहीं बनाया गया. क्या केंद्र सरकार संविधान के अनुच्छेद 144 (समानता के अधिकार) का उल्लंघन नहीं कर रही है. जजों की वेकैंसी को लेकर उठे सवाल के जवाब में भाजपा सांसद चौधरी ने कहा कि पिछले दो वर्षों में 400 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई है.

कल्याण बनर्जी ने कहा कि न्याय प्रणाली की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए चार न्यायाधीशों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. फिर उनमें से एक सीजेआई बन गया और सेवानिवृत्ति के बाद, वह राज्यसभा सदस्य बन गया. उन्होंने कॉलेजियम से अपने तरीकों पर पुनर्विचार करने के लिए कहा.

शिवसेना सांसद अरविंद गणपत सावंत ने सवाल किया कि क्या लोकतंत्र के चार स्तंभ वास्तव में स्वतंत्र हैं. उन्होंने आरोप लगया कि कुछ खास विचारधारा से जुड़े लोग चारों स्तम्भों पर मोर्चा संभाल रहे हैं. उन्होंने शिक्षकों की पेंशन का मुद्दा भी उठाया.

बिहार से जद (यू) सांसद महाबली सिंह ने कहा, वह न्यायाधीशों की पेंशन बढ़ाने और इस बिल का स्वागत करते हैं. उन्होंने कहा कि लेकिन हम देखते हैं कि न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद अन्य सरकारी संगठनों में शामिल हो रहे हैं. हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उन न्यायाधीशों को कई पेंशन न मिले. कॉलेजियम प्रणाली संवैधानिक नहीं है. उन्होंने सवाल किया कि अदालतों में लंबित मामलों के लिए कौन जिम्मेदार है? उन्होंने आरोप लगाया कि कॉलेजियम व्यवस्था जाति व्यवस्था की तरह है, और इसमें (कॉलेजियम) रिश्तेदारों को बढ़ावा दिया जाता है. कौशल और प्रतिभा वाले लोगों को नजरअंदाज कर दिया जाता है और जिनके पास ज्ञान नहीं होता है, लेकिन केवल रिश्तेदारी के चलते उन्हें न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया जाता है.

जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग से नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद हसनैन मसूदी ने कहा, कई सदस्यों ने पेंडेंसी के मुद्दे को दोहराया है, लेकिन जब तक आप सिस्टम को सशक्त नहीं करते हैं, तब तक आप पेंडेंसी से कैसे निपट सकते हैं, और ऐसा नहीं किया जा रहा है. उन्होंने कहा, रिक्तियों को उचित व्यवस्था के बिना नहीं भरा जा सकता है. उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्तें) संशोधन विधेयक ऐसी कोई चीज नहीं है जो प्रतिभाओं को आकर्षित करे.

सांसद महम्मद बशीर ने कहा, न्यायपालिका कई मामलों में लाचारी दिखाती है. उन्होंने आरोप लगाया कि AFSPA जैसे कानूनों का खुलेआम दुरुपयोग हो रहा है, लेकिन ऐसे कठोर कानूनों के संबंध में कुछ नहीं किया गया है. दुर्भाग्य से अदालतें केवल मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चुप हैं. उन्होंने कहा, दुनिया में कहीं भी जज, जजों की नियुक्ति नहीं करते हैं और हमें इस प्रथा से दूर होने की जरूरत है.

केरल के कोल्लम से आरएसपी सांसद एन.के. प्रेमचंद्रन ने कहा, कोर्ट की शक्तियों को अलग करने पर बात करते हुए भारतीय न्यायिक प्रणाली स्वतंत्र रही है. भारतीय न्यायपालिका की विश्वसनीयता काफी अधिक रही है. लेकिन, दुर्भाग्य से, पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं. उन्होंने सरकार से राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक को संसद में वापस लाने की अपील की.

पढ़ें : हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जजों की सेवा और सैलरी से जुड़ा विधेयक लोक सभा में पेश

बता दें कि कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रिरिजू ने 30 नवंबर, 2021 को लोकसभा में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन एवं सेवा शर्त) संशोधन बिल, 2021 को पेश किया था. बिल निम्नलिखित में संशोधन का प्रयास करता है: (i) उच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन एवं सेवा शर्त) एक्ट, 1954 और (ii) सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन एवं सेवा शर्त) एक्ट, 1958. ये कानून भारत के उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन और सेवा की शर्तों को रेगुलेट करते हैं.

एक्ट के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के सभी रिटायर्ड न्यायाधीश और उनके परिवार के सदस्य पेंशन या फैमिली पेंशन के हकदार होते हैं. उन्हें एक निर्दिष्ट पैमाने के अनुसार एक निश्चित आयु प्राप्त करने पर पेंशन या फैमिली पेंशन की अतिरिक्त राशि भी मिलती है. इस पैमाने में पांच आयु वर्ग हैं (न्यूनतम 80, 85, 90, 95 और 100 वर्ष) और आयु के साथ अतिरिक्त राशि बढ़ती जाती है (पेंशन या फैमिली पेंशन के 20% से 100%). बिल स्पष्ट करता है कि व्यक्ति अतिरिक्त पेंशन या फैमिली पेंशन का उस महीने की पहली तारीख से ही हकदार हो जाएगा, जिस महीने में वह संबंधित आयु वर्ग के अंतर्गत न्यूनतम आयु का हो रहा होगा.

Last Updated : Dec 7, 2021, 7:56 PM IST
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