पानीपत: दिल्ली एनसीआर समेत हरियाणा में अब कोयले से संचालित उद्योग बंद हो जाएंगे. कोयला संचालित उद्योगों को अब पीएनजी पर शिफ्ट होना पड़ेगा. तभी वो कारोबार को आगे बढ़ा सकते हैं. दरअसल बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए कमीशन ऑफ एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (commission of air quality management) ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (central pollution control board) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (state pollution control board) को कोयला संचालित उद्योगों पर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं.
नए नियम के मुताबिक अगर कोई उद्योग कोयले पर चलता मिला, तो उस पर एक करोड़ रुपये जुर्माना लगाया जाएगा. अगर उद्यमी जुर्माना नहीं भरता, तो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के मामले में उसे पांच साल की सजा होगी. दूसरी तरफ पानीपत शहर में ग्रेडेड रेस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) भी लागू हो गया है. जिसके बाद अब अधिक क्षमता वाले जेनरेटर भी नहीं चलेंगे. इसका असर अब पानीपत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री (textile industry in panipat) पर पड़ रहा है.
क्या है ग्रैप और इसमें क्या है नया? इस बार ग्रैप को नए तरीके से लागू किया गया है. जिस तरह से मौसम का पूर्वानुमान लगाया जाता है. उसी तरह ग्रैप से एयर क्वॉलिटी का अनुमान लगाया जाएगा. इसी पूर्वानुमान के आधार पर हवा की क्वॉलिटी को एक विशेष स्तर पर पहुंचने पर तीन दिन पहले से ही ग्रैप की बंदिशें लागू हो जाएंगी. जैसे सड़कों की धूल मशीन से हटाना अनिवार्य होगा. सड़क पर धूल का उड़ना रोकने के लिए पानी का छिड़काव जरूरी रहेगा. खुले में कूड़ा जलाने पर पाबंदी, इमरजेंसी सेवाओं को छोड़कर डीजल जेनरेटर पर बैन रहेगा.
खतरे में पानीपत का हैंडलूम व्यवसाय! कमीशन ऑफ एयर क्वालिटी मैनेजमेंट के इस फैसले से पानीपत में 100 साल पुराने हैंडलूम व्यवसाय का अस्तित्व अब खतरे में नजर आ रहा है. 1 अक्टूबर से NCR में ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) लागू होने के बाद से पानीपत हैंडलूम के उद्योगपतियों के उद्योग की पहली सीढ़ी यानी डाइंग यूनिटों पर ताले लटक चुके हैं, जिसके चलते उद्योगपतियों की चिंता की लकीरें बढ़ चुकी हैं. इस फैसले के बाद 1 अक्तूबर 2022 से पानीपत के लगभग 500 डाईंग हाउस और 100 के करीब कंबल यूनिट बंद हैं. जिससे औद्योगिक नगरी पानीपत को पहले दिन में सौ करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ है. वहीं काम की तलाश में आए हुए लाखों मजदूर घर बैठने को मजबूर हो गए हैं. अभी भी कोयले से चलने वाले डाई हाउस और कुछ कंबल की यूनिट बंद हैं. जिसके कारण नुकसान का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है.
पानीपत के कंबल का इतिहास: पानीपत के कंबल का इतिहास आजादी से पहले का है. साल 1947 से पहले पानीपत एक मुस्लिम बहुलय क्षेत्र था. यहां मुस्लिम बिरादरी के बुनकर लोग दरिया बनाने का काम किया करते थे. बंटवारे के समय पाकिस्तान से आई हुई लईया और जंग बिरादरी के लोग रोहतक में आए थे. वो सिर्फ दरिया और कंबल बनाने का व्यवसाय ही करते थे. पाकिस्तान से आए ये लोग उस्ताद संत लाल की अगुवाई में महात्मा गांधी से मिले और पानीपत में आकर बस गए. उन्होंने अपने घरों में खड्डियां (दरी बनाने की मशीन) लगाकर दरिया बनाना शुरू किया. उसके बाद ये उद्योग लगातार बढ़ता चला गया.
शुरुआती दौर में पानीपत में बने कंबल को आर्मी और रेलवे में सप्लाई किया गया. धीरे-धीरे ये देश के हर कोने में पहुंच गया. कहा जाता है कि साल 1971 में 50 हजार रुपए के टेक्सटाइल प्रोडक्ट एक्सपोर्ट किए गए थे. पहले चीन के बनाए गए प्रोडक्ट विदेशों पर अपना कब्जा किए हुए थे. धीरे-धीरे पानीपत के बनने वाले माल की क्वालिटी में सुधार आता चला गया. नई-नई तकनीक बढ़ती गई. डिमांड के चलते आज पानीपत से लगभग 25 हजार करोड़ रुपये टेक्सटाइल का प्रोडक्ट एक्सपोर्ट किया जाता है.
क्या है उद्यमियों की मांग? उद्यमियों ने मांग की है कि सीक्यूएम बॉयलर को पीएनजी पर शिफ्ट करने का दबाव बना रहा है, लेकिन उन्हें पीएनजी के बॉयलर चलाने का प्रशिक्षण तक नहीं दिया गया. उनके पास पीएनजी के बर्नर भी उपलब्ध नहीं है. कंपनी बर्नरों की पूर्ति नहीं कर पा रही है. दो-दो साल की वेटिंग चल रही है, इसलिए उन्हें बॉयलर को पीएनजी पर शिफ्ट करने के लिए दो साल का वक्त चाहिए. इसके साथ ही उद्यमियों ने जुर्माना राशि को कम करने की मांग की है. पानीपत के उद्योगपतियों का कहना है कि वो शुरू से ही पानीपत को एनसीआर से बाहर करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी मांगें नहीं मानी गई.
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अब दिल्ली एनसीआर में 1 अक्टूबर से सीएक्यूएम ने कोयले से चलने वाले उद्योग को बंद करने के निर्देश दिए हैं. जिसका असर पानीपत के उद्योग पर भी पड़ रहा है. पानीपत के उद्योगपतियों ने कहा कि ये अच्छा है कि बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए ये फैसला लिया गया है, लेकिन उनकी मांग है कि उन्हें कुछ और समय दिया जाए, ताकि वो अपने उद्योग यूनिट को पीएनजी या biofule पर शिफ्ट कर सकें. पानीपत के उद्योपतियों ने अब सरकार को 13 अक्तूबर का अल्टीमेटम दिया है. अगर 13 तारीख तक उन्हें कोई छूट नहीं दी गई तो उद्योगपति बड़ा आंदोलन करने को मजबूर होंगे.