हैदराबाद : तेलंगाना का सारा सस्पेंस खत्म हो गया. कांग्रेस ने बाजी मार ली. बीआरएस हैट्रिक मारने से चूक गई. भाजपा को भी अपेक्षित सफलता हाथ नहीं लगी. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी ने वो कमाल कर दिखाया, जिसकी किसी ने उम्मीद भी नहीं की थी. यह सबको अनुमान था कि कांग्रेस अपना प्रदर्शन बेहतर करेगी, लेकिन सत्ता में जाएगी, ऐसी तो किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. वैसे, चुनाव के दौरान ऐसे कई मुद्दे उठे, जिसके आधार पर यह जरूर तय हो गया था कि इस बार कुछ भी हो सकता है.
चुनाव प्रचार के दौरान चुनाव आयोग ने बीआरएस सरकार की प्रमुख योजना, रायथु बंधु योजना, का पैसा ट्रांसफर करने पर रोक लगा दी. हालांकि, 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान ऐसा नहीं हो सका था. विश्लेषक मानते हैं कि तब टीआरएस (नया नाम बीआरएस) को इसका फायदा मिला और वह रिकॉर्ड मतों से चुनाव जीतकर आ गई थी. लेकिन इस बार कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर चुनाव आयोग से शिकायत कर दी.
कांग्रेस ने कहा कि बीआरएस इस योजना के नाम पर मनोवैज्ञानिक लाभ उठाना चाहती थी. इस योजना के तहत सीधे किसानों को पैसे मिलते हैं, और उसका एक नोटिफिकेशन इसका लाभ उठाने वालों के पास जाता है. तेलंगाना में 66 लाख किसानों के नाम इस सूची में जुड़े हैं. किसानों को एक एकड़ के लिए पांच हजार रुपये प्रति सीजन दिए जाते हैं. अभी किसानों को रबी फसल के लिए पैसे दिए जाने थे.
दरअसल, बीआरएस नेता हरीश राव ने एक चुनावी सभा के दौरान यह बयान दिया था कि सभी मतदाताओं के मोबाइल पर पैसे मिलने का एक मैसेज आएगा. उनके इस भाषण को मुद्दा बनाकर कांग्रेस ने चुनाव आयोग के पास शिकायत की. इसके बाद चुनाव आयोग ने कार्रवाई की और पैसे ट्रांसफर करने पर रोक लगा दी.
बीआरएस को स्थानीय कार्यकर्ताओं का लाभ था. उनके कार्यकर्ता हर जिले में हैं. जबकि कांग्रेस और भाजपा, दोनों को चुनाव प्रबंधकों के लिए दूसरे राज्यों से लाए गए कार्यकर्ताओं पर निर्भर रहना था. कांग्रेस ने पड़ोसी राज्य कर्नाटक और महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को लगा रखा था. अगर आप इनकी संख्या गिनती करेंगे, तो शायद एडवांटेज दिखेगा, लेकिन स्थानीय स्तर पर भावनात्मक जुड़ाव कहीं ज्यादा प्रभावकारी होती है. भाजपा भी इसी तरह से दूसरे राज्यों से बुलाए गए कार्यकर्ताओं पर निर्भर थी.
2018 और 2014 में क्या हुआ था - 2018 विधानसभा चुनाव में बीआरएस को 88 सीटें मिली थीं. दूसरे स्थान पर 19 सीटों के साथ कांग्रेस रही. भाजपा को मात्र एक सीट मिली थी. बीआरएस को 46.8 फीसदी मत और कांग्रेस को 28.4 प्रतिशत मिला था. भाजपा को सात फीसदी के आसपास वोट मिला था. टीडीपी ने 3.5 फीसदी वोट हासिल किया था, जबकि एआईएमआईएम को 2.7 फीसदी वोट मिला. टीडीपी को दो सीटें मिली जबकि दो उम्मीदवारों ने निर्दलीय चुनाव जीता था.
2018 में 16 उम्मीदवार ऐसे थे, जिन्होंने पांच हजार से कम अंतर से जीत हासिल की थी. इनमें सबसे ज्यादा 10 बीआरएस के थे. बाकी के छह कांग्रेस से थे. आपको बता दें कि बीआरएस प्रमुख केसीआर ने 2001 में टीडीपी से बाहर निकलकर टीआरएस की स्थापना की थी. उसके बाद उन्होंने कांग्रेस का साथ दिया. इसी तरह से 2011 में कांग्रेस को तोड़कर वाईएसआर ने एक नई राजनीतिक पार्टी स्थापित की. उनकी पार्टी का नाम वाईएसआरसीपी है. इस समय आंध्र प्रदेश में उनकी सरकार है. वाआईएसआर कांग्रेस ने 2014 का विधानसभा चुनाव लड़ा था, हालांकि, 2018 में उनकी पार्टी ने यहां पर चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया.
2014 के विधानसभा चुनाव में टीआरएस को 63, कांग्रेस को 21, एआईएमआईएम को सात, भाजपा को पांच और टीडीपी को 15 सीटें मिली थीं. वाईएसआरसीपी को भी तीन सीटें मिली थीं, 11 सीटों निर्दलीय को मिला था. यहां आपको बता दें कि उस समय तेलंगाना अलग नहीं हुआ था.
जहां तक वोट शेयर की बात है तो 2014 में टीआरएस को 34 फीसदी, कांग्रेस को 25 फीसदी, एआईएमआईएम को 3.7 फीसदी, भाजपा को सात फीसदी, टीडीपी को 14.6 फीसदी और वाईएसआरसीपी को 3.4 फीसदी मत मिला था. टीआरएस को 2009 में 10 और 2004 में 26 सीटें मिली थीं.
2014 में चुनाव संयुक्त आंध्र प्रदेश का हुआ था. चुनाव परिणाम के बाद राज्य का बंटवारा हुआ और तेलंगाना नया राज्य बना. केसीआर तेलंगाना के पहले सीएम बने. टीआरएस के पास तब 63 सीटें थीं. लोकसभा की 17 सीटों में से 11 सीटें उनके पास थीं. जहां तक 2019 लोकसभा चुनाव की बात है, तो भाजपा को चार और टीआरएस को 11 सीटें मिलीं.
तेलंगाना विधानसभा चुनाव-
विधानसभा की कुल सीटें - 119
कुल मतदाता 3.17 करोड़.
प्रमुख पार्टियां - बीआरएस, कांग्रेस, भाजपा, एआईएमआईएम, सीपीआई, सीपीएम
राज्य का गठन - जून, 2014
प्रमुख विधानसभा क्षेत्र, जिस पर लोगों की नजर बनी हुई थी. गजवेल और कामारेड्डी. गजवेल से मुख्यमंत्री केसीआर उम्मीदवार थे. यहां से भाजपा ने एटाला राजेंद्र को अपना उम्मीदवार बनाया था. इसी तरह से मुख्यमंत्री कामारेड्डी से भी चुनाव लड़ रहे थे. यहां से भाजपा ने उनके खिलाफ के वेंकट रमन रेड्डी को अपना उम्मीदवार बनाया था. रेड्डी ने सीएम को चुनाव में हरा दिया. कोडांगल विधानसभा क्षेत्र से रेवंत रेड्डी चुनाव लड़ रहे थे, उन्हें चुनावी जीत मिली है. रेवंत रेड्डी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं. वह कामारेड्डी से भी चुनाव लड़ रहे थे.
इसी तरह से सिरसिला से मुख्यमंत्री के बेटे केटीआर उम्मीदवार थे. वह बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं. केटीआर के खिलाफ भाजपा ने रानी रुद्रम्मा रेड्डी और कांग्रेस ने केंडम करुना महेंद्र रेड्डी को उम्मीदवार बनाया. केटीआर चुनाव जीत चुके हैं.
भाजपा के संजय बंडी करीमनगर से चुनाव लड़ रहे थे. वह पीछे चल रहे थे. उनके खिलाफ बीआऱएस ने गंगुला कमलकार और कांग्रेस ने पुरुमल्ला श्रीनिवास को उम्मीदवार बनाया. कमलकर मंत्री थे. वह इसी सीट से पिछले तीन बार से लगातार चुनाव जीत रहे थे. अजहरूद्दीन जुबली हिल से उम्मीदवार हैं. वह भी पीछे चल रहे थे. उनके खिलाफ बीआऱएस ने मगंटी गोपीनाथ और भाजपा ने लंकला दीपक रेड्डी को मैदान में उतारा है. भाजपा ने लोकल चुनाव में ग्रेटर हैदराबाद में अच्छी जीत हासिल की थी और उसके बाद डुब्बक उपचुनाव भी जीती. लेकिन बाद में केसीआर के खिलाफ एंटी वोट का कांग्रेस ने बेहतर प्रयोग किया.
ये भी पढें : चार राज्यों के विधानसभा चुनाव 2023 की मतगणना अपडेट के लिए बने रहिए ईटीवी भारत के साथ
ये भी पढ़ें : तेलंगाना विधानसभा चुनाव परिणाम के लिए पल-पल का अपडेट यहां से लें