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पूर्वोत्तर व आकांक्षी जिलों में शिक्षकों के काम करने की स्थिति खराब : UNESCO रिपोर्ट - teaching career of choice for villagers

यूनेस्को की '2021 स्टेट ऑफ द एजुकेशन रिपोर्ट फॉर इंडिया : नो टीचर, नो क्लास' रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पूर्वोत्तर और आकांक्षी जिलों में शिक्षकों के काम करने की स्थिति खराब है तथा ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों के बीच बुनियादी सुविधाओं के साथ ही सूचना और संचार प्रौद्योगिकी संबंधी ढांचे को लेकर असमानता है. पढ़ें पूरी खबर...

यूनेस्को रिपोर्ट
यूनेस्को रिपोर्ट
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Published : Oct 6, 2021, 4:50 PM IST

नई दिल्ली : यूनेस्को (The United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization -UNESCO) की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पूर्वोत्तर और आकांक्षी जिलों में शिक्षकों के काम करने की स्थिति खराब है तथा ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों के बीच बुनियादी सुविधाओं के साथ ही सूचना और संचार प्रौद्योगिकी ( information and communications technology - ICT) संबंधी ढांचे को लेकर असमानता है.

छात्र-शिक्षक अनुपात अच्छा नहीं

यूनेस्को की '2021 स्टेट ऑफ द एजुकेशन रिपोर्ट फॉर इंडिया: नो टीचर, नो क्लास' रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शिक्षकों की उपलब्धता में सुधार हुआ है, लेकिन माध्यमिक विद्यालयों में छात्र-शिक्षक अनुपात अब भी सही नहीं है.

10 लाख से अधिक शिक्षकों की कमी

रिपोर्ट में कहा गया है कि छात्रों की मौजूदा संख्या को देखते हुए शिक्षण कार्यबल में 10 लाख से अधिक शिक्षकों की कमी है और प्रारंभिक बचपन की शिक्षा, विशेष शिक्षा, शारीरिक शिक्षा, संगीत, कला और व्यावसायिक शिक्षा जैसे विषयों व कुछ शिक्षा स्तरों पर शिक्षकों की कमी को देखते हुए इसकी आवश्यकता बढ़ने का अनुमान है.

शिक्षकों के काम करने की स्थिति खराब

इसमें कहा गया है कि 15 वर्षों में मौजूदा कार्यबल के लगभग 30 प्रतिशत हिस्से को बदलने की जरूरत होगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में योग्य शिक्षकों की उपलब्धता और नियुक्ति दोनों में सुधार करने की आवश्यकता है. बुनियादी सुविधाओं के मामले में, पूर्वोत्तर और आकांक्षी जिलों में शिक्षकों के काम करने की स्थिति खराब है.

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में शिक्षण पेशे का औसत दर्जा है, लेकिन यह खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं और युवाओं के लिए पसंदीदा पेशा है.

पढ़ें : भारत, यूएई के बीच समझौते पर हस्ताक्षर : रिसर्च, शिक्षण के लिए अबुधाबी जाएंगे प्राध्यापक

रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी स्कूल के शिक्षक और बच्चों के शिक्षक अत्यधिक कमजोर समूह हैं तथा उनमें से कई कम वेतन पर बिना किसी अनुबंध के काम करते हैं और उन्हें स्वास्थ्य या मातृत्व अवकाश का लाभ भी नहीं मिलता. रिपोर्ट में शिक्षकों के लिए और अधिक पेशेवर स्वायत्तता (Professional autonomy) पर बल देते हुए कहा गया है, सार्वजनिक धारणा के विपरीत, शिक्षकों पर काफी कार्यभार है.

यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (Unified District Information System for Education - UDISE) के डेटा का उपयोग करके तैयार की गई इस रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि COVID-19 महामारी ने शिक्षकों की भेद्यता और असुरक्षा को उजागर किया है.

पेशा पूरी तरह से लिंग संतुलित

हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक, यह पेशा पूरी तरह से लिंग संतुलित है, जिसमें महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 50 प्रतिशत शिक्षण कार्यबल है, लेकिन इसमें महत्वपूर्ण अंतर-राज्य और शहरी-ग्रामीण भिन्नताएं हैं.

रिपोर्ट में मांग की गई है कि ग्रामीण क्षेत्रों, उच्च अनुसूचित जाति और जनजाति आबादी वाले जिलों और पूरे भारत के उत्तर-पूर्व में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, जहां छात्रों के लिए शिक्षकों के अनुपात में सुधार और तर्कसंगत बनाने की आवश्यकता है. इन 'कर्मचारियों के लिए कठिन' क्षेत्रों में काम करने की स्थिति में भी सुधार की आवश्यकता है. इन क्षेत्रों में शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों के लिए अधिक राज्य समर्थन चाहिए.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : यूनेस्को (The United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization -UNESCO) की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पूर्वोत्तर और आकांक्षी जिलों में शिक्षकों के काम करने की स्थिति खराब है तथा ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों के बीच बुनियादी सुविधाओं के साथ ही सूचना और संचार प्रौद्योगिकी ( information and communications technology - ICT) संबंधी ढांचे को लेकर असमानता है.

छात्र-शिक्षक अनुपात अच्छा नहीं

यूनेस्को की '2021 स्टेट ऑफ द एजुकेशन रिपोर्ट फॉर इंडिया: नो टीचर, नो क्लास' रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शिक्षकों की उपलब्धता में सुधार हुआ है, लेकिन माध्यमिक विद्यालयों में छात्र-शिक्षक अनुपात अब भी सही नहीं है.

10 लाख से अधिक शिक्षकों की कमी

रिपोर्ट में कहा गया है कि छात्रों की मौजूदा संख्या को देखते हुए शिक्षण कार्यबल में 10 लाख से अधिक शिक्षकों की कमी है और प्रारंभिक बचपन की शिक्षा, विशेष शिक्षा, शारीरिक शिक्षा, संगीत, कला और व्यावसायिक शिक्षा जैसे विषयों व कुछ शिक्षा स्तरों पर शिक्षकों की कमी को देखते हुए इसकी आवश्यकता बढ़ने का अनुमान है.

शिक्षकों के काम करने की स्थिति खराब

इसमें कहा गया है कि 15 वर्षों में मौजूदा कार्यबल के लगभग 30 प्रतिशत हिस्से को बदलने की जरूरत होगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में योग्य शिक्षकों की उपलब्धता और नियुक्ति दोनों में सुधार करने की आवश्यकता है. बुनियादी सुविधाओं के मामले में, पूर्वोत्तर और आकांक्षी जिलों में शिक्षकों के काम करने की स्थिति खराब है.

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में शिक्षण पेशे का औसत दर्जा है, लेकिन यह खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं और युवाओं के लिए पसंदीदा पेशा है.

पढ़ें : भारत, यूएई के बीच समझौते पर हस्ताक्षर : रिसर्च, शिक्षण के लिए अबुधाबी जाएंगे प्राध्यापक

रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी स्कूल के शिक्षक और बच्चों के शिक्षक अत्यधिक कमजोर समूह हैं तथा उनमें से कई कम वेतन पर बिना किसी अनुबंध के काम करते हैं और उन्हें स्वास्थ्य या मातृत्व अवकाश का लाभ भी नहीं मिलता. रिपोर्ट में शिक्षकों के लिए और अधिक पेशेवर स्वायत्तता (Professional autonomy) पर बल देते हुए कहा गया है, सार्वजनिक धारणा के विपरीत, शिक्षकों पर काफी कार्यभार है.

यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (Unified District Information System for Education - UDISE) के डेटा का उपयोग करके तैयार की गई इस रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि COVID-19 महामारी ने शिक्षकों की भेद्यता और असुरक्षा को उजागर किया है.

पेशा पूरी तरह से लिंग संतुलित

हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक, यह पेशा पूरी तरह से लिंग संतुलित है, जिसमें महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 50 प्रतिशत शिक्षण कार्यबल है, लेकिन इसमें महत्वपूर्ण अंतर-राज्य और शहरी-ग्रामीण भिन्नताएं हैं.

रिपोर्ट में मांग की गई है कि ग्रामीण क्षेत्रों, उच्च अनुसूचित जाति और जनजाति आबादी वाले जिलों और पूरे भारत के उत्तर-पूर्व में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, जहां छात्रों के लिए शिक्षकों के अनुपात में सुधार और तर्कसंगत बनाने की आवश्यकता है. इन 'कर्मचारियों के लिए कठिन' क्षेत्रों में काम करने की स्थिति में भी सुधार की आवश्यकता है. इन क्षेत्रों में शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों के लिए अधिक राज्य समर्थन चाहिए.

(पीटीआई-भाषा)

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