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राजस्थान उपचुनाव : टूटा पॉलिटिकल ट्रेंड, मतदाताओं ने सहानुभूति पर लगाई मुहर

प्रदेश की तीनों सहाड़ा, राजसमंद और सुजानगढ़ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणामों ने इस बार राजस्थान में एक नया इतिहास बनाया है. तीनों ही सीटों पर यहां दिवंगत रहे विधायकों के परिजन प्रत्याशियों को ही जनता ने जीत का स्वाद चखाया है.

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Published : May 2, 2021, 6:01 PM IST

जयपुर : ये सहानुभूति ऐतिहासिक इसलिए है, क्योंकि राजस्थान में इससे पहले जितने भी उपचुनाव हुए, उनमें दिवंगत विधायक के परिजन जीत हासिल नहीं कर पाए थे. इस बार ये पॉलिटिकल ट्रेंड टूट गया.

राजसमंद में दीप्ति, सुजानगढ़ में मनोज, सहाड़ा में गायत्री देवी की जीत

उपचुनाव में राजसमंद सीट पर भाजपा कि दिवंगत विधायक किरण माहेश्वरी की पुत्री दीप्ति माहेश्वरी ने जीत दर्ज की है. सुजानगढ़ में दिवंगत कांग्रेस विधायक और प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे मास्टर भंवरलाल के पुत्र मनोज मेघवाल ने जीत का परचम लहराया है. सहाड़ा विधानसभा सीट पर दिवंगत कांग्रेस विधायक कैलाश त्रिवेदी की धर्मपत्नी गायत्री देवी ने जीत दर्ज की है.

राजस्थान उपचुनाव

पूर्व में इन तीनों सीटों पर यदि राजनीतिक कब्जे की बात की जाए, तो राजसमंद पर भाजपा का कब्जा था. सहाड़ा और सुजानगढ़ विधानसभा सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का कब्जा था जो उपचुनाव में भी यथावत कायम है.

इससे पहले ये रहा है उपचुनावों का राजनीतिक ट्रेंड

राजस्थान में अब तक विधायक या सामान्य चुनाव में ही किसी विधायक प्रत्याशी के निधन के चलते 20 बार उपचुनाव हुए. इनमें से 9 उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी ने चुनाव जीता और 8 बार भारतीय जनता पार्टी ने उपचुनाव में जीत दर्ज की. 2 बार जनता पार्टी और 1 बार एनसीजे पार्टी के विधायक बने. इनमें खास बात ये है कि इन 20 उपचुनाव में जिन विधायकों का निधन हुआ उनके परिजन टिकट पाने के बाद जीत हासिल नहीं कर सके.

पढ़ेंः राजस्थान उपचुनाव : दो पर कांग्रेस का कब्जा, एक बीजेपी के खाते में

  • साल 1965 में राजाखेड़ा विधायक प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे एम सिंह ने चुनाव लड़ा लेकिन वे हार गए.
  • साल 1978 में रूपवास विधायक ताराचंद की मृत्यु के बाद उनके बेटे ने चुनाव लड़ा वो भी चुनाव हार गए.
  • साल 1988 में खेतड़ी विधायक मालाराम के निधन के बाद उनके बेटे एच लाल को टिकट दिया गया लेकिन वो भी चुनाव हार गए.
  • साल 1995 में बयाना विधानसभा से विधायक बृजराज सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे शिव चरण सिंह को टिकट दिया गया लेकिन वो भी चुनाव हारे.
  • साल 1995 में बांसवाड़ा विधानसभा के विधायक पूर्व मुख्यमंत्री हरदेव जोशी के निधन के बाद जब उनके बेटे दिनेश जोशी को पार्टी ने टिकट दिया लेकिन वे सीट नहीं बचा सके.
  • साल 2000 में जब लूणकरणसर विधायक भीमसेन की मृत्यु के बाद उनके बेटे वीरेंद्र को टिकट दिया गया लेकिन उन्हें भी हार का मुहं देखना पड़ा.
  • साल 2002 में सागवाड़ा विधायक भीखाभाई के निधन के बाद उनके बेटे सुरेंद्र कुमार को टिकट दिया गया लेकिन वे हार गए.
  • साल 2005 में लूणी विधायक रामसिंह विश्नोई की मृत्यु के बाद उनके बेटे मलखान विश्नोई भी जीत नहीं पाए.

ऐसे में आज तक किसी विधायक के निधन पर उनके परिजनों को टिकट देने पर सहानुभूति का कोई लाभ किसी पार्टी को नहीं मिला, लेकिन इस उपचुनाव में पुराना इतिहास दोहराया नहीं गया, बल्कि एक नया इतिहास बना और तीनों सीटों पर दिवंगत विधायकों के परिजनों ने ही जीत दर्ज की.

जयपुर : ये सहानुभूति ऐतिहासिक इसलिए है, क्योंकि राजस्थान में इससे पहले जितने भी उपचुनाव हुए, उनमें दिवंगत विधायक के परिजन जीत हासिल नहीं कर पाए थे. इस बार ये पॉलिटिकल ट्रेंड टूट गया.

राजसमंद में दीप्ति, सुजानगढ़ में मनोज, सहाड़ा में गायत्री देवी की जीत

उपचुनाव में राजसमंद सीट पर भाजपा कि दिवंगत विधायक किरण माहेश्वरी की पुत्री दीप्ति माहेश्वरी ने जीत दर्ज की है. सुजानगढ़ में दिवंगत कांग्रेस विधायक और प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे मास्टर भंवरलाल के पुत्र मनोज मेघवाल ने जीत का परचम लहराया है. सहाड़ा विधानसभा सीट पर दिवंगत कांग्रेस विधायक कैलाश त्रिवेदी की धर्मपत्नी गायत्री देवी ने जीत दर्ज की है.

राजस्थान उपचुनाव

पूर्व में इन तीनों सीटों पर यदि राजनीतिक कब्जे की बात की जाए, तो राजसमंद पर भाजपा का कब्जा था. सहाड़ा और सुजानगढ़ विधानसभा सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का कब्जा था जो उपचुनाव में भी यथावत कायम है.

इससे पहले ये रहा है उपचुनावों का राजनीतिक ट्रेंड

राजस्थान में अब तक विधायक या सामान्य चुनाव में ही किसी विधायक प्रत्याशी के निधन के चलते 20 बार उपचुनाव हुए. इनमें से 9 उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी ने चुनाव जीता और 8 बार भारतीय जनता पार्टी ने उपचुनाव में जीत दर्ज की. 2 बार जनता पार्टी और 1 बार एनसीजे पार्टी के विधायक बने. इनमें खास बात ये है कि इन 20 उपचुनाव में जिन विधायकों का निधन हुआ उनके परिजन टिकट पाने के बाद जीत हासिल नहीं कर सके.

पढ़ेंः राजस्थान उपचुनाव : दो पर कांग्रेस का कब्जा, एक बीजेपी के खाते में

  • साल 1965 में राजाखेड़ा विधायक प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे एम सिंह ने चुनाव लड़ा लेकिन वे हार गए.
  • साल 1978 में रूपवास विधायक ताराचंद की मृत्यु के बाद उनके बेटे ने चुनाव लड़ा वो भी चुनाव हार गए.
  • साल 1988 में खेतड़ी विधायक मालाराम के निधन के बाद उनके बेटे एच लाल को टिकट दिया गया लेकिन वो भी चुनाव हार गए.
  • साल 1995 में बयाना विधानसभा से विधायक बृजराज सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे शिव चरण सिंह को टिकट दिया गया लेकिन वो भी चुनाव हारे.
  • साल 1995 में बांसवाड़ा विधानसभा के विधायक पूर्व मुख्यमंत्री हरदेव जोशी के निधन के बाद जब उनके बेटे दिनेश जोशी को पार्टी ने टिकट दिया लेकिन वे सीट नहीं बचा सके.
  • साल 2000 में जब लूणकरणसर विधायक भीमसेन की मृत्यु के बाद उनके बेटे वीरेंद्र को टिकट दिया गया लेकिन उन्हें भी हार का मुहं देखना पड़ा.
  • साल 2002 में सागवाड़ा विधायक भीखाभाई के निधन के बाद उनके बेटे सुरेंद्र कुमार को टिकट दिया गया लेकिन वे हार गए.
  • साल 2005 में लूणी विधायक रामसिंह विश्नोई की मृत्यु के बाद उनके बेटे मलखान विश्नोई भी जीत नहीं पाए.

ऐसे में आज तक किसी विधायक के निधन पर उनके परिजनों को टिकट देने पर सहानुभूति का कोई लाभ किसी पार्टी को नहीं मिला, लेकिन इस उपचुनाव में पुराना इतिहास दोहराया नहीं गया, बल्कि एक नया इतिहास बना और तीनों सीटों पर दिवंगत विधायकों के परिजनों ने ही जीत दर्ज की.

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