हरिद्वार/देहरादून: शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती 99 वर्ष की आयु में ब्रह्मलीन हो गए, जिसके बाद से देशभर के साथ हरिद्वार के संत समाज में शोक की लहर है. वहीं, शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने से पहले उनके उत्तराधिकारियों के नाम भी घोषित हो गए हैं. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद (Swami Avimukteshwaranand Saraswati) को ज्योतिष पीठ बदरीनाथ और स्वामी सदानंद को द्वारका शारदा पीठ का प्रमुख घोषित किया गया है. उनके नामों की घोषणा शंकराचार्य जी की पार्थिव देह के सामने की गई है. वहीं, हरिद्वार के संतों ने शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को भारत सरकार से भारत रत्न देने की मांग की है.
वहीं, शंकराचार्य बनाए जाने की घोषणा के बाद ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा स्वामी स्वरूपानंद जैसी विभूति कोई दूसरी नहीं हो सकती. अपने जीवनकाल में ही उन्होंने अपना उत्तराधिकारी बनाकर कर्तव्य निभाया. उन्होंने अपना हर कर्तव्य पूरी जिम्मेदारी से निभाया. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा स्वामीजी को श्रद्धांजलि देने परमहंसी आश्रम में देश के सभी मठों से प्रतिनिधि आ रहे हैं.
जानिए कौन हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद: ज्यातिषपीठ के शंकराचार्य बनाए गए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का वाराणसी से गहरा नाता है. किशोरावस्था से ही काशी के केदारखंड में रहकर संस्कृत विद्या अध्ययन करने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और आचार्य की शिक्षा ग्रहण की है. इस दौरान छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के महामंत्री भी रहे.
भारत रत्न की मांग: वहीं, हरिद्वार के कनखल स्थित शंकराचार्य मठ में आयोजित शोक सभा में संतों ने शंकराचार्य की विद्वता और सरल स्वभाव का जिक्र करते हुए कहा कि स्वामी को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया जाना चाहिए. संतों ने केंद्र सरकार से उनकी जीवन यात्रा पूरी होने पर राष्ट्रीय शोक ओर उत्तराखंड के देहरादून में स्थित हवाई अड्डे का नाम भी शंकराचार्य हवाई अड्डा करने की मांग की.
प्राचीन अवधूत मंडल आश्रम के पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी रूपेंद्र प्रकाश महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज सनातन हिंदू धर्म के संरक्षक, संवर्धक रहे हैं. वो लगभग 45 वर्षों तक ज्योतिष शारदा पीठ पर विराजमान रहे हैं. स्वतंत्रता सेनानी, गौ रक्षक के रूप में उनकी भूमिका को सदैव याद याद किया जाता रहेगा. अध्यात्म जगत की ऐसी महान विभूति को जिसका जीवन सनातन हिंदू धर्म, गंगा की रक्षा के लिए समर्पित रहा, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में विशेष योगदान दिया, ऐसे महान संत को भारत सरकार विशिष्ट नागरिक अलंकरण भारत रत्न से सम्मानित करे.
ज्योतिर्मठ की मान्यता क्या है? कहा जाता कि है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने ज्योतिर्मठ में ही ज्ञान प्राप्त किया था और इसके बाद आदिगुरु शंकराचार्य ने भारत के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की थी. इसमें से एक मठ ज्योतिर्मठ भी है, जहां शंकर भाष्य की रचना की थी.